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20 अप्रैल, 2010। सुबह के साढे नौ बजे मैं उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री मार्ग पर स्थित हनुमानचट्टी गांव में था। यहां से आठ किलोमीटर आगे जानकीचट्टी है और चौदह किलोमीटर आगे यमुनोत्री। जानकीचट्टी तक मोटर मार्ग है और जीपें, बसें भी चलती हैं। बडकोट से जानकीचट्टी की पहली बस नौ बजे चलती है और वो दो घण्टे बाद ग्यारह बजे हनुमानचट्टी पहुंचती है। अभी साढे नौ ही बजे थे। मुझे पता चला कि जानकीचट्टी जाने के लिये केवल वही बस उपलब्ध है। अब मेरे सामने दो विकल्प थे – या तो डेढ घण्टे तक हनुमानचट्टी में ही बैठा रहूं या पैदल निकल पडूं। आखिर आठ किलोमीटर की ही तो बात है। दो घण्टे में नाप दूंगा। और एक कप चाय पीकर, एक कटोरा मैगी खाकर मैं हनुमानचट्टी से जानकीचट्टी तक पैदल ही निकल पडा।
कहते हैं कि यहां पर एक समय हनुमान जी ने बैठकर अपने शरीर को बढाया था। उनकी पूंछ भी इतनी बढ गयी थी कि एक पर्वत की चोटी को छूने लगी थी। उस पर्वत को आज बन्दरपूंछ पर्वत कहते हैं। बन्दरपूंछ की ही छत्रछाया में यमुनोत्री है। हनुमानचट्टी में हनुमान जी का एक छोटा सा मन्दिर है। यहां एक नदी भी आकर यमुना में मिलती है। इस नदी का नाम हनुमानगंगा है। यहां से हिमालयी बर्फीली चोटियां भी दिखाई देती हैं।
हनुमानचट्टी से आगे का सारा मार्ग बेपनाह प्राकृतिक खूबसूरती से भरा है। पर्वत, नदी, झरने, पेड-पौधे; सब अतुलनीय हैं। यहां यमुना बहुत गहरी घाटी बनाकर बहती है। यमुना के उस तरफ वाले पर्वत की चोटी को देखने के लिये सिर गर्दन से मिलाना पडता है, इसी तरह नीचे बहती यमुना को देखने के लिये ठोडी छाती को छूने लगती है। दो-एक किलोमीटर चलने पर ही मुझे चक्कर आने लगे। आज तक कभी भी मुझे चक्कर नहीं आये थे। इसका कारण गहरी यमुना घाटी और ऊंचे शिखर थे।
चार-पांच किलोमीटर के बाद फूलचट्टी गांव आता है। यह एक बेहद छोटा सा गांव है। गांव एक थोडी सी समतल जमीन पर बसा हुआ है। यहां तक आते आते मुझे भी थकान होने लगी थी। फूलचट्टी से दो किलोमीटर आगे यमुना पर एक पुल है। पुल से एक किलोमीटर आगे जानकीचट्टी दिखने लगा है। इसी पुल के पास बडकोट से आने वाली बस ने मुझे पार किया। बेशक बस मुझसे पहले चली गयी हो, लेकिन इसका मुझे कोई अफसोस नहीं है। साढे बारह बजे के आसपास मैं जानकीचट्टी में था। तय किया कि यहां से यमुनोत्री के लिये दो बजे के बाद ही चलूंगा। लेकिन कहीं भी बैठने के लिये जगह नहीं मिली। हालांकि यह काफी बडा गांव है। बहुत सी दुकानें भी हैं, होटल भी हैं लेकिन सभी बन्द थे। क्योंकि अभी यात्रा सीजन शुरू नहीं हुआ था। सोलह मई के बाद यहां रौनक हो जायेगी। अभी तो हर तरफ निर्माण और मरम्मत कार्य चल रहा है।
जानकीचट्टी पार हो गया, तब एक दुकान मिली। घर में ही दुकान बना रखी थी। दुकान के एक हिस्से में चूल्हा जल रहा था, घर के सदस्यों के लिये खाना बन रहा था। जब एक मुसाफिर दुकान के सामने पडी बेंच पर आ बैठा तो एक सदस्य उठकर आया और पूछने लगा कि क्या लाऊं। चाय मंगा ली। आठ-नौ किलोमीटर पैदल चलकर आया था, बहुत थका हुआ था। दो-ढाई बजे से पहले उठने का मन नहीं था। जब चाय खतम हो गयी तभी मेरे पास में ही कुछ लोग आये। उनमें दो पुरुष, एक महिला, दो बच्चे थे। उनके पहनावे को देखकर मैने अन्दाजा लगा लिया कि ये भी कहीं बाहर से आये हैं और यमुनोत्री जा रहे हैं। वे ज्यादा देर रुके नहीं। मालूम करने पर पता चला कि वे राजस्थान के भरतपुर से आये थे। असल में वे कुम्भ में आये थे, समय था तो यमुनोत्री की तरफ चले आये। उनके साथ उनका ड्राइवर भी था। मैं भी इनके साथ ही हो लिया। सोचा कि साथ चलने से पांच किलोमीटर का पैदल सफर कट जायेगा। जब उन्हे पता चला कि मैं दिल्ली से आया हूं और अकेला ही आया हूं तो आश्चर्य करने लगे। पता नहीं क्या बात है कि मैं जहां भी जाता हूं और किसी को पता चल जाता है कि मैं इतनी दूर अकेला ही आ गया हूं तो आश्चर्य करने लगते हैं।
कहते हैं कि यहां पर एक समय हनुमान जी ने बैठकर अपने शरीर को बढाया था। उनकी पूंछ भी इतनी बढ गयी थी कि एक पर्वत की चोटी को छूने लगी थी। उस पर्वत को आज बन्दरपूंछ पर्वत कहते हैं। बन्दरपूंछ की ही छत्रछाया में यमुनोत्री है। हनुमानचट्टी में हनुमान जी का एक छोटा सा मन्दिर है। यहां एक नदी भी आकर यमुना में मिलती है। इस नदी का नाम हनुमानगंगा है। यहां से हिमालयी बर्फीली चोटियां भी दिखाई देती हैं।
हनुमानचट्टी से आगे का सारा मार्ग बेपनाह प्राकृतिक खूबसूरती से भरा है। पर्वत, नदी, झरने, पेड-पौधे; सब अतुलनीय हैं। यहां यमुना बहुत गहरी घाटी बनाकर बहती है। यमुना के उस तरफ वाले पर्वत की चोटी को देखने के लिये सिर गर्दन से मिलाना पडता है, इसी तरह नीचे बहती यमुना को देखने के लिये ठोडी छाती को छूने लगती है। दो-एक किलोमीटर चलने पर ही मुझे चक्कर आने लगे। आज तक कभी भी मुझे चक्कर नहीं आये थे। इसका कारण गहरी यमुना घाटी और ऊंचे शिखर थे।
चार-पांच किलोमीटर के बाद फूलचट्टी गांव आता है। यह एक बेहद छोटा सा गांव है। गांव एक थोडी सी समतल जमीन पर बसा हुआ है। यहां तक आते आते मुझे भी थकान होने लगी थी। फूलचट्टी से दो किलोमीटर आगे यमुना पर एक पुल है। पुल से एक किलोमीटर आगे जानकीचट्टी दिखने लगा है। इसी पुल के पास बडकोट से आने वाली बस ने मुझे पार किया। बेशक बस मुझसे पहले चली गयी हो, लेकिन इसका मुझे कोई अफसोस नहीं है। साढे बारह बजे के आसपास मैं जानकीचट्टी में था। तय किया कि यहां से यमुनोत्री के लिये दो बजे के बाद ही चलूंगा। लेकिन कहीं भी बैठने के लिये जगह नहीं मिली। हालांकि यह काफी बडा गांव है। बहुत सी दुकानें भी हैं, होटल भी हैं लेकिन सभी बन्द थे। क्योंकि अभी यात्रा सीजन शुरू नहीं हुआ था। सोलह मई के बाद यहां रौनक हो जायेगी। अभी तो हर तरफ निर्माण और मरम्मत कार्य चल रहा है।
जानकीचट्टी पार हो गया, तब एक दुकान मिली। घर में ही दुकान बना रखी थी। दुकान के एक हिस्से में चूल्हा जल रहा था, घर के सदस्यों के लिये खाना बन रहा था। जब एक मुसाफिर दुकान के सामने पडी बेंच पर आ बैठा तो एक सदस्य उठकर आया और पूछने लगा कि क्या लाऊं। चाय मंगा ली। आठ-नौ किलोमीटर पैदल चलकर आया था, बहुत थका हुआ था। दो-ढाई बजे से पहले उठने का मन नहीं था। जब चाय खतम हो गयी तभी मेरे पास में ही कुछ लोग आये। उनमें दो पुरुष, एक महिला, दो बच्चे थे। उनके पहनावे को देखकर मैने अन्दाजा लगा लिया कि ये भी कहीं बाहर से आये हैं और यमुनोत्री जा रहे हैं। वे ज्यादा देर रुके नहीं। मालूम करने पर पता चला कि वे राजस्थान के भरतपुर से आये थे। असल में वे कुम्भ में आये थे, समय था तो यमुनोत्री की तरफ चले आये। उनके साथ उनका ड्राइवर भी था। मैं भी इनके साथ ही हो लिया। सोचा कि साथ चलने से पांच किलोमीटर का पैदल सफर कट जायेगा। जब उन्हे पता चला कि मैं दिल्ली से आया हूं और अकेला ही आया हूं तो आश्चर्य करने लगे। पता नहीं क्या बात है कि मैं जहां भी जाता हूं और किसी को पता चल जाता है कि मैं इतनी दूर अकेला ही आ गया हूं तो आश्चर्य करने लगते हैं।
हनुमानचट्टी में हनुमानगंगा पर बना पुल |
अगला भाग: जानकीचट्टी से यमुनोत्री
यमुनोत्री यात्रा श्रंखला
1. यमुनोत्री यात्रा
2. देहरादून से हनुमानचट्टी
3. हनुमानचट्टी से जानकीचट्टी
4. जानकीचट्टी से यमुनोत्री
5. कभी ग्लेशियर देखा है? आज देखिये
6. यमुनोत्री में ट्रैकिंग
7. तैयार है यमुनोत्री आपके लिये
8. सहस्त्रधारा- द्रोणाचार्य की गुफा
बहुत बढ़िया नीरज जी, मैं समझता हूँ कि आपके इस रोचक यात्रा विवरण से काफी लोग वहां जाने को उत्साहित होते होगे अत : गढ़वाल मंडल विकास निगम को आपको इसके लिए कुछ पारितोषिक देना चाहिए !
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्रों सहित यात्रा करवाई, आगे का इंतजार है.
ReplyDeleteरामराम.
हमें पता है कि आप कहीं भी अकेले जा सकते हो और हमें कोई हैरानी नहीं होती।
ReplyDeleteआश्चर्य इस बात है कि मुसाफिर को भी थकान हो जाती है।
राम-राम
अभी तक यात्रा में खूब मजा आ रहा है . यमुनोत्री का इन्तेजार है . वैसे तसवीरें थोड़ी धुंधली सी है क्यों ? लग रहा है किसी थके आदमी ने ली है या लेंस पर धुल जम गई होगी !
ReplyDeleteफिर भी मुसाफिर के साथ यमुनोत्री यात्रा में खूब मजा आ रहा है .
लगे रहो !मुसाफिर भाई
ब्लॉगर तुम्हारे साथ है
अभी तक यात्रा में खूब मजा आ रहा है . यमुनोत्री का इन्तेजार है . वैसे तसवीरें थोड़ी धुंधली सी है क्यों ? लग रहा है किसी थके आदमी ने ली है या लेंस पर धुल जम गई होगी !
ReplyDeleteफिर भी मुसाफिर के साथ यमुनोत्री यात्रा में खूब मजा आ रहा है .
लगे रहो !मुसाफिर भाई
नन्हा ब्लॉगर तुम्हारे साथ है
अभी तक यात्रा में खूब मजा आ रहा है . यमुनोत्री का इन्तेजार है . वैसे तसवीरें थोड़ी धुंधली सी है क्यों ? लग रहा है किसी थके आदमी ने ली है या लेंस पर धुल जम गई होगी !
ReplyDeleteफिर भी मुसाफिर के साथ यमुनोत्री यात्रा में खूब मजा आ रहा है .
लगे रहो !मुसाफिर भाई
नन्हा ब्लॉगर तुम्हारे साथ है
घूमने का असली आनन्द आप ले रहे हैं । हम लोग तो इसी में व्यथित रहते हैं कि फलाँ जगल पर कोई सुविधा मिलेगी कि नहीं ।
ReplyDeleteकभी अवसर लगा तो आपके साथ निकला जायेगा । आप बंगलोर आमन्त्रित हैं । यहाँ आसपास बहुत है घूमने के लिये ।
भाई आनंद ला दिया इस यात्रा ने...सच में तुम ब्लॉग जगत के वास्को डी गामा हो...नाव ना सही दो पैर तो हैं...गज़ब की पोस्ट और मनोरम दृश्य...अहाहा..मज़ा आ गया...
ReplyDeleteनीरज
भाई आनंद ला दिया इस यात्रा ने...सच में तुम ब्लॉग जगत के वास्को डी गामा हो...नाव ना सही दो पैर तो हैं...गज़ब की पोस्ट और मनोरम दृश्य...अहाहा..मज़ा आ गया...
ReplyDeleteनीरज
Aapki ghumakkadi ko pranaam.
ReplyDeleteछोरे, जी सा आ ग्या।
ReplyDeleteप्यारे, तुम चीज ही इतनी जबरद्स्त हो कि लोग तुम्हें देखकर हैरान हो जायें। लोग जहां इतनी तैयारी और संगी-साथ लेकर घूमने के लिये निकलते हैं, तुम अकेले ही इतनी दुर्गम जगहों पर पहुंच जाते हो।
मेरी नजर में नीरज जाट 'THE TRAVELLER'. मेरे हाथ में नहीं है प्यारे नहीं तो भारत सरकार की तरफ़ से ’घुमक्कड़ श्री’ या ’सैलानी श्री’ का अवार्ड दिलवा देता तुम्हें। अभी भाईयों की शुभकामनाओं से काम चलाओ।
लगे रहो।
आपका यात्रा संस्मरण बहुत ही अच्छा रहा!
ReplyDeleteआज हिंदी ब्लागिंग का काला दिन है। ज्ञानदत्त पांडे ने आज एक एक पोस्ट लगाई है जिसमे उन्होने राजा भोज और गंगू तेली की तुलना की है यानि लोगों को लडवाओ और नाम कमाओ.
ReplyDeleteलगता है ज्ञानदत्त पांडे स्वयम चुक गये हैं इस तरह की ओछी और आपसी वैमनस्य बढाने वाली पोस्ट लगाते हैं. इस चार की पोस्ट की क्या तुक है? क्या खुद का जनाधार खोता जानकर यह प्रसिद्ध होने की कोशीश नही है?
सभी जानते हैं कि ज्ञानदत्त पांडे के खुद के पास लिखने को कभी कुछ नही रहा. कभी गंगा जी की फ़ोटो तो कभी कुत्ते के पिल्लों की फ़ोटूये लगा कर ब्लागरी करते रहे. अब जब वो भी खत्म होगये तो इन हरकतों पर उतर आये.
आप स्वयं फ़ैसला करें. आपसे निवेदन है कि ब्लाग जगत मे ऐसी कुत्सित कोशीशो का पुरजोर विरोध करें.
जानदत्त पांडे की यह ओछी हरकत है. मैं इसका विरोध करता हूं आप भी करें.
अच्छा लगा हनुमानचट्टी और फिर जानकीचट्टी तक का यात्रा विवरण पढ़कर। वैसे जब मसूरी गया था तो लोगों ने बताया था कि केंप्टी फाल से भी एक रास्ता यमुनोत्री को जाता है। क्या वो दूसरा रास्ता है?
ReplyDeleteमनीष जी,
ReplyDeleteमैं भी मसूरी, कैम्पटी फाल के ही रास्ते से गया था। देहरादून से यमुनोत्री जाने का मुख्य रास्ता भी यही है।
बहुत बढ़िया ..................रोचक
ReplyDeletebahut achhe ab to bas yahi padhta rehta hoon rozana
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