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अभी तक आपने पढा कि मैं केदारनाथ के लिये चला था। रास्ते में बुद्धि फिर गयी और मैं यमुनोत्री जाने लगा। देहरादून से बडकोट जाने वाली आखिरी बस निकल गयी थी। अब मैने प्रेस की गाडी से जाने का इरादा बनाया। यह पटेल नगर से रात को बारह बजे चलती है। इसमें वैसे तो अखबार के बण्डल लदे होते हैं। फिर भी ड्राइवर सवारियां बैठा लेता है। चूंकि रात का सफर था, यह सोचकर मैं देहरादून रेलवे स्टेशन पर खाली पडी बेंच पर ही सो गया। शाम को सात बजे सोया था, आंख खुली साढे दस बजे। वो भी पता नहीं कैसे खुल गयी। मन्द मन्द हवा चल रही थी, मुझे कुछ थकान भी थी और सबसे बडी बात कि मच्छर नहीं थे। हां, याद आया, सफाई वाले ने उठाया था। खाज होती है ना कुछ लोगों को। भई, तुझे झाडू मारनी थी, चुपचाप बेंच के नीचे मार लेता, मैने तो वहां जूते भी नहीं निकाल रखे हैं। औकात दिखा रहा है कि मैं भी कुछ हूं। एक रेलवे पुलिस वाले भी ऐसे ही होते हैं।
खैर, जीप चल पडी। मसूरी होते हुए फिर डामटा, नौगांव होते हुए बडकोट पहुंचे। मैं ड्राइवर के पीछे बैठा था। ज्यादातर समय सोता रहा। ड्राइवर ने खिडकी का शीशा खोल रखा था, ठण्डी हवा आ रही थी, मैने टीशर्ट पहन रखी थी, ठण्ड लगने लगी। टीशर्ट निकाल दी, गर्म इनर पहना, ऊपर एक शर्ट पहन ली, फिर एक चादर ओढ ली। चादर में एक छेद भी था। तब जाकर तसल्ली मिली।
बडकोट – सुबह के साढे चार बजे। समुद्र तल से 1828 मीटर की ऊंचाई पर। ठेठ हिमालयी कस्बा – गढवाली। यमुना तट पर बसा हुआ। यहां का मौसम सालभर खासकर गर्मियों में मस्त रहता है। यह उत्तरकाशी जिले में पडता है। यहां हर सुविधा उपलब्ध है – खाने की, पीने की, रहने की, आने-जाने की। मेरे साथ उसी जीप में तीन-चार सवारियां और थीं। जाते ही मोटे-मोटे झबरे पहाडी कुत्तों ने स्वागत किया। भौंके भांके नहीं, बल्कि हमारी तरफ देखा तलक नहीं, वे तो अपनी मैडम कुत्ती को पटाने में लगे थे। जीप वाले ने एक दुकान के चबूतरे पर अखबार पटके और चला गया वापस देहरादून। बाकी लोग भी यहीं के थे। उन्होने एक दुकान के शटर को दो तीन बार पीटा, शटर खुल गया। यह एक हलवाई की दुकान थी। चाय बनने लगी। कम से कम बैठने को जगह तो मिली। नहीं तो इंसान कैसा होता है, पता ही नहीं चल रहा था। इंसान की जात हमारे अलावा दूर दूर तक दिख ही नहीं रही थी।
पांच बज गये, उजाला होने लगा। हलचल होने लगी। बडकोट इतना बडा कस्बा है लेकिन बस अड्डा नाम की कोई जगह नहीं। हालांकि यह विकासनगर, देहरादून, जानकीचट्टी, पुरोला, उत्तरकाशी से आने वाली ज्यादातर बसों का टर्मिनल है। बसें मुख्य बाजार में सडक पर ही खडी होती हैं। एक तो मुख्य बाजार, फिर पहाडी सडक, दो लेन वाली। जहां एक दुकान के सामने उत्तरकाशी जाने वाली बस खडी है, वहीं उस बस के पीछे दूसरी तरफ मुंह करके देहरादून वाली बस भी खडी है। सभी बसों के पहिये सात बजे के बाद ही घूमते हैं। मुझे जानकीचट्टी जाना था। वहां जाने वाली पहली बस थी साढे नौ बजे यानी तीन घण्टे बाद। यहां से थोडी ही दूरी पर जीप स्टैण्ड भी है। मालूम पडा कि चूंकि अभी यात्रा सीजन शुरू नहीं हुआ है, इसलिये जानकीचट्टी वाली जीप मुश्किल से ही मिलेगी। काफी देर बाद एक जीपवाला अन्य सवारियों के अनुरोध पर हनुमानचट्टी तक जाने को राजी हुआ। वे सवारियां हनुमानचट्टी और रास्ते में पडने वाले गांवों के निवासी थे, कुछ मास्टरजी थे, स्कूल में पढाने जा रहे थे। जानकीचट्टी की कोई सवारी नहीं थी।
बडकोट से करीब 40-45 किलोमीटर दूर हनुमानचट्टी है। साढे सात बजे चलकर जीप नौ बजे वहां पहुंची। रास्ते की हालत इस समय बहुत खराब है। लोगों का कहना है कि उत्तर प्रदेश शासन में तो ऐसी सडक भी नहीं थी। कम से कम अब सडक बन गयी है, गाडियां भी चल रही हैं, राजधानी देहरादून से सीधी बस सेवा चल रही है। असल में अब पहाड को और काटकर ज्यादा चौडी सडक बनायी जा रही है। जगह-जगह मलबा पडा है। जगह-जगह गड्ढे है।
हनुमानचट्टी – समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 2134 मीटर। रास्ते में कई चट्टी और भी पडती हैं जैसे स्यानाचट्टी, रानाचट्टी। हनुमानचट्टी में यमुना और हनुमान गंगा का मिलन होता है। यहां से हिमालय की बरफ भी दिखने लगती है।
खैर, जीप चल पडी। मसूरी होते हुए फिर डामटा, नौगांव होते हुए बडकोट पहुंचे। मैं ड्राइवर के पीछे बैठा था। ज्यादातर समय सोता रहा। ड्राइवर ने खिडकी का शीशा खोल रखा था, ठण्डी हवा आ रही थी, मैने टीशर्ट पहन रखी थी, ठण्ड लगने लगी। टीशर्ट निकाल दी, गर्म इनर पहना, ऊपर एक शर्ट पहन ली, फिर एक चादर ओढ ली। चादर में एक छेद भी था। तब जाकर तसल्ली मिली।
बडकोट – सुबह के साढे चार बजे। समुद्र तल से 1828 मीटर की ऊंचाई पर। ठेठ हिमालयी कस्बा – गढवाली। यमुना तट पर बसा हुआ। यहां का मौसम सालभर खासकर गर्मियों में मस्त रहता है। यह उत्तरकाशी जिले में पडता है। यहां हर सुविधा उपलब्ध है – खाने की, पीने की, रहने की, आने-जाने की। मेरे साथ उसी जीप में तीन-चार सवारियां और थीं। जाते ही मोटे-मोटे झबरे पहाडी कुत्तों ने स्वागत किया। भौंके भांके नहीं, बल्कि हमारी तरफ देखा तलक नहीं, वे तो अपनी मैडम कुत्ती को पटाने में लगे थे। जीप वाले ने एक दुकान के चबूतरे पर अखबार पटके और चला गया वापस देहरादून। बाकी लोग भी यहीं के थे। उन्होने एक दुकान के शटर को दो तीन बार पीटा, शटर खुल गया। यह एक हलवाई की दुकान थी। चाय बनने लगी। कम से कम बैठने को जगह तो मिली। नहीं तो इंसान कैसा होता है, पता ही नहीं चल रहा था। इंसान की जात हमारे अलावा दूर दूर तक दिख ही नहीं रही थी।
पांच बज गये, उजाला होने लगा। हलचल होने लगी। बडकोट इतना बडा कस्बा है लेकिन बस अड्डा नाम की कोई जगह नहीं। हालांकि यह विकासनगर, देहरादून, जानकीचट्टी, पुरोला, उत्तरकाशी से आने वाली ज्यादातर बसों का टर्मिनल है। बसें मुख्य बाजार में सडक पर ही खडी होती हैं। एक तो मुख्य बाजार, फिर पहाडी सडक, दो लेन वाली। जहां एक दुकान के सामने उत्तरकाशी जाने वाली बस खडी है, वहीं उस बस के पीछे दूसरी तरफ मुंह करके देहरादून वाली बस भी खडी है। सभी बसों के पहिये सात बजे के बाद ही घूमते हैं। मुझे जानकीचट्टी जाना था। वहां जाने वाली पहली बस थी साढे नौ बजे यानी तीन घण्टे बाद। यहां से थोडी ही दूरी पर जीप स्टैण्ड भी है। मालूम पडा कि चूंकि अभी यात्रा सीजन शुरू नहीं हुआ है, इसलिये जानकीचट्टी वाली जीप मुश्किल से ही मिलेगी। काफी देर बाद एक जीपवाला अन्य सवारियों के अनुरोध पर हनुमानचट्टी तक जाने को राजी हुआ। वे सवारियां हनुमानचट्टी और रास्ते में पडने वाले गांवों के निवासी थे, कुछ मास्टरजी थे, स्कूल में पढाने जा रहे थे। जानकीचट्टी की कोई सवारी नहीं थी।
बडकोट से करीब 40-45 किलोमीटर दूर हनुमानचट्टी है। साढे सात बजे चलकर जीप नौ बजे वहां पहुंची। रास्ते की हालत इस समय बहुत खराब है। लोगों का कहना है कि उत्तर प्रदेश शासन में तो ऐसी सडक भी नहीं थी। कम से कम अब सडक बन गयी है, गाडियां भी चल रही हैं, राजधानी देहरादून से सीधी बस सेवा चल रही है। असल में अब पहाड को और काटकर ज्यादा चौडी सडक बनायी जा रही है। जगह-जगह मलबा पडा है। जगह-जगह गड्ढे है।
हनुमानचट्टी – समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 2134 मीटर। रास्ते में कई चट्टी और भी पडती हैं जैसे स्यानाचट्टी, रानाचट्टी। हनुमानचट्टी में यमुना और हनुमान गंगा का मिलन होता है। यहां से हिमालय की बरफ भी दिखने लगती है।
हनुमानचट्टी में हनुमानजी ने तपस्या की थी। |
हनुमान गंगा |
हनुमान गंगा जो यमुना में मिल जाती है। |
अगला भाग: हनुमानचट्टी से जानकीचट्टी
यमुनोत्री यात्रा श्रंखला
1. यमुनोत्री यात्रा
2. देहरादून से हनुमानचट्टी
3. हनुमानचट्टी से जानकीचट्टी
4. जानकीचट्टी से यमुनोत्री
5. कभी ग्लेशियर देखा है? आज देखिये
6. यमुनोत्री में ट्रैकिंग
7. तैयार है यमुनोत्री आपके लिये
8. सहस्त्रधारा- द्रोणाचार्य की गुफा
अब क्या कहें..आपके साथ नारा बुलंद कर लेते हैं: घुमक्कडी जिन्दाबाद
ReplyDelete-अगले हिस्से का इन्तजार है.
एक ज़माना था मुझे भी घूमने फिरने का बहुत शौक था, पर अब समय नहीं मिलता ... इसलिए भ्रमण आख्यान पढकर शौक पूरा कर लेता हूँ ... फिर भी कभी कहीं गया तो कोशिश करता हूँ कि ज्यादा से ज्यादा यादें लेकर लौट सकूं ....
ReplyDeleteसुन्दर आलेख और चित्र. कैसे घूम पाते हो इतना?
ReplyDeleteहनुमान चट्टी का यात्रा वृत्तांत मजेदार रहा.
ReplyDelete"चादर में एक छेद भी था। तब जाकर तसल्ली मिली"
ReplyDeleteबात कुछ समझ में नही आयी।
राम-राम
lajawab v rochak najare
ReplyDeleteshukriya in photo ko dikhane ke liye
जबरस्त यात्रा वृतांत है , बिलकुल देसी अंदाज में . एक एक घटना रोमांचित कर रही है . झाड़ू वाले ने गलती की , आप को उठा दिया , शायद उसे आपके बारे में पता नहीं था , वरना भारत की सही तस्वीर दिखाने वाले को कच्ची नींद से नहीं उठाता . मोटे-मोटे झबरे पहाडी कुत्तों ने आपका स्वागत किया, उन्हें तो करना ही था .
ReplyDeleteआगे की कहानी का बेसब्री से इन्तेजार रहेगा
http://madhavrai.blogspot.com/
अरे मस्त मोला जी आप भी जुगाडी हो ओर पता नही कहां कहां से आने जाने की जानकारी पता कर लेते हो, बहुत अच्छा लगा आप की यात्रा का यह विवरण, मजे दार,जब तक पांव मै शादी की बेडियां नही पडती ऎश करलो.... अब तो मजा आता है आप का लेख पढ कर
ReplyDeleteआपका यात्रा वृत्तान्त पढ़कर आनन्द आता है ।
ReplyDelete"चादर में एक छेद भी था। तब जाकर तसल्ली मिली।"
ReplyDelete"जाते ही मोटे-मोटे झबरे पहाडी कुत्तों ने स्वागत किया। भौंके भांके नहीं, बल्कि हमारी तरफ देखा तलक नहीं, वे तो अपनी मैडम कुत्ती को पटाने में लगे थे।"
नीरज, जवाब नहीं भाई तेरा। कितनी सरल भाषा और दिल जीत लेता है यार।
बिंदास।
इब आगे की यात्रा का इंतज़ार रहेगा।
प्यास बढ़ाते जा रहे हो हमारी।
बस चार फ़ोटो ! ओह !
ReplyDeleteकैसे इतना समय निकाल पाते हो नीरज ? जलन होती है यार !
ReplyDeleteआपके यात्रा-संस्मरणों का जवाब नही!
ReplyDeleteशास्त्री जी,
ReplyDeleteआपकी दी गयी टिप्पणी हमारे ब्लॉग पर कुल मिलाकर 2000 वीं टिप्पणी है।