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कभी ग्लेशियर देखा है? आज देखिये

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अभी तक आपने पढा कि मैं पिछले महीने अकेला ही यमुनोत्री पहुंच गया। अभी यात्रा सीजन शुरू भी नहीं हुआ था। यमुनोत्री में उस शाम को केवल मैं ही अकेला पर्यटक था, समुद्र तल से 3200 मीटर से भी ऊपर। मेरे अलावा वहां कुछ मरम्मत का काम करने वाले मजदूर, एक चौकीदार और एक महाराज जी थे, महाराज जी के साथ दो-तीन चेले-चपाटे भी थे। मैने रात में ठहरने के लिये चौकीदार के यहां जुगाड कर लिया। चौकीदार के साथ दो जने और भी रहते थे, एक उसका लडका और एक नेपाली मजदूर। दो कमरे थे, एक में चूल्हा-चौकी और दूसरे में बाकी सामान। बातों-बातों में मैने उनके समक्ष सप्तऋषि कुण्ड जाने की इच्छा जताई। उसने बताया कि वहां जाने का रास्ता बेहद दुर्गम है, दूरी चौदह किलोमीटर है। बिना गाइड के बिल्कुल भी मत जाना, इस समय कोई गाइड भी नहीं मिलेगा। मैने पूछा कि क्या आप वहां तक कभी गये हो? उसने बताया कि हां, मैं तो कई बार जा चुका हूं।

मेरे जिद करने पर वो गाइड बनने के लिये तैयार हो गया, पांच सौ रुपये में। तय हुआ कि कल सुबह सुबह छह बजे निकल पडेंगे। चूंकि यमुनोत्री में भी कोई आदमजात नहीं थी, ऊपर क्या खाक मिलेगी। उसने यह भी बताया कि हो सकता है कि अभी वहां बर्फ हो, रास्ता ना हो, लेकिन जहां तक रास्ता मिलेगा जायेंगे। हमारे साथ में नेपाली और चौकीदार का लडका भी चलने को तैयार हो गये। उस शाम को मेरा खाना चौकीदार ने अपने यहां ही बनाया था; राजमा, रोटी और चावल। सबके साथ बैठकर बिना चम्मच के खाना खाने में आनन्द आ गया। उस समय तो मैं उनके घर के मेहमान जैसा था।

सोते समय देखा कि कैमरे की सेलें खत्म होने वाली हैं। उन्होनें बताया कि रोज तो शाम पांच बजे ही बिजली आ जाती है, आज आठ बज गये, अभी तक नहीं आयी। मुझे चिन्ता थी कि अगर सेल चार्ज नहीं हुईं तो कल की यात्रा की ऐसी-तैसी हो जायेगी। आज बिजली ना आने का कारण था कि मौसम खराब था। हल्की-हल्की बूंदें पड रही थीं। चौकीदार के कमरे से कुछ ही दूरी पर महाराज जी की गुफा है। गुफा के सामने ही एक टॉयलेट बना हुआ है। इसके बराबर में एक छोटा सा कमरा है, इसमें जनरेटर चल रहा था। इसका उपयोग केवल महाराज और चेलों के लिये ही था। मैं सेल और चार्जर लेकर जनरेटर के पास गया। लडके ने बताया कि हमारी और महाराज की बनती नहीं है, इसलिये तुम ही गुफा में जाकर महाराज से बात कर लो, थोडी देर भी चार्जिंग पर लग जायेगा, तो कल की बात बन जायेगी। मेरी भी हिम्मत नहीं हुई। तभी निगाह पडी टॉयलेट के दरवाजे के पास में एक चार्जिंग पॉइंट पर। फटाफट लगा दिया, लेकिन यहां इस पर बारिश की छींटें पड रही थीं। इससे बचने के लिये इसे पन्नी से अच्छी तरह ढक दिया। और वापस आकर सो गये।

सुबह साढे पांच बजे अलार्म बजा। यमुना की जोरदार आवाज आ रही थी। बाहर निकलकर देखा कि मूसलाधार बारिश हो रही है। ऐसे में सप्तऋषि कुण्ड जा ही नहीं सकते। वापस आकर सो गया। नौ बजे चौकीदार चाय लेकर आ गया – बिना दूध की चाय। ये लोग दूध दुर्लभ होने की वजह से बिना दूध की ही पीते हैं। कौन जाये रोज-रोज दूध लेने नीचे जानकीचट्टी? उसने भी यही बताया कि बारिश में जाना सही नहीं था, इसलिये मैने आपको नहीं उठाया। चाय पीकर बाहर निकला। अब बारिश थम गयी थी। हल्की धूप भी खिल गयी थी। चार्जर के पास गया, देखा कि पन्नी तो उड गयी है। चार्जर बर्फ सा ठण्डा हुआ पडा है। सेलें भी भीग गयी हैं। अब गये ये तो काम से। कैमरे में लगाकर देखा तो बैटरी फ़ुल। दो जोडी सेलें थी, दोनों ही फ़ुल चार्ज। जय हो यमुना मैया। अपने यहां भीग जाती तो इनका काम तमाम था।

दस बजे तक मौसम पूरा खुल जाने पर चौकीदार ने कहा कि आपका आज का पूरा दिन खराब हो जायेगा। चलो, आपको आसपास घुमाकर लाता हूं। अब निकल पडे हम चारों यमुनोत्री से यमुना के साथ-साथ विपरीत दिशा में। यानी और ऊपर की ओर। अब आगे की कहानी चित्रों की जुबानी:
यशपाल, चौकीदार का लडका। मेरे उठने से पहले ही लकडी लाने जंगल में चला गया था।

ऊपर से बहकर आती यमुना। हम भी बहाव के विपरीत दिशा में चल पडे - बिना किसी लक्ष्य के।

करीब सौ मीटर आगे ही गये होंगे कि बर्फ का ग्लेशियर मिल गया। जिन्दगी में पहली बार ग्लेशियर देखा। महीनों से बरफ जमी पडी है। बरफ के नीचे से पानी आता है।

और आगे जाने के लिये बरफ के ऊपर से ही जाना पडेगा। नीचे पानी बह रहा है। पता नहीं, कहां से बरफ मोटी है और कहां से पतली। नेपाली यही सोच रहा है।

ऊपर से देखने पर बरफ के मिजाज का पता नहीं चलता। हो सकता है कि जहां हम पैर रख रहे हों, वहां कुछ इंच ही मोटाई हो। अगर ऐसी जगह पर पैर पड गया तो नीचे बहते ठण्डे पानी, ऊपर जमी बरफ, और नीचे दबी चट्टानों में ऐसे फंसेंगे कि कोई चाह कर भी ना तो बच सकता है ना ही कोई बचा सकता है। चौकीदार का कहना है कि इन जगहों में हर साल कई लोग डूब जाते हैं।

अच्छी तरह जांच परख कर ही ग्लेशियर पर चला जाता है। मेरे लिये इससे बडी बात और क्या थी कि मुझे तीन गाइड मिले थे इन रास्तों पर चलना सिखाने के लिये।

बरफ की ऊपरी सतह से भी कुछ कुछ अन्दाजा लग जाता है कि किस जगह पर खतरा है। ऐसा अन्दाजा केवल अनुभवियों को ही होता है, मुझ जैसों को नहीं।

करीब आधा किलोमीटर ग्लेशियर पर चलने के बाद आता है शानदार झरना। यह यमुना ही है। यही पर त्रिवेणी भी है यानी तीन तरफ से तीन नदियां आकर मिलती हैं। लेकिन तीनों नदियां कहीं पर भी मिलती नहीं दिखती। कारण है बरफ। बरफ के नीचे ही कहीं मिलती हैं।

ग्लेशियर पर खडा एक घुमक्कड। जैकेट है नेपाली मजदूर की। बाकी तो अपने ही हैं। बडा मजा आता है दसियों फुट मोटी बरफ पर चलने में।

ये पहाडी लोग पता नहीं कौन सी इन्द्री विकसित कर लेते हैं कि मुश्किल से मुश्किल जगह पर आसानी से चले जाते हैं। मैने इसे चढते हुए बडे ध्यान से देखा, फिर जब खुद चढने लगा तो पैर फिसलने लगे, हाथों से घास पकडी तो घास उखडने लगी। आखिरकार इसका पीछा करना छोड दिया।

यह वही त्रिवेणी वाला झरना है। नेपाली ऊपर वाले चित्र में दिखाये अनुसार चढकर इसी के करीब गया था। उत्साह था इस बन्दे में। कहता है कि ‘नीचे’ वाला इलाका बकवास है। नीचे मतलब मैदानी इलाका। नौकरी ढूंढने जाओ तो दो हजार की नौकरी मिलेगी, दो हजार का ही एक कमरा मिलेगा। एक तरफ से कमाओ और दूसरी तरफ खर्च कर दो। बचत है तो केवल पहाड में। मैं आजकल सरिये का काम कर रहा हूं। सीजन शुरू हो जायेगा तो चौकीदार के ही ‘होटल’ में मुनीम बन जाऊंगा। जो भी कमाई होगी, सारी जेब में ही तो जायेगी। हजारों रुपये इकट्ठे करके नेपाल जाऊंगा।

त्रिवेणी झरने का विहंगम दृश्य। त्रिवेणी नाम कहीं भी लिखा नहीं मिलेगा। मैं केवल सुविधा के लिये इस शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूं। इन पहाडों में इस तरह के अनगिनत झरने हैं, एक से बढकर एक।

खडे पहाडों के बीच फैला ग्लेशियर। दूर उस सिरे पर दो जने दिख रहे हैं। चौकीदार और नेपाली हैं वे। उन्हे एक पेड का ठूंठ मिल गया था। उसे उठाने गये हैं।

(यह वीडियो 26 सेकण्ड की है। इसमें ग्लेशियर और इसमें से निकलती यमुना दिखाई गयी है।)

(यह वीडियो 18 सेकण्ड की है। इसमें बरफ और उस पर चलते हुए जने दिखाये गये हैं। हालांकि वीडियो की गुणवत्ता अच्छी नहीं है, फिर भी यमुना जी का प्रसाद समझ कर ग्रहण कर लेना।)
कल यानी सोलह मई से चारधाम यात्रा का शुभारम्भ हो चुका है। मेरी यह प्रस्तुति चारधाम यात्रा शुरू होने से एक महीने पहले की है। कल गंगोत्री-यमुनोत्री के कपाट खुल गये, अट्ठारह को केदारनाथ और उन्नीस तारीख को बद्रीनाथ के कपाट भी खुल जायेंगे। सभी को अक्षय तृतीया की शुभकामनायें।


यमुनोत्री यात्रा श्रंखला
1. यमुनोत्री यात्रा
2. देहरादून से हनुमानचट्टी
3. हनुमानचट्टी से जानकीचट्टी
4. जानकीचट्टी से यमुनोत्री
5. कभी ग्लेशियर देखा है? आज देखिये
6. यमुनोत्री में ट्रैकिंग
7. तैयार है यमुनोत्री आपके लिये
8. सहस्त्रधारा- द्रोणाचार्य की गुफा

Comments

  1. क्या रोमांच रहा होगा, ग्लेशियर पर चलने का ।

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  2. बहुत ही सुंदरतम प्रस्तुति.

    रामराम.

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  3. बहुत खूब नीरज भाई , आपमें हिम्मत और जोखिम उठाने की क्षमता देख रहा हूँ ! आपकी उम्र में मैं भी कुछ-कुछ ऐसा ही था !

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  4. बहोत बढिया,
    तैने तो कमाल कर दिया।

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  5. Excellent... Excellent...
    कोई शब्द नहीं हैं और मेरे पास…

    (भले ही आप दिल्ली वाले हों लेकिन फ़िर भी आपसे माफ़ी मांगते हुए कहता हूं कि सभी दिल्लीवालों को इस यमुना के दर्शन करवाने चाहिये… चाहे जबरदस्ती उठाकर ले जाना पड़े… तब समझेंगे वे यमुना की कीमत…)

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  6. ग्लेशियर की सेर कराने का शुक्रिया!

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  7. आपकी घुमक्कड़ी को प्रणाम.
    सुन्दर वर्णन.

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  8. बहुत ही सुंदरतम प्रस्तुति.

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  9. वाह, मजा आ गया। अतीत के जाने कितने पन्ने खुलते चले गए .....

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  10. अद्भुत , अकल्पनीय और अविश्वश्नीय

    जबरदस्त यात्रा वृत्तांत

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  11. बहुत सुन्दर.. बहुत खूब..

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  12. बहुत सुंदर, लेकिन भाई इस जमी बर्फ़ पर सच मै बहुत खतरा होता है, हमारे यहां हर साल सर्दियो मे इस पर खेलने मै मजा आता है,ओर यहां इस से बचाव के तरीके भी बताते है, लेकिन नीचे पानी गर्म होता है, हमारे यहां फ़िर भी हर साल कई हादसे हो जाते है.
    आप की जिन्दा दिली ओर बेफ़िकरी को सलाम भाई

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  13. वाह बहुत सुन्दर
    रोमांच हो आया

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  14. जलजला ने माफी मांगी http://nukkadh.blogspot.com/2010/05/blog-post_601.html और जलजला गुजर गया।

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  15. भाई नीरज, प्रणाम स्वीकार कर ही ले म्हारा भी। क्या क्या नजारे दिखा दिये हमें भी। त्रिवेणी झरने की फ़ोटो बहुत ही सुन्दर लगी। आधिकारिक यात्रा शुरू होने से एक महीना पहले ही इतनी ऊपर तक हो आया। ग्रेट।
    वैसे मां-पिताजी डांटते नहीं है तुम्हें ऐसे एडवेंचर करने पर?

    अगली पोस्ट का इंतजार और भी बेसब्री से करेंगे।

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  16. हम तो सभी तस्वीरें घिघ्घी बांधे यमुना का प्रसाद मान कर ही ग्रहण करते रहे...अद्भुत!!

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  17. शानदार पोस्ट है, नीरज.
    एक से बढ़कर एक फोटोग्राफ. वहां जाकर जो रोमांच महसूस किया होगा आपने, उसका केवल अंदाज़ा लगाया जा सकता है. आपके ब्लॉग से तमाम जगहों की तसवीरें और जानकारी मिलती रहती है.

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  18. नीरज जी
    आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ सच कहूं तो आपने यात्रा का इतनी खूबसूरती से वर्णन किया है कि ऐसा लगा हम भी यात्रा का हिस्सा हैं ।अब नियमित रूप से आपकी पाठक बन गई हूँ अगली यात्रा का इंतजार रहेगा ।मैने भी इक यात्रा का वर्णन लिखा है मौका मिला तो पढ़ियेगा ।

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  19. उत्तराखंड इसी प्रकार के प्राकृतिक सौन्दर्य का खजाना है. उत्तराखंड का एक और प्रसिद्ध ग्लेशियर पिंडारी है. एक बार औली भी जरूर जाइएगा. औली उत्तराखंड का प्रसिद्ध बुग्याल है.

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  20. नयनाभिराम अद्भुत !

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  21. वाह बहुत ही सुन्दर, हमने भी ग्लेशियर पर चलने का आनंद लिया है, बहुत ही अद्भुत और रोमांचक होता है, आप घूमने में बहुत तेज हैं, सबसे तेज।

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  22. अपनी हसरत जाने कब पूरी होगी वहाँ जाने की।

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  23. सुंदरतम प्रस्तुति, दर्शन कर हम भी धन्य भये!

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  24. well done man.u have done more than enough for one life.nice...-sameer from shimla

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  25. good aproach,we are thinking to try this adventure.

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब...