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2018 की यात्राओं का लेखा-जोखा

यह साल बेहद मजेदार बीता। इस बार हमने कसम खाई थी कि अपने मित्रों को कुछ यात्राओं पर ले जाएँगे और इस तरह के सभी आयोजन सफल रहे। तो चलिए, ज्यादा बोर न करते हुए पिछले साल की यात्राओं को याद करते हैं...

छब्बीस जनवरी की छुट्टियों में यह यात्रा आयोजित की गई थी। संयोग से कुछ ही दिन पहले बर्फबारी हो गई थी और हमें रैथल में बर्फ देखने और खेलने को मिल गई।

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जब हम नवंबर 2017 में पूर्वोत्तर गए थे, तो अपनी मोटरसाइकिल गुवाहाटी ही छोड़कर आ गए थे। अब फरवरी में फिर से जाना हुआ और मेघालय व उत्तर बंगाल के जाने-अनजाने स्थल देखे। साथ ही, दिल्ली तक मोटरसाइकिल से ही आए। इसका वृत्तांत ‘मेरा पूर्वोत्तर’ किताब में लिखा गया है।

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जैसे ही भनक लगी कि यूपी में शाहजहाँपुर से पीलीभीत और पीलीभीत से मैलानी की मीटरगेज की लाइन बंद होने वाली है, तो मैं तुरंत दौड़ पड़ा। शाहजहाँपुर-पीलीभीत-मैलानी लाइन तो दो महीने बाद ही बंद हो गई, लेकिन मैलानी से दुधवा होते हुए नानपारा की लाइन हमेशा के लिए चलती रहेगी - ऐसा सुनने में आया। और यह दुधवा वाली मीटरगेज की लाइन वाकई रेलप्रेमियों के लिए स्वर्ग समान है।

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यह इस साल की दूसरी ग्रुप यात्रा थी। हिमाचल में समुद्र तल से 2100 मीटर की ऊँचाई पर स्थित जंजैहली की खूबसूरती को देखने का मौका पहली बार मिला। यह पर्यटक नक्शे से पूरी तरह गायब है, जबकि बेहद खूबसूरत स्थान है। इसके पास ही समुद्र तल से 3300 मीटर की ऊँचाई पर शिकारी देवी का मंदिर है, जो सर्दियों के बाद ठीक उसी दौरान खुला था, जब हम वहाँ पहुँचे थे। इसके अलावा छतरी गाँव का मंदिर तो हिमाचल की धरोहर है। पता नहीं हिमाचल पर्यटन इसका प्रचार क्यों नहीं करता।

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उधर इंदौर से सुमित अपनी बुलट पर आ गया और हम उसके साथ हो लिए पश्चिमी गढ़वाल की मोटरसाइकिल यात्रा पर। इस यात्रा में हमें चकराता से आगे लोखंडी और मोइला बुग्याल इतने पसंद आए कि भविष्य में एक ग्रुप यात्रा की भी योजना बनाने लगे।

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गंगोत्री तो सभी जाते हैं, लेकिन उस क्षेत्र में गंगोत्री के अलावा भी कुछ स्थान ऐसे हैं, जहाँ सभी को जाना चाहिए, लेकिन कोई जाता नहीं। इस ग्रुप यात्रा का आधार बनाया धराली को और 5 किलोमीटर दूर सातताल की ट्रैकिंग करके आए। समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊँचाई पर ये ताल स्थित हैं, जो सूखने की कगार पर हैं। इसके अलावा इस यात्रा में हमारा ग्रुप नेलोंग भी गया, जो उत्तराखंड का लद्दाख कहा जाता है। नेलोंग में फिलहाल पर्यटन गतिविधियाँ अत्यधिक सीमित हैं, लेकिन जो भी है, शानदार अनुभव होता है।

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हमारी घुमक्कड़ बिरादरी के कुछ लोगों ने कई साल पहले गढ़वाल के एक गाँव बरसूड़ी में एक कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई थी। आज वह वृक्ष बड़ा हो चुका है और अब इसे बरसूड़ी घुमक्कड़ महोत्सव कहा जाता है।

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यहाँ कार्तिक पूर्णिमा से एक सप्ताह पहले बड़ा भारी मेला लगता है। आसपास और दूर-दूर के लोग आते हैं और अपने तंबू लगाकर एक सप्ताह तक यहीं रहते हैं। दो दिन हम भी रहे और हमारे कुछ मित्र भी।

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साल की चौथी ग्रुप यात्रा और मानसून के तुरंत बाद यहाँ जाना तो वास्तव में शानदार था। मोइला बुग्याल ने दिल जीत लिया। मैदानों के इतना नजदीक एक छोटा-सा बुग्याल, जहाँ बहुत कम लोग जाते हैं।

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दिल्ली से मोटरसाइकिल स्टार्ट की और जयपुर, इंदौर, मुंबई होते हुए कभी कोंकण में घूमने निकल जाते, तो कभी पश्चिमी घाट में। फिलहाल इसी यात्रा का प्रकाशन ब्लॉग पर चल रहा है।

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11. ग्रुप यात्रा: जंजैहली
साल की पाँचवी और आखिरी ग्रुप यात्रा - दिसंबर के आखिर में। ठंड चरम पर। जल्द ही इसका वृत्तांत प्रकाशित करेंगे।





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आगे बढ़ने से पहले एक छोटा-सा संवाद आपके सामने रखना चाहूँगा। तिगरी गंगा मेले में बीनू कुकरेती भी आया हुआ था। मेरी और बीनू की बातचीत शुरू हुई सबके सामने:
“नीरज, जब तू बरसूड़ी जा रहा था, तो तुम्हें कहीं घोंघा मिला था।”
“हाँ, मिला था। नजीबाबाद के पास एक पेट्रोल पंप की क्यारी में।”
“इसकी एक खासियत होती है।”
“क्या खासियत होती है?”
“यह बहुत धीरे-धीरे चलता है। एक साल में एक किलोमीटर भी नहीं चलता।”
“अच्छा? बस, एक किलोमीटर ही?”
“हमारे गढ़वाल में एक शब्द प्रचलित है - (गंडूरा)।”
“क्या? गंडूरा?”
“नहीं, (गंडेरा)।”
“गंडेरा?”
“नहीं बे। तुझे समझ नहीं आ रहा। अच्छा ठीक है, तू गंडेरा ही मान ले।”
“हाँ, ठीक है। क्या मतलब है इसका?”
“जो घोंघे की तरह बहुत धीरे-धीरे चलता है, उसे गंडेरा कहते हैं।”
“वाह, क्या विशेषण है। शानदार। गज्जब!”
और इस बार पूरे जोर से... “और इस साल तूने गंडेरे का काम किया है रे।”
“मैंने?”
“हाँ।”
“मतलब?”
“बता इस साल तूने कितने ट्रैक किए हैं?”
“कई ट्रैक किए हैं।”
“घंटा कई ट्रैक। बता एक-दो के नाम।”
“मैंने मोइला बुग्याल का डेढ़ किलोमीटर का ट्रैक किया है... दो बार... धराली में सातताल का पाँच किलोमीटर का ट्रैक किया है... यह भी दो-दो बार... शिकारी माता का एक किलोमीटर का ट्रैक किया है... सेरोलसर झील का चार किलोमीटर का ट्रैक किया है...”
“चुप... कोई ढंग का ट्रैक बता।”
“बरसूड़ी का ट्रैक किया है... आधे किलोमीटर का।”
“तो मानता है ना... कि इस साल तूने गंडेरे का काम किया है?”
“...”
“चुप क्यों हो गया? कोई ढंग का ट्रैक है क्या तेरे एकाउंट में? ऐसे काम नहीं चलेगा।”

बीनू ने कहा तो ठीक ही था। इस साल मेरे खाते में एक भी ट्रैकिंग नहीं है और न ही कोई बड़ी रेलयात्रा है। और तो और, ब्लॉग का ट्रैफिक भी दिसंबर 2017 में 65000 था, जो दिसंबर 2018 में घटकर 38000 रह गया है।
ऐसा कैसे हुआ?
असल में अप्रैल में मेरा ट्रांसफर हुआ - नौ वर्षों की नौकरी में पहला ट्रांसफर। फिर मई में दूसरा ट्रांसफर हुआ। जब तक संभलता, जुलाई में तीसरा ट्रांसफर हो गया और मैं पचास किलोमीटर रोजाना आने-जाने लगा। मेट्रो से जाने से ज्यादा समय लगता था, तो दिल्ली व नोयडा के ट्रैफिक में मोटरसाइकिल से जाने लगा। इसने मेरी यात्राओं और यात्रा-लेखन पर लगभग विराम लगा दिया। ऑफिस से घर आता, तो भयंकर थका होता और सो जाता। उठता, तो ऑफिस जाने का समय हो रहा होता। यही हिमालय में बड़ी ट्रैकिंग करने का सीजन होता है। यात्राओं के बारे में कुछ भी सोचने का समय नहीं मिला, सिवाय इसके कि इस ‘आपदा’ से छुटकारा कैसे पाया जाए।
और जब अक्टूबर में चौथा ट्रांसफर हुआ, तो यह मेरे लिए बड़ी राहत लेकर आया - अब आने-जाने की पचास किलोमीटर की दूरी घटकर बारह किलोमीटर रह गई थी। लेकिन इस ट्रांसफर के साथ ही महसूस हुआ कि अब कुछ समय के लिए नौकरी से विराम ले लेना चाहिए।
एक साल की छुट्टियाँ ले ली... अवैतनिक छुट्टियाँ। एक साल तक मुझे सैलरी नहीं मिलेगी। घुमक्कड़ी और लेखन के लिए भरपूर समय मिलेगा, लेकिन सब अपनी अब तक की गई बचत से ही होगा। 2018 में दीप्ति ने पाँच बार यात्राएँ आयोजित कीं, बहुत अच्छा अनुभव रहा। निश्चित रूप से उसे कुछ आमदनी भी हुई है, लेकिन 2019 में हम एक भी ग्रुप यात्रा की योजना नहीं बना रहे हैं। अब हमारे पास इतना समय है, तो जाहिर है कि बहुत सारी बड़ी यात्राएँ होंगी। और बड़ी यात्राओं से इतना भी निश्चित है कि किताबें प्रकाशित होंगी।

“बीनू, कहाँ है बीनू? 2019 में मिलते हैं... ट्रैकिंग पर... तिगरी मेले में उसी तंबू में बैठकर जब हिसाब लगाएँगे, तब पता चलेगा कि इस साल का गंडेरा कौन रहा...”

मुख्य फोकस पूर्वोत्तर पर रहेगा। मोटरसाइकिल फिलहाल गोवा में खड़ी है। जनवरी मध्य में दिल्ली से निकलेंगे और सीधे गोवा जाकर मोटरसाइकिल उठाकर या तो दक्कन का पठार पार करके पूर्वोत्तर की ओर बढ़ेंगे या केरल, कन्याकुमारी घूमते हुए पूर्वी तट के साथ-साथ पूर्वोत्तर जाएँगे। जैसे भी जाएँगे, आपको किताब पढ़ने में आनंद आने वाला है।
इस दौरान सबसे पहले पश्चिम बंगाल में संदकफू-फालुत ट्रैक करने की योजना है, फिर अरुणाचल में विजयनगर यात्रा, नागालैंड-मणिपुर-मिजोरम-त्रिपुरा यात्रा और अप्रैल-मई में सिक्किम में गोइचा-ला ट्रैक।
गोवा से गुवाहाटी के रास्ते में छत्तीसगढ़ भी पड़ेगा। और आप जानते ही होंगे कि बस्तर में कुटुमसर की गुफाएँ बड़ी प्रसिद्ध हैं। यूँ तो बस्तर घूमने का असली आनंद मानसून में है, लेकिन उस समय कुटुमसर की गुफाएँ बंद रहती हैं। इन गुफाओं को देखने हम बस्तर से होकर निकलेंगे।

तो 2019 का साल यात्राओं के लिए और यात्रा-किताबों के लिए बड़ा ही विशेष साल होने वाला है। ब्लॉग के माध्यम से और फेसबुक के माध्यम से लगातार संपर्क में रहिए और भारत की उन जगहों के बारे में, उन लोगों के बारे में, उन संस्कृतियों के बारे में जानने को तैयार हो जाइए, जिनके बारे में आपने कभी कुछ नहीं जाना था।



Comments

  1. शुभकामनायें और सलाम

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  2. 2019 के लिए ढेरों शुभकामनायें बंधू।

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  3. बहुत खूब। आपकी 2019 की यात्रा के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएँ। पूर्वोत्तर मे कही आपको मिलुगा।

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  4. बहुत रोचक रहे आपके लिए 2019, ऐसी शुभकामनाएं।

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  5. गंडेरा की छवि से बाहर आने का प्रयास।
    अग्रिम शुभकामनाएँ

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  6. नीरज भाई आगामी यात्राओं के लिए बहुत शुभकामनाएं। हम आपकी नजरों से पूरे भारत का भ्रमण कर रहे हैं उसके लिए धन्यवाद।

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  7. बधाई एवं शुभकामनाएँ नीरज जी

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  8. शुभकामनाऐं जी। यात्रा विवरण का इंतजार रहेगा।

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  9. Apki all post study karta hu
    Bhut badiya

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  10. 2019 में उम्मीद से दुगुना पढ़ने को मिलेगा आपकी यात्राओं के बारे में।

    बहुत-2 शुभकामनाएं।

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