10 जून 2017
धारचूला से तवाघाट की सड़क बहुत अच्छी बनी है। 19 किलोमीटर का यह रास्ता काली नदी के साथ-साथ ही है। बीच में एक और स्थान पर झूला पुल मिला। पुल के द्वार पर सशस्त्र सीमा बल का पहरा था।
कल तक मेरे पास जो जानकारी थी, उसके अनुसार सड़क केवल सोबला तक ही बनी है। उसके बाद पैदल चलना था। लेकिन कल जीप वालों ने बता दिया कि दुकतू तक जीपें जा सकती हैं, तो बड़ी राहत मिली। दुकतू तो पंचचूली के एकदम नीचे है। कुछ ही घंटों में दुकतू से बेसकैंप घूमकर लौटा जा सकता है। लेकिन यह भी बताया कि कुछ बड़े नाले भी हैं। हमारे मोबाइल में भले ही नेटवर्क न आ रहा हो, लेकिन चलते समय मैंने इस इलाके का गूगल मैप लोड़ कर लिया था। उसका ‘टैरेन मोड़’ अब मेरे सामने था। इससे अंदाज़ा लगाते देर नहीं लगी कि कहाँ-कहाँ हमें कितने-कितने बड़े नाले मिलेंगे। सबसे बड़ा नाला तो सोबला के पास ही मिलेगा। तो अगर हम इसे पार नहीं कर सके, तो सोबला में बाइक खड़ी कर देंगे और पैदल चल पड़ेंगे। फिर भी मैंने यह पता करने की कोशिश की कि जिन ख़तरनाक नालों की बात सभी लोग कर रहे हैं, वे हैं कहाँ। लेकिन पता नहीं चल सका।
हम कैलाश पथ पर थे। कुछ ही देर में तवाघाट पहुँच गये। धारचूला, तवाघाट जैसे नाम मैंने केवल कैलाश के वृत्तांतों में ही पढ़े थे। आज इन स्थानों को अपनी आँखों से देख रहा था।
तवाघाट से हमें कैलाश पथ छोड़ देना था। दुकतू की तरफ़ से आती नदी यहाँ काली में मिल जाती है। दुकतू वाली नदी पर पुल भी बना है, जिसे पार करके कैलाश की तरफ़ जाते हैं। गरबाधार यहाँ से 18 किलोमीटर है। अभी गरबाधार तक ही मोटरमार्ग खुला है। उसके आगे कुछ दूर तक पैदल जाना होता है, पता नहीं कहाँ तक। कुछ किलोमीटर पैदल चलने के बाद फिर से मोटरमार्ग बना हुआ है। बी.आर.ओ. ने अपने उपकरण और ट्रक आदि हेलीकॉप्टर से वहाँ पहुँचाये हैं। इस बीच के भाग पर भी सड़क बनाने का काम चल रहा है। पता नहीं कितना काम हो गया है, लेकिन जल्द ही यह भी बन जायेगा और आप-हम गाड़ी से बहुत दूर तक जा सकते हैं। शायद गुंजी या उससे भी आगे तक।
हम सोबला की तरफ़ मुड़ गये। यहाँ से सोबला 15 किलोमीटर है। नारायण आश्रम की सड़क भी इधर से ही गयी है, जो यहाँ से 36 किलोमीटर दूर है। 10 किलोमीटर सोबला की तरफ़ चलने पर नारायण आश्रम की सड़क अलग हो जाती है। नारायण आश्रम है तो काली नदी की घाटी में, लेकिन ऊँचाई पर स्थित होने के कारण इसका रास्ता घूमकर जाता है।
मुझे लग रहा था कि सोबला के पास जो नाला है, उस पर पुल नहीं है और उसी के तेज बहाव में से निकलकर जाना पड़ेगा। लेकिन ऐसा नहीं था। इस पर पुल बना था। सोबला तक वैसे तो टूटी हुई सड़क है, लेकिन उसके बाद एकदम कच्चा रास्ता है। देखने से ही लगता है कि इसे बने हुए ज्यादा दिन नहीं हुए। चढ़ाई अनवरत जारी रहती है और हम जल्द ही 2000 मीटर से भी ऊपर पहुँच जाते हैं। गौरतलब है कि धारचूला 900 मीटर पर है, तवाघाट 1100 मीटर पर और सोबला 1700 मीटर की ऊँचाई पर।
तवाघाट से इधर की सड़क को सी.पी.डब्लू.डी. अर्थात केंद्रीय लोक निर्माण विभाग बना रहा है। सोबला के बाद पहाड़ बड़े ही दुर्गम हैं और सी.पी.डब्लू.डी. ने इन्हें काटने में बड़ी ही कुशलता से काम किया है। दुर्गम स्थानों में केवल बी.आर.ओ. ही सड़क बना सकता है, यह धारणा समाप्त होने लगी है। मेरा मानना है कि कोई भी अन्य विभाग या प्राइवेट कंपनी किसी सड़क को बी.आर.ओ. की तुलना में जल्दी, बेहतरीन और कम लागत में बना सकते हैं। हिमालयी दुर्गम स्थानों में बी.आर.ओ. की ‘मोनोपोली’ है। इसलिये वह एक दिन के काम में एक साल तक लगा देते हैं। इनके बगल में दूसरी कंपनियाँ आकर इनसे अच्छा काम करेंगी तो इनकी ‘मोनोपोली’ भी समाप्त होगी और शायद इनकी आँखें भी खुले।
तो सोबला के बाद के भूदृश्य का मैं वर्णन नहीं कर सकता। कई बार मेरा फोटो लेने का मन करता, तो बाइक रोक देता। दीप्ति घबरा उठती - यहाँ मत रुक। वापसी में फोटो ले लेना। हालाँकि वापसी में भी रास्ता ऐसा ही रहेगा। सीधे खड़े पहाड़ हैं और अर्ध-सुरंगनुमा रास्तों से होकर सड़क गुजरती है। और बगल में सैकड़ों फीट नीचे नदी। कई जगह तो देवता बैठा रखे हैं। सड़क बनाने वाले मजदूरों ने ही बैठाये होंगे ये देवता। हम भी इन देवताओं के सामने से निकलते समय इनका धन्यवाद कर देते - अपनी यहाँ तक की सकुशल यात्रा के लिये।
बारह बजे वरतिंग पहुँचे। सोबला से यहाँ की 17 किलोमीटर की दूरी तय करने में डेढ़ घंटे लग गये। यहाँ कुछ ढाबे हैं। जीप वाले यहाँ रुककर भोजन ग्रहण करते हैं। दुकतू यहाँ से बीस किलोमीटर ही दूर है, लेकिन बताया कि दो घंटे लगते हैं। बाइक पर घूमते हम दोनों को देखकर ढाबे वाले भी हैरान थे, जीप वाले भी और यात्री भी। सलाह दी गयी कि आगे बड़े विशाल नाले हैं। सभी नालों के पास मजदूर भी रहते हैं। बिना मजदूरों की सहायता के नाले पार मत करना। हमने दुकतू से आयी जीपों के बोनट देखे, पानी का कोई निशान नहीं मिला। इससे यह तो पक्का हो गया कि बोनट पानी में नहीं डूबता है, लेकिन इतना भी पक्का है कि पानी बहुत ज्यादा है। अन्यथा धारचूला से यहाँ तक लोग आगाह न करते।
पहला नाला मिला। इसमें ज्यादा बहाव नहीं था। दीप्ति को पैदल पार करना पड़ा। पत्थरों के कारण पैर एक बार पानी में रखने पड़े, जूतों में ठंड़ा पानी भर गया।
दूसरे नाले में पानी तो काफ़ी था, लेकिन पत्थर लगाकर इसे सड़क पर फैलने दिया गया। इससे यह सड़क पर भर गया, लेकिन तेज बहाव नहीं बन पाया। आसानी से पार हो गया। हालाँकि बाइक के पहिये आधे से ज्यादा डूब गये थे।
तीसरा नाला वास्तव में ख़तरनाक था। तेज बहाव भी था और गहराई भी काफ़ी थी। पार करने से पहले ही महसूस हो गया था कि इसे पार करना आसान नहीं। थोड़ा नीचे एक पुल था, जो केवल पैदल यात्रियों के लिये था। दीप्ति तो वहाँ से पार हो गयी, लेकिन मुझे पानी में घुसना ही पड़ा। पहले गियर में बाइक डाली और इंजन की स्पीड़ तेज करके पानी में घुस गया। अगला पहिया पूरा डूब गया, पिछला भी डूब ही गया होगा और साइलेंसर भी। लेकिन गनीमत रही कि इंजन बंद नहीं हुआ। पानी के तेज बहाव के कारण मतिभ्रम भी हुआ, लेकिन नाले पार करने का थोड़ा-बहुत अनुभव था, पार हो गया।
चौथा नाला भी ख़तरनाक था। इसमें बहाव भी था और गहराई भी, लेकिन पानी की चौड़ाई नहीं थी। उतनी परेशानी नहीं आयी।
यह रास्ता हाल ही में बना है। इससे पहले सारा आवागमन पैदल ही होता था। पैदल पगडंडी दाहिने नीचे दिख जाती थी - कभी नदी के उस तरफ, तो कभी इस तरफ। संपूर्ण वातावरण बेहद खूबसूरत है। हम इस वातावरण में पैदल चलकर जो ख़ूबसूरती निहार सकते थे, सड़क बन जाने से उसे उतना नहीं निहार पाये।
बीच में नागलिंग गाँव भी स्थित है। पैदल यात्रा के जमाने में यहाँ ट्रैकर्स ठहरा करते थे, अब कोई नहीं ठहरता। नागलिंग को अपनी आजीविका का कोई दूसरा साधन तलाशना पड़ेगा।
समुद्र तल से 3200 मीटर की ऊँचाई पर दुकतू गाँव स्थित है। एक ढाबे के सामने हम रुक गये। सभी आश्चर्यचकित थे कि हमने वे नाले कैसे पार किये। यदि हम धारचूला जाकर किसी से बतायें कि हमने वे नाले पार कर लिये थे, तो शायद ही कोई यकीन करेगा। लेकिन दुकतू में तो सबकुछ लोगों के सामने प्रत्यक्ष था।
आज हमें यहीं रुकना था। तीन बजे थे। आसमान में बादल भी थे। अब आगे कहीं भी जाना ठीक नहीं। जहाँ भी जायेंगे, कल जायेंगे। आसानी से एक बेहद साधारण कमरा मिल गया। ऐसी रजाईयाँ मिल गयीं, जिन्हें हम उठा भी नहीं सकते थे। बमुश्किल उठाकर अपने-अपने ऊपर डालीं। और अच्छा भोजन भी मिल गया।
दाहिने भारत, बायें नेपाल... बीच में काली नदी... |
एक नेपाली गाँव... |
कैलाश पथ ऐसे ही अनगिनत नज़ारों से भरा हुआ है... |
तवाघाट |
फोटोग्राफर: तेज़ नज़रों वाली दीप्ति... |
सोबला के बाद कच्चा रास्ता है... |
एक छोटा-सा नाला... लेकिन यहाँ काई जमी थी... बड़ी सावधानी से निकलना पड़ा... |
वरतिंग के ढाबे... |
पहले नाले को पार करने से पहले की फोटो... |
यह नाला डरावना था... कुछ चीजें फोटो में देखने पर कितनी क्यूट लगती हैं... |
दारमा घाटी |
आख़िरकार 75 किलोमीटर और 6 घंटों बाद दुकतू पहुँच ही गये... |
अगला भाग: पंचचूली बेस कैंप यात्रा - दुकतू
1. पंचचूली बेस कैंप यात्रा: दिल्ली से थल
2. पंचचूली बेस कैंप यात्रा - धारचूला
3. पंचचूली बेस कैंप यात्रा - धारचूला से दुकतू
4. पंचचूली बेस कैंप यात्रा - दुकतू
5. पंचचूली बेस कैंप ट्रैक
6. नारायण स्वामी आश्रम
7. बाइक यात्रा: नारायण आश्रम से मुन्स्यारी
8. पाताल भुवनेश्वर की यात्रा
9. जागेश्वर और वृद्ध जागेश्वर की यात्रा
10. पंचचूली बेसकैंप यात्रा की वीडियो
प्राकृति के मनोरम और रोमांचित पलो को बाखूबी कमरे में कैद किया है ...
ReplyDeleteआपकी दिलचस्प यात्रा का मजा हम भी ले रहे हैं ...
बहुत शुभकामनायें ...
कमाल कर दिया भई, अब मोटरसायकिल पर हाथ जम गया है, अच्छी तरह से।
ReplyDeleteसबसे अंतिम वाले फोटो मे आपने भारी खतरा मोल लिया है पानी मे spark ignition वाली आपकी बाईक का spark plug या एक भी कटा वायर अगर पानी से भीग जाते तो ऐसे दुर्गम स्थान पर एक बहुत बड़ी समस्या हो जाती
ReplyDeleteअतः हे नीरज पानी आपके घोड़े का दुश्मन है यह बात याद रखें सावधानी रखकर यात्रा करे
please इसे अन्यथा न ले
ये मेरा आपके लिए स्नेह है
ईशवर आपको विश्व का महानतम ghumkkar बनाए
आपको वो शक्ति दे कि आप पूरा विश्व अपनी bike पर घूमें
इसी prayer के साथ
जय हिन्द जय भारत
वाह नीरज जी!! बहुत ही जोरदार!!!!!! आपने मेरी यादें ताज़ा कर दी- http://niranjan-vichar.blogspot.in/2013/09/blog-post_24.html
ReplyDeleteरोमांचक वृत्तांaत। खूबसूरत तस्वीरें। खासकर वो छिपकली, कुत्ते और बच्चे वाली। मुझे बाइक्स के विषय में ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन आखिरी तस्वीर बेहद खतरनाक लग रही है। आपने भारी खतरा उठाया। अच्छा है बिना किसी क्षति के निकल आये। अगली कड़ी का इन्तजार है। वैसे क्या ये नाले पूरे वर्ष इधर रहते हैं या कभी सूखा भी रहता है?
ReplyDeleteहिमालय के ये नाले कभी नहीं सूखते... मानसून में ज्यादा पानी होता है... सर्दियों के बाद बर्फ़ पिघलती है, तब सुबह अपेक्षाकृत कम पानी और दोपहर बाद ज्यादा पानी होता है...
DeleteVery good neeraj bhai.Keep it up.
ReplyDeleteगजय्ब भाई ! बहुतै जबर्दस्त
ReplyDeleteबहूत मेहनत की है आपने । मेहनत के बाद सफलता का मजा ही कुछ और होता है ।
ReplyDeletePhoto ache bhi hain aur nala dekh kar dar bhi laga. Mai to Jeep se hi jaunga.
ReplyDeleteकब जाओगे?
DeleteMubarak ho chaudhary saab naye domain k liye ye ab acha ho gya bhai domain ki apni ek alag hi pehchan hai. Neerajmusafir.com name bhi bhut acha hai bhai saab
ReplyDeleteमैं पहली फोटो देखकर ही रोमांचित हो उठा !! मुझे इतना तो पता था कि काली नदी भारत -नेपाल को अलग करती है लेकिन इस तरह से प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं देखा !! मैं इस बात से पूर्ण सहमत हूँ कि असली मजा लेना है ऐसी जगहों का तो पैदल सबसे बढ़िया -लेकिन सबकुछ हमारे हिसाब से कहाँ होता है !!
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