Skip to main content

पिटुक गोनपा (स्पिटुक गोनपा)

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें
युद्ध संग्रहालय से पिटुक गोनपा करीब दो किलोमीटर कारगिल रोड पर है। मैं पैदल ही चलता चलता पहुंच गया।
पहले भी कह चुका हूं कि मन बुरी तरह उदास था, मैं किसी एकान्त धूपदार स्थान पर घण्टे भर के लिये बैठना चाहता था। पिटुक के पास इसी पहाडी पर एक छोटा सा मैदान है जिसके एक सिरे पर बुद्ध मूर्ति है। मैं वहां चला गया। अभी भी हर जगह बर्फ थी लेकिन पिछले कई दिनों से लगातार अच्छी धूप निकलने के कारण यह कितने ही स्थानों से पिघल चुकी थी। मैदान तक जाने वाली सीढियों में अन्तिम कुछ सीढियां बर्फरहित थी। यह स्थान मुझे बैठने के लिये उपयुक्त लगा।
घण्टे भर तक बैठा रहा, साथ कुछ किशमिश लाया था, खाता रहा। हवाई पट्टी यहां से नातिदूर है। इस दौरान वायुसेना का एक विमान भी उतरा।
घण्टे भर बाद यहां से निकलकर पिटुक गोनपा में चला गया। कोई नहीं दिखा। कुछ देर बाद एक स्थानीय परिवार भी गोनपा देखने आया। मैं उनके पीछे पीछे हो लिया। इससे पहले मुझे डर था कि कोई लामा मुझे या मेरे जूतों को देखकर भगा ना दे, लेकिन इनके पीछे पीछे लगे रहने से यह चिन्ता दूर हो गई। ये लोग मन्त्रों से भरे पहियों यानी मानी को घुमाते हुए चल रहे थे। मेरी इनमें कोई श्रद्धा नहीं थी।
...
इस यात्रा के अनुभवों पर आधारित मेरी एक किताब प्रकाशित हुई है - ‘सुनो लद्दाख !’ आपको इस यात्रा का संपूर्ण और रोचक वृत्तांत इस किताब में ही पढ़ने को मिलेगा।
आप अमेजन से इसे खरीद सकते हैं।


सामने पहाडी पर पिटुक गोनपा है।






लेह हवाई पट्टी

पिटुक गोनपा का प्रवेश द्वार



गोनपा के अन्दर


इसी में बुद्ध प्रतिमा है और ताला बन्द है।




सोयाबीन के तेल की शीशियां

काली माता मन्दिर से दिखता पिटुक गोनपा




यह मन्त्रों वाली मानी है। इस पर ‘ॐ मणि पद्मे हुं’ स्पष्ट पढा जा सकता है।



अगला भाग: लेह से दिल्ली हवाई यात्रा

लद्दाख यात्रा श्रंखला
1. पहली हवाई यात्रा- दिल्ली से लेह
2. लद्दाख यात्रा- लेह आगमन
3. लद्दाख यात्रा- सिन्धु दर्शन व चिलिंग को प्रस्थान
4. जांस्कर घाटी में बर्फबारी
5. चादर ट्रेक- गुफा में एक रात
6. चिलिंग से वापसी और लेह भ्रमण
7. लेह पैलेस और शान्ति स्तूप
8. खारदुंगला का परमिट और शे गोनपा
9. लेह में परेड और युद्ध संग्रहालय
10. पिटुक गोनपा (स्पिटुक गोनपा)
11. लेह से दिल्ली हवाई यात्रा

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

डायरी के पन्ने- 30 (विवाह स्पेशल)

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। 1 फरवरी: इस बार पहले ही सोच रखा था कि डायरी के पन्ने दिनांक-वार लिखने हैं। इसका कारण था कि पिछले दिनों मैं अपनी पिछली डायरियां पढ रहा था। अच्छा लग रहा था जब मैं वे पुराने दिनांक-वार पन्ने पढने लगा। तो आज सुबह नाइट ड्यूटी करके आया। नींद ऐसी आ रही थी कि बिना कुछ खाये-पीये सो गया। मैं अक्सर नाइट ड्यूटी से आकर बिना कुछ खाये-पीये सो जाता हूं, ज्यादातर तो चाय पीकर सोता हूं।। खाली पेट मुझे बहुत अच्छी नींद आती है। शाम चार बजे उठा। पिताजी उस समय सो रहे थे, धीरज लैपटॉप में करंट अफेयर्स को अपनी कापी में नोट कर रहा था। तभी बढई आ गया। अलमारी में कुछ समस्या थी और कुछ खिडकियों की जाली गलकर टूटने लगी थी। मच्छर सीजन दस्तक दे रहा है, खिडकियों पर जाली ठीकठाक रहे तो अच्छा। बढई के आने पर खटपट सुनकर पिताजी भी उठ गये। सात बजे बढई वापस चला गया। थोडा सा काम और बचा है, उसे कल निपटायेगा। इसके बाद धीरज बाजार गया और बाकी सामान के साथ कुछ जलेबियां भी ले आया। मैंने धीरज से कहा कि दूध के साथ जलेबी खायेंगे। पिताजी से कहा तो उन्होंने मना कर दिया। यह मना करना मुझे ब...

डायरी के पन्ने-32

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। इस बार डायरी के पन्ने नहीं छपने वाले थे लेकिन महीने के अन्त में एक ऐसा घटनाक्रम घटा कि कुछ स्पष्टीकरण देने के लिये मुझे ये लिखने पड रहे हैं। पिछले साल जून में मैंने एक पोस्ट लिखी थी और फिर तीन महीने तक लिखना बन्द कर दिया। फिर अक्टूबर में लिखना शुरू किया। तब से लेकर मार्च तक पूरे छह महीने प्रति सप्ताह तीन पोस्ट के औसत से लिखता रहा। मेरी पोस्टें अमूमन लम्बी होती हैं, काफी ज्यादा पढने का मैटीरियल होता है और चित्र भी काफी होते हैं। एक पोस्ट को तैयार करने में औसतन चार घण्टे लगते हैं। सप्ताह में तीन पोस्ट... लगातार छह महीने तक। ढेर सारा ट्रैफिक, ढेर सारी वाहवाहियां। इस दौरान विवाह भी हुआ, वो भी दो बार। आप पढते हैं, आपको आनन्द आता है। लेकिन एक लेखक ही जानता है कि लम्बे समय तक नियमित ऐसा करने से क्या होता है। थकान होने लगती है। वाहवाहियां अच्छी नहीं लगतीं। रुक जाने को मन करता है, विश्राम करने को मन करता है। इस बारे में मैंने अपने फेसबुक पेज पर लिखा भी था कि विश्राम करने की इच्छा हो रही है। लगभग सभी मित्रों ने इस बात का समर्थन किया था।

लद्दाख बाइक यात्रा-4 (बटोट-डोडा-किश्तवाड-पारना)

9 जून 2015 हम बटोट में थे। बटोट से एक रास्ता तो सीधे रामबन, बनिहाल होते हुए श्रीनगर जाता ही है, एक दूसरा रास्ता डोडा, किश्तवाड भी जाता है। किश्तवाड से सिंथन टॉप होते हुए एक सडक श्रीनगर भी गई है। बटोट से मुख्य रास्ते से श्रीनगर डल गेट लगभग 170 किलोमीटर है जबकि किश्तवाड होते हुए यह दूरी 315 किलोमीटर है। जम्मू क्षेत्र से कश्मीर जाने के लिये तीन रास्ते हैं- पहला तो यही मुख्य रास्ता जम्मू-श्रीनगर हाईवे, दूसरा है मुगल रोड और तीसरा है किश्तवाड-अनन्तनाग मार्ग। शुरू से ही मेरी इच्छा मुख्य राजमार्ग से जाने की नहीं थी। पहले योजना मुगल रोड से जाने की थी लेकिन कल हुए बुद्धि परिवर्तन से मुगल रोड का विकल्प समाप्त हो गया। कल हम बटोट आकर रुक गये। सोचने-विचारने के लिये पूरी रात थी। मुख्य राजमार्ग से जाने का फायदा यह था कि हम आज ही श्रीनगर पहुंच सकते हैं और उससे आगे सोनामार्ग तक भी जा सकते हैं। किश्तवाड वाले रास्ते से आज ही श्रीनगर नहीं पहुंचा जा सकता। अर्णव ने सुझाव दिया था कि बटोट से सुबह चार-पांच बजे निकल पडो ताकि ट्रैफिक बढने से पहले जवाहर सुरंग पार कर सको। अर्णव को भी हमने किश्तवाड के बारे में नहीं ...