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साढे तीन बजे चिलिंग पहुंच गये। यहां कहीं रुकने का ठिकाना ढूंढना था। इसमें ड्राइवर इब्राहिम ने काफी सहायता की। यहां कोई होटल नहीं है लेकिन होमस्टे है, जहां घर के सदस्यों के साथ मेहमान बनकर रुकना होता है। हमारे जाते ही घर की मालकिन ने कमरे के बीच में रखी अंगीठी सुलगा दी।
मैंने इब्राहिम से पूछा कि कितने पैसे हुए। लेह से चलते समय हमने पैसों के बारे में कोई बात नहीं की थी। बोला कि चौबीस सौ। मैं एक हजार तक के लिये तैयार था। चौबीस सौ रुपये देने मेरे बस से बाहर की बात थे। लेह से चिलिंग करीब सत्तर किलोमीटर दूर है।
आखिरकार मैं हजार से बढकर बारह सौ पर पहुंच गया, वो सोलह सौ तक आ गया। वो एक ही जिद पकडे रहा कि बारह सौ में उसे भयंकर घाटा हो जायेगा। मैंने कहा कि इससे ज्यादा देने में मुझे भयंकर घाटा होगा। उसने क्रोधित होकर कहा कि तुम कुछ मत दो, ये बारह सौ भी रख लो। मैंने उससे लेकर अपने पास रख लिये और सीधे कह दिया कि इससे ज्यादा बिल्कुल नहीं दूंगा। आखिरकार वो बारह सौ लेकर ही चला गया।
होमस्टे का मतलब है घर में मेहमान। बाल्टी भरकर सूखी लकडियां आ गईं, अंगीठी जलती रही। चाय भी आती रही। कमरे में जमीन पर ही तीन बिस्तरे बिछे थे। मुझे एक रजाई और मोटा कम्बल मिला रात में ओढने के लिये।
अगर कल विमान के उतरते समय तापमान माइनस दस डिग्री था, तो अब कम से कम माइनस बीस तक पहुंच गया होगा।
...
इस यात्रा के अनुभवों पर आधारित मेरी एक किताब प्रकाशित हुई है - ‘सुनो लद्दाख !’ आपको इस यात्रा का संपूर्ण और रोचक वृत्तांत इस किताब में ही पढ़ने को मिलेगा।
आप अमेजन से इसे खरीद सकते हैं।
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चिलिंग में बर्फबारी |
योकमापा- लद्दाख इको होमस्टे (चिलिंग) |
घर का एक सदस्य |
घर का दूसरा सदस्य |
रोटी, मक्खन और जैम |
चाय की चुस्की |
जांस्कर घाटी के भ्रमण पर निकल पडे |
यह है सडक। एक गाडी के पहियों के निशान दिख रहे हैं। |
अङमो और उसका भानजा |
काश! यह सडक नेरक तक बनी होती। वैसे भी नेरक की दूरी यहां बहुत कम लिखी हुई है। नेरक यहां से कम से कम चालीस किलोमीटर दूर है। |
जांस्कर नदी |
जांस्कर नदी- कहीं बह रही है, कहीं जम गई है। |
यह कोई सांप वगैरा नहीं है। इससे सिद्ध होता है कि बर्फ में चिपकने का गुण होता है। |
यहीं तक सडक बनी है। यहां से करीब दो किलोमीटर आगे तिलत सुमडो है। तिलत तक जाने के लिये नीचे नदी के ऊपर से होकर जाना पडता है। |
पूर्णरूपेण जमी जांस्कर नदी। |
फिर वापस चिलिंग में |
लाल लाल फूलों के ऊपर जमा बर्फ |
अगला भाग: चादर ट्रेक- गुफा में एक रात
लद्दाख यात्रा श्रंखला
1. पहली हवाई यात्रा- दिल्ली से लेह
2. लद्दाख यात्रा- लेह आगमन
3. लद्दाख यात्रा- सिन्धु दर्शन व चिलिंग को प्रस्थान
4. जांस्कर घाटी में बर्फबारी
5. चादर ट्रेक- गुफा में एक रात
6. चिलिंग से वापसी और लेह भ्रमण
7. लेह पैलेस और शान्ति स्तूप
8. खारदुंगला का परमिट और शे गोनपा
9. लेह में परेड और युद्ध संग्रहालय
10. पिटुक गोनपा (स्पिटुक गोनपा)
11. लेह से दिल्ली हवाई यात्रा
बहुत सुंदर नज़ारे .....
ReplyDeleteअहा,
ReplyDeleteश्वेत धवल हिमगिरि शिखरों पर..
सहोदर भ्राता क्या है ? आजकल लगता है हिंदी की क्लास अटेंड हो रही है और साथ ही भूगोल की भी हवाओं का वर्णन मजेदार लगा ..और बर्फीला माहौल तो लाजवाब है ...बर्फ के फोटू बहुत सुंदर है ..बर्फ देखने में ही अच्छी लगती है वहाँ जाने पर क्या हालत होती है यह तुम अच्छी तरह से जान गए हो ....पर कुते कैसे बर्फ पर खुले में रहते है आश्चर्य है ..हमारा शेडो तो ऐ सी में भी कंवल ओढ़कर सोता है ..पर यहाँ के लोगो को सलाम कोई सुविधा नहीं है फिर भी रह रहे है ..तुम्हारा निर्णय ठीक ही था ..जान बचेगी तो फिर चले जाना ...कौन -सा लधाख दूर है
ReplyDeleteभाईसाहाब, आप अद्भुत इन्सान हो. . . . . बहुत बहुत धन्यवाद. . .
ReplyDeletewaah.... ek se ek khoobsurat chitra
ReplyDeleteamazing- no words
ReplyDeleteamazed.. :)
ReplyDeleteमजा आ गया अच्छा वर्णन
ReplyDeleteफिल्मों में देखे हैं हमने तो ऐसे नजारे
ReplyDeleteप्रणाम
नीरज भाई, बहुत अच्छा निर्णय था आपका जो ट्रेकिंग नहीं की, हमेशा ही अंतरात्मा की आवाज सुननी चाहिए ! जितना अच्छा पोस्ट है उससे भी अच्छा फोटो ! धन्यवाद् लदाख घुमाने के लिए!
ReplyDeleteसभी फोटो बहुत ही सुन्दर हैं... नीरज जी कौन सा कैमरा है?
ReplyDeleteदर्शन जी... सहोदर भाई मतलब Half Brother...
प्रयास जी,
Deleteजी नहीं, सहोदर का मतलब Half brother कतई नहीं होता है बल्कि सगा भाई या बहन होता है। सहोदर का संधी विच्छेद होता है सह+उदर। सह मतलब साथ में और उदर मतलब पेट अतः इस शब्द का अर्थ हुआ ऐसे भाई या बहन जिन्होनें एक ही उदर (कोख) से जन्म लिया हो मतलब सगे भाई (Blood brother/sister or Sibling)। कृपया नॉलेज शेयर करने से पहले उसकी औथेंटीसिटी (प्रामाणिकता) परख लें।
तेरे यात्रा वृतांत और तस्वीरों ने मन मोह लिया, काश हमे भी ले चलता, एक बार तेरे को इस बारे में कहा भी था.
ReplyDeleteरामराम.
मजा आ गया अच्छा वर्णन ......................फोटो बहुत ही सुन्दर हैं.
ReplyDeleteye jo har taraf barf bichi hui h, ye bhi chadar trek hi tha bhai, aise mausam me yaha itna paidal chalna hi badi baat h,1 baar m bhi 5 ghante bahut bhari taza barf k beech guzar chuka hu,aur photos to bahut hi kamal ki h. lajawab.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर नीरज जी। भयंकर बर्फीले चित्रों को देखकर ही कंपकंपी छुट रही है..............पता नहीं आपने कैसे इतनी भीषण ठण्ड सहन की होगी।
ReplyDeleteहम तो आह भर सकते है तेरी किस्मत पे फक्र कर सकते है पर अफसोस की हम नहीं थे वंहा कोई बात नहीं तुम्हे इन हसीं लम्हों के साक्षी बनने की बधाई .........
ReplyDeletevizag ki garmi me ye mast barf dekh raha hoon.
ReplyDeleteबर्फ़ देखकर ही सर्दी का अहसास होने लगा। मुझे फ़ोटुओं में ही अच्छी लगती है।
ReplyDeleteअदभुत, रोमांचक व मज़ेदार यात्रा....अगला भाग जल्द छापो
ReplyDeletemaza a gya lekh padhkar or barf se dhaki sundar ghati ke chitra dekhkar..... Gajab hain bhai
ReplyDeleteस्वामी जी ओमानन्द सरस्वती की लिखी पुस्तक "मांस मनुष्य का भोजन नहीं " में शाकाहारी जाटों के बारे में बहुत कुछ लिखा है । पूरी पुस्तक http://www.jatland.com/home/Human_Beings_are_Vegetarians पर उपलब्ध है । पुस्तक के कुछ अंश :
ReplyDeleteदुग्धाहारी अमेरिकन सिंहनी
अमेरिका के एक चिड़ियाघर में एक सुन्दर सिंहनी थी । वह शेरनी वहां से ऊब गई थी और अपने बच्चे का पालन पोषण भी नहीं करती थी । चिड़ियाघर वाले उसके बच्चों को जीवित रखना चाहते थे । वहां जॉर्ज नामक एक व्यक्ति था, जो जानवरों से बड़ा प्रेम करता था । उसने जंगल में घोड़े, खच्चर, मोर, बिल्ली, मुर्गे, बत्तख और मृग आदि बहुत पाल रखे थे । शेरनी का प्रसव का समय था । चिड़ियाघर वालों ने जॉर्ज को बुलाया । शेरनी के प्रसव होने पर उसका बच्चा पिंजरे में बंद करके उसे सौंप दिया । बच्चे की आंखें बन्द तथा एक टांग टूटी हुई थी । उससे वह सिंह शावक बड़ा दुःखी था । उसे जॉर्ज ले आया । उसने उसका इलाज किया । उसे भोजन के रूप में वह गोदुग्ध देता रहा । टांग अच्छी हो गई । शेरनी का बच्चा नर नहीं, मादा था । जब इसका जन्म हुआ, उस समय इसका भार तीन पौंड था जो एक मनुष्य के बच्चे से भी बहुत थोड़ा था । किन्तु जब यह दस सप्ताह की आयु का हो गया तो उसका भार ६५ पौंड हो गया । अब तक जॉर्ज इसको गाय का दूध ही दे रहा था । अब उसने सोचा कि इसे ठोस भोजन दिया जाये । उसने इसे मांस खिलाने का विचार किया क्योंकि शेर प्रायः जंगल में मांस का ही आहार करते हैं । शेर के बच्चे के आगे मांस परोसा गया, किन्तु उसने इसको नहीं खाया । इसकी दुर्गन्ध से शेर का बच्चा रोगी हो गया । फिर जॉर्ज ने एक चाल चली । उसने मांस से तैयार किये हुये अर्क के १०, १५ और ५ बूंदें दूध में क्रमशः डाल कर जब जब उसे पिलाना चाहा, तब तब उस शेरनी के बच्चे ने दूध भी नहीं पीया । अब वे विवश हो गये । उन्होंने मांस के शोरबे की एक बूंद उसकी बोतल में रखी । किन्तु उसे भी उसने नहीं छुआ । कितनी ही बार वह भूखा रहा किन्तु उसने माँस अथवा माँस से बने किसी भी पदार्थ को नहीं खाया । वे उसे बूचड़ की दुकान पर ले गये कि वह अपनी इच्छानुसार किसी मांस को चुनकर खा लेगी । किन्तु वह शेरनी किसी प्रकार का भी मांस नहीं खाना चाहती थी । मांस, खून की दुर्गन्ध भी उसे व्याकुल कर देती थी । वह शेरनी सारे संसार में प्रसिद्ध हो गई क्योंकि वह निरामिषभोजी शाकाहारी शेरनी थी । वह अपने साथी अन्य जीवों बिल्ली, मुर्गी, भेड़, बत्तख आदि सबसे प्रेम करती थी । भेड़ के बच्चे उसकी पीठ पर निर्भयता से बैठे रहते थे । उसने कभी किसी को कोई पीड़ा नहीं दी । उसे गाड़ियों में घूमना, गाना सुनना बड़ा अच्छा लगता था । वह गायों, घोड़ों के साथ घूमती थी । उसमें बड़ी होने पर ३५२ पौंड भार हो गया था । उसके चित्र अमेरिका के सभी प्रसिद्ध समाचारपत्रों के प्रथम पृष्ठ पर छपते थे । अन्य देशों के पत्रों में भी उसके चित्र छपे । बच्चे उसकी पीठ पर सवारी करते थे । सिनेमा में भी उसके चित्रपट बना कर दिखाये गये । वह शेरनी ज्यों ज्यों बड़ी होती गई, त्यों त्यों अधिक विश्वासपात्र, सभ्य और सुशील होती चली गई । वह दूध और अन्न की बनी वस्तुओं को ही खाती थी । वह १० फीट ८ इंच लम्बी हो गई थी । वह चिड़ियाघर में सदैव खुली घूमती थी । किस प्रकार मांसाहारी शेर शेरनी हिंसक पशु शाकाहारी निरामिषभोजी अहिंसक हो सकते हैं, उपर्युक्त सच्चे उदाहरण इसके जीते जागते प्रतीक हैं । फिर मांस खाने वाले मनुष्य अस्वाभाविक भोजन मांस का परित्याग नहीं कर सकते ? अवश्य ही कर सकते हैं । थोड़ा सा गम्भीरता से विचार करें, मांसाहार की हानियां समझकर दृढ़ संकल्प करने मात्र की आवश्यकता ही तो है । संसार में असम्भव कुछ भी नहीं । केवल मनुष्य की अपनी दृढ़ शक्ति चाहिये और उसके क्रियान्वयन के लिये आत्मबल । फिर बड़े से बड़ा कार्य सुगम हो जाता है । मांसाहार छोड़ने जैसे तुच्छ से साहस की तो बात ही क्या ?