Skip to main content

लद्दाख यात्रा- लेह आगमन

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें

राम-राम से जुले-जुले तक
लेह उतरने से कुछ मिनट पहले उदघोषणा हुई कि विमान लेह के कुशोक बकुला रिन्पोछे हवाई अड्डे पर उतरने वाला है। कुशोक बकुला रिन्पोछे नाम से ही पता चल रहा है कि हम लद्दाखी जमीन पर आ गये हैं। असल में कुशोक बकुला पिटुक गोनपा के प्रधान लामा थे। लेह के हवाई अड्डे के एक तरफ तो लेह शहर है जबकि दूसरी तरफ पिटुक गोनपा है। पिटुक को अंग्रेजी में स्पिटुक (Spituk) लिखा जाता है, जिससे कुछ लोग इसे स्पिटुक मोनेस्ट्री भी कहते हैं।
जब विमान पौने आठ बजे लेह के रनवे पर लैंड कर चुका और रुकने के लिये दौडता जा रहा था, तब पुनः उदघोषणा हुई कि हम अपने मोबाइल चालू कर सकते हैं। हालांकि मुझे कोई जल्दी नहीं थी, इसलिये चालू नहीं किया। सवा घण्टे पहले हम 200 मीटर की ऊंचाई पर थे, अब 3200 मीटर की महा-ऊंचाई पर, इसलिये शरीर पर कुछ असर तो होना ही था। असर होना तभी शुरू हो गया जब विमान का दरवाजा खोला गया। अभी तक हम दिल्ली वाले वायुदाब पर ही थे, क्योंकि वायुयान एयरटाइट था। अब जब अचानक दरवाजा खोला गया तो दिल्ली की भारी हवा निकल गई और लेह की हल्की हवा अन्दर भर गई। सीट से उठकर दरवाजे की ओर जाते समय यह अन्तर साफ महसूस हो रहा था।
घोषणा हुई कि बाहर तापमान माइनस दस डिग्री है। मैंने दिल्ली के हिसाब से कपडे पहन रखे थे लेकिन जब बाहर निकला तो अहसास हो गया कि यही कपडे लेह में भी पर्याप्त होंगे। अगले दिन चिलिंग पहुंचने तक मैंने यहीं कपडे पहने रखे.जबकि तापमान माइनस पन्द्रह से भी कम पहुंच गया था। लद्दाख की जमीन पर पैर रखने के आधे घण्टे के अन्दर मैंने जान लिया कि मेरे पास माइनस पच्चीस डिग्री तक के लिये पर्याप्त कपडे हैं। जितने कपडे मैंने पहन रखे हैं, बैग में उससे भी ज्यादा कपडे हैं।
बाहर निकलकर विकास को फोन किया। विकास सीआरपीएफ में है और इस समय ड्यूटी जेल में है, बुआ का लडका है, भाई है। लेह के मुख्य चौक से चार पांच किलोमीटर दूर श्रीनगर रोड पर हवाई अड्डा है, जबकि मनाली रोड पर सात किलोमीटर दूर जेल है। टैक्सी वाले ने डेढ सौ रुपये मांगे। मैंने विकास से कहा कि दस किलोमीटर के लिये मैं डेढ सौ रुपये नहीं दूंगा। उसने कहा कि एयरपोर्ट से बाहर निकलकर सडक पार कर ले, दस दस रुपये वाली टैक्सियां चलती हैं, वहां से मुख्य चौक पर दोबारा टैक्सी बदलकर फिर से दस रुपये वाली में बैठकर जेल पर आ जा।
सीआरपीएफ की एक टुकडी हवाई अड्डे पर भी है। बाद में विकास की सलाह के अनुसार खाना बांटने वाली सीआरपीएफ की गाडी से मैं जेल में पहुंच गया।
जिन्दगी में पहली बार लद्दाख आया और आते ही जेल में।
...
इस यात्रा के अनुभवों पर आधारित मेरी एक किताब प्रकाशित हुई है - ‘सुनो लद्दाख !’ आपको इस यात्रा का संपूर्ण और रोचक वृत्तांत इस किताब में ही पढ़ने को मिलेगा।
आप अमेजन से इसे खरीद सकते हैं।


लद्दाख यात्रा श्रंखला
1. पहली हवाई यात्रा- दिल्ली से लेह
2. लद्दाख यात्रा- लेह आगमन
3. लद्दाख यात्रा- सिन्धु दर्शन व चिलिंग को प्रस्थान
4. जांस्कर घाटी में बर्फबारी
5. चादर ट्रेक- गुफा में एक रात
6. चिलिंग से वापसी और लेह भ्रमण
7. लेह पैलेस और शान्ति स्तूप
8. खारदुंगला का परमिट और शे गोनपा
9. लेह में परेड और युद्ध संग्रहालय
10. पिटुक गोनपा (स्पिटुक गोनपा)
11. लेह से दिल्ली हवाई यात्रा

Comments

  1. नीरज भाई, आशा है की आप अपने वादे पे कायम रहेंगे ! नहीं नहाने के वादे पे ! देखते है आगे क्या होता है!

    ReplyDelete
  2. हवा के दबाब के अंतर वाली बात अच्छे से समझाई! आगे की पोस्ट का इंतजार है अब!

    ReplyDelete
  3. अरे यू कै, दवाब में आके मुँह धो लिया, हम तो यही जानते थे कि नीरज मानसिक रुप से (पहाड़ों पर शारीरिक कमजोरी, ऊँचाई के कारण दिखायी देती है।) बहुत मजबूत है, अपनी बात मनवाता है यू यहाँ मुँह धो लिया, धत्त तेरी की,

    ReplyDelete
  4. नीरज जी! कुछ लद्दाख के फोटो में दर्शन करवा दो, बड़ी महान कृपा होगी।

    ReplyDelete
  5. तन्नै पहले ही कह दिया था के वायु दाब संभाल के रखियो……… आखिर ढक्कन उड़ा ही दिया न। :)

    ReplyDelete
  6. थोडा और पढने को मिलता तो और ज्यादा मज़ा आता ,खैर काफी मज़ा चखने को मिल गया अब आगे का इंतजार है ....

    ReplyDelete
  7. थोडा और पढने को मिलता तो और ज्यादा मज़ा आता ,खैर काफी मज़ा चखने को मिल गया अब आगे का इंतजार है ....

    ReplyDelete
  8. रक्तदाब बाहर के वायुदाब के कारण परिवर्तित नहीं होता।
    आप की यह पोस्ट नए लोगों को साधारण वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करने के लिए भी उपयोगी है।

    ReplyDelete
  9. आप ने तो साक्षात् दर्शन करा दिये लेह के । जाना कब होगा पता नहीं, पर इतना पता चल गया कि ये आसां न होगा । साधुवाद !

    ReplyDelete
  10. आप ने तो साक्षात् दर्शन करा दिये लेह के । जाना कब होगा पता नहीं, पर इतना पता चल गया कि ये आसां न होगा । साधुवाद !

    ReplyDelete
  11. वहाँ के कम दबाव में अन्दर से हल्का लग रहा होगा...प्रकृति के साथ..

    ReplyDelete
  12. पहली बार लद्दाख आये और आते ही जेल में :-)

    पानी सिर पर नहीं डालना है ना डालो बाक़ी शरीर पर तो डाला जा सकता है!

    बढ़िया वृतांत

    ReplyDelete
  13. बहुत बढिया. . . . वाकई. . . . बडा मजा आ रहा है। ठण्ड की बात आपने चौकांनेवाली कही। लेकिन बढिया। और वायुदाब के बारे में आप बिलकुल सही कह रहे है। लेह में 3505 मीटर ऊँचाई पर वायूदाब सामान्य दबाव की तुलना में मात्र 62% रह जाता है। मुझे आपसे बडी, बहुत बडी जलन हो रही है . . . .

    ReplyDelete
  14. बहुत बढ़िया जा रहे हो ..इस बार भी फोटू न लगाने से मजा आधा हो गया नीरज .....

    ReplyDelete
  15. भाई जेल का नाम सुन के ही डर गये थे पर पूरी पोस्ट पढके आनंद आगया, डटा रह मजबूती से.

    रामराम.

    ReplyDelete
  16. नीरज जी....
    बढ़िया रही यात्रा....एक बात तो वायू दाव और तापमान का काफी प्रभाव पड़ता हैं...और हमारे जवान इसी तापमान में मुस्तैदी से तैनात रहते हैं....|आपके भाई में बड़ा हि गलत काम किया आपके साथ...जबरदस्ती मुँह धुलवा ही दिया....

    ReplyDelete
  17. नीरज भाई, ऊंचाई पर वायु दाब घटने से शरीर का रक्त दाब बढ़ जाता है, वैसे द्विवेदी जी भी सही कह रहे हैं कि शरीर पर फर्क नहीं पड़ता, लेकिन जब आप धीरे धीरे ऊंचाई की ओर बढ़ते हैं, तभी शरीर खुद को अनुकूलित कर पाता है, हवाई जहाज से जाने पर तो दिक्कत होती ही है। ब्लड प्रेशर बढ्ने के कारण ही कुछ लोगों को नाक से नकसीर आने लगती है, क्योंकि नाक के अंदर की नसें बहुत पतली और नाजुक होने के कारण अधिक रक्त दाब में फट जाती हैं। वैसे ये ड्राइनेस्स के कारण भी होता है, आर्द्रता कम होने से भी। माउंटेन सिकनेस और हाई आल्टीट्यूड प्रॉबलम भी इसी वजह से होती है। जब हम अमरनाथ गए थे तो वहाँ पहुँचते ही हमारे सामने एक आदमी एक डैम से मर गया ! गुफा तक जाते जाते मेरी भी हालत खराब हो गयी थी, मैंने तो सब साथियों को बता दिया था। लद्दाख यात्रा मे भी कुछ साथियों कि तबीयत खराब हो गयी थी। अभी लेटेस्ट खतलिंग यात्रा मे भी मासर ताल से कुछ नीचे हम 3 मे से 2 बोल गए थे !!
    इस स्वप्निल यात्रा के लिए बधाई ! मेरा भी ख्वाब है सर्दी मे लद्दाख जाने का !! ख्वाब तो कई हैं ! देखने मे क्या जाता है !! कालिंदी ट्रेक भी एक ख्वाब है !! कभी साथ तो ले चलो नीरज भाई कहीं !!!

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

दिल्ली से गैरसैंण और गर्जिया देवी मन्दिर

   सितम्बर का महीना घुमक्कडी के लिहाज से सर्वोत्तम महीना होता है। आप हिमालय की ऊंचाईयों पर ट्रैकिंग करो या कहीं और जाओ; आपको सबकुछ ठीक ही मिलेगा। न मानसून का डर और न बर्फबारी का डर। कई दिनों पहले ही इसकी योजना बन गई कि बाइक से पांगी, लाहौल, स्पीति का चक्कर लगाकर आयेंगे। फिर ट्रैकिंग का मन किया तो मणिमहेश परिक्रमा और वहां से सुखडाली पास और फिर जालसू पास पार करके बैजनाथ आकर दिल्ली की बस पकड लेंगे। आखिरकार ट्रेकिंग का ही फाइनल हो गया और बैजनाथ से दिल्ली की हिमाचल परिवहन की वोल्वो बस में सीट भी आरक्षित कर दी।    लेकिन उस यात्रा में एक समस्या ये आ गई कि परिक्रमा के दौरान हमें टेंट की जरुरत पडेगी क्योंकि मणिमहेश का यात्रा सीजन समाप्त हो चुका था। हम टेंट नहीं ले जाना चाहते थे। फिर कार्यक्रम बदलने लगा और बदलते-बदलते यहां तक पहुंच गया कि बाइक से चलते हैं और मणिमहेश की सीधे मार्ग से यात्रा करके पांगी और फिर रोहतांग से वापस आ जायेंगे। कभी विचार उठता कि मणिमहेश को अगले साल के लिये छोड देते हैं और इस बार पहले बाइक से पांगी चलते हैं, फिर लाहौल में नीलकण्ठ महादेव की ट्रैकिंग करेंग...

लद्दाख साइकिल यात्रा का आगाज़

दृश्य एक: ‘‘हेलो, यू आर फ्रॉम?” “दिल्ली।” “व्हेयर आर यू गोइंग?” “लद्दाख।” “ओ माई गॉड़! बाइ साइकिल?” “मैं बहुत अच्छी हिंदी बोल सकता हूँ। अगर आप भी हिंदी में बोल सकते हैं तो मुझसे हिन्दी में बात कीजिये। अगर आप हिंदी नहीं बोल सकते तो क्षमा कीजिये, मैं आपकी भाषा नहीं समझ सकता।” यह रोहतांग घूमने जा रहे कुछ आश्चर्यचकित पर्यटकों से बातचीत का अंश है। दृश्य दो: “भाई, रुकना जरा। हमें बड़े जोर की प्यास लगी है। यहाँ बर्फ़ तो बहुत है, लेकिन पानी नहीं है। अपनी परेशानी तो देखी जाये लेकिन बच्चों की परेशानी नहीं देखी जाती। तुम्हारे पास अगर पानी हो तो प्लीज़ दे दो। बस, एक-एक घूँट ही पीयेंगे।” “हाँ, मेरे पास एक बोतल पानी है। आप पूरी बोतल खाली कर दो। एक घूँट का कोई चक्कर नहीं है। आगे मुझे नीचे ही उतरना है, बहुत पानी मिलेगा रास्ते में। दस मिनट बाद ही दोबारा भर लूँगा।” यह रोहतांग पर बर्फ़ में मस्ती कर रहे एक बड़े-से परिवार से बातचीत के अंश हैं।