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19 जनवरी 2013
आज शनिवार है। लेह वाली बस कल आयेगी। सुबह के दस बजे हैं, अभी अभी सोकर उठा हूं। हालांकि आंख तो दो घण्टे पहले ही खुल गई थी, लेकिन बस पडा रहा। घरवाले भी थोडी थोडी देर बाद दरवाजा खोलकर झांककर चले जाते हैं कि महाराज उठेगा तो चाय-नाश्ता परोसेंगे। उन्हें झांकते देखते ही तुरन्त अपनी आंख मीच लेता हूं। भारी भरकम पश्मीना कम्बल और उस पर रजाई; दोनों के नीचे दबे होने में एक अलग ही आनन्द मिल रहा है।
साढे दस बजे उठ गया। तुरन्त चाय और रोटी आ गई। आज एक अलग तरह की रोटी बनी है। राजस्थान में जैसी बाटी होती है, उससे भी मोटी। लकडी की आग और अंगारों की कमी तो है नहीं, अच्छी तरह सिकी हुई है। इसे मक्खन और जैम के साथ खाया।
आज का लक्ष्य है कि ग्रामीण जनजीवन को देखूंगा, कुछ फोटो खींचूंगा।
अचानक अन्तरात्मा ने आदेश दिया- नेरक चलो। यह आदेश इतना तीव्र और तीक्ष्ण था कि शरीर के किसी भी अंग को संभलने और बचाव करने का मौका भी नहीं मिला। सभी ने चुपचाप इस आदेश को मान लिया। हालांकि पैरों ने कहा भी कि दर्द हो रहा है लेकिन आत्मा ने फौरन कहा- चुप।
नेरक चिलिंग से करीब चालीस किलोमीटर आगे जांस्कर किनारे एक गांव है। आठ किलोमीटर तक सडक बनी है, उसके बाद पगडण्डी है। यह पगडण्डी बर्फ के नीचे दबी है, इसलिये जमी हुई नदी के ऊपर से जाना होता है। यही चादर ट्रेक है।
मेरी वापसी पच्चीस तारीख को है। इस प्रकार मेरे हाथ में अभी भी छह दिन हैं। चार दिन में बडे आराम से नेरक से लौटकर वापस आ सकता हूं। घरवालों से अपनी मंशा बता दी। साथ ही एक डण्डे, एक चश्मे और एक रस्सी के लिये भी कह दिया। बैग के ऊपर रस्सी से स्लीपिंग बैग बांध दिया। भले-मानुसों ने दो रोटियां मक्खन और जैम के साथ पैक करके मुझे दे दीं। वैसे खाने के लिये मेरे पास काफी सामान था।
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चिलिंग गांव |
इसी घर में मैं रुका हुआ था। |
जमी हुई जांस्कर नदी पर ट्रेकिंग |
लकडी की स्लेज पर सामान खींचा जाता है। |
जमी हुई नदी यानी चादर |
यह एक ज्वालामुखीय संरचना है। जो बर्फ बनने के दौरान हुई टूट-फूट का नतीजा है। |
सामने अन्तिम छोर पर तिलत सुमडो है। |
सामने एक समतल चबूतरा दिख रहा है, वही तिलत सुमडो कैम्प साइट है। फोटो गुफा से खींचा गया है। |
ऊपर गुफा से खींचा गया एक और फोटो। नदी में दरारें साफ दिख रही हैं। |
गुफा से खींचा गया एक और फोटो। |
अगला भाग: चिलिंग से वापसी और लेह भ्रमण
लद्दाख यात्रा श्रंखला
1. पहली हवाई यात्रा- दिल्ली से लेह
2. लद्दाख यात्रा- लेह आगमन
3. लद्दाख यात्रा- सिन्धु दर्शन व चिलिंग को प्रस्थान
4. जांस्कर घाटी में बर्फबारी
5. चादर ट्रेक- गुफा में एक रात
6. चिलिंग से वापसी और लेह भ्रमण
7. लेह पैलेस और शान्ति स्तूप
8. खारदुंगला का परमिट और शे गोनपा
9. लेह में परेड और युद्ध संग्रहालय
10. पिटुक गोनपा (स्पिटुक गोनपा)
11. लेह से दिल्ली हवाई यात्रा
अवर्णनीय चित्र..पता नहीं इसमें सर्दियों में स्कींइंग क्यों नहीं की जा सकती।
ReplyDeleteवैसे, ऐसी ठंड में दिमाग कार्य करना बन्द कर देता है और आपको विज्ञान की सुझ रही है।
पाण्डेय जी, सर्दियों में स्कीइंग वहां की जाती है जहां बर्फ का भरोसा हो। जमी हुई नदी पर जहां इंच इंच पर बर्फ की मोटाई बदलती रहती हो, नीचे हमेशा पानी बहता हो, वहां स्कीइंग कैसे हो सकती है?
Deletegyan vardhak jawab he
DeleteAmazing SALLAM H AAP KO
ReplyDeleteवाकई कुछ लोगों को ऊपर वाला स्पेशल मिट्टी से बनाता है। तुम भी उसमे से एक हो, नीरज भाई ! तुम्हारे जज्बे को सलाम!
ReplyDeleteइस पोस्ट को पढ़ते हुए ऐसा लग रहा था जैसे डिस्कवरी चैनल पर मेन वर्सेस वाइल्ड या सर्वाइवल की कोई डाक्यूमेंट्री देख रहे हों। बहुत ही रोमांचक लेख और फोटो तो आश्चर्यजनक थे। आपको ''इंडियन बेयर ग्रिल्स'' की उपाधी देना अतिशयोंक्ति नहीं होगा।
ReplyDeletemai bhi man vs wild banna chahta hun, agar jis kisi ko bhi banna hai mujhse mile......
DeleteMujhe bhi banna hair Neeraj bhai
Delete"वाकई चादर ट्रेक पर फोटो खींचना महान हिम्मत का काम है, जहां दो दो जोडी दस्तानों के बावजूद भी उंगलियां सुन्न पडी हों। फोटो खींचने के लिये दस्ताना उतारना पडता है। अगर हमें कहीं इंटरनेट पर चादर ट्रेक के फोटो देखने को मिलते हैं, तो हमें फोटोग्राफर के प्रति कृतज्ञ होना चाहिये। चादर ट्रेक के फोटो महा-विपरीत परिस्थितियों में खींचे जाते हैं।"
ReplyDeleteयह लगभग हर अच्छी फोटो के लिए कही जा सकती है...
अगर कोई फोटोग्राफर एक अच्छी फोटो खींचता है तो उसके पीछे भी वर्षों कि म्हणत और लगन होती है..
और एक अच्छी फोटो के लिए पता नहीं कितने फोटो खराब भी होते हैं....
पर नीरज salute to you.....
कुछ लोगों को ऊपर वाला स्पेशल मिट्टी से बनाता है। तुम भी उसमे से एक हो, नीरज भाई ! तुम्हारे जज्बे को सलाम!
ReplyDeleteFantastic Neeraj Bhai !
ReplyDeleteनीरज भाई गज़ब, आपने और आपके कैमरे ने तो कमाल कर दिखाया हैं, वाकई घुमक्कडो के सरताज हो तुम...
ReplyDeleteमानना पडेगा नीरज तू किसी और ही मिटटी का बना है ...इतनी बर्फ में रहना और इतनी ठंडी सहना हर किसी के बस की बात नहीं है ..ऐसा फिल्मों में ही देखा था ..पर जब अपना पहचाना आदमी वहाँ जाकर आता है तो ख़ुशी का यह अहसास और भी गहरा हो जाता है ...तेरे जज्बे को और तेरे हौसले को सलाम ..वाकई में तुझे बहादुरी का इनाम तो मिलना ही चाहिए ..गंगोत्री -यात्रा से भी कठिन यह यात्रा थी और वो भी अकेले एकांत ...वो लोग इतने सुनसान जगह में कैसे रहते है ? जीवन की उपयोगी चीजे कैसे लाते है ?
ReplyDeleteक्या चादर ट्रेक उसे कहते है जहाँ नदी जम जाती है और नदी पर चलते है ...?
नीरज भाई आपने जो दुर्लभ काम किया उसके लिए आपका नाम भारत के महान घुम्मकरो में लिखा जायेगा
ReplyDeleteअदभुत ... अविश्वसनीय... रोमांचक
ReplyDeleteचादर ट्रेक और इसकी फोटोग्राफी बेहतरीन सीरीज में से एक है !! 2013 की एक बेहतरीन उपलब्धि !!
ReplyDeleteNo words are enough. Salute!!
ReplyDeletebaap re aapki hee himmat hai
ReplyDeleteजाट बिरादरी का नाम तुम ही रौशन करोगे नीरज जी....
ReplyDeleteहमें तो कोई लाख रुपये दे तो भी नहीं जा सकेंगे ..यानी हमारे पैर दिमाग का आदेश मानने से साफ़ मना कर देंगे । ऐसी जगह अकेले यात्रा करना साहस का काम है ।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है , फोटो का तो जवाब ही नहीं है, इतनी सर्दी में जहा दिल्ली में ही रहना मुश्किल हो रहा था तुम वहा बर्फ में घूम आये ! वाकई हिम्मत का काम है धन्यवाद् इन्टरनेट के माध्यम से इतनी कठिन जगह के दर्शन करने के लिए !
ReplyDeleteसुबह पांच बजे, NEERAJ NAHI UTHEGA,
ReplyDeleteBAKI HIMMAT MAST.
मुझे तो बर्फ़ देखकर ही ठंड लगने लगती है।अकेले ऐसी जगह तो जाने की अब सोचना भी नहीं है। घूमने के लिए बाकी हिन्दुस्तान पड़ा है। साथ में दो चार कुली और पूरा सामान हो तो जाया जा सकता है। बढिया फ़ोटो हैं, एक फ़ोटो गुफ़ा के भीतर और सामने की भी लगाना।
ReplyDeleteललित भाई चलना है क्या?
Deleteमई में मैं सपरिवार जा रहा हूँ...
नीरजजी आपका कोई जवाब नही । आपने डिस्कवरी के बीयर ग्रिल्स की याद दिला दी
ReplyDeleteअद्भुत , आप जैसे घुमक्कड़ सदियों मे पैदा होते है.
adbhut or Romanchak varnan... Mahan ghimakkar ho bhai tum to.. vakai me tum bhi special mitti se bane ho..
ReplyDeleteकल पढ़ा हुआ वर्णन अधुरा -सा लग रहा था ...लगा था की अचानक रात को सोचा की नहीं जाउगा और सुबह इतना सफ़र तैय कैसे कर लिया ...फिर भी आगे के वर्णन से जो आनन्द आया तो ऊपर का अधुरा पन ख़त्म हो गया ....चिलमिलाती घुप में चश्मे की जरुरत होती है ...
ReplyDeleteAap ki hemant ki daad deni padegi Neeraj Bhai ..................bhut sundar picture hai chadar tark ki picture lena or waha tak jana ye aap jaisa hemmat wala banda he kar sakta hai
ReplyDeleteHats off Salute to you
ReplyDeleteHats off Salute to you
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