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चिलिंग से वापसी और लेह भ्रमण

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें
20 जनवरी, रविवार। मैं तिलत सुमडो की गुफा में एक बेहद सर्द रात काटकर वापस लेह के लिये चल पडा। पता था कि आज एक बजे चिलिंग से लेह जाने वाली बस मिलेगी। तीन दिन बर्फ गिरे हो चुके थे, अब यह बर्फ काफी कडी हो गई थी। ऊपर से सडक पर चलती गाडियों ने इसे और भी कडा बना दिया जिससे अब इस पर चलना पहले दिन के मुकाबले मुश्किल हो रहा था।
तीन किलोमीटर चलने के बाद सडक बनाने वालों की बस्ती आई। यहां कई कुत्ते हैं और वे रास्ते पर किसी को आते-जाते देखते ही भौंकते हैं। मैं अब से पहले तीन बार यहां से गुजर चुका था, मुझे पता चल गया था कि कालू कुत्ता भौंकने की शुरूआत करता है, बाकी कुत्ते उसके बाद ऐसे भौंकते हैं जैसे मजबूरी में भौंक रहे हों। अब कालू नहीं दिखाई दिया, बाकी सभी इधर-उधर पसरे पडे थे, भौंका कोई नहीं। थोडा आगे चलने पर कालू दिखा, देखते ही आदतन भौंका लेकिन किसी दूसरे ने उसका साथ नहीं दिया। दो तीन बार बाऊ-बाऊ करके चुप हो गया।
मेरे पास कल से ही पानी नहीं था। रात थोडी सी भुरभुरी बर्फ बोतल में भरकर स्लीपिंग बैग में रख ली तो सुबह दो घूंट पानी मिल गया लेकिन यह पर्याप्त नहीं था। सडक बनाना चूंकि सेना का काम है इसलिये एक सैनिक मिला। मैंने उससे पानी मांगा। उन्होंने अविलम्ब गर्म पानी लाकर दे दिया। यह मिट्टी के तेल के स्टोव पर गर्म हुआ था, पानी से मिट्टी के तेल के धुएं की गन्ध आ रही थी। वो केरल का रहने वाला था। मैंने पूछा कि अभी कोई ट्रक लेह जायेगा क्या। उसने बताया कि आधे घण्टे पहले गया है, अब कल जायेगा।
...
इस यात्रा के अनुभवों पर आधारित मेरी एक किताब प्रकाशित हुई है - ‘सुनो लद्दाख !’ आपको इस यात्रा का संपूर्ण और रोचक वृत्तांत इस किताब में ही पढ़ने को मिलेगा।
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मारखा घाटी से आने वाले लोग जांस्कर नदी को पार कर रहे हैं। जांस्कर में बर्फ के टुकडे तैरते देखे जा सकते हैं।

मारखा घाटी से आता काफिला

लेह जाने वाली सडक


लेह जाने वाली बस



सामने मारखा और जांस्कर का संगम है।


सिन्धु और जांस्कर का संगम



लेह

लेह


चोगलमसर से लेह शहर की ओर जाने वाली रोड। दूर बर्फीली चोटियों के बीच खारदूंगला है।



यह है लद्दाख







अगला भाग: लेह पैलेस और शान्ति स्तूप

लद्दाख यात्रा श्रंखला
1. पहली हवाई यात्रा- दिल्ली से लेह
2. लद्दाख यात्रा- लेह आगमन
3. लद्दाख यात्रा- सिन्धु दर्शन व चिलिंग को प्रस्थान
4. जांस्कर घाटी में बर्फबारी
5. चादर ट्रेक- गुफा में एक रात
6. चिलिंग से वापसी और लेह भ्रमण
7. लेह पैलेस और शान्ति स्तूप
8. खारदुंगला का परमिट और शे गोनपा
9. लेह में परेड और युद्ध संग्रहालय
10. पिटुक गोनपा (स्पिटुक गोनपा)
11. लेह से दिल्ली हवाई यात्रा

Comments

  1. रोचक यात्रा वर्णन.....

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  2. इतनी ठण्ड में बेचारे कुत्ते कैसे भोकेंगे नीरज ...वो भी खुले आसमान में ....बहुत बेइंसाफी है ..बेचारो को रजाई कम्बल कुछ नहीं ...
    ये यात्रा बहुत ही मजेदार और दमदार रही ....फोटू भी असाधारण और लेख भी ..तुम गुरुद्वारा पत्थर साहेब और कारगिल नहीं गए क्या ?

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  3. भई बहुत खूब ,बड़ी अच्छी तरह सइ लिखते आवर लगातार लिखते आ रहे है ,दुआ करता हु आगे भी लिखते रहे , पर विसिटर नहीं बड़ा पा रहे है , मई आपकी मदद क्र सकता हु ,जिसका तजा उदाहरन आप अपने ब्लॉग स्टेट्स पर देख सकते हो ,
    अगर प्रभावित हो तो मुझसे संपर्क कीजिये ,
    kshubhamfan@gmail.com

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  4. नीरज भाई , कालू आपको देखकर समझ गया था,...................................... लेकिन एक चीज है कौन कहता की जाट कंजूस है आखिर आपने सौ रूपये जो छोड़ दिए!! जय हो ! लगे रहिये !!!

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  5. HE CAME, HE SAW and HE WON for all of us. . .

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  6. नीरज भाई तापमान नापने का यन्त्र आजकल बहुत सस्ता हो गया है 70-100 रुपैये में मूल जायेगा

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  7. नीरज भाई , लद्दाख के बहुत ही सुन्दर फोटो हैं. आपने सही लिखा हैं ये कश्मीरी मुसलमान रहते भारत में हैं, खाते भारत का हैं, लेकिन इनके सपनो का देश पाकिस्तान हैं, ये वंहा पर चले क्यों नहीं जाते हैं. ये सब बीज गांधी, नेहरु बो गए थे. नहीं तो आज पूरा का पूरा कश्मीर हिंदू होता, और पूरा का पूरा देश एक सच्चा हिंदू-स्थान होता....वन्देमातरम...

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  8. भोत बडीया विवरण है... मजा सा आ रिया सै

    मैं प्रवीण गुप्ता से 100 प्रतिशत सहमत हूं

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  9. नीरज जी....विवरण के साथ चित्र तो गजब के हैं...|

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  10. कँपकपा देने वाला वर्णन..

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(मित्र अनुराग जगाधरी जी ने एक त्रुटि की तरफ ध्यान दिलाया। पिछली पोस्ट में मैंने बाइक के पहियों में हवा के प्रेशर को ‘बार’ में लिखा था जबकि यह ‘पीएसआई’ में होता है। पीएसआई यानी पौंड प्रति स्क्वायर इंच। इसे सामान्यतः पौंड भी कह देते हैं। तो बाइक के टायरों में हवा का दाब 40 बार नहीं, बल्कि 40 पौंड होता है। त्रुटि को ठीक कर दिया है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद अनुराग जी।) दिनांक: 16 जून 2015 दोपहर बाद तीन बजे थे जब हम लेह से मनाली रोड पर चल दिये। खारदुंगला पर अत्यधिक बर्फबारी के कारण नुब्रा घाटी में जाना सम्भव नहीं हो पाया था। उधर चांग-ला भी खारदुंगला के लगभग बराबर ही है और दोनों की प्रकृति भी एक समान है, इसलिये वहां भी उतनी ही बर्फ मिलनी चाहिये। अर्थात चांग-ला भी बन्द मिलना चाहिये, इसलिये आज उप्शी से शो-मोरीरी की तरफ चले जायेंगे। जहां अन्धेरा होने लगेगा, वहां रुक जायेंगे। कल शो-मोरीरी देखेंगे और फिर वहीं से हनले और चुशुल तथा पेंगोंग चले जायेंगे। वापसी चांग-ला के रास्ते करेंगे, तब तक तो खुल ही जायेगा। यह योजना बन गई।