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24 नवम्बर 2012 को रात होने तक मैं साइकिल चलाकर पुष्कर से साम्भर झील पहुंच गया। अगले दिन जब पूछताछ की तो पता चला कि यहां से 23 किलोमीटर दूर एक लोकप्रिय मन्दिर है- शाकुम्भरी माता मन्दिर। इधर अपना भी फाइनल हो गया कि शाकुम्भरी तक चलते हैं।
साम्भर झील खारे पानी की एक बहुत बडी झील है। राजस्थान के अर्धमरुस्थलीय इलाके में फैली यह झील जयपुर, अजमेर और नागौर जिलों में स्थित है। वैसे तो साम्भर लेक नाम से जोधपुर लाइन पर रेलवे स्टेशन भी है लेकिन नजदीकी बडा स्टेशन छह किलोमीटर दूर फुलेरा है।
भौगोलिक रूप से इस झील को पानी की सप्लाई चारों तरफ से आती हुई कई नदियां करती हैं लेकिन शुष्क इलाके में उनसे नियमित सप्लाई सम्भव नहीं है। मानसून के दौरान ही इन नदियों में पानी रहता है, बाकी समय सूखी रहती हैं। इसलिये इसमें भू-गर्भ से पानी निकालकर भरा जाता है। पानी में नमक की मात्रा बहुत ज्यादा है, इसलिये यह झील नमक की ‘खेती’ के लिये जानी जाती है।
झील में नमक ढोने के लिये रेल लाइनें बिछी हुई हैं। साम्भर लेक स्टेशन के पास नमक शोधन कारखाना है जहां नमक की सफाई से लेकर पैकिंग तक होती है। इस कारखाने तक कच्चा नमक लाने के लिये झील के अन्दर बिछी रेल लाइनें बडी कारगर हैं। यहां दो गेज की लाइनें हैं- मीटर और नैरो। कारखाने के अपने छोटे छोटे इंजन हैं और नमक ढोने हेतु लकडी के छोटे छोटे डिब्बे भी हैं। लकडी के डिब्बे ही नमक के लिये सर्वोत्तम होते हैं क्योंकि लोहे का क्षरण बडी जल्दी होता है।
एक तरह से देखा जाये तो साम्भर एक ऐसी झील है जिसमें तीनों गेज की रेल पटरियां हैं- ब्रॉड, मीटर और नैरो। ब्रॉड गेज से भारतीय रेल गुजरती है जो झील के बीच से निकलती है। बाकी दोनों लाइनें नमक ढोने के लिये हैं।
झील के दक्षिणी किनारे से होते हुए 18 किलोमीटर दूर एक गांव है- कोरसीना, जहां से शाकुम्भरी मन्दिर पांच किलोमीटर दूर रह जाता है। वैसे कोरसीना से एक रास्ता रूपनगढ भी जाता है। मैं कल रूपनगढ से ही आया था लेकिन इस रास्ते को पकडने की बजाय नरैना वाला रास्ता पकड लिया। अगर कल रूपनगढ से साम्भर लेक जाने के लिये मैं यह कोरसीना वाला रास्ता पकड लेता तो आज दोबारा इस रास्ते पर नहीं आता।
शाकुम्भरी माता की भी पौराणिक और स्थानीय कथाएं हैं, जिन्हें मैं यहां नहीं लिखूंगा। मेरा यहां तक आने का मकसद साम्भर झील देखना था। 23 किलोमीटर का सारा रास्ता झील के किनारे ही रहता है। रास्ते में कई गांव भी पडते हैं जिनके तालाबों में कई तरह के पक्षी विचरण करते हुए दिखते हैं। सर्दियों में उत्तरी भारत में पक्षियों की संख्या बढ जाती हैं क्योंकि उच्च अक्षांशों जैसे कि साइबेरिया में सबकुछ बर्फ से ढक जाता है तो ये पक्षी जीवन-यापन के लिये निम्न अक्षांशों में चले आते हैं।
शाकुम्भरी मन्दिर पर अच्छी खासी चहल पहल थी। भण्डारे भी चल रहे थे। जलेबी-पकौडी और चाय का प्रसाद भी बंट रहा था। यहां से दूर क्षितिज तक झील का फैलाव दिखता है। चूंकि झील में पानी बेहद सीमित है तो सतह पर जमा नमक की परत सबकुछ सफेद दिखाने लगती है। उस पार नावा शहर है। नावा में रेलवे स्टेशन है। यहां से थोडा बहुत चक्कर काटकर एक रास्ता नावा भी जाता है। मैं नावा के रास्ते लौटना चाहता था लेकिन चूंकि आज शाम तक जयपुर पहुंचना था जो कि यहां से करीब 95 किलोमीटर दूर है। इसलिये नावा को परले किनारे ही रहने दिया गया।
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साम्भर लेक रेलवे स्टेशन |
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झील में कर्मचारियों के आने-जाने के लिये चलने वाली एक ‘रेल-बस’ |
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झील क्षेत्र से गुजरती भारतीय रेल |
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शाकुम्भरी माता जाने वाली सडक |
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मन्दिर अभी भी आठ किलोमीटर दूर है। बीच में पानी सा दिख रहा है, वो पानी नहीं बल्कि मृगमरीचिका है। |
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कोरसीना गांव में जब मैं मोबाइल में शाकुम्भरी का रास्ता देख रहा था, तो यह बच्चा आया और बोला कि मेरा फोटो खींचो। फोटो खिंचवाकर इसने कैमरे में फोटो देखा और भाग गया। |
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शाकुम्भरी की पहाडी पर बनी छतरी। |
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शाकुम्भरी माता मन्दिर |
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झील में नमक ढोने वाली ट्रेन |
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झील में नमक ढोने के लिये नैरो और मीटर गेज इस्तेमाल होते हैं। यह ट्रेन नैरो गेज की है। |
शाकुम्भरी माता का एक मन्दिर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में भी है। यहां क्लिक करें।
अगला भाग: भानगढ- एक शापित स्थान
जयपुर पुष्कर यात्रा
1. और ट्रेन छूट गई
2. पुष्कर
3. पुष्कर- ऊंट नृत्य और सावित्री मन्दिर
4. साम्भर झील और शाकुम्भरी माता
5. भानगढ- एक शापित स्थान
6. नीलकण्ठ महादेव मन्दिर- राजस्थान का खजुराहो
7. टहला बांध और अजबगढ
8. एक साइकिल यात्रा- जयपुर- किशनगढ- पुष्कर- साम्भर- जयपुर
एक शाकुम्भरी मन्दिर शायद मुंज़फ़्फरनगर/सहारनपुर में भी है
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (22-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
ReplyDeleteसूचनार्थ!
पटरियां टेढी-मेढी हैं, शायद धूप और गरमी के कारण
ReplyDeleteक्या इनपर ट्रेन चलने में समस्या नहीं आती
वाह, हमें तो आधी कमीज निकाले बच्चे का अन्दाज भा गया। रेल का खेल नमक के संग भी फैला है।
ReplyDeleteनमक के ढेर और पानी बाम्बे की तरह ही है पर यहाँ नमक ढोने के लिए ट्रेन नहीं है ... शाकुम्भरी माता का नाम तो सुना था पर देखा आज ..मुझे राजस्थान के गाँव बहुत ही पसंद है .... तुमने जलेबी नहीं खाई क्या ?...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति. साइकिल में odometer लगवाना पड़ेगा, इतना जो चलाते हो.
ReplyDeleteरोचक यात्रा वर्णन ... उत्तर प्रदेश का शाकुंभरी माता का मंदिर देखा हुआ है ...
ReplyDeleteamazing dude....
ReplyDeletekeep posting...nice blog
सुन्दर मनोरम तस्वीरों के साथ बढ़िया प्रस्तुति हेतु आभार!
ReplyDeleteओह भाई मजा आ गया ! जियो भारत के लाल !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर फोटोज
ReplyDeleteAaj 23sal ke bad janm bhumi ke dershen hue esa lega jese m papa ke sath trali me beth ker jheel dekh rhi hu thankyou for this dershen
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