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23 नवम्बर 2012.
पुष्कर में सालाना कार्तिक मेला शुरू हुए तीन दिन हो चुके थे। रोजाना सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित हो रहे थे। आज के कार्यक्रम के अनुसार मुख्य आकर्षण ऊंटों और घोडों का नृत्य था।
साइकिल यही आश्रम में खडी करके मैं पैदल मेला मैदान की तरफ चल पडा। मैदान में सामने नट अपना प्रदर्शन कर रहे थे। ये कल भी यही थे।
और जैसे ही लाउडस्पीकर पर घोषणा हुई कि ऊष्ट्र-अश्व नृत्य प्रतियोगिता शुरू होने वाली है, तो नटों के यहां अचानक रौनक खत्म हो गई। सब लोग नृत्य स्थान पर चले गये।
नृत्य स्थान के चारों तरफ इतनी भीड इकट्ठी हो गई कि पैर रखने की जगह भी नहीं बची। हालांकि मैंने मोर्चा जल्दी ही मार लिया था, इसलिये आगे पहुंच गया। बाहर तीन तरफ बहुत से पर्यटक ऊंटों पर बैठकर प्रतियोगिता देखने लगे।
पहले ऊंट नृत्य हुआ जिसमें तीन ऊंटों ने भाग लिया। उसके बाद घोडे नाचे। घोडे जल्दी प्रशिक्षित हो जाते हैं इसलिये उनका नृत्य ज्यादा प्रभावशाली लगा। बाजे के साथ कदमताल करते घोडे संसाधनहीन लोगों द्वारा बेहतरीन प्रशिक्षण का नतीजा थे।
ब्रह्मा के नाम पर बनी दुकान (ब्रह्मा मन्दिर) में जाने से पहले वही क्रियाकर्म करने पडते हैं, जो भारत की अन्य ‘दुकानों’ के बाहर होते हैं- जूते उतारना और मोबाइल, कैमरा, बैग बाहर रखना। जूते उतारना तो ठीक है लेकिन बाकी सामान भी बाहर रखना मेरी समझ से बाहर की बात है। यह हालत तब थी जबकि वहां राजस्थान पुलिस के जवान ही सारा मोर्चा सम्भाले हुए थे।
समझ नहीं आता कि मोबाइल, कैमरा, बैग बाहर क्यों रखवाये जाते हैं। मैं भले ही पूजा पाठ नहीं करता हूं लेकिन इतना जरूर जानता है कि पूजा-पाठ का इन चीजों से कोई सम्बन्ध नहीं है। दूसरा कारण सुरक्षा हो सकता है। इन चीजों के माध्यम से आपत्तिजनक चीजे, विस्फोटक अन्दर लाये जा सकते हैं। अगर विस्फोटकों से बचने के लिये इन चीजों को मन्दिर में ले जाना प्रतिबन्धित है तो मैं चाहता हूं कि मेट्रो स्टेशनों तथा रेलवे स्टेशनों पर भी इनपर प्रतिबन्ध लगाया जाये। अगर प्रशासन को मन्दिर के अन्दर बैग ले जाने पर डर लगता है तो स्टेशनों के अन्दर बैग ले जाने पर क्यों नहीं लगता? नई दिल्ली स्टेशन के बाहर हमेशा आधा किलोमीटर लम्बी कई लाइनें लगी रहती हैं क्योंकि स्कैनर मशीनों से सामान की चैकिंग की जाती है। क्या मन्दिरों में इस तरह की चैकिंग नहीं हो सकती?
मैं ब्रह्मा के नाम वाली उस ‘दुकान’ में नहीं गया। वापस जूते पहने और घाट की तरफ चल दिया। मुख्य ब्रह्म घाट पर पहुंचा। यहां एक अजीब बात देखी कि कदम कदम पर दानपात्र रखे हैं। दानपात्र अक्सर किसी मन्दिर के प्रवेश द्वार पर रखे मिलते हैं लेकिन यहां घाट की हर सीढी पर दानपात्र हैं।
कुछ समय यहां व्यतीत किया और वापस चल दिया।
कमरे पर जाकर ऐसे ही लेट गया। अब साइकिल उठाकर अजमेर जाने का इरादा था और तारागढ किला देखना था लेकिन ऐसे ही लेट गया तो नींद आ गई और चार बजे आंख खुली। चेक आउट टाइम बारह बजे था तो आज भी यहीं रुकने का फैसला कर लिया।
रात को तय किया कि सुबह अजमेर, नसीराबाद होते हुए शाम तक भीलवाडा पहुंचूंगा। वहां से परसों चित्तौडगढ। लेकिन सोने से पहले करण का फोन आ गया। पता चला कि वो आज तालछापर अभयारण्य में है और कल सालासर बालाजी पहुंच जायेगा। परसों साम्भर झील पहुंचने की उम्मीद है।
अब मैंने भी अपना इरादा बदल दिया और कल साम्भर झील पहुंचने की सोचने लगा।
जब से मैं पुष्कर आया हूं तभी से एक चोटी और उस पर बना मन्दिर मुझे बहुत आकर्षित कर रहा है। वो सावित्री मन्दिर है। आज सबसे पहला काम यही किया कि सावित्री मन्दिर की तरफ साइकिल दौडा दी। मन्दिर की सीढियां शुरू होने से पहले एक दुकान पर साइकिल खडी की और निकल पडा। जैसे जैसे ऊपर चढता गया, पूरे पुष्कर का शानदार नजारा दिखने लगा। यही नजारा देखने मैं इस मन्दिर तक आया था।
रेलवे स्टेशन भी दिख रहा था। अजमेर से पुष्कर तक हाल ही में एक नई लाइन बिछी है, जिस पर अभी अजमेर से एक पैसेंजर ट्रेन चलती है।
नीचे उतरकर साइकिल उठाई और साम्भर झील के लिये निकल पडा।
पुष्कर में सब्जी विक्रेता |
ब्रह्मा मन्दिर |
नटों का प्रदर्शन |
नट बालिका- पूरा ध्यान रस्सी और पैरों पर |
अश्व नृत्य |
तिरंगे के पीछे वाली पहाडी पर सावित्री मन्दिर है। |
दानपात्र... दानपात्र... दानपात्र... ... |
पुष्कर झील |
आश्रम के सामने यह एक गुरुद्वारा भी है। |
सावित्री मन्दिर |
सावित्री मन्दिर से दिखता पूरा पुष्कर |
पुष्कर रेलवे स्टेशन |
सावित्री मन्दिर के पास लंगूरों की भरमार है। |
ऊंट मेला |
और आखिर में जाट मन्दिर |
अगला भाग: साम्भर झील और शाकुम्भरी माता
जयपुर पुष्कर यात्रा
1. और ट्रेन छूट गई
2. पुष्कर
3. पुष्कर- ऊंट नृत्य और सावित्री मन्दिर
4. साम्भर झील और शाकुम्भरी माता
5. भानगढ- एक शापित स्थान
6. नीलकण्ठ महादेव मन्दिर- राजस्थान का खजुराहो
7. टहला बांध और अजबगढ
8. एक साइकिल यात्रा- जयपुर- किशनगढ- पुष्कर- साम्भर- जयपुर
मेले के समय में ही सामान मन्दिर में नहीं ले जाने दिये जाते। आमतौर पर इस मन्दिर में चैकिंग नहीं होती है।
ReplyDeleteसभी फोटोज बहुत अच्छे हैं, यादें ताजा हो गई।
प्रणाम
badhiya vivran
ReplyDeletebhut badiya neeraj August mai hum bi darsan karke aaye brahma temple Pushkar ke par us time par koi problam nahi the samaan le jaane ki photo bhut sundar hai dhanybad yaade taza karne ki
ReplyDeleteरंगमयी मरुथल।
ReplyDeleteनीरज भाई...........
ReplyDeleteपुष्कर का मेला देश भर में काफी प्रसिद्ध हैं...आपने तो देखा ही हमें भी दिखाया...| आपने तो ब्रह्मा मंदिर के अंदर से दर्शन ही नहीं किये...समान रखकर देख कर तो आते अंदर से....आपने तो दुकान कह कर टाल दिया | फोटो बहुत अच्छे लगे....
Nainital → Shri Nainadevi Temple & Shri Kainchi Dham Temple (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..6 )
http://safarhainsuhana.blogspot.in/2012/12/7.html
कैमरा आपका भी कमजोर नहीं.
ReplyDeleteमंदिर भी इंसान ही बनाता है और उसे दूकान में तब्दील भी वही करता है. पुष्कर एक व्यावसायिक केंद्र के अतिरिक्त कुछ नहीं रह गया है. वहाँ के निवासी हों या राज्य सरकार सभी इसे एक कमाने का जरिया मात्र मानते हैं. अच्छा है दुकानदारों से गुफ्तगूँ नहीं की वरना कई तो सिर्फ विदेशियों को ही दूकान में घुसना allow करते हैं.
ReplyDeleteरही बात रेलवे लाइन की तो 60 साल में रेलवे से एक सुरंग नहीं बन पायी अजमेर पुष्कर के बीच. यह रेलवे लाइन रोड से भी ज्यादा लंबी है अजमेर - पुष्कर के बीच.
चित्र देखकर दर्द जाग उठा सो लिख दिया. रेलवे स्टेशन वाले चित्र से कैमरे के ज़ूम का पता चल रहा है.
नीरज फोटो बहुत अच्छे हैं, उंट और घोड़े की कीमत बताते तो अच्छा रहता . धन्यवाद
ReplyDeleteये जाट मंदिर ......अरे हाँ आपकी भाषा में तो मंदिर को 'दूकान' कहते है। हाँ तो ये जाट 'दूकान' कहाँ मिल गई आपको ?
ReplyDeletepurane samye main logo ne bhagwaan ki bhati ke rup main mandir banvaye the par aaj logo ne hi ishe dukaan bana diya .bahut dukh hai. par achha hota ki aap brhama temple ke aander bhi ghum aate .
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