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जब नीलकंठ महादेव से वापस जयपुर जाने के लिये चल पडे तो टहला से कुछ पहले अपने बायें एक बडी झील दिखाई पडी। इसमें काफी पक्षी आनन्द मना रहे थे। सर्दियां आने पर उत्तर भारत में पक्षियों की संख्या बढ जाती है। ये बढे हुए पक्षी सुदूर उत्तरी ध्रुव के पास यानी साइबेरिया आदि ठण्डे स्थानों से आते हैं। विधान ने बिना देर किये मोटरसाइकिल सडक से नीचे उतारकर झील के पास लगा दी।
इसका नाम या तो मंगलसर बांध है या फिर मानसरोवर बांध। हमें देखते ही बहुत से पक्षी इस किनारे से उडकर दूर चले गये। मैं और विधान अपने अपने तरीके से इनकी फोटो खींचने की कोशिश करने लगे।
मैं ना तो पक्षी विशेषज्ञ हूं, ना ही बडा फोटोग्राफर। फिर भी इतना जानता हूं कि पक्षियों की तस्वीरें लेने के लिये समय और धैर्य की जरुरत होती है। चूंकि कोई भी पक्षी हमारे आसपास नहीं था, सभी दूर थे, इसलिये मनचाही तस्वीर लेने की बडी परेशानी थी।
मैं चाहता था कि एक ऐसी तस्वीर मिले जिसमें पक्षी पानी में तैरने के बाद उडने की शुरूआत करता है। उसके पंख उडने के लिये फैले हों और पैर पानी में हों। हालांकि इस तरह की एक तस्वीर लेने में कामयाबी तो मिली लेकिन मुझे यह तस्वीर ज्यादा पसन्द नहीं आई।
फिर भी कुछ बेहतरीन फोटो आये हैं, जिसमें लाइन बनाकर तैरते पक्षी हैं। 60 गुना बडा करने वाला कैमरा बहुत काम आया। आज पता चला कि बर्ड फोटोग्राफी करने के लिये जूम कितनी काम की चीज है। जूम के साथ स्टेबलाइजर भी काम की चीज है। इतना बडा जूम करने के बाद हाथ में कैमरा लेते हैं तो हमें ऑब्जेक्ट दिखाई भी नहीं देता- इधर उधर हो जाता है।
टहला से चलने के बाद हम उस तिराहे पर पहुंचे जहां से सीधा रास्ता अजबगढ जाता है और बायें वाला भानगढ। हम सीधे चल पडे। कुछ दूर चलते ही एक छोटा सा बांध मिला। इसमें दो तीन जने नहा रहे थे। हमें भी देखते ही तलब लग गई। कपडे उतारकर पानी में घुसे तो लगा जैसे कि हरिद्वार में हर की पैडी पर नहा रहे हों। बेहद ठण्डा पानी।
यहां से अजबगढ ज्यादा दूर नहीं है। अजबगढ की कहानी भी कुछ कुछ भानगढ से मिलती जुलती है। किला भी है और कुछ पुराने खण्डहर भी। अजबगढ में घुसने से पहले एक बडा बांध भी है। यहां भी काफी पक्षी थी लेकिन वे हमारी पहुंच से बाहर थे।
आज विधान की शादी की सालगिरह थी। घर से कई बार बुलावा आ चुका था। अभी भी दो घण्टे से ज्यादा लगने थे हमें जयपुर पहुंचने में। ऊपर से अजबगढ हमें उतना आकर्षक नहीं लगा जितना कि भानगढ। हमने यहां ज्यादा समय न लगाते हुए जयपुर के लिये रफ्तार बढा दी।
नीलकण्ठ रोड से दिखता टहला बांध |
टहला झील में विचरण करते पक्षी। किसी का भी नाम मालूम नहीं है। |
बर्ड फोटोग्राफी का शौकीन- विधान |
मैं एक ऐसा फोटो लेना चाहता था जिसमें पंख उडने के लिये फैल चुके हों लेकिन पैर पानी में ही हों। लेकिन गलत कोण के कारण यह फोटो मुझे उतना अच्छा नहीं लग रहा जितना मैं लेना चाहता था। |
अजबगढ के पास एक छोटे से बांध में छलांग लगाता विधान |
अजबगढ किला |
अजबगढ |
अजबगढ |
फोटोग्राफर जाटराम |
कभी कभी अपना भी मन कर जाता है ऐसा करने का। |
अगला भाग: एक साइकिल यात्रा- जयपुर- किशनगढ- पुष्कर- साम्भर- जयपुर
जयपुर पुष्कर यात्रा
1. और ट्रेन छूट गई
2. पुष्कर
3. पुष्कर- ऊंट नृत्य और सावित्री मन्दिर
4. साम्भर झील और शाकुम्भरी माता
5. भानगढ- एक शापित स्थान
6. नीलकण्ठ महादेव मन्दिर- राजस्थान का खजुराहो
7. टहला बांध और अजबगढ
8. एक साइकिल यात्रा- जयपुर- किशनगढ- पुष्कर- साम्भर- जयपुर
बहुत खूबसूरत चित्रकारी है भाई...लगे रहो, वन्देमातरम....
ReplyDeleteआनंद आ गया। बहुत सुंदर। चित्रों की खूबसूरती और चित्रों से प्रेम देखते ही बनता है।
ReplyDeleteरोचक, अजब-गजब.
ReplyDeleteजाट राम सच बताना, कितने दिन के बाद आप नहा रहे हैं?
ReplyDeleteअजबगढ थोड़ा डिटेल और लाना था।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति,
ReplyDeleteजारी रहिये,
बधाई !!
नाम हमें कौन सा मालूम थे, बबलू, डबलू, सबलू कुछ भी बता देते
ReplyDeleteजिस पक्षी के पैर पानी में हैं और उडने को तैयार है वो पानी में तैर सकने वाला पक्षी नही है
आपका फोन मिलाया था रिंग जाती रही, कहां व्यस्त हैं आज
प्रणाम
चलिये इतने दिनों में आपको एक बार नहाते हुये देख लिया।
ReplyDeleteवाह भाई, इब तक यायावरी चाल री सै? ब्याह शादी कब तक करैगा? लड्डू खाण का मन हो रया सै यार.
ReplyDeleteरामराम.
नीरज बाबु, अब जा के पहुंचा है, अजब इंसान अजबगढ़ में !
ReplyDeleteबहुत खूब ! यात्रा का आन्नद आ गया ....इस यात्रा का यह पहला और आखरी स्नान था क्या नीरज ..हा हा हा हा ?
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