22 मार्च 2012 और मैं था कनमन में। कनमन बरेली और हल्द्वानी के बीच में बहेडी से दस किलोमीटर पहले है। यहां अपने एक दोस्त सतेंद्र रहते हैं। सुबह आराम से उठकर पहले तो मैं बहेडी गया और फिर वहां से बस पकडकर हल्द्वानी। मैं कनमन से ही लेट चला था इसलिये हल्द्वानी पहुंचने में और भी लेट हो गया। आज मुझे नैनीताल जाना था और रात को वहीं रुककर अगले दिन फिर
नैनीताल घूमना था। लेकिन कल जो मैंने
आगरा-बरेली रेल यात्रा की तो उसमें ठण्डी हवा चलने के कारण अंदाजा लगा लिया कि नैनीताल में सर्दी मेरी औकात से ज्यादा होगी। असल में मैं जब दिल्ली से चला था तो आगरा के लिये चला था, मुझे इसी यात्रा में नैनीताल भी जाना है, यह बात मैं भूल गया था और गरम कपडे नहीं रखे। एक यह कारण भी था नैनीताल को रद्द करने का। इसके बदले तय हुआ कि सातताल चला जाये और शाम को वापस हल्द्वानी में ही रुका जाये।
अब मुझे याद नहीं कि मैं हल्द्वानी से
भीमताल तक बस से गया था या जीप से। शायद जीप से गया था और शायद बस से। खैर, कोई नहीं। भीमताल का जो मुख्य चौक है, जहां से एक रास्ता
नौकुचियाताल जाता है, दोपहर एक बजे मैं वहां पहुंचा। मैं अपने निर्धारित समय से चार पांच घण्टे लेट था, इसलिये इस लेटलतीफी का कुछ नुकसान तो होना ही था। वो बात अलग है कि कोई नुकसान नहीं हुआ और मैं समय से सातताल घूमकर लौट आया।
सातताल और भीमताल के बीच में मात्र एक पहाडी ही है। यहां जाने के लिये एक सडक भी बनी है जो इस पहाडी का चक्कर काटकर इससे बचती हुई जाती है। भीमताल से जब भवाली की ओर जाते हैं तो रास्ते में एक तिराहा आता है जहां से यह सातताल वाली सडक निकलती है। इसके अलावा भीमताल से पैदल रास्ते भी हैं जो इस पहाडी के ऊपर से होकर जाते हैं। मैं ऐसे ही किसी पैदल रास्ते की तलाश में था।
मुख्य चौक पर ही मैंने एक मूंगफली वाले से पूछा तो उसने एक पैदल रास्ता बता दिया। पैदल रास्ते को पहाड में शॉर्टकट कहते हैं। ये तो ध्यान नहीं कि मैं कहां कहां से गुजरा था लेकिन इतना जरूर याद है कि बाइपास रोड का इस्तेमाल भी मैंने किया था। बाइपास रोड को जहां मैंने छोडा, वहां से बडी तेज चढाई शुरू हो जाती है। हालांकि यह भी एक मोटर रोड ही है जो आखिर में सातताल रोड पर नल दमयन्ती ताल के पास जा मिलती है। मैं इसे पहले ही भांप गया था कि यह रोड असली रोड में मिलने जा रही है, इससे मुझे उस पहाडी को शॉर्टकट से लांघने के रोमांच से मोहताज होना पडता। यह अन्दाजा होते ही मैंने यह सडक छोड दी और उस पहाडी पर ऊपर चढने लगा। ज्यादा ऊपर तो नहीं चढना पडा, हल्का रास्ता भी बना था। और ऊपर पहुंचते ही दूसरी तरफ करीब हजार फीट नीचे मुझे सातताल भी दिख गया लेकिन नीचे उतरने का रास्ता नहीं मिला।
बस, फिर होना क्या था? सूखी झाडियों के बीच से बचते-बचाते मुझे निकलना पडा। यहां जंगल में मैं अकेला था, इसलिये डर भी लगना ही था। पूरे हिमालय में तेंदुओं की कमी नहीं है। बडा दिलेर जानवर होता है तेंदुआ। यहां भी कमी नहीं है इसकी। मुझे पूरा यकीन है कि किसी ना किसी तेंदुए ने मुझे देखा जरूर होगा। उससे बचने के लिये मैं जानबूझकर ज्यादा आवाज करता हुआ चल रहा था। सूखी पत्तियां इफरात में बिखरी पडी थीं, इसलिये पैरों से ज्यादा आवाज करना मुश्किल नहीं था। इंसान तेंदुए का प्राकृतिक भोजन नहीं है, इसलिये वो इंसान पर कोई ध्यान नहीं देता। यह बात जिम कार्बेट साहब अपनी किताबों में बार बार लिखते हैं। हालांकि एक जगह मुझे पत्तियों में खडखडाहट जैसी आवाज रुक-रुककर सुनाई पडी लेकिन जल्दी ही पता चल गया कि कुछ पक्षी उछल-कूद मचा रहे हैं, इसलिये वो आवाज आ रही है।
मतलब ये कि मैं बिना किसी परेशानी के सातताल पहुंच गया। जहां भीमताल के आसपास की सभी पहाडियां सूखी पडी थीं, वहीं सातताल के पास की पहाडियां हरी-भरी थीं। आनन्द आ गया इसे देखते ही। यहां पहले सात ताल थे लेकिन अब तीन ही बचे हैं। इनमें जो सबसे बडा है, उसके किनारे कुछ दुकानें हैं जहां खाना पीना हो जाता है। इसके अलावा रुकने का इंतजाम भी है- कुमाऊं मण्डल विकास निगम जिन्दाबाद। ताल के दो किनारे जहां बेहद आसपास आ जाते हैं, वहां छोटी सी पुलिया भी है।
मुझे पता चला था कि यहां आने वाली सडक जो भीमताल-भवाली के बीच से निकली थी, वो आगे जाकर भीमताल-हल्द्वानी रोड में जा मिलती है। मैं उसी पर जाने की सोच रहा था लेकिन स्थानीयों ने मुझे रोक दिया और भवाली वाली रोड पर ही जाने की सलाह दी। वापसी में मैं शॉर्टकट से नहीं जाना चाहता था। इसलिये छोटे-मोटे शॉर्टकट मारते हुए इसी रोड के उच्चतम बिन्दु पर पहुंचा। यहां से एक सडक भीमताल की ओर जा रही थी। यह वही सडक थी जो मैंने सातताल आते समय शॉर्टकट मारने के चक्कर में छोड दी थी। इसी से थोडा हटकर नल दमयन्ती ताल भी है। यह ताल बेहद छोटा सा ताल है। चारों तरफ पक्के घाट बने हैं और किनारे पर एक मन्दिर भी है।
शाम छह बजे तक मैं फिर से भीमताल के मुख्य चौक पर था। नैनीताल तो जाना नहीं था इसलिये मैं हल्द्वानी चला गया। रात को ठहरने के लिये बस अड्डे के पास ही दो सौ रुपये का एक बढिया कमरा लिया और पडकर सो गया। अगले दिन मुझे कालाढूंगी, खुरपा ताल और कार्बेट फाल देखकर रामनगर जाना था। रामनगर से दिल्ली तक मेरा रिजर्वेशन कार्बेट पार्क लिंक एक्सप्रेस से था।
1.
2.
3.
5.
वाकई खूबसूरत है सातताल।
ReplyDeleteऐसे मनोरम दृश्यों में तो घंटों बिताये जा सकते हैं।
ReplyDeleteमन निर्मल कर देने वाले दृश्य.
ReplyDeleteनीरज भाई आपका यात्रा वृत्तान्त पढ़ कर मन खुश हो जाता हैं, आपके बहाने से हम भी सैर कर लेते हैं, हमारी शुभकामनाये आपके साथ हैं
ReplyDeleteवाह वही कमाल कर दिया आपने ! अकेले ही निकल लिए जंगलो के रास्ते तालो को ढूंढने...डर नहीं लगा आपको...?
ReplyDeleteनल दमयंती ताल हमारा भी देखा हुआ छोटा पर सुंदर हैं... इसमें ढेर सारी मछलियाँ थी उस समय | क्या अब भी हैं ?
पिछले साल मै यहाँ गया था . सात ताल के किनारे बने वाई एम् सी ए के कैम्प में रुका था . कुमाऊ के तालो में सात ताल सबसे खूबसूरत है .
ReplyDeleteneeraj babu,main to nahi gaya hoon per aap le ke chale gaye,bahut badhiya.
ReplyDeleteयात्रा की बधाई
ReplyDeleteकृपया इसे भी देखें-
उल्फ़त का असर देखेंगे!
is bar yahi jane ka irada hei ...tumhari jaankari kam aaegi ..
ReplyDeleteपिछली अक्टूबर में मैं भी यहाँ था। नैनीताल के सारे तालों में प्राकृतिक सुंदरता के मामले में सातताल का सानी नहीं है। पहाड़ी लांघकर आना दिलचस्प लगा।
ReplyDeleteGlorious
ReplyDelete