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भीमबैठका- मानव का आरंभिक विकास स्थल

आज एक ऐसी जगह पर चलते हैं जो बिलकुल गुमनाम सी है और अनजान सी भी लेकिन यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल है- एक दो साल से नहीं बल्कि बारह सालों से। इस जगह का नाम है- भीमबैठका (BHIMBETKA), भीमबेटका, भीमबैठिका। कहते हैं कि वनवास के समय भीम यहाँ पर बैठते थे इसलिए यह नाम पड़ गया। ये तो सिर्फ किंवदंती है क्योंकि भीम ने अपने बैठने का कोई निशान नहीं छोडा।
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निशान छोडे हैं हमारे उन आदिमानव पूर्वजों ने जो लाखों साल पहले यहाँ स्थित गुफाओं में गुजर-बसर करते थे। जानवरों का शिकार करके अपना पेट भरते थे। उन्ही दिनों उन्होंने चित्रकारी भी शुरू कर दी। यहाँ स्थित सैंकडों गुफाओं में अनगिनत चित्र बना रखे हैं। इन चित्रों में शिकार, नाच-गाना, घोडे व हाथी की सवारी, लड़ते हुए जानवर, श्रृंगार, मुखौटे और घरेलु जीवन का बड़ा ही शानदार चित्रण किया गया है।

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वन में रहने वाले बाघ, शेर से लेकर जंगली सूअर, भैंसा, हाथी, हिरण, घोड़ा, कुत्ता, बन्दर, छिपकली व बिच्छू तक चित्रित हैं। कहीं-कहीं तो चित्र बहुत सघन हैं जिनसे पता चलता है कि ये अलग-अलग समय में अलग-अलग लोगों ने बनाये होंगे। इनके काल की गणना कार्बन डेटिंग सिस्टम से की गयी है जिनमे अलग-अलग स्थानों पर पूर्व पाषाण काल से लेकर मध्य काल तक की चित्रकारी मिलती है। ये चित्र गुफाओं की दीवारों व छतों पर बनाये गए हैं जिससे मौसम का प्रभाव कम से कम हो।
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अधिकतर चित्र सफ़ेद व लाल रंग से ही बनाये गए हैं लेकिन मध्यकाल के कुछ चित्र हरे व पीले रंगों से भी निर्मित हैं। प्रयुक्त रंगों में कुछ पदार्थों जैसे मैंगनीज, हैमेटाईट, नरम लाल पत्थर व लकडी के कोयले का मिश्रण होता था। इसमें जानवरों की चर्बी व पत्तियों का अर्क भी मिला दिया जाता था। आज भी ये रंग वैसे के वैसे ही हैं।
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भीमबैठका रातापानी अभयारण्य में स्थित है। अभयारण्य की सीमा में घुसते ही फीस देनी होती है जो एक पैदल पर्यटक के लिए दस रूपये है। यह भोपाल से चालीस किलोमीटर दक्षिण में है। यहाँ से आगे सतपुडा की पहाडियां शुरू हो जाती हैं। अच्छी तरह घूमने और जानने के लिए पचास रूपये में गाइड मिल जाते हैं। मैं भी एक गाइड की सहायता से ही घूम पाया था, नहीं तो गुफाओं को बाहर से ही देखकर वापस लौट आता।
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यहाँ जाने के लिए सबसे पहले भोपाल पहुंचना होता है। भोपाल से पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं। नहीं, नहीं, नहीं!!! गलती हो गयी जी। अगर आपके पास साधन हो तो ठीक है वरना मेरे जैसी हालत हो जायेगी। मैं पूछ-ताछ करके औबेदुल्लागंज (अब्दुल्लागंज) पहुंचा- बस से। यहाँ से होशंगाबाद रोड पर पांच किलोमीटर आगे है भीमबैठका मोड़। लेकिन बस स्टाप ना होने की वजह से मोड़ पर बसें नहीं रुकती। अब या तो गणेश टम्पू की प्रतीक्षा करो या फिर रेत ढोने वाले ट्रकों में चढ़कर जाओ। भीमबैठका मोड़ से गुफाएं तीन किलोमीटर दूर हैं। हालाँकि पक्की सड़क बनी है लेकिन मेरे जैसों को पैदल ही जाना पड़ता है।
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भोपाल से अब्दुल्लागंज तक का भी पंगा है। स्टेशन से जो बसें मिलती हैं वे हबीबगंज फाटक पर उतार देती हैं। फिर फाटक पार करके दूसरी बस से अब्दुल्लागंज जाना होता है। वैसे ये बसें भी भोपाल से ही आती हैं। इन बसों में भीड़ भी बहुत होती है।
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यहाँ रुकने के लिए कुछ नहीं है। शाम को वापस आना ही पड़ता है।

(भीमबैठका जाने वाली पैदल सड़क)


(आस-पास का भू-दृश्य)


(इन्ही के नीचे हैं गुफाएं)

(प्रसिद्द कछुवा चट्टान)

(कुछ गुफाएं तो आर-पार हैं)

(जैसे कि यह भी)

(विशालकाय चट्टान के नीचे एक और गुफा)


(जानवरों के चित्र)

(इसमे बिच्छू भी दिख रहा है)

(जब मैं इस गुफा के द्वार पर पहुँचा तो अचानक कई सारे चमगादड़ बाहर निकले, इसलिए मुझे गुफा के बाहर ही बैठना पड़ा)

(यह किसी मेले जैसे आयोजन का दृश्य है जिसमे लोग एक दूसरे का हाथ पकड़कर नाच रहे हैं।)

(हाथी। यह आकृति बहुत ही स्पष्ट है)

(शिकार करने का दृश्य)

अगला भाग: महाकाल की नगरी है उज्जैन

मध्य प्रदेश मालवा यात्रा श्रंखला
1. भीमबैठका- मानव का आरम्भिक विकास स्थल
2. महाकाल की नगरी है उज्जैन
3. इन्दौर में ब्लॉगर ताऊ से मुलाकात
4. ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
5. सिद्धनाथ बारहद्वारी
6. कालाकुण्ड - पातालपानी

Comments

  1. शानदार भीमबेटका के बारे में सुन तो रखा था लेकिन इतनी खूबसूरत जगह होगी, ऐसा सोचा नहीं था। चमगादड़ों से मुझे भी परेशानी हुई थी, ऐलोरा के कैलाश मंदिर में। मैं सबसे पहले पहुंच गया था सुबह-सुबह, खासी वीरानी थी और मुझे ऐसा लगा कि मैं किसी भूतहा फिल्म की दृश्य के तरह की अजीब सी जगह में आ गया हूं शानदार

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  2. चित्रों से सजी भीमबैठका (BHIMBETKA)की जानकारी देने का आभार।

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  3. धन्‍यवाद। आपने भीमबेतका का भ्रमण ही करा दिया। बहुत सुंदर जानकारी। इस भूक्षेत्र से संबंधित यह पोस्‍ट भी शायद आपकी रुचि की हो सकती है http://khetibaari.blogspot.com/2009/06/blog-post_29.html

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  4. नीरज जी,

    भीमबैठका के बारे में जानकर काफी अच्छा लगा. एक बात बताओ ऐसी छुपी हुई जगह आप ढुंढ कर कहाँ से लाते हो? इतनी छोटी सी उम्र में इतना ज्ञान!!! आश्चर्य की बात है, है ना!!!

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  5. बहुत सुंदर यात्रा वृतांत लिखा आपने. चित्र भी बहुत ही लाजवाब. सरकारी उपेक्षा के चलते वहां तक पहुंचना सिर्फ़ आप जैसे जुनुनी लोगों के ही बस की बात है. बढिया और प्रशंसनीय कार्य है आप्का.

    रामराम.

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  6. सुन्दर चित्र ..अच्छी पोस्ट.

    बड़े दिनों बाद नजर आये ...जरा चिठ्ठे में इ मेल सब्क्रिप्सन की सुविधा लगाइए ..हम जैसे आलसियों का भला हो जायेगा :-)

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  8. Badhiya hai yaar , jald hee banate hain ek programme !

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  11. अच्छी पोस्ट बेहतरीन फोटो। इतिहास बताती फोटो। और हाँ जब भी प्लान बना तब ही फोनू घुमा दूँग़ा।

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  12. यह स्थान तो सतत चमत्कृत करने वाला है!

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  13. सुन्दर चित्रों से सुसज्जित बढिया यात्रा वृ्तान्त्!!!
    घुमक्कडी जिन्दाबाद..:)

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  14. Amazing Post !!!

    Itne samay purane chitr aaj bhee vaise hee...

    Dokhna chahiye jaroor ..

    Chtron ke liye bhee bahut shukriya ....

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  15. one such rock with such rock-paintings is in Uttarakhand also . It is somewhere near Almora and i have seen it.

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  16. भीमबैठका की इन गुफाओं की खोज डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर ने की थी । इसका उल्लेख भी आपको करना चाहिये था । वाकणकर जी भी उज्जैन के है यह तो आपको पता ही होगा ।

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  17. शरद कोकास जी ने वाकणकर जी का जिक्र किया यह पूरा नहीं होता यदि साथ में प्रो. शंकर तिवारी जो को न याद किया जाए.

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  19. yah gufaye madhashkalin hai

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    ~Deeksha ( goldenbuds.wordpress.com)

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