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Showing posts from December, 2018

कोंकण में एक गुमनाम बीच पर अलौकिक सूर्यास्त

19 सितंबर 2018 मुंबई से गोवा जाने के यूँ तो बहुत सारे रास्ते हैं। सबसे तेज रास्ता है पुणे होकर, जिसमें लगभग सारा रास्ता छह लेन, फोर लेन है। दूसरा रास्ता है मुंबई-गोवा हाइवे, जो कोंकण के बीचोंबीच से होकर गुजरता है, खासकर रेलवे लाइन के साथ-साथ। और तीसरा रास्ता यह हो सकता है, जो एकदम समुद्र तट के साथ-साथ चलता है। यह तीसरा रास्ता कोई हाइवे नहीं है, केवल मान-भर रखा है कि अगर समुद्र के साथ-साथ चलते रहें तो गोवा पहुँच ही जाएँगे। यह आइडिया भी हमें उस दिन प्रतीक ने ही दिया था। उसी ने बताया था कि इस रास्ते पर मुंबई से गोवा के बीच पाँच स्थानों पर नाव से क्रीक पार करनी पड़ेगी। अन्यथा लंबा चक्कर काटकर आओ। उसी ने बताया था दिवेआगर बीच के बारे में और शेखाड़ी होते हुए श्रीवर्धन जाने के बारे में भी। शेखाड़ी बड़ी ही शानदार लोकेशन पर स्थित है। लेकिन इस शानदार गाँव के बारे में एक नकारात्मक खबर भी है। मुंबई ब्लास्ट में प्रयुक्त हुए हथियार और विस्फोटक समुद्री मार्ग से यहीं पर लाए गए थे और उन्हें ट्रकों में भरकर मुंबई पहुँचाया गया था। खबर यह रही । लेकिन जैसे ही शेखाड़ी पार किया, हम किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए कि रुकें

दिवेआगर बीच: खूबसूरत, लेकिन गुमनाम

19 सितंबर 2018 हमें दिवेआगर बीच बहुत अच्छा लगा। चार किलोमीटर लंबा और काली रेत का यह बीच है। यहाँ ठहरने के लिए होमस्टे और होटल भी बहुत सारे हैं। यानी गुमनाम-सा होने के बावजूद भी यह उतना गुमनाम नहीं है। मुंबई से इसकी दूरी लगभग 150 किलोमीटर है और यहाँ होटलों की संख्या देखकर मुझे लगता है कि वीकेंड पर बहुत सारे यात्री आते होंगे। हम उत्तर भारतीयों ने तो गोवा के अलावा किसी अन्य स्थान का नाम ही नहीं सुना है, तो मेरी यह पोस्ट उत्तर भारतीयों के लिए है। घूमना सीखिए... चार किलोमीटर लंबे इस बीच पर आज अभी हमारे अलावा कोई भी नहीं था। साफ सुथरा, काली रेत का बीच और ढलान न के बराबर होने के कारण बड़ी दूर तक समुद्र का पानी उस तरह फैला था कि न तो उसमें पैर भीगते थे और न ही वह सूखा दिखता था। ऐसा लगता था जैसे काँच पर खड़े हों। हर तरफ समुद्री जीवों के अवशेष थे और पक्षी उन्हें खाने के लिए मंडरा रहे थे। केवल पक्षी ही नहीं, केकड़े भी खूब दावत उड़ा रहे थे। इसी रेत में ये बिल बनाकर रहते हैं और किसी खतरे का आभास होते ही टेढ़ी चाल से दौड़ते हुए बिल में जा दुबकते हैं। इन्हें टेढ़े-टेढ़े दौड़ते देखना भी खासा मजेदार होता है।

जंजीरा किले के आसपास की खूबसूरती

19 सितंबर 2018 उस दिन मुंबई में अगर प्रतीक हमें न बताता, तो हम पता नहीं आज कहाँ होते। कम से कम जंजीरा तो नहीं जाते और दिवेआगर तो कतई नहीं जाते। और न ही श्रीवर्धन जाते। आज की हमारी जो भी यात्रा होने जा रही है, वह सब प्रतीक के कहने पर ही होने जा रही है। सबसे पहले चलते हैं जंजीरा। इंदापुर से जंजीरा की सड़क एक ग्रामीण सड़क है। कहीं अच्छी, कहीं खराब। लेकिन आसपास की छोटी-छोटी पहाड़ियाँ खराब सड़क का पता नहीं चलने दे रही थीं। हरा रंग कितने प्रकार का हो सकता है, यह आज पता चल रहा था। रास्ते में एक नदी मिली। इस पर पुल बना था और पानी लगभग ठहरा हुआ था। यहाँ से समुद्र ज्यादा दूर नहीं था और ऊँचाई भी ज्यादा नहीं थी, इसलिए पानी लगभग ठहर गया था। ऐसी जगहों को ‘क्रीक’ भी कहते हैं। दोनों तरफ वही छोटी-छोटी पहाड़ियाँ थीं और नजारा भी वही मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। जंजीरा गाँव एक गुमसुम-सा गाँव है। गूगल मैप के अनुसार सड़क समाप्त हो गई थी और यहीं कहीं जंजीरा किले तक जाने के लिए जेट्टी होनी चाहिए थी, लेकिन हमें मिल नहीं रही थी। अपने घर के बाहर बैठे एक बुजुर्ग ने हमारे रुकते ही हमारी मनोदशा समझ ली और बिना कुछ बोले एक

भीमाशंकर से माणगाँव

18 सितंबर 2018 पिछली पोस्ट हमने इन शब्दों के साथ समाप्त की थी कि भीमाशंकर मंदिर और यहाँ की व्यवस्थाओं ने हमें बिल्कुल भी प्रभावित नहीं किया। यह एक ज्योतिर्लिंग है और पूरे देश से श्रद्धालुओं का यहाँ आना लगा रहता है। वैसे तो यह भीड़भाड़ वाली जगह है, लेकिन आज भीड़ नहीं थी। ठीक इसी स्थान से भीमा नदी निकलती है, जो महाराष्ट्र के साथ-साथ कर्नाटक की भी एक मुख्य नदी है और जो आंध्र प्रदेश की सीमा के पास रायचूर में कृष्णा नदी में मिल जाती है। नदियों के उद्‍गम देखना हमेशा ही अच्छा अनुभव रहता है। यहाँ वडापाव खाते हुए भीमा को निकलते देखना वाकई अच्छा अनुभव था। और रही बात भगवान शिव के दर्शनों की, तो खाली मंदिर में यूँ ही चहलकदमी करते-करते दर्शन हो गए। हाँ, बाहर निकाले जूतों की चिंता अवश्य सताती रही। एक नजर भगवान शिव पर, तो दूसरी नजर जूतों पर थी। वडापाव समाप्त भी नहीं हुआ कि बहुत सारे श्रद्धालु आ गए। इनमें उम्रदराज महिलाएँ ज्यादा थीं और हम दोनों इस बात पर बहस कर रहे थे कि ये राजस्थान की हैं या मध्य प्रदेश की। सभी महिलाओं ने सहज भाव से भीमा उद्‍गम कुंड में स्नान किया और एक-दूसरी को एक-दूसरी की धोतियों से

भीमाशंकर: मंजिल नहीं, रास्ता है खूबसूरत

17 सितंबर 2018 भीमाशंकर भगवान शिव के पंद्रह-सोलह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहाँ जाने के बहुत सारे रास्ते हैं, जिनमें दो पैदल रास्ते भी हैं। ये दोनों ही पैदल रास्ते नेरल के पास स्थित खांडस गाँव से हैं। इनमें से एक रास्ता आसान माना जाता है और दूसरा कठिन। हमारे पास मोटरसाइकिल थी और पहले हमारा इरादा खांडस में मोटरसाइकिल खड़ी करके कठिन रास्ते से ऊपर जाने और आसान रास्ते से नीचे आने का था, जो बाद में बदल गया। फिलहाल हम भीमाशंकर पैदल नहीं जा रहे हैं, बल्कि सड़क मार्ग से जा रहे हैं। भीमाशंकर मंदिर तक अच्छी सड़क बनी है। मालशेज घाट पार करने के बाद हम दक्कन के पठार में थे। दक्कन का पठार मानसून में बहुत खूबसूरत हो जाता है। छोटी-बड़ी पहाड़ियाँ, ऊँची-नीची और समतल जमीन, चारों ओर हरियाली, नदियों पर बने छोटे-बड़े बांध, ग्रामीण माहौल... और हम धीरे-धीरे चलते जा रहे थे। गणेश खिंड से जो नजारा दिखाई देता है, वह अतुलनीय है। आप कुछ ऊँचाई पर होते हैं और दूर-दूर तक नीचे का विहंगम नजारा देखने को मिलता है। हम अचंभित थे यहाँ होकर। हमें ग्रामीण भारत के ये नजारे क्यों नहीं दिखाए जाते? ऐसी प्राकृतिक खूबसूरती देखने के लिए

मालशेज घाट - पश्चिमी घाट की असली खूबसूरती

17 सितंबर 2018 पश्चिमी घाट के पर्वत कहाँ से शुरू होते हैं, यह तो नक्शे में देखना पड़ेगा; लेकिन कन्याकुमारी में समाप्त होते हैं, यह नहीं देखना पड़ेगा। और महाराष्ट्र में ये पूरे वैभव के साथ विराजमान हैं, यह मैंने किताबों में भी पढ़ा था और नक्शे में भी देखा था। दो-तीन बार रेल से भी देखने का मौका मिला, जब मुंबई से भुसावल की यात्रा की, जब मडगाँव से हुबली की यात्रा की और जब हासन से मंगलूरू की यात्रा की। बस... इसके अलावा कभी भी पश्चिमी घाट में जाने का मौका नहीं मिला। हम अपनी मोटरसाइकिल से कल्याण से मुरबाड की ओर बढ़ रहे थे। रास्ता अच्छा था। शहर की भीड़ पीछे छूट चुकी थी। हर दस-दस मिनट में अहमदनगर से कल्याण की बसें जाती मिल रही थीं। ज्यादातर बसों पर अहमदनगर की बजाय ‘नगर’ लिखा था। अहमदनगर को नगर भी कहते हैं। बसों की इतनी संख्या से पता चल रहा था कि यह सड़क अहमदनगर को मुंबई से जोड़ने वाली मुख्य सड़क है। लेकिन इन बसों के अलावा कोई ट्रैफिक नहीं था। दोपहर बाद हो चुकी थी। तेज गर्मी थी। मुरबाड में पानी की एक बोतल लेनी पड़ी - केवल ठंडी होने के कारण। पहले गला तर किया, फिर सिर पर उड़ेल लिया। बड़ी राहत मिली। धीरे-धीर

त्रयंबकेश्वर यात्रा

15 सितंबर 2018 हम त्रयंबकेश्वर नहीं जाना चाहते थे, लेकिन कुछ कारणों से जाना पड़ा। हम दोनों ही बहुत बड़े धार्मिक इंसान नहीं हैं। तो हमारे त्रयंबकेश्वर जाने का सबसे बड़ा कारण था सामाजिक। त्रयंबकेश्वर भारत के 14-15 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। और आप जानते ही हैं कि आजकल ज्योतिर्लिंग ‘कवर’ किए जाते हैं। गिनती बढ़ाई जाती है। तो हम भी त्रयंबकेश्वर ‘कवर’ करने चल दिए, ताकि हमारे खाते में भी एक ज्योतिर्लिंग की गिनती बढ़ जाए। दूसरा कारण बड़ा ही अजीबोगरीब था। असल में हम बिना किसी तैयारी के ही इस यात्रा पर निकल पड़े थे। और मेरे दिमाग में त्रयंबकेश्वर और भीमाशंकर मिक्स हो गए थे। भीमाशंकर नाम दिमाग से उतर गया था और लगने लगा था कि त्रयंबकेश्वर का ट्रैक काफी मुश्किल ट्रैक है। गूगल मैप पर देखा तो पाया कि त्रयंबकेश्वर के आसपास कुछ दुर्गम पहाड़ियाँ भी हैं, गोदावरी भी यहीं कहीं से निकलती है, तो शायद वो मुश्किल ट्रैक यहीं कहीं होगा। शायद गोदावरी उद्‍गम तक जाने का ट्रैक सबसे मुश्किल होगा। तो एक यह भी कारण था त्रयंबकेश्वर जाने का। सारा सामान वकील साहब के यहीं छोड़ दिया और मोटरसाइकिल से हम दोनों नासिक शहर में प्रविष

चलो कोंकण: इंदौर से नासिक

14 सितंबर 2018 “अरे, जोगी भड़क जाएगा?” सुमित ने सुबह उठने से पहले ही पूछा। “क्यों भड़केगा जोगी?” “नहीं रे, इधर एक जलप्रपात है, बहुत ही शानदार। उसका नाम है जोगी भड़क। प्रसिद्ध भी नहीं है। तुम्हें जाना चाहिए।” “हाँ, फिर तो जाएँगे। रास्ता कहाँ से है?” “मानपुर के पास से। मानपुर से थोड़ा आगे निकलोगे ना? तो...” “ठहर जा, गूगल मैप पर देख लेता हूँ।” इंदौर की भौगोलिक स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है। यह मालवा के पठार पर स्थित है और समुद्र तल से लगभग 600 मीटर ऊपर है। इसके दक्षिण में नर्मदा नदी बहती है, जो खलघाट में समुद्र तल से लगभग 150 मीटर पर है। तो यहाँ पठार की सीमा बड़ी तेजी से समाप्त होती है। एकदम खड़ी पहाड़ियाँ हैं, जो विन्ध्य पहाड़ों का हिस्सा है। यूँ तो इंदौर से खलघाट तक पूरा रास्ता लगभग समतल है, लेकिन जिस समय सड़क पठार से नीचे उतरती है, वो बड़ा ही रोमांचक समय होता है। इसी वजह से विन्ध्य के इन पहाड़ों में बहुत सारे जलप्रपात भी हैं। पठार का सारा पानी अलग-अलग धाराओं के रूप में बहता है और विन्ध्य में ऊँचे जलप्रपात बनाता हुआ नीचे गिरता है। यहाँ कई ऊँचे जलप्रपात हैं - पातालपानी, शीतला माता आदि। और भी बहुत सार

चलो कोंकण: दिल्ली से इंदौर वाया जयपुर

11 सितंबर 2018 पता नहीं क्यों मुझे लगने लगा कि मोटरसाइकिल में कोई खराबी है। कभी हैंडल को देखता; कभी लाइट को देखता; कभी क्लच चेक करता; कभी ब्रेक चेक करता; तो कभी पहियों में हवा चेक करता; लेकिन कोई खराबी नहीं मिली। असल में कल-परसों जब इसकी सर्विस करा रहा था, तो मैकेनिक ने बताया था कि इसके इंजन में फलाँ खराबी है और उसे ठीक करने के दस हजार रुपये लगेंगे। “और अगर ठीक न कराएँ, तो क्या समस्या होगी?” “यह मोबिल ऑयल पीती रहेगी और आपको इस पर लगातार ध्यान देते रहना होगा।” उसने कहा तो ठीक ही था। यह मोबिल ऑयल पीती तो है। हालाँकि एक लीटर मोबिल ऑयल 1200 किलोमीटर से ज्यादा चल जाता है। और अगर यह न पीती, तब भी इतनी दूरी के बाद मोबिल ऑयल बदलना तो पड़ता ही है। इसलिए हम चिंतित नहीं थे। लेकिन आज ऐसा लग रहा था, जैसे यह कुछ असामान्य है। सत्तर की स्पीड तक पहुँचते-पहुँचते इंजन से कुछ घरघराहट जैसी आवाज भी आ रही थी। वैसे तो यह आवाज पहले भी आती थी, लेकिन आज ज्यादा लग रही थी। वाइब्रेशन भी ज्यादा लग रहे थे। इस बारे में दीप्ति से पूछा तो उसने कहा - “यह तुम्हारे मन का वहम है। बाइक में उतने ही वाइब्रेशन हैं, जितने पहले ह