9 जून 2018
रात हंगामा होने के कारण आधी रात के बाद ही सोए थे और देर तक सोए रहे। दस बजे उठे। हिमालय में यात्राएँ करने का एक लाभ भी है - नहाने से छुटकारा मिल जाता है।
बारिश हो रही थी। रेनकोट पहनकर हम बारिश में ही चल देते, लेकिन बिजलियाँ भी गिर रही थीं। और उसी दिशा में गिर रही थीं, जिधर हमें जाना था, यानी लाखामंडल वाली सड़क के आसपास। सुमित बारिश में ही चल देने को बड़ा उतावला था, शायद उसने कभी इन जानलेवा बिजलियों का सामना नहीं किया। सामना तो मैंने भी नहीं किया है, लेकिन डर लगता है तो लगता है।
आलू के पराँठे खाने के बाद पचास रुपये का डिसकाउंट मिल गया। रात मैंने जो हुड़दंग की वीडियो बनाई थीं, वे आज सभी ने देखी। कौन ग्रामीण सड़क पर कितनी जोर से लठ पटक रहा था और उससे उत्पन्न हुई आवाज से उत्साहित होकर शराबियों के खिलाफ बोल रहा था, उसे देखकर और सुनकर सब बड़े हँसे। और एक-दूसरे की टांग-खिंचाई भी की। आखिर में तय हुआ कि हम इन वीडियो को सार्वजनिक नहीं करेंगे और आधी रात को होटल से भगाए जाने से आहत होकर वकील साहब अगर कोई कार्यवाही करते हैं, तब ये वीडियो काम आएँगी।
न वकील साहब ने कार्यवाही करी, न वीडियो काम आईं।
तो इसलिए पचास रुपये का डिसकाउंट मिला।
सुमित रेनकोट पहनकर ‘मानसून राइडिंग’ के रोमांच में गोता लगाने को तैयार होकर बाहर बारिश में जा खड़ा हुआ और मैं आधे घंटे पहले खाली हुई प्लेट से अचार के टुकड़े और पराँठों की चिपकन उंगली से खुरचने और चूसने में लगा पड़ा रहा, लेकिन बारिश बंद नहीं हुई। बिजली जितनी जोर से गरजती, उंगली उतनी ही जोर से चिपकन को खुरचती। आखिरकार इंद्र देवता ने मेरे साथ गद्दारी की और गड़गड़ाहट बंद हो गई, बारिश भी रुक गई। एहतियातन रेनकोट पहनकर जैसे ही टाइगर फाल क्षेत्र से बाहर हुए, सामना बारिश और बिजली दोनों से एक साथ हुआ।
“हे भगवान! आज बचा ले बस। सुमित के ऊपर बिजली गेर दे, पर हमें बचा ले भगवान!”
और सुमित पट्ठा बिजली और बारिश में ही रुककर फोटोग्राफी करने लगता। उसके लिए हमें भी रुकना पड़ता।
“नहीं, तुम लोग आगे चलो। मैं आ रहा हूँ।” सुमित कहता।
“नहीं, साथ ही रहेंगे। कहीं भगवान ने सच में हमारी बात मान ही ली तो...?”
लेकिन ऐसा क्या था, जो सुमित बारिश में भी रुककर फोटो खींच रहा था?
असल में हम उत्तराखंड के सबसे खूबसूरत रास्तों में से एक पर यात्रा कर रहे थे। रास्ता 1500-1600 मीटर की ऊँचाई से होकर गुजरता है। इतनी ऊँचाई ज्यादा नहीं होती और ज्यादातर जगहों पर खूबसूरत भी नहीं होती, लेकिन यहाँ प्रकृति जी भरकर मेहरबान है। यह रास्ता बिल्कुल भी चलता-फिरता नहीं है, लेकिन शानदार बना है और गाँवों से होकर गुजरता है। इधर चकराता और उधर यमुनोत्री रोड - दोनों को जोड़ता है यह। और दोनों पर ही जून में बेतहाशा ट्रैफिक होता है, लेकिन यह रास्ता एकदम अछूता है। केवल इस रास्ते पर यात्रा करने के लिए भी अगर आप आना चाहें, तो कभी भी निराश नहीं होंगे।
वैसे तो यह पूरा रास्ता सिंगल लेन है, लेकिन जगह-जगह सड़क की चौड़ाई ज्यादा है और वहाँ बोर्ड लगा है - ओवरटेक कर लो। हमने हमेशा ‘ओवरटेक न करें’ वाला बोर्ड ही देखा है, लेकिन आज पहली बार ‘ओवरटेक करें’ वाला बोर्ड देखने को मिला।
बारिश रुकने पर अगले ही गाँव में एक चूल्हा जलता दिखा। चाय बनते और पीते कितनी देर लगती है! गाँव का नाम ध्यान नहीं।
फिर बारिश नहीं मिली। और न ही गड़गड़ाहट। अब महसूस हुआ कि हम खूबसूरत रास्ते पर चल रहे हैं। 2014 में जब पहली बार मोटरसाइकिल चलाई थी, तो पहली मोटरसाइकिल यात्रा में इसी रास्ते से लाखामंडल से चकराता की दूरी रात में तय की थी और तब यह सड़क निर्माणाधीन थी।
और अब हमने जो-जो नजारे देखे, वे आपको फोटो में देखने को मिल जाएँगे।
गोराघाटी पर कुछ देर रुके। यह एक दर्रा है - अभी तक हम टोंस घाटी में थे, अब यमुना घाटी में प्रवेश कर लेंगे। लाखामंडल और आगे यमुना तक उतराई ही है।
अब लाखामंडल असली है या लाक्षागृह असली है और इनकी कहानी क्या है, हम विस्तार से चर्चा नहीं करेंगे। कहते हैं कौरवों ने पांडवों को जलाकर मारने के लिए जो लाख का महल बनवाया था, वो यहीं था। यहीं मतलब? लाखामंडल वाले कहते हैं हमारे यहाँ और लाक्षागृह वाले कहते हैं हमारे यहाँ। हालाँकि महल के अवशेष कहीं नहीं हैं, क्योंकि वो तो जल गया था, लेकिन पांडव जिस गुफा से बचकर भागे, वो गुफा दोनों ही स्थानों पर है। फिलहाल मैं और लाखामंडल के वयोवृद्ध भूतपूर्व फौजी ‘गाइड’ लाक्षागृह को ही असली मानते हैं।
‘दरकते हिमालय पर दर-ब-दर’ किताब के लेखक अजय सोडानी जी लिखते हैं कि महाभारत के बाद पांडव कुरुक्षेत्र के बाद हस्तिनापुर नहीं गए, बल्कि राज्य अपने प्रपौत्र को सौंपकर हिमालय की ओर चल दिए और उन्होंने कुरुक्षेत्र से ही तत्कालीन सरस्वती व वर्तमान टोंस का रास्ता पकड़ा था। और हर की दून होते हुए हिमालय पर गए थे। और आपको व हमें पता ही है कि लाखामंडल टोंस घाटी से ज्यादा दूर नहीं।
अब आप इन बातों को कथा मानिए, मिथक मानिए, सत्य मानिए, असत्य मानिए - जो मानना है, मानिए। लेकिन यहाँ के जनमानस में पांडवों का वजूद मौजूद है; एक पुराना मंदिर भी मौजूद है; कुछ खंडहर मौजूद हैं और कुछ गुफाएँ मौजूद हैं। गाइडों के बीच मतभेद मौजूद है। और साफ मौसम में बंदरपूँछ व स्वर्गारोहिणी चोटियों का दृश्य भी मौजूद है।
शाम चार बजे हम बर्नीगाड में थे। यहाँ से हमें राडी टॉप जाना था और फिर उधर भागीरथी घाटी में उतर जाना था। लेकिन उससे पहले पेट भरना था, सुबह के पराँठे हजम हो चुके थे।
“भाई जी, एक प्लेट समोसे लगा दो।” मैंने कहा।
“मेरे लिए एक प्लेट छोले चावल लगा दो।" दीप्ति ने कहा।
सुमित बाहर खड़ा होकर फोन पर चैटिंग कर रहा था। मैंने पूछा - “ओये डाक्टर, क्या खाएगा?”
“मिला-जुला खा लेंगे, कुछ भी।”
“भाई जी, एक प्लेट समोसे-चावल लगा दो। मिला-जुला। डाक्टर को मिला-जुला खाना है।”
हालाँकि बाद में उसने भी छोले-चावल ही खाए।
पौने पाँच बज चुके थे। बर्नीगाड से राडी टॉप सीधा अप्रचलित रास्ता लगभग चालीस किलोमीटर है। सुविधाजनक और प्रचलित रास्ता तो बडकोट से जाता है, वह भी इतना ही लंबा है। लेकिन अप्रचलित रास्ते की खासियत है कि यह घने जंगलों से होकर जाता है। उत्तराखंड में भागीरथी घाटी और यमुना घाटी को जोड़ने वाले कई रास्ते हैं और सभी बेहद खूबसूरत हैं। चारधाम यात्रा के कारण धरासू बैंड - बडकोट मार्ग सबसे ज्यादा प्रचलित है। चंबा-मसूरी मार्ग काफी प्रसिद्ध है और चिन्यालीसौड-सुवाखोली मार्ग भी प्रचलित होने लगा है, लेकिन बाकी मार्ग बिल्कुल भी प्रचलित नहीं हैं। इनमें से कई मार्ग तो आज भी गूगल मैप पर नहीं हैं। हालाँकि बर्नीगाड - राडी टॉप मार्ग गूगल मैप पर है।
कुछ तो स्थानीयों ने सुझाव दिया, कुछ बीमारू बुलेट के कारण हमें भी समझ आई कि इस समय इस जंगल वाले रास्ते से जाना ठीक नहीं। बडकोट की ओर ही चल दिए। उत्तरकाशी रुकने का इरादा था। पहुँचते-पहुँचते रात हो जाएगी।
बडकोट यमुना किनारे स्थित है और धरासू बैंड भागीरथी किनारे। बडकोट समुद्र तल से लगभग 1300 मीटर की ऊँचाई पर है और धरासू बैंड लगभग 1000 मीटर पर। इनके बीच में एक दर्रा स्थित है, जो 2250 मीटर की ऊँचाई पर है। यही राडी टॉप है। राडी टॉप के एक तरफ यमुना, दूसरी तरफ भागीरथी है।
बडकोट से निकलते ही धरासू बैंड की ओर मुड़ते ही चढ़ाई शुरू हो गई और चीड़ का जंगल भी। यह बहुत खूबसूरत रास्ता है।
साढ़े छह बजे राडी टॉप पहुँचे। 2250 मीटर ऊँचाई होने के कारण बड़ी ठंड थी। सूरज पश्चिम में नीचे उतरने लगा था। यहीं पर बर्नीगाड से आने वाली सीधी सड़क भी मिल जाती है। चाय बनवा ली। पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई लड़के अपनी मोटरसाइकिलों से साइलेंसर हटाकर चारधाम की यात्रा पर थे। घने जंगल में स्थित शांत राडी टॉप इन मोटरसाइकिलों की आवाजों से थर्रा उठा।
यहीं एक मंदिर था, मंदिर के बगल में वन विभाग का एक कार्यालय था। आश्चर्य हुआ कि बूढ़े पुजारी के सामने एक आदमी दंडवत लोटपोट हो रहा था। मैंने उस आदमी को बड़े भले-भले शब्द कहे - “हमारे गढ़वाली लोग बड़े सीधे-सादे हैं। साधु महात्माओं से नित आशीर्वाद लेते हैं। धन्य है ऐसी भूमि!”
चाय पीने लगे तो खाकी वर्दी पहने एक आदमी गिरता-पड़ता आया। देखते ही पता चल गया कि वह वन विभाग का कर्मचारी है और उसने गले तक दारू भर रखी है। उसने चाय मांगी और सारी चाय अपने ही ऊपर उड़ेल ली। फिर उठकर चला, तो सड़क पर गिर पड़ा। आखिरकार गिरते-पड़ते अपने कार्यालय में जा घुसा। बिस्तर लगा हुआ था। ड्यूटी हो गई।
“अरे, यह तो वही आदमी है, जो अभी-अभी पुजारी के सामने दंडवत हो रहा था।”
“अमाले गदवाली लोग बदे चीदे-चादे होते हैं... चादु मात्माओं चे आचिल्वाद लेते हैं...” किसी ने मेरी मजाक उड़ाई।
हमने और बाकी कई यात्रियों ने उसके गिरने-पड़ने की, उठने-टकराने की वीडियो बनाई, बाद में सोशल मीडिया पर वायरल करने को; लेकिन ये वीडियो अभी भी हमारे मेमोरी कार्ड की मेमोरी पर कब्जा किए बैठी है। वायरल हो भी जाएगी, तब भी किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। उसकी नौकरी कभी नहीं जाने वाली और उसे दंड कभी नहीं मिलने वाला।
सरकारी नौकरी में नौकरी समाप्त होने और दंडित होने का नियम भी लागू हो जाए, तो भारत मिनटों में सोने की चिड़िया बन जाएगा।
कुछ ही देर में अंधेरा हो जाएगा और उत्तरकाशी अभी भी बहुत दूर है। बहुत दूर मतलब कम से कम 3 घंटे दूर। रात के दस बजेंगे पहुँचने में। फिर वहाँ गर्मी लगेगी। उत्तरकाशी ज्यादा ऊँचाई पर नहीं है, इसलिए जून में वहाँ अच्छी-खासी गर्मी होती है। इसलिए हम यहीं रुकेंगे।
“नहीं भाई जी, राडी टॉप पर रुकने की व्यवस्था नहीं है।”
“इससे आगे कहाँ मिलेगी?”
“बडकोट मिल जाएगी।”
“अरे नहीं, इधर धरासू की तरफ।”
“तीन-चार किलोमीटर आगे।”
गिनोटी में एक कमरा 600 रुपये का मिल गया। यह गाँव लगभग 2000 मीटर की ऊँचाई पर है। गाँव के बाहर सड़क किनारे जंगल में यह होटल है। इसे इस समय दो भाई मिलकर चला रहे थे। एक भाई यहीं ठेकेदारी करता है, दूसरा देहरादून में सिविल इंजीनियरी कर रहा है। इंजीनियरी करने के बाद वह भी यहीं आ जाएगा और ठेकेदारी करा करेगा।
“आपने छप्पर डालकर होटल के सामने सड़क के उस तरफ ढाबा बना रखा है। होटल में ही क्यों नहीं बना दिया?”
“यहाँ सड़क पर एक मोड है। मोड के कारण होटल किसी को दिखता नहीं है। इसलिए दूसरी तरफ छप्पर डालकर ढाबा बना दिया।”
“वैसे इस कमरे के 600 रुपये वाकई काफी ज्यादा हैं। लेकिन सीजन चल रहा है, यात्री भी खूब आते हैं, तो इतने रेट ठीक हैं। अगले महीने से तो आप इसे 200 रुपये का कर देंगे?”
“हम इसे केवल मई और जून में ही खोलते हैं। बाकी समय यह बंद रहता है।”
यहाँ कई बार सर्दियों में बर्फ भी पड़ती है। लेकिन इसके चारों ओर देवदार का जंगल इस गाँव को विशिष्ट बनाता है। आप अगर मई-जून के अलावा कभी यहाँ आना चाहें, तो बेफिक्र होकर आ सकते हैं। इससे तीन-चार सौ मीटर दूर एक होटल और है, जो खुला रहता है। लेकिन यहाँ एक कमी है। मोबाइल में नेटवर्क नहीं आता। इससे दीप्ति जहाँ खुश हुई, वहीं मुझे और सुमित को साँप सूँघ गया। हम दोनों की जान फेसबुक और व्हाट्सएप में कैद है।
“भाई जी, नेटवर्क नहीं आता क्या यहाँ?”
“नहीं जी, यहाँ नहीं आता। लेकिन उधर मंदिर के पास आता है।”
“अच्छा, यह तो बड़ी खुशी की बात है। मंदिर का रास्ता कहाँ से है?”
“अनुराग, ओ अनुराग!”
और पाँच-छह साल का अनुराग हमें मंदिर ले गया। अंधेरा हो चुका था और मंदिर के पुजारी एकदम खुले में बाहर बैठे थे। अभिवादन हुआ और हम ‘नेटवर्क पॉइंट’ पर जा बैठे।
लेकिन यहाँ केवल उतना ही नेटवर्क आया, जितने से सुमित के घरवाले खुश हो सकें। बाकी न नेट चला, न नेट का बच्चा।
वापस होटल लौटे तो होटल वाला अलग ही चिंता में था - “अभी 18 लोगों की एक गाड़ी आई थी। उन्हें रुकना था, लेकिन उनमें आपसी सहमति नहीं बनी और वे आगे चले गए।”
टाइगर फाल के पास जहाँ हम रुके थे... |
बारिश में प्रस्थान... |
लाखामंडल वाली सड़क पर चाय का ठिकाना और राजमे की सीटी... |
चकराता-लाखामंडल सड़क |
गोराघाटी के बच्चे |
पलायन के कारण हमेशा के लिए बंद हो चुके घर |
नीचे दाहिने दिखता लाखामंडल और उधर यमुना नदी |
लाखामंडल मंदिर में |
राडी टॉप पर |
और ये रहे अनुराग भईया... जिन्होंने हमें मंदिर तक पहुँचाया, ताकि हम फेसबुक चला सकें... |
गिनोटी में हम यहीं रुके थे... |
अब कुछ फोटो सुमित के कैमरे से...
1. मोटरसाइकिल यात्रा: सुकेती फॉसिल पार्क, नाहन
2. विकासनगर-लखवाड़-चकराता-लोखंडी बाइक यात्रा
3. मोइला डांडा, बुग्याल और बुधेर गुफा
4. टाइगर फाल और शराबियों का ‘एंजोय’
5. बाइक यात्रा: टाइगर फाल - लाखामंडल - बडकोट - गिनोटी
6. बाइक यात्रा: गिनोटी से उत्तरकाशी, गंगनानी, धराली और गंगोत्री
7. धराली सातताल ट्रैकिंग
8. मुखबा-हर्षिल यात्रा
9. धराली से दिल्ली वाया थत्यूड़
बहुत बढ़िया....
ReplyDeleteAnurag ka photo badhiya laga kuch hatke h Jo jaruri h
ReplyDeleteDr sahib ke photo achche aye Hai.
ReplyDeleteआनंदित कर दित्ता...😊😊👍
ReplyDeleteवेसे तो पूरी यात्रा ही शानदार रही थी,लेक़िन गाड़ी चलाने के हिसाब से यह दिन अद्वितीय था। बारिश ने बढ़िया मौसम कर दिया था। पश्चिमी घाट का फॉग, मेघालय के मेघ..सब कुछ एक ही दिन में अहसास हो गया था। फिर शाम को राढ़ी टॉप पर शराबी का मनोरंजन रात को गिनोटी की गुलाबी ठंड मे पंचायती करना...सब कुछ यादगार...👍
ReplyDeleteएक प्लेट समोसा चावल 😂
ReplyDeleteशानदार नीरज जी
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