8 जून 2018
सुमित ने तार लगाकर अपनी बुलेट स्टार्ट की। अब जब भी इसे वह इस तरह स्टार्ट करता, हम खूब हँसते।
“भाई जी, एक बात बताओ। त्यूणी वाली रोड कैसी है?”
“एकदम खराब है जी।”
“कहाँ से कहाँ तक खराब है?”
“बस यहीं से खराब स्टार्ट हो जाती है और 15 किलोमीटर तक खराब ही है।”
हमें यही सुनना था और हम चकराता की ओर चल पड़े। अगर त्यूणी वाली सड़क अच्छी हालत में होती, तो हम आज हनोल और वहाँ का चीड़ का जंगल देखते हुए पुरोला जाते। आपको अगर वाकई चीड़ के अनछुए जंगल देखने हैं तो त्यूणी से पुरोला की यात्रा कीजिए। धरती पर जन्म लेना सफल न हो जाए, तो कहना! और अगर देवदार देखना है, तो लोखंडी है ही।
लोखंडी से त्यूणी की ओर ढलान है। कल विकासनगर में उदय झा साहब ने बता ही दिया था कि यह ढलान काफी तेज है और पथरीला कच्चा रास्ता और कीचड़ मोटरसाइकिल के लिए समस्या पैदा करेगा। फिर हमारा जाना भी कोई बेहद जरूरी तो था नहीं। क्यों कीचड़ में गिरने का रिस्क उठाएँ? टाइगर फाल ही चलो। आखिर में जाना तो गंगोत्री है, चाहे पुरोला से जाओ या लाखामंडल से।
हम लोखंडी से साढ़े तीन बजे चले थे। अब साढ़े चार बज चुके थे। अगर लाखामंडल जाते हैं, तो देर रात तक ही पहुँच पाएँगे। इसलिए हमें बीच में कहीं रुकना होगा। टाइगर फाल पर रुकने के विकल्प महंगे मिलेंगे, इसलिए रास्ते के गाँवों में नजर मारते हुए चलो।
टाइगर फाल से दस किलोमीटर पहले एक ठीक-सा होटल दिखा। इत्तेफाक से इसी समय बारिश भी होने लगी। रुक गए। शराबियों का जमघट और किराया 1500 रुपये।
“नहीं, बिल्कुल भी नहीं।”
“थोड़ा कम कर लेंगे। आप यहीं ठहर जाइए।”
“नहीं, कत्तई नहीं।”
मई-जून की छुट्टियों में कोई बाल-बच्चेदार यात्री भले ही सही तरीके से घूमता हो, लेकिन ये जितने भी छड़े घूमते दिखते हैं, ये सब के सब दारूवाले होते हैं। हम देख रहे थे, पाँच की क्षमता वाली कारों में कच्छे-बनियान पहने आठ-आठ छड़े इधर-उधर जा रहे थे, ये सब के सब दारू के सताए हुए थे। इन्हें न किसी यात्रा से मतलब था, न हिमालय से, न चकराता से, न टाइगर फाल से और न ही अन्य यात्रियों से - इन्हें केवल दारू चाहिए।
कई साल पहले जब मैं यहाँ आया था, तो वह जुलाई का महीना था। जून वालों का सीजन समाप्त हो चुका था और कोई भी यात्री नहीं था। सबकुछ खाली-खाली। मेरे मन में सबसे पहले यही आया था कि यहाँ ठहरने का कोई विकल्प नहीं है। आज भी यही बात मन में थी। लेकिन कुछ ही दिन पहले रणविजय समेत कुछ मित्र इधर आए थे तो उन्होंने यहीं एक होटल की जानकारी दी थी। तो लगने लगा था कि रुकने की व्यवस्था हो जाएगी।
“भाई जी, यहाँ होटल-हूटल हैं क्या?” टिकट काटने वाले से पूछ लिया, जिसने हम सबके मोटरसाइकिलों समेत 90 रुपये की पर्ची काट दी।
“हाँज्जी, उधर वो रहा। और एक वो भी है।” उंगली से इशारा करके तब तक समझाता रहा, जब तक कि हम थैंक्यू-थैंक्यू करके आधा किलोमीटर दूर नहीं निकल गए।
एक नाले की बगल में कुछ हट्स बनी थीं। वैसे तो ये हट्स दारूवालों के लिए बनाई जाती हैं, हम यहाँ नहीं रुकने वाले थे, लेकिन फिर भी पूछताछ कर ली। 1500 रुपये पर पर्सन।
एक रास्ता नीचे जा रहा था, एक ऊपर। नीचे वाला टाइगर फाल जाता है और ऊपर वाला गाँवों में घूमते-घामते डामटा में यमुना पार करके यमुनोत्री रोड में जा मिलता है। हम ऊपर वाले पर चले। एक होम-स्टे मिला। 1300 रुपये में एक कमरा पक्का हो गया।
“अंकल जी, हम वाटरफाल देखने जा रहे हैं।”
“हाँ जी, ठीक है। जरूर जाओ। लेकिन वापस आकर क्या खाओगे? हम तैयारी कर लेंगे तब तक।”
“हम कुछ नहीं खाएँगे। उधर से ही खाकर आएँगे।”
“ओके जी, ठीक है।”
जहाँ तक मोटरसाइकिलें गईं, मोटरसाइकिलों से गए, फिर पैदल। और पहुँच गए टाइगर फाल। छोटे-छोटे कई रेस्टोरेंट थे और सभी में दारू चल रही थी। राजमा-चावल की इच्छा थी, लेकिन शाम के समय यहाँ दारू-मुर्गा चलता है, राजमा-चावल नहीं। फिर जैसे ही आखिर वाले से पूछा, उसने शटर नीचे गिरा दिया - “नहीं है।”
जलप्रपात के नीचे नहाने की इच्छा थी और हम नहाने की तैयारी से आए भी थे, लेकिन अब सारा ध्यान भोजन पर चला गया। आज पूरे दिन हमने ना के बराबर खाया था और अपने होटल वाले से मना कर आए थे। बिना खाए बात बनेगी नहीं और यहाँ खाना मिलेगा नहीं। इसलिए नहाना छोड़कर जल्दी से जल्दी अपने होटल पहुँचकर उन्हें खाने के लिए बोलना पड़ेगा। कुछ तो इस वजह से और कुछ दारू की वजह से मूड खराब था, बिना नहाए ही लौट पड़े।
रास्ते में एक अन्य ढाबे में कुकर चढ़ा हुआ था। सोचा कि राजमा-चावल है।
“भाई जी, अभी तो नहीं है। आप बैठिए, पंद्रह मिनट में बन जाएगा।” उसने सुमित से बताया, सुमित ने दीप्ति को बताया, दीप्ति खुश हो गई, लिहाजा मैं भी खुश हो गया।
यहाँ उजला कुर्ता-पजामा पहने लाल आँखों वाले सात-फुटे, तीन मन वजनी दो-तीन लोग भी बैठे थे। तभी उनकी गाड़ी पर निगाह पड़ी। महंगी एस.यू.वी, यू.पी. की गाड़ी और 0001 नंबर।
“सुमित, निकलो यहाँ से।”
“अरे नहीं, पंद्रह मिनट में राजमा बन जाएगा।”
“पंद्रह मिनट मतलब एक घंटा। तुरंत निकलो यहाँ से।”
अपने होटल पहुँचे और शाही पनीर का ऑर्डर मिलते ही अंकलजी खुश हो गए। अगर हम राजमा-रूजमा बनवाते तो शायद वे ‘रात हो गई है, आपको बताकर जाना चाहिए था’ कहकर मना कर देते।
जब तक खाना बनता, तब तक हरियाणा नंबर की एक गाड़ी में छह-सात लड़के भी आ गए। और जब तक हम खाना खाते, तब तक उन्होंने जमकर दारू पी ली थी।
“हम हरियाणा वालों को कमरा नहीं देते, लेकिन ये ज्यादा गिड़गिड़ाने लगे तो देने पड़े। अभी ये दारू पी रहे हैं। पता नहीं खाना कब खाएँगे। हम कई दिनों से अच्छी तरह सो नहीं पाए हैं, आज भी आधी रात हो जाएगी सोने में।” होटल मालिक अंकल जी ने कहा।
तभी उनमें से एक लड़का नीचे आया - “अंकल जी, मैगी बणा दो, दो प्लेट।”
“नहीं बनेगी। खाना तैयार है। सब के सब नीचे आकर खाना खा लो। फिर हमें भी सोना है।”
“अभी तो टैम लाग्गैगा। न्यू करो, सब्जी दे द्यो।”
आधी रात को अंकल जी ने दरवाजा खटखटाया - “हम अपने घर जा रहे हैं सोने। थोड़ी ही दूर है। ये लोग अगर परेशान करें, तो फोन कर देना। यह लो फोन नंबर।”
“नहीं, उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। आप आराम से सोना।”
फिर पता नहीं कब हल्ला-गुल्ला सुनकर आँख खुली। वे हमारे बगल वाले कमरे में ठहरे थे और बाहर बरामदे में कच्छे-बनियान में हू-हू-हा-हा करते हुए जमकर शोर मचा रहे थे। नीचे सड़क किनारे उनकी कार खड़ी थी। कार का डी.जे. पूरी आवाज में बज रहा था और कई नशेड़ी सड़क पर लोटपोट होकर ‘एंजोय’ कर रहे थे। इनमें से एक वकील था और वह सबको ऊपर कमरे में आने को कह रहा था, बाकी सभी ‘वकील साहब, वकील साहब’ कहकर उसे भी नीचे ही आने को कह रहे थे।
घबराहट होना स्वाभाविक था। दीप्ति भी जग गई थी और सुमित भी। मैंने कुछ देर खिड़की पर बैठकर उनकी वीडियो रिकार्डिंग की। वकील की फौज का सामना सबूतों से ही हो सकता है। दिल्ली जाकर इस रिकार्डिंग का हम क्या करेंगे, वो बाद की बात थी।
और फिर अंकल जी को फोन कर दिया।
“उन्हें कुछ मत कहना। मैं अभी आ रहा हूँ।”
बाहर सड़क पर डंडा पटकने की आवाज आई तो ‘एंजोय’ कर रही पूरी फौज में भगदड़ मच गई और सेकंडों में सब के सब अपने कमरे थे और अगले कुछ सेकंडों में फिर बाहर निकल आए थे, अच्छे कपड़े पहनने के बाद।
फिर यह बताने की जरूरत नहीं कि सब के सब माफी मांग रहे थे और बाकी रात शांतिपूर्वक काटने की कसमें खा रहे थे और वकील साहब ने आगे बढ़कर विवाद समाप्त करते हुए कमरा छोड़ने की वकालत कर दी थी। कई स्थानीय लोग लाठी लिए उनके सामने थे और अगर कोई कुछ भी कह देता तो सिर फुटौवल होनी तय थी।
“बेटी, चाय बनाओ सबके लिए।” उनके जाने के बाद अंकल जी ने सबके साथ बीच सड़क पर पालथी मारकर बैठते हुए अपनी लड़कियों से कहा। हमारे लिए कुर्सियाँ आ गईं।
1. मोटरसाइकिल यात्रा: सुकेती फॉसिल पार्क, नाहन
2. विकासनगर-लखवाड़-चकराता-लोखंडी बाइक यात्रा
3. मोइला डांडा, बुग्याल और बुधेर गुफा
4. टाइगर फाल और शराबियों का ‘एंजोय’
5. बाइक यात्रा: टाइगर फाल - लाखामंडल - बडकोट - गिनोटी
6. बाइक यात्रा: गिनोटी से उत्तरकाशी, गंगनानी, धराली और गंगोत्री
7. धराली सातताल ट्रैकिंग
8. मुखबा-हर्षिल यात्रा
9. धराली से दिल्ली वाया थत्यूड़
नीरज जी!! बहुत सुन्दर! आपका हर एक लेख पढ़ना सम्भव नही है, लेकीन वह सुन्दर नही होगा, यह भी सम्भव नही है!
ReplyDeleteबेहतर प्रवाह।
ReplyDelete"यहाँ उजला कुर्ता-पजामा पहने लाल आँखों वाले सात-फुटे, तीन मन वजनी दो-तीन लोग भी बैठे थे।"
ReplyDelete😊😊👍👍👌👌
ऐसे लोग औरो के टूर का कबाड़ा कर देते है। उन्हें बढ़िया सबक सीखाया गया।
ReplyDelete