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Showing posts from January, 2017

कुलधरा: एक वीरान भुतहा गाँव

18 दिसंबर 2016 कुलधरा - पता नहीं आपने इस स्थान का नाम सुना है या नहीं, लेकिन मैं मानता हूँ कि सुना भी होगा और देखा भी होगा। जैसलमेर से ज्यादा दूर नहीं है और सम जाने के रास्ते से थोड़ा-सा ही हटकर है। जब हम वहाँ पहुँचे तो पाँच बज चुके थे और जल्दी ही सूरज छिपने वाला था। यह मरुभूमि को देखते हुए काफ़ी बड़ा गाँव था और इसे योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया था। गाँव के अंदर सीधी सड़कें इसकी पुष्टि करती हैं। फिर किसी कारण से यह उजड़ गया और अब यहाँ कोई नहीं रहता। कोई कहता है कि इसका कारण पानी की तंगी था, कोई कहता है कि जैसलमेर के किसी वज़ीर के कारण उजड़ा और ज्यादा मान्यता है कि यह शापित और भुतहा है।

धनाना में ऊँट-सवारी

18 दिसंबर 2016 जब हम धनाना से लौट रहे थे और दो-तीन किलोमीटर ही चले थे, देखा कि सामने से एक ऊँटवाला अपने ऊँट पर बैठा आ रहा था। सुमित हमेशा की तरह हमसे आगे था। सुमित ने बाइक रोक ली और उसके फोटो लेने लगा। ऊँटवाला और ऊँट दोनों मँजे हुए खिलाड़ी की तरह ‘पोज़’ दे रहे थे। कभी सड़क के दाहिनी तरफ़ आ जाते, कभी बायीं तरफ़ और कभी सड़क घेरकर खड़े हो जाते तो कभी सड़क से नीचे उतर जाते। वे जानते थे कि किस तरह खड़े होना है ताकि अच्छे फोटो आयें। ऊँटवाले का नाम मुबारक अली था और ये धनाना के रहने वाले थे। इनके पास कई ऊँट हैं और सभी ऊँट और बेटे सम में काम करते हैं - पर्यटकों को ऊँट-सवारी कराने का काम। इनके बाकी सभी ऊँट सम जा चुके हैं। दो ऊँटों को इनका एक बेटा थोड़ी देर पहले ही यहाँ से सम लेकर गया है। कल यह भी सम जायेगा।

धनाना: सम से आगे की दुनिया

18 दिसंबर 2016 जब हम गूगल मैप में जैसलमेर से सम की सड़क देखते हैं, तो इस पर लिखा आता है - जैसलमेर-सम-धनाना रोड़। ज़ाहिर है कि इसी सड़क पर सम से भी आगे कहीं धनाना है। गौर से देखें तो यह सड़क आगे भारत-पाक सीमा तक जाती है। मतलब कहीं न कहीं बी.एस.एफ. वाले बैठे होंगे ताकि आम नागरिक सीमा तक न जा सकें। मेरी इच्छा उस बैरियर तक जाने की थी। पता नहीं वो बैरियर कहाँ होगा। इंटरनेट पर भी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी। इसके बाद ज्यादा ध्यान देकर सैटेलाइट इमेज देखीं तो पता चला कि हरनाऊ तक और उससे भी आगे तक पक्की सड़क बनी हुई है। यह सड़क पश्चिम में होती हुई उत्तर में मुड़ जाती है और आगे लोंगेवाला जा पहुँचती है और 150 किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी है। लेकिन बीच में 14 किलोमीटर का छोटा-सा टुकड़ा कच्चा दिख गया। शायद यह सैटेलाइट इमेज दो साल पुरानी हो, शायद अब उस 14 किलोमीटर में पक्की सड़क बन गयी हो, लेकिन यह तय कर लिया कि भले ही सम से आगे 100 किलोमीटर निकलकर वापस सम लौटना पड़े, लेकिन किसी भी हालत में उस कच्चे रास्ते पर बाइक नहीं चलायेंगे।

राष्ट्रीय मरु उद्यान - डेजर्ट नेशनल पार्क

18 दिसंबर 2016 इस नेशनल पार्क से हमारा सामना अचानक अपने आप ही हो गया। असल में हमारी योजना थी - मुनाबाव से तनोट जाना। सीधा रास्ता है जैसलमेर के रास्ते जाओ। लेकिन मैं चाहता था कि सीमा के नज़दीक-नज़दीक ही रहें। एक सड़क म्याजलार से पश्चिम में जाती है और आगे सम के पास कहीं जाकर निकलती है। इसका और अन्य कई सड़कों का मैंने सैटेलाइट से अच्छी तरह अध्ययन किया। चूँकि इंटरनेट पर इस इलाके के बारे में, इसकी सड़कों के बारे में कुछ भी जानकारी उपलब्ध नहीं थी, सैटेलाइट इमेज पर भरोसा करके तय कर लिया था कि इस सड़क से पश्चिम में जायेंगे। यह कच्ची सड़क नहीं थी और सैटेलाइट से देखने पर काली लकीर स्पष्ट दिख रही थी, जिससे इतना तो पक्का हो गया कि एक साल पहले तक या दो साल पहले तक यहाँ पक्की सड़क थी। गूगल में सैटेलाइट इमेज एक-दो साल पुरानी होती हैं। ट्रैफिक नहीं होता और बारिश नहीं होती, इसलिये सड़क ख़राब होने की कोई संभावना नहीं।

खुड़ी - जैसलमेर का उभरता पर्यटक स्थल

17 दिसंबर 2016 एक घंटे में ही म्याजलार से 56 किलोमीटर दूर खुड़ी आ गये। यहाँ से जैसलमेर लगभग 50 किलोमीटर है। खुड़ी अपने रेत के टीलों के लिये प्रसिद्ध है। चारों तरफ़ टैंट कालोनियाँ ही थीं। अब हम फिर से ‘सभ्यता’ में आ गये थे। अगर हम यहाँ अपने टैंट लगाते, तो किसी भी तरह की परेशानी की बात नहीं थी। यहाँ खूब पर्यटक आते हैं और खुड़ी वालों के लिये हमारे टैंट असामान्य नहीं होते। लेकिन मैं इरादा कर चुका था कि अपना टैंट नहीं लगाना। थोड़े-बहुत पैसे खर्च होंगे, लेकिन नर्म बिस्तर पर पैर फैलाकर सोने की सुविधा होगी, हगने-मूतने की सुविधा होगी और ‘प्राइवेसी’ होगी। टैंट तो आपातकाल के लिये होते हैं। सुमित के लिये टैंट नयी चीज थी, इसलिये वह टैंट ही लगाना चाहता था, लेकिन उसने भी हमारा साथ दिया। एक रिसॉर्ट वाले के यहाँ बात की। जानते थे कि ये बहुत महँगे होते हैं, फिर भी बात कर ली।

थार के सुदूर इलाकों में : किराडू - मुनाबाव - म्याजलार

17 दिसंबर 2016 किराडू से साढ़े ग्यारह बजे चले। अगला लक्ष्य था मुनाबाव में भारत-पाक सीमा देखना। सड़क सिंगल है, लेकिन ट्रैफिक न होने के कारण कोई दिक्कत नहीं होती। कभी-कभार कोई ट्रक या कोई जीप सामने से आ जाती। रामसर एक बड़ा गाँव है। अच्छी चहल-पहल थी। गड़रा रोड़ से दो किलोमीटर पहले सड़क किनारे लगे एक सूचना-पट्ट पर निगाह गयी - “शहीद स्मारक लोको पायलट, 1965 भारत पाक युद्ध।” तुरंत बाइक रोकी और मुख्य सड़क से लगभग 100 मीटर दूर रेलवे लाइन के किनारे ले गये। यहाँ एक स्मारक बना है। गौरतलब है कि 1965 के भारत-पाक युद्ध में कश्मीर से लेकर गुजरात तक लड़ाई छिड़ी हुई थी। इतनी लंबी सीमा में कभी भारतीय सेना पाकिस्तान के अंदर जाकर कब्जा कर लेती, तो कभी पाकिस्तानी सेना भारत के अंदर। मुनाबाव रेलवे स्टेशन पाकिस्तान के कब्जे में आ गया था। उसी दौरान बाड़मेर से मुनाबाव जाती एक ट्रेन पर 10 सितंबर की रात साढ़े दस बजे गड़रा रोड़ के पास पाकिस्तान ने निशाना साधा। इसके गार्ड़ और फायरमैन समेत कई कर्मचारी शहीद हो गये। थोड़ा आगे इंजीनियरिंग स्टाफ का शहीद स्मारक भी है।

किराडू मंदिर - थार की शान

17 दिसंबर 2016 सूरज की पहली किरण निकलने से पहले ही हमने टैंट उखाड़कर पैक कर लिये थे। हम नहीं चाहते थे कि उत्सुक ग्रामीण यहाँ आयें और पूछताछ करें। थोड़े-से फोटो खींचे और निकल पड़े। बाड़मेर बाईपास पर एक जगह चाय-नाश्ता किया और मुनाबाव वाली सड़क पर चल दिये। सीमा सड़क संगठन द्वारा लगाया गया हरे रंग का बोर्ड़ कह रहा था - “प्रोजेक्ट चेतक बाड़मेर-गड़रा-मुनाबाव सड़क पर आपका स्वागत करता है।” साथ ही दूरियाँ भी लिखी थीं - मारुडी 10 किलोमीटर, जसई 20 किलोमीटर, हतमा 34 किलोमीटर, रामसर 59 किलोमीटर, गड़रा 85 किलोमीटर और मुनाबाव 125 किलोमीटर। मारुडी में दो पेट्रोल पंप हैं। हमने टंकियाँ फुल करा लीं। आगे मुनाबाव तक या जैसलमेर तक 250-300 किलोमीटर तक कोई पेट्रोल पंप हो या न हो। बाद में पता चला कि रामसर में भी पेट्रोल पंप है और शायद गड़रा में भी।

थार बाइक यात्रा: जोधपुर से बाड़मेर और नाकोड़ा जी

16 दिसंबर 2016 जोधपुर से साढ़े ग्यारह बजे चले। करा-धरा कुछ नहीं, बस पड़े सोते रहे। फिर थोड़े-से नहा लिये, थोड़ा-सा खा लिया और निकल पड़े। बाइक में इंजन ऑयल कम था। पेट्रोल पंप पर टंकी फुल करायी तो इंजन ऑयल की एक बोतल भी ले ली। आगे एक मिस्त्री के पास गये तो पता चला कि मालिक थोड़ी देर में आयेगा, तब तक हमें प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। उस समय तक मुझे नहीं मालूम था कि बाइक में बचा हुआ इंजन ऑयल निकालकर नया ऑयल डालना पड़ेगा। मैंने सोचा कि जितना कम है, उतना डाल देते हैं। वहीं एक आदमी ने इसे डाल दिया। डालने के बाद कहने लगा कि आपको ऑयल रिप्लेस कराना चाहिये था। मैंने कहा - अरे डाला भी तो तुमने ही है। पहले ही क्यों नहीं कहा कि रिप्लेस होता है? बाद में सुमित ने भी ऐसा कहा, लेकिन बाड़मेर पहुँचने पर - ‘नीरज, तुम तो मैकेनिकल इंजीनियर हो। क्या तुम्हें पता नहीं है कि इंजन ऑयल रिप्लेस होता है?’ मैं चिड़चिड़ा-सा हो गया - ‘ओये, तुम भी तो वहीं खड़े थे। उसी समय क्यों नहीं टोका? और अब क्यों टोक रहे हो?’ सुमित ने कहा - ‘मैंने सोचा कि तुम इंजीनियर हो। तुम्हें पता ही होगा।’ ‘अरे तुम भी तो डॉक्टर हो। फिर दाँत का इलाज क्यों नहीं करत

थार बाइक यात्रा - एकलिंगजी, हल्दीघाटी और जोधपुर

15 दिसंबर 2016 शक्ति सिंह दुलावत अपने एक मित्र के साथ सुबह-सुबह ही उदयपुर से आ गये। साथ में ढेर सारा नाश्ता - मेरा पसंदीदा और दीप्ति का ना-पसंदीदा ढोकला भी। अब बड़ी देर तक और बड़ी दूर तक कुछ भी खाने की आवश्यकता नहीं। एकलिंगजी में भगवान शिव का मंदिर है। यह मेवाड़ के राजाओं की निजी संपत्ति है। फोटो खींचना वर्जित है। लेकिन आठवीं शताब्दी में बने छोटे-बड़े 108 मंदिर मूर्तिकला से भरपूर हैं। मन करता है कि इन्हें देखते रहो और फोटो खींचते रहो। फोटो नहीं खींच सकते, लेकिन देख तो सकते ही हैं। जिनका भी यह मंदिर है, उनसे मेरी प्रार्थना है कि भले ही थोड़ी-बहुत राशि ले लिया करें, लेकिन फोटोग्राफी होने दो यहाँ। फोटो खींचने से भक्तिभाव में कमी नहीं आती - यक़ीन मानिये। और जिनमें भक्तिभाव नहीं है, उनमें प्रतिबंध लगाकर यह पैदा भी नहीं की जा सकती। फोटोग्राफी रोकने के लिये चप्पे-चप्पे पर गार्ड़ तैनात रहते हैं।

थार बाइक यात्रा - भागमभाग

यह जो सुमित है ना इंदौर वाला ... इसका ऑफ़ सीजन हो जाता है सर्दियों में ... कोई बीमार नहीं पड़ता ... बीमार पड़ता भी है तो सर्दी-जुकाम ही होते हैं ... मेडिकल स्टोर से ले आते हैं दवाई ... डॉक्टर के पास जाने की ज़रुरत ही नहीं पड़ती ... मतलब सर्दियों में कोई सुमित के क्लीनिक नहीं आता ... इसके पास मक्खियाँ तक नहीं होतीं मारने को ... तब इसे सूझती है खुराफ़ात ... घुमक्कड़ी की खुराफ़ात ... कहने लगा थार जाऊँगा ... बाइक से ... दिसंबर में ... मैंने मना किया ... रहने दे भाई ... मुझे जनवरी में अंड़मान जाना है ... दिसंबर में मुश्किल हो जायेगी ... और अगर दिसंबर में छुट्टियाँ मिल गयीं तो जनवरी में मुश्किल होगी ... बोला ... नहीं मानूँगा ... हमने भी कह दिया ... नहीं मानेगा तो ठीक ... चलेंगे हम भी ... 12 तारीख़ को ईद थी ... खान साहब मेहरबान हो गये ... बिना झगड़े छुट्टियाँ मिल गयीं ... और हमारी बाइक पर सारा सामान लद गया ... दीप्ति को ... मतलब निशा को ... मतलब पिछले साल तक वह निशा थी ... अब के बाद उसे उसके वास्तविक नाम दीप्ति से पुकारा करेंगे ... तो दीप्ति को वसंत विहार जाना पड़ गया ... बहुत सारे काम होते हैं ... उसका

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