18 दिसंबर 2016 कुलधरा - पता नहीं आपने इस स्थान का नाम सुना है या नहीं, लेकिन मैं मानता हूँ कि सुना भी होगा और देखा भी होगा। जैसलमेर से ज्यादा दूर नहीं है और सम जाने के रास्ते से थोड़ा-सा ही हटकर है। जब हम वहाँ पहुँचे तो पाँच बज चुके थे और जल्दी ही सूरज छिपने वाला था। यह मरुभूमि को देखते हुए काफ़ी बड़ा गाँव था और इसे योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया था। गाँव के अंदर सीधी सड़कें इसकी पुष्टि करती हैं। फिर किसी कारण से यह उजड़ गया और अब यहाँ कोई नहीं रहता। कोई कहता है कि इसका कारण पानी की तंगी था, कोई कहता है कि जैसलमेर के किसी वज़ीर के कारण उजड़ा और ज्यादा मान्यता है कि यह शापित और भुतहा है।
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग