25 सितम्बर 2015
दिल्ली से चले थे तो हमारी योजना बद्रीनाथ और सतोपंथ जाने की थी लेकिन रात जब सतोपंथ के बारे में नेट पर पढने लगे तो पता चला कि वहां जाने का परमिट लेना होता है और गाइड-पोर्टर और राशन-पानी भी साथ लेकर चलना होता है। तभी मैंने सतोपंथ जाना स्थगित कर दिया और विचार किया कि रुद्रनाथ जायेंगे। निशा तो तुरन्त राजी हो गई लेकिन करण को समझाना पडा क्योंकि वह बद्रीनाथ और सतोपंथ का ही विचार किये बैठा था। आखिरकार वह भी मान गया।
सुबह सवा आठ बजे बिना नाश्ता किये गैरसैंण से चलना पडा क्योंकि रेस्टोरेंट का रसोईया आज नहीं आया था। यहां से आदिबद्री ज्यादा दूर नहीं है। वहीं नाश्ता करेंगे।
कुछ दूर तक चढाई है, फिर उतराई है। यहां हमें चाय की खेती दिखाई दी। उत्तराखण्ड में अक्सर चाय नहीं होती लेकिन यहां कुछ जगहों पर चाय की खेती होती है। यह इलाका मुझे बडा पसन्द आया। एक तो यह काफी ऊंचाई पर है, फिर चीड का जंगल। कहीं 2000 मीटर से ऊंची जगह पर अगर आपको चीड का जंगल मिले तो समझना कि आप वहां पूरा दिन भी बिता सकते हैं। बार-बार रुकने को मन करता है। खूब फोटो खींचने को मन करता है।
पौने दस बजे आदिबद्री पहुंचे। आदिबद्री घूमने से पहले आपको कुछ बता देना चाहता हूं। भारत में चार धाम हैं। जबकि हमारे उत्तराखण्ड में भी चारधाम हैं- यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ। पांच केदार हैं- केदारनाथ, मदमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर। इनके साथ-साथ सात बद्री भी हैं- बद्रीनाथ, आदिबद्री, वृद्ध बद्री, भविष्य बद्री, योगध्यान बद्री, अर्द्ध बद्री और नरसिंह बद्री। कुछ लोग पंच बद्री मानते हैं तो कुछ सप्त बद्री। आदिबद्री जैसा कि नाम से ही विदित है कि यह सबसे प्राचीन बद्री है, बद्रीनाथ से भी पुराना। इसी तरह भविष्य बद्री के बारे में कहा जाता है कि कालान्तर में बद्रीनाथ जाना असम्भव हो जायेगा, तो बद्रीनाथ जी की पूजा भविष्य बद्री में हुआ करेगी। पांचों केदार जहां शिव को समर्पित हैं वहीं सभी बद्री विष्णु को।
आदिबद्री एक मन्दिर समूह है जहां पहले 16 मन्दिर थे लेकिन अब 14 शेष हैं। मुख्य मन्दिर विष्णु का है, बाकी अन्य देवी-देवताओं के। पुजारीजी हमें यहां की पौराणिक कथा बताने लगे। बाद में उन्होंने कहा कि यह मन्दिर साल में एक महीने यानी दिसम्बर-जनवरी के दौरान बन्द रहता है और मकर संक्रान्ति को इसके कपाट खुलते हैं। हालांकि यहां बर्फ नहीं पडती। मैंने पुजारीजी से पूछा कि वे बद्रीनाथ गये हैं। बोले कि नहीं गया। क्योंकि ग्यारह महीने यहां पुजारी का काम करना होता है, इसलिये कहीं नहीं जा सकता। बाकी बचा एक महीना तो दिसम्बर में बद्रीनाथ समेत हर जगहों के कपाट बन्द होते हैं, इसलिये नहीं जा पाते। पुजारीजी वैसे बूढे हो चुके हैं। अब उन्हें इस कार्य से विश्राम लेकर बाकी तीर्थ देख लेने चाहिये।
मन्दिर के सामने ही एक होटल में आलू के परांठे खाये। एक-एक परांठे का ऑर्डर दिया था लेकिन जायका ऐसा बना कि दो-दो खा गये। छह परांठे और छह चाय डेढ सौ रुपये के।
साढे दस बजे यहां से चले तो आधे घण्टे में ही कर्णप्रयाग पहुंच गये। अभी तक तो पतली सी सडक थी, लेकिन आदिबद्री के बाद चौडी टू-लेन सडक मिली। रास्ते में पिण्डर नदी मिल गई। कर्णप्रयाग में पिण्डर और अलकनन्दा का संगम है। कर्णप्रयाग में बाल मिठाई दिखी तो आधा किलो ले ली। लेकिन गर्मी से उसके भी बुरे हाल थे। नन्दप्रयाग तक सब मिठाईयां मिलकर एक गोला बन गईं और फोड-फोडकर खानी पडीं।
चमोली पहुंचे। यहां से हमने बद्रीनाथ वाली सडक छोड दी और गोपेश्वर की तरफ चल दिये। चमोली से दस किलोमीटर दूर गोपेश्वर है और चमोली जिले का मुख्यालय भी है। पूरा रास्ता चढाई का है। रुद्रनाथ से वापस आकर हमारा इरादा चोपता तुंगनाथ जाने का था। बाइकों में पेट्रोल कम ही बचा था। थोडा सा पेट्रोल इसलिये भरवा लिया कि गोपेश्वर के बाद ऊखीमठ तक कहीं पेट्रोल-पम्प मिले या न मिले।
गोपेश्वर में करण का छोटा सा एक्सीडेंट हो गया। बात ये हुई कि करण के सामने अचानक एक स्कूटर वाला आ गया। टक्कर हो गई। बाजार होने के कारण करण की स्पीड कम ही थी, स्कूटर वाला गिर गया। कमाल की बात ये रही कि स्कूटर वाला उठा और करण से माफी मांगने लगा कि उसके स्कूटर में ब्रेक नहीं हैं, इसलिये उसी की गलती है। यही घटना अगर नीचे मैदान में घटती तो ‘परदेसी’ करण पर बहुत खौफनाक बीतती। करण इस घटना से बडा खुश हुआ लेकिन यह खुशी ज्यादा देर नहीं टिकी। उसकी बाइक की चेन ढीली हो गई थी। एक मैकेनिक के यहां रुककर चेन ठीक कराने लगा। उसी दौरान उसने अपना कैमरा काउण्टर पर रख दिया। बाइक ठीक हुई और करण कैमरा उठाये बिना चल दिया। आगे कहीं जाकर ध्यान आया। वापस लौटा तो कैमरा गायब मिला।
करण ने वो कैमरा अपने किसी मित्र से इस यात्रा के लिये उधार मांग रखा था। बाद में दिल्ली आकर नया कैमरा खरीदकर देना पडा। 6000 के आसपास की चपत लग गई। वैसे करण इस मामले में बडा लापरवाह था। कल भी उसने मुझसे छोटा कैमरा मांगा था और बाइक चलाते समय उसे बाइक के हैण्डल पर लटकाकर चलने लगा। मैंने उसे ऐसा न करने को कहा था कि इसकी पतली सी रस्सी का भरोसा नहीं कर सकते। बाइक कहीं झटका लेगी और वो रस्सी टूट भी सकती है। कुछ देर तो करण माना लेकिन उसके बाद फिर ऐसा ही करने लगा। तत्पश्चात मैंने अपना कैमरा वापस ले लिया।
गैरसैण |
चाय की खेती |
आदिबद्री |
कर्णप्रयाग में |
चमोली |
चोपता रोड से दिखता गोपेश्वर |
अगला भाग: रुद्रनाथ यात्रा: गोपेश्वर से पुंग बुग्याल
1. दिल्ली से गैरसैंण और गर्जिया देवी मन्दिर
2. गैरसैंण से गोपेश्वर और आदिबद्री
3. रुद्रनाथ यात्रा: गोपेश्वर से पुंग बुग्याल
4. रुद्रनाथ यात्रा- पुंग बुग्याल से पंचगंगा
5. रुद्रनाथ यात्रा- पंचगंगा-रुद्रनाथ-पंचगंगा
6. रुद्रनाथ यात्रा- पंचगंगा से अनुसुईया
7. अनुसुईया से जोशीमठ
8. बद्रीनाथ यात्रा
9. जोशीमठ-पौडी-कोटद्वार-दिल्ली
जैसे जैसे पढ़ते जाओ ऐसा लगता है हम भी यात्रा में सम्मिलित हों , जो स्थान अपने देखे हुए हुए हैं उनका तो सजीव चित्र उभर आता है , कैमरा खो जाने का दुःख हुआ , वैसे तो इस तरफ के लोग ईमानदार हैं मगर अपवाद तो हर जगह मिलते ही हैं, गर्मियों में भदरवाह किश्तवाड़ का समय निकालना, इस टूर पे तो आप के साथ नही जा पाये मगर वृतांत पढ़ के भी आनंद लिया जा रहा है. आपकी इस समय चल रही यात्रा के लिए शुभकामनाओं सहित.
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद सर।
DeleteNice yatra
ReplyDeleteNice comment
Deleteवाह! मजा आ रहा है|
ReplyDeleteधन्यवाद निरंजन जी।
DeleteEnjoyed your post !
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteआज की पोस्ट ने आप की पुरानी याद दिला दी
ReplyDeleteधन्यवाद गुप्ता जी।
Deleteखुबसूरत....
ReplyDeleteनीचे से तीसरा फोटो लाजवाब है
इस तरह का आनंद हम भी हर यात्रा में लेना चाहते है...
लेकिन हर वक़्त जल्दी 2..आदत सुधारना होगी...
सही कह रहे हो भाई। रुकना बहुत जरुरी होता है।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteMap route nahi Fala neeraj ji is baar
ReplyDeleteMap route nahi dala is baar neeraj ji
ReplyDeleteमैप डालूँगा लेकिन 3 दिन और लगेंगे।
DeleteMap route nahi dala is baar neeraj ji
ReplyDeleteसुंदर मजेदार यात्रा वर्णन !
ReplyDeleteधन्यवाद मुकेश जी।
Deleteमजेदार
ReplyDeleteथैंक्स
Deleteइस यात्रा में बहुत आनन्द आ रहा है नीरज जी
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता जी
Deleteनीरज , इस बार तो नही जा पाये बद्रीनाथ ! कोई बात नही ! लेकिन जब भी जाओ तो सतोपंथ नही तो कम से कम माणा , जो इस तरफ भारत का अंतिम गांव है , वहां जरूर होकर आना ! और उससे करीब 6 किलोमीटर आगे वसुधारा फॉल जरूर जाना ! वहां तक आसानी से बिना टेंट वगैरह के जा सकते हैं !!
ReplyDeleteजी सर। बिल्कुल।
Deleteनीरज भाई लापरवाही कभी कभी हो जाती है। कभी किसी टेंशन में या अति उत्साह में, जिसका खामियाजा भुगतना पड़ता ही है।
ReplyDeleteयात्रा बेहतर ढंग से आगे बढ रही है। ओर फोटो तो पहाड के मस्त आते ही है।
धन्यवाद सचिन भाई।
Deleteगैरसैंण से गोपेश्वर और आदिबद्री की यात्रा अच्छी लगी.... बाइक से यात्रा करने का अनुभव भी शानदार होता है .....
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