अप्सरा विहार से लौटकर हम गये राजेन्द्रगिरी उद्यान। यहां जाने का परमिट नहीं लगता। हमारा गाइड सुमित था ही। राजेन्द्रगिरी जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि एक ऊंची जगह है। ज्यादा ऊंची नहीं है लेकिन यहां से पचमढी के कई अन्य आकर्षण दिखाई देते हैं। एक तरफ धूपगढ दिखता है तो दूसरी तरफ चौरागढ। राजेन्द्रगिरी में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की एक प्रतिमा है और अच्छा उद्यान भी है।
इसके बाद रुख किया हमने धूपगढ का। यह पचमढी की सबसे ऊंची चोटी है। यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का अच्छा नजारा दिखता है। यहां जाने का परमिट लगता है, जिसे हम सुबह ही ले चुके थे। एक जगह जांच चौकी थी, जहां परमिट चेक किये और रजिस्टर में हमारी एण्ट्री की। सडक ठीक बनी है हालांकि संकरी और ‘बम्पी’ है। पहाडी रास्ता है और चढाई भी। कुछ ही दिन पहले तीज थी और उसके दो दिन बाद शायद नागपंचमी। आदिवासी समाज में नागों का बहुत महत्व होता है और इन्हें पूजा भी जाता है। तब यहां मेला लगा होगा। तभी तो रास्ते भर निर्जनता होने के बावजूद भी मेले के निशान मिलते गये।
साढे तीन बजे धूपगढ पहुंचे। अभी सूर्यास्त का समय नहीं हुआ था। हमारे अलावा एक दम्पत्ति और थे। जैसे जैसे सूर्यास्त का समय होता जायेगा, यहां आने वालों की संख्या बढती जायेगी। लेकिन मानसून के कारण चारों तरफ धुंध थी। सूर्यास्त नहीं दिख सकता था। यहां लगे सूचना-पट्ट के अनुसार धूपगढ की ऊंचाई 4429 फीट यानी 1350 मीटर है जबकि मेरा जीपीएस बता रहा था कि यह स्थान लगभग 1235 मीटर ऊंचा है। गूगल मैप के अनुसार सनसेट पॉइण्ट की ऊंचाई 1300 मीटर है। जबकि इसके पास एक बडी ऊंची चट्टान है जो लगभग 50 मीटर तो होगी ही। इस तरह देखा जाये तो सूचना-पट्ट ठीक ही बता रहा है कि धूपगढ 1350 मीटर की ऊंचाई पर है। मध्य प्रदेश का उच्चतम बिन्दु। हालांकि उस 1350 मीटर तक जाना बहुत जोखिम भरा है, मेरे लिये तो नामुमकिन। सभी 1300 मीटर पर सूर्योदय और सूर्यास्त ही देखकर चले जाते हैं।
कुछ देर हम सूर्योदय पॉइण्ट पर रुके, फिर सूर्यास्त पॉइण्ट पर चले गये। सूर्यास्त पॉइण्ट पर बैठने के लिये अच्छा इंतजाम है, जबकि सूर्योदय पॉइण्ट पर बैठने का कोई इंतजाम नहीं है। यह ठीक भी है। यहां सूर्योदय देखने कौन आता होगा? सुबह नौ बजे के बाद ही परमिट मिलने शुरू होते हैं, तब तक तो सूर्योदय बीते जमाने की बात हो चुका होता है।
हम भी सूर्यास्त देखना चाहते थे लेकिन चारों तरफ धुंध इतनी थी सूरज भी नहीं दिखाई दे रहा था, फिर सूर्यास्त कैसे दिखता। लोगबाग आने शुरू हो गये थे और हम वापस जाने। पौने पांच बजे बाइक स्टार्ट कीं और चल दिये।
अब लक्ष्य बनाया महादेव का। महादेव जाने का परमिट नहीं लगता और अच्छी सडक बनी है। जंगल में हम कहीं रास्ता इधर से उधर हो गये, सुमित ठीक रास्ते पर चलता रहा। खैर, खोने-भटकने का तो कोई सवाल ही नहीं था। हम पचमढी कैंट में जाकर फिर महादेव वाली सडक पर आये जबकि सुमित उधर जंगल से ही उस सडक पर आ गया था। फोन किया लेकिन महादेव की तरफ फोन नेटवर्क नहीं है। हम जब कैंट इलाके से बाहर निकले तो एक जगह जंगल में बाइक रोक दी। सन्नाटा हुआ और तुरन्त पता चल गया कि सुमित इसी सडक पर हमसे आगे जा रहा है। उसकी बुलेट चढाई पर जोर लगा रही थी और पूरे जंगल में इसकी आवाज गूंज रही थी।
पचमढी से महादेव की दूरी करीब दस किलोमीटर है। सडक पतली सी है लेकिन अच्छी बनी है। रास्ता पहाडी है और बेहद खूबसूरत भी। यहां कुछ गुफाएं हैं जिनमें से एक शिवजी को समर्पित है। कथा है कि भस्मासुर से बचने को शिवजी इसी गुफा में छुपे थे। कथा एक है और गुफाएं कितनी ही बन गईं। एक गुफा जम्मू में है शिवखोडी के नाम से, और भी गुफाएं हैं जहां यही कथा प्रचलित है। खैर, गुफा कैसी भी हो, रहस्यात्मक भी होती है और अच्छी भी लगती है। इसमें फोटो खींचने की मनाही है।
महादेव से तीन किलोमीटर आगे चौरागढ है। इसके लिये पैदल जाना होता है। अभी तो समय नहीं बचा था वहां जाने का। कल हम वहां जायेंगे।
इसके आसपास और भी गुफाएं हैं। थोडी ही दूर गुप्त महादेव गुफा है। यह बडी ही संकरी गुफा है और आडे तिरछे होकर जाना पडता है। यहां बन्दर बहुत हैं। इसके अलावा स्थानीय लोग शरीफा बेचते हैं। इसे यहां ध्यान नहीं क्या कहते हैं। कसैला युक्त मीठा स्वाद होता है इसका। निशा को यह अच्छा नहीं लगा, मुझे बहुत अच्छा लगा। डॉक्टर दम्पत्ति ने भी इसे बडे चाव से खाया।
वापस पचमढी चले तो इसी रास्ते में दो-तीन पॉइण्ट और पडते हैं। एक है प्रियदर्शनी। और प्रियदर्शनी से थोडा ही आगे हाण्डीखोह है। इन दोनों ही स्थानों से सतपुडा के पर्वतों की विकट गहराईयां देखने को मिलती हैं। चूंकि पचमढी ऊंचाई पर स्थित है इसलिये प्रियदर्शनी और हाण्डीखोह से सीधे खडे ढाल और जंगलयुक्त गहराईयां दिखती हैं। आश्चर्यजनक स्थान है ये दोनों।
जब तक वापस पचमढी आये तो अन्धेरा हो चुका था। एक जगह सभी ने अपनी-अपनी पसन्द का डिनर किया। होटल में पहुंचे। हालांकि आज की हमारी बुकिंग नहीं थी, लेकिन ऑफ सीजन होने के कारण यह खाली पडा था और हमें वही कमरे मिल गये जो कल मिले थे।
राजेन्द्रगिरी उद्यान में |
राजेन्द्रगिरी से दिखता चौरागढ |
राजेन्द्रगिरी से धूपगढ का रास्ता |
धूपगढ के लिये जांच चौकी |
धूपगढ के रास्ते में |
हम लगभग 1300 मीटर पर खडे हैं। यह विशाल चट्टान 50 मीटर ऊंची तो होगी ही, इसलिये धूपगढ की कुल ऊंचाई हुई 1350 मीटर जो मध्य प्रदेश का उच्चतम स्थान है। |
धूपगढ से दिखता आसपास का नजारा |
चट्टानों में धंसे ये गोल पत्थर यहां के प्रागैतिहासिक काल की कहानी बताते हैं। |
धूपगढ से पचमढी नौ किलोमीटर है। |
सनसैट पॉइण्ट- आज धुंध थी, सनसैट नहीं दिखेगा। |
मेरा मोबाइल धूपगढ की ऊंचाई 1235 मीटर बता रहा है जो निहायत ही गलत है। |
अब महादेव की ओर |
महादेव से दिखती चौरागढ चोटी- कल हम वहां जायेंगे। वहां पैदल ही जाया जाता है। |
महादेव गुफा के अन्दर |
महादेव गुफा समूह |
महादेव से वापस पचमढी की ओर |
प्रियदर्शनी से दिखता नजारा |
डिनर |
हाण्डीखोह |
अगला भाग: पचमढी: चौरागढ यात्रा
1. भिण्ड-ग्वालियर-गुना पैसेंजर ट्रेन यात्रा
2. महेश्वर यात्रा
3. शीतला माता जलप्रपात, जानापाव पहाडी और पातालपानी
4. इन्दौर से पचमढी बाइक यात्रा और रोड स्टेटस
5. भोजपुर, मध्य प्रदेश
6. पचमढी: पाण्डव गुफा, रजत प्रपात और अप्सरा विहार
7. पचमढी: राजेन्द्रगिरी, धूपगढ और महादेव
8. पचमढी: चौरागढ यात्रा
9. पचमढ़ी से पातालकोट
10. पातालकोट भ्रमण और राजाखोह की खोज
11. पातालकोट से इंदौर वाया बैतूल
Vah Neeraj bhai aapne 1 nayi yatra karvai . Aapke lekh se destination ko aadbhut rup mil jata he or vaha jane ko man ban jata he .
ReplyDeleteधन्यवाद उमेश भाई...
Deleteहम इतने भी ज्ञानी नहीं की तुम्हे गाईड करे...
ReplyDeleteखेर जो भी आधा अधूरा पता था उसी के आधार पर पचमढ़ी घूम लिया...
और वो शरीफा यहाँ सीताफल कहलाता है...
वेसे वहाँ का चना चाट और निम्बुपानी भी स्वादिष्ट था...
हां, चना चाट और नींबू पानी वाकई स्वादिष्ट था.
Deleteशिव-पार्वती स्टाइल में नीरज-निशा
ReplyDeleteहा हा हा... धन्यवाद अमित भाई.
Deleteहर बार की तरह इस बार भी बहुत अच्छी जानकारी दी है। अभी महीने भर पहले एक टूर भेजा था पचमढ़ी तो वो लोग बहुत ही खुश होकर आये थे, आज आपकी सारी फोटो देख के लग रहा है वाकई में बहुत अच्छी जगह है पचमढ़ी !
ReplyDeleteबिलकुल आनंद भाई... पचमढ़ी बहुत खुबसूरत जगह है...
Deleteअप्रैल 2015 में पचमढ़ी गए थे ,परंतु इतनी बारीक नज़र से नहीं देखी थी । विभिन्न दृष्टिकोणों से परिचय करने के लिए धन्यवाद् ।
ReplyDeleteधन्यवाद अरुण जी...
Deleteकैमरा बदला है या फोटो शॉप में , चित्र बहुत सुन्दर हैं।
ReplyDeleteनहीं, कैमरा नहीं बदला... और फोटोशॉप भी कोई ज्यादा नहीं किया ...यह सब मानसून का कमाल है... कुछ जगहें मानसून में गजब हो जाती हैं...
DeleteBahut badhia Niraj bhai....
ReplyDeleteजिंदाबाद जिंदाबाद
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