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महेश्वर यात्रा

20 अगस्त 2015
   हमें आज इन्दौर नहीं आना था। अभी दो दिन पैसेंजर ट्रेनों में घूमना था और तीसरे दिन यहां आना था लेकिन निशा एक ही दिन में पैसेंजर ट्रेन यात्रा करके थक गई और तब इन्दौर आने का फैसला करना पडा। महेश्वर जाने की योजना तो थी लेकिन साथ ही यह भी योजना थी कि दो दिनों में पैसेंजर यात्रा करते करते हम महेश्वर के बारे में खूब सारी जानकारी जुटा लेंगे, नक्शा देख लेंगे लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं हो सका। सुमित के यहां नेट भी बहुत कम चलता है, इसलिये हम रात को और अगले दिन सुबह को भी जानकारी नहीं जुटा पाये। हालांकि सुमित ने महेश्वर के बारे में बहुत कुछ समझा दिया लेकिन फिर भी हो सकता है कि हम महेश्वर के कुछ अत्यावश्यक स्थान देखने से रह गये हों।
   पहले तो बाइक लेकर केवल हमें ही निकलना था। तब मेरी योजना थी कि आज इन्दौर के आसपास के दर्शनीय स्थल देखेंगे जैसे पातालपानी, तीनछा, चोरल आदि। कल इन्दौर से सीधे ओमकारेश्वर जायेंगे और शाम तक महेश्वर पहुंच जायेंगे। रात महेश्वर रुकेंगे। परसों सुबह कुक्षी होते हुए बाघ गुफाएं देखकर धार और फिर घाटाबिल्लौद के पास मुकेश भालसे जी के यहां रुक जायेंगे। अगले दिन रविवार था। वो दिन आरक्षित था भालसे परिवार के साथ माण्डव देखने के लिये। लेकिन तभी सुमित ने अपनी योजना बताई। उसके अनुसार आज हमें महेश्वर देखकर इन्दौर आ जाना था। कल सुमित परिवार भी बुलेट पर हमारे साथ हो लेगा और पचमढी जायेंगे। बस, यह योजना मुझे तुरन्त पसन्द आ गई। मुकेश जी को मना करना पडा कि हम शनिवार की शाम को आपके यहां नहीं आयेंगे, बल्कि रविवार की शाम को आयेंगे। लेकिन उन्हें रविवार की शाम को एक कार्यक्रम में इन्दौर जाना था। उन्होंने हमारी वजह से कार्यक्रम में न जाने का फैसला कर लिया लेकिन मैंने फिर बताया कि पचमढी बहुत दूर है। पता नहीं जैसी योजना हम बना रहे हैं, वैसा होगा या नहीं। पता नहीं हम रविवार तक वापस लौट भी पायेंगे या नहीं। आप अपने कार्यक्रम में अवश्य जाओ। रही मिलने की बात तो पचमढी से वापस आकर हम आपसे अवश्य मिलेंगे।
   सुमित का घर संगम नगर में है। यानी हमें महेश्वर जाने के लिये इन्दौर शहर को पार करना ही पडेगा। सुबह दस बजे घर से निकले। हां, हमें कल ही सीबीजेड एक्स्ट्रीम बाइक मिल गई थी। तो दस बजे तक इन्दौर शहर अपनी पूरी रौनक में आने लगा था और खूब भीड हो गई थी। कुछ दूर तक तो सुमित साथ चले, फिर समझा दिया कि इस सडक से सीधे चले जाओ और हाईवे आने पर दाहिने मुड जाना। फिर सुमित तो अपने क्लीनिक चले गये और हम उनके बताये रास्ते पर। हालांकि आगे चलकर भी गूगल मैप का सहारा लेना पडा था। इसका कारण थी रेलवे लाइन। यह इन्दौर-महू लाइन थी। पहले यह मीटर गेज थी और अब इसे ब्रॉड गेज में बदला जा रहा था। ट्रेन तो इस पर चल नहीं रही थी। इसी पर एक फाटक था। किसी वजह से वो फाटक बन्द कर दिया और ट्रैफिक डायवर्ट कर दिया। फिर भी कुछ बाइक वालों ने इसी से होकर अपना रास्ता बना लिया था। हम डाइवर्जन से चल दिये और जब रेलवे लाइन पार करने की सम्भावना नहीं दिखी तो गूगल मैप खोलना पडा। नक्शा खोलते ही दो मिनट में रेलवे लाइन पार हो गई और हम नेशनल हाईवे नम्बर तीन पर पहुंच गये।
   राऊ चौक से सीधे चलते रहे और महू बाईपास पर हो लिये। फिर तो दे दनादन अच्छी स्पीड मिली। चार लेन की अच्छी सडक है और बीच में डिवाइडर। यह आगरा-मुम्बई हाईवे है। ट्रैफिक भी ज्यादा नहीं था। फिर दिल्ली में रहने का एक फायदा यह भी है कि दूसरे शहरों में, दूसरे राजमार्गों पर ज्यादा ट्रैफिक नहीं दिखता। सीधे रुके 56 किलोमीटर दूर मानपुर जाकर। यहां शीतला माता जलप्रपात देखा। इसके बारे में अगली पोस्ट में बताऊंगा।
   महेश्वर इन्दौर से 100 किलोमीटर दक्षिण में है। राजमार्ग से करीब 20 किलोमीटर हटकर। एक कस्बा है धामनोद। वहीं से हमें बायें मुड जाना होता है। इससे पहले दो जगह घाट सेक्शन मिला। घाट यानी पहाडी सेक्शन। यहां सडक मालवा के पठार से उतरकर नर्मदा की घाटी में आ जाती है। जाहिर है कि ढलान होगा। इस ढलान पर सडक बनाने वालों ने एक भयंकर गलती कर रखी है। वो ये कि वाहनों की रफ्तार कम करवाने के लिये जगह जगह स्पीड ब्रेकर लगा रखे हैं। एक तो इतनी अच्छी सडक कि वाहन अच्छी रफ्तार पर चलते हैं। फिर जब अचानक स्पीड ब्रेकर मिलेगा और वो भी ढलान पर तो एकदम आपातकालीन ब्रेक लगाने पडेंगे। छोटे वाहन तो किसी तरह संभल जाते हैं लेकिन बडे वाहनों की शामत आ जाती है। एक जगह एक ट्राला दुर्घटनाग्रस्त हुआ खडा था और उसके पीछे जाम लगा था। हाईवे प्राधिकरण को सोचना चाहिये कि प्रत्येक चालक जानता है कि कब कितना तेज चलना चाहिये। उनसे अचानक जबरदस्ती ब्रेक नहीं लगवाये जाने चाहिये। फिर ब्रेकर भी ऐसे कि केवल तभी दिखते हैं जब सिर पर आ जायें। कोई सफेद-काली लाइनें नहीं।
   तो जी हम सवा दो बजे महेश्वर पहुंच गये। मानसून का दौर था और नर्मदा में खूब पानी था। आप में से ज्यादातर तो जा ही चुके होंगे महेश्वर, इसलिये मैं ज्यादा वर्णन नहीं करूंगा। बस यही बता देता हूं कि यह पहले मालवा की राजधानी थी, जो 1818 में इन्दौर स्थानान्तरित की गई। चलिये, इतना काफी है। थोडा सा और पढ लेता हूं विकीपीडिया से, दो-चार पॉइण्ट और होंगे तो अच्छे लगेंगे।
   महेश्वर का प्राचीन नाम महिष्मति था। वो एक पिक्चर आई है बाहुबली, उसमें भी तो बार-बार महिष्मति का जिक्र है, हालांकि महेश्वर का कोई दृश्य नहीं है।
   खैर, सवा दो बजे हम वहां पहुंचे। नर्मदा जी अच्छी लग रही थीं। अहिल्याबाई के किले में प्रवेश किया। कोई प्रवेश शुल्क नहीं। बाइक किले के द्वार के सामने ही खडी कर दी। कुछ सीढियां उतरकर जब नीचे जाने लगे तो बराबर में खटर-पटर की आवाजों ने ध्यान भंग किया। ये रेवा समुदाय के हथकरघों की आवाज थी। यहां महेश्वरी साडियां बनाई जाती हैं। हमने यहां भी जाने का निश्चय किया लेकिन मन्दिर बिल्कुल सामने था। सोचा कि पहले मन्दिर जायेंगे, फिर नर्मदा किनारे और वापस लौटते में हथकरघों को देखेंगे। लेकिन हुआ ऐसा कि हम दूसरे रास्ते से लौट गये और हथकरघे अनदेखे रह गये।
   यह मन्दिर किसका है, यह तो ध्यान नहीं। विकीपीडिया पर सहस्त्रार्जुन मन्दिर का बार-बार जिक्र है, इसलिये सहस्त्रार्जुन मन्दिर ही होगा। यहां फोटो खींचने की मनाही नहीं थी। मन्दिर प्रांगण में कुछ फोटो खींचे। स्थानीय महिलाएं नींबू-पानी का आग्रह करने लगीं तो एक-एक गिलास नींबू पानी पी लिया और फिर यहीं से नर्मदा किनारे चले गये। लेकिन यहां घाट की मरम्मत का काम चल रहा था, इसलिये सौन्दर्य बिगडा पडा था। कुछ देर नर्मदा किनारे बैठे और पौने चार बजे यहां से निकल लिये।
   मन में आया कि ओमकारेश्वर चलो। लेकिन कांवडियों का आना-जाना यहां महेश्वर में भी था। ओमकारेश्वर तो ज्योतिर्लिंग है, वहां और भी ज्यादा होगा। इसलिये इरादा त्याग दिया। जिस रास्ते आये थे, उसी रास्ते वापस चल दिये।
   माण्डव पास ही था लेकिन उसे देखने के लिये पूरा दिन चाहिये। इसलिये आज माण्डव नहीं देख सकेंगे।

सुमित के घर पर

मालवी भोजन में पोहा अहम स्थान रखता है। फिर जलेबी भी साथ हो तो क्या कहने।


एनएच 3- घाट सेक्शन

गौर से देखिये... यहां स्पीड ब्रेकर भी है। इस दुर्घटना के लिये निश्चित ही स्पीड ब्रेकर उत्तरदायी रहा होगा। इस ढलान वाले सेक्शन में कई स्पीड ब्रेकर हैं और ये केवल तभी दिखाई देते हैं जब आप 70-80 की स्पीड से इन पर चढने वाले होते हैं। बल्कि ये तो ‘रम्बल स्ट्रिप्स’ हैं।

महेश्वर में नर्मदा





यह क्या है? शायद दीये रखने के लिये होगा या फिर कुछ और बात हो।


















सेव समोसा

वापस इन्दौर की ओर




अगला भाग: शीतला माता जलप्रपात, जानापाव पहाडी और पातालपानी


1. भिण्ड-ग्वालियर-गुना पैसेंजर ट्रेन यात्रा
2. महेश्वर यात्रा
3. शीतला माता जलप्रपात, जानापाव पहाडी और पातालपानी
4. इन्दौर से पचमढी बाइक यात्रा और रोड स्टेटस
5. भोजपुर, मध्य प्रदेश
6. पचमढी: पाण्डव गुफा, रजत प्रपात और अप्सरा विहार
7. पचमढी: राजेन्द्रगिरी, धूपगढ और महादेव
8. पचमढी: चौरागढ यात्रा
9. पचमढ़ी से पातालकोट
10. पातालकोट भ्रमण और राजाखोह की खोज
11. पातालकोट से इंदौर वाया बैतूल




Comments

  1. अहा हा! अद्भुत नीरजजी! मज़ा आया! वो गोबर गणेश का मंदीर क्या था? ओशो कई बार जो गोबर गणेश कहते है, क्या यह वही है? :)

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    1. धन्यवाद निरंजन जी... मैंने तो कभी ओशो के प्रवचनों में गोबर गणेश का जिक्र नहीं सुना। अगर जिक्र किया भी हो तो पता नहीं कि किसका किया है।

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  2. Nice ..apke blog pe pehli baar maheshwar dekha , kafi famous jagah he...kai movies ki shooting hui he (ex-ASHOKA )---- ANURAG SHARMA,LUCKNOW

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    1. मैं पहली बार ही यहां गया था। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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  3. ' गोबर गणेश ' यह क्या है ? ---

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    1. यह कोई मन्दिर है। यहां हम नहीं गये।

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  4. नीरज , मेरे ख्याल से तुम जिसे सेव समोसा (photo No.31) बोल रहे हो, वो ' मिसळ ' है .....

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    1. पता नहीं कि इसका असली नाम क्या है लेकिन इसमें समोसा भी था और सेव भी थे, इसलिये मेरे लिये सेव समोसा हुआ।

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  5. shriram...... narmade har

    Neeraj bhai aap ke bar apani baik se shri narmada mayyaki parikrama karlo

    yah sukhad anubhav rahega ...

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  6. पुराना रुतबा ! नीरज आपकी पोस्ट एक नए लोक में ले जाती है , मन तुरंत कहने लगता है चल यार निकल ले ! जोगी हो जा ! लेकिन ……… कुछ तो मजबूरियां रही होंगी , यूँ ही कोई बेवफा नही होता !! गोबर गणेश का भी एक फोटो हो जाता तो मजा और भी ज्यादा बढ़ जाता !

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    1. पुराना रुतबा... हा हा हा
      हम गोबर गणेश मन्दिर नहीं गये।

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  7. संगम कालोनी में मेरे बहुत से रिश्तेदार रहते है। और यही मेरा कॉलेज भी था किला मैदान में :) मेरा घर भी पास ही है सदर बज़ार में...
    इंदौर की तो फेमस है पोहा और जलेगी हा हह हा तुमको राऊ की फेमस कचोरी भी खानी थी नीरज ...मज़ा आ जाता :)



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    1. धन्यवाद दर्शन जी... आपका तो इन्दौर होमटाउन जैसा ही रहा है, तो आप यहां के चप्पे-चप्पे से परिचित होंगी।

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  8. सुमित जी @कभी आपसे भी परिचय होगा ।आपकी डिस्पेंसरी बांडगंगा में है जहाँ मेरे पडोसी और दोस्त डॉ दिलीप दिल्लीवाला की भी डिस्पेंसरी है ।

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  9. नीरज महेश्वर माडूं रोड पर है क्या?

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    1. नहीं त्यागी जी... माण्डू थोडा अलग हटकर है।

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  10. रोचक यात्रा अच्छा लिखते हो सर जी!!

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  11. Rochak varnan hai. Mai bhi gobar ganesh dekhne nahi jaa payi. Kaash jaati to achchha hota.

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