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12 अगस्त को शिमोगा से सुबह चलने वाली मैसूर पैसेंजर में बैठे। आज की योजना थी इस ट्रेन से हासन तक जाना और आगे यशवन्तपुर-कारवार एक्सप्रेस से मंगलुरू तक यात्रा करना। आज की यात्रा का मुख्य आकर्षण सकलेशपुर और सुब्रह्मण्य रोड स्टेशनों के बीच घाट सेक्शन को देखना था।
कल बिरूर से शिमोगा टाउन तक पैसेंजर से यात्रा कर चुके थे, इसलिये आज इस खण्ड पर कुछ खास नहीं था करने को। साढे नौ बजे गाडी बिरूर पहुंची तो मेरा काम शुरू हो गया। गाडी में भीड बिल्कुल नहीं थी, हम आराम से बैठे थे। कमल ने अपना शयनासन ग्रहण कर लिया था और एक सीट को अपनी शायिका बना लिया था। एक चादर बिछाकर, एक ओढकर और बैग को सिर के नीचे रखकर वह शानदार नींद ले रहा था। सोने से पहले मुझसे कह दिया था कि जहां भी उतरना हो, जगा देना। देखा जाये तो कमल भले ही साथ हो, लेकिन यात्रा मैं अकेला ही कर रहा था। कमल को मैंने दिल्ली में ही मना किया था कि मत चल, लेकिन ना, नीरज जी के साथ एक बार यात्रा करने की इच्छा है। भुगत।
बिरूर से आगे चले तो कडूरू, बल्लेकेरे, देवनूर, बाणावर के बाद आता है अरसीकेरे जंक्शन। यहां से एक लाइन आगे हासन चली जाती है, दूसरी बंगलुरू। गाडी यहां पौन घण्टा लेट हो चुकी थी। यही समय कारवार एक्सप्रेस के यहां पहुंचने का है। योजना थी कि पैसेंजर से हासन तक चलेंगे, उसके बाद एक्सप्रेस से। हासन में हमें लगभग पौन घण्टे का ही समय मिलता ट्रेन बदलने के लिये। गाडी लेट हो जाने के कारण यह समय निकल चुका था।
बराबर में बंगलुरू-हुबली पैसेंजर खडी थी। सामने से एक मालगाडी के आने के कारण हमारी ट्रेन को यहां कुछ समय रुकना पडा। इस दौरान मैंने नेट पर देख लिया कि कारवार एक्सप्रेस इसी स्टेशन के आउटर पर खडी है। यानी मालगाडी के निकलते ही एक्सप्रेस को स्टेशन पर प्रवेश दे दिया जायेगा। फिर इंजन इधर से उधर होगा और वह हासन के लिये चल देगी। हो सकता है कि हमारी पैसेंजर को रास्ते में कहीं पीछे भी छोड दे। निर्णय लिया कि हासन की बजाय अरसीकेरे में ही गाडी बदल लेते हैं।
कमल को उठाया और मैं टिकट लेने चला गया। जब तक टिकट लेकर आया तो प्लेटफार्म नम्बर एक पर हुबली पैसेंजर, दो पर मैसूर पैसेंजर और तीन पर कारवार एक्सप्रेस खडी थी। कारवार एक्सप्रेस के इंजन की बदली होने में पन्द्रह बीस मिनट लगेंगे, इसलिये मैसूर पैसेंजर को उससे पहले रवाना कर दिया गया।
कारवार एक्सप्रेस दिन की गाडी है, इसलिये इसमें सभी बैठने वाली सीटें हैं। एक डिब्बा वातानुकूलित कुर्सीयान का है, बाकी सभी खुले कुर्सीयान। कुछ डिब्बे आरक्षित रहते हैं, सात आठ डिब्बे अनारक्षित। अनारक्षित डिब्बे आरक्षित से भी ज्यादा खाली थी, इसलिये अपने पसन्दीदा डिब्बे में जा बैठा, सबसे पीछे वाले में।
अरसीकेरे 802.6 मीटर की ऊंचाई पर है। इसके बाद ऊंचाई बढने लगती है। हब्बनघट्टा 825.840 मीटर तो बागेशपुरा 977.92 मीटर पर हैं। दुद्दा की ऊंचाई पता नहीं चल सकी। इसके बाद हासन जंक्शन है जो 943.05 मीटर पर है। हासन के बाद ऊंचाई कम होने लगेगी और मंगलुरू में यह समुद्र तल के बिल्कुल पास तक जा पहुंचेगी।
हासन से चार दिशाओं में लाइनें जाती हैं- अरसीकेरे, मैसूरू, मंगलुरू और श्रवणबेलगोला। श्रवणबेलगोला लाइन को खुले ज्यादा दिन नहीं हुए और इस लाइन पर दिनभर में केवल एक ही ट्रेन चलती है- मैसूरु-श्रवणबेलगोला पैसेंजर। श्रवणबेलगोला एक जैन तीर्थ है।
जब बागेशपुरा की ऊंचाई 977.92 मीटर देखी तो मुझे किरन्दुल लाइन पर शिमिलिगुडा स्टेशन याद आ गया। उसकी ऊंचाई 996 मीटर है। कुछ समय पहले तक शिमिलिगुडा स्टेशन दुनिया का सबसे ऊंचा ब्रॉड गेज स्टेशन हुआ करता था। अब यह दर्जा कश्मीर रेलवे के पास चला गया है। पता नहीं कश्मीर में सबसे ऊंचा स्टेशन कौन सा है। काजीगुण्ड है या बनिहाल है या उनके बीच में हिल्लर शाहबाद है। कभी उस लाइन पर यात्रा करूंगा तो पता चलेगा।
हासन से मंगलुरू जंक्शन तक 238 किलोमीटर की यह लाइन 1979 में मीटर गेज के तौर पर चली थी। पूरे कर्नाटक में उस समय मीटर गेज ही हुआ करती थी। बाद में 1995 में मीटर गेज को उखाडकर ब्रॉड गेज में बदला गया।
हासन से अगले स्टेशन हैं- आलुर, बाल्लुपेटे और सकलेशपुर। सकलेशपुर के बाद घाट शुरू होता है। अर्थात उतराई शुरू होती है, पूरी तरह पहाडी रास्ता है- सुरंगों व पुलों से भरा हुआ। ठीक केसल रॉक-कुलेम की तरह। यहां भी अतिरिक्त इंजन लगाना पडता है। गाडी की अधिकतम स्पीड 30 किलोमीटर प्रति घण्टे की रहती है।
यहां भी कुछ तकनीकी स्टेशन हैं। सकलेशपुर के बाद दोणीगाल, यडकुमरि और शिरिबागिलु तीनों तकनीकी स्टेशन हैं। शिरिबागिलु के बाद सुब्रह्मण्य रोड है जहां घाट समाप्त हो जाता है। सकलेशपुर की ऊंचाई 889.72 मीटर है और शिरिबागिलु की 277.10 मीटर, सुब्रह्मण्य रोड की पता नहीं।
ऐसे पहाडी रास्तो पर ट्रेन से यात्रा करने का अपना अलग ही आनन्द है। चाहे वो कसारा-इगतपुरी लाइन हो, लोनावाला हो, दूधसागर हो या यह लाइन हो। चारों तरफ गहन जंगल का साम्राज्य है। यहां स्थानीय घुमक्कड ट्रेकिंग भी करते हैं। नीचे एक नदी दिख रही थी, उसके पार बंगलौर-मंगलौर सडक है। रेलवे लाइन के आसपास कोई सडक नहीं है।
इस लाइन पर दिनभर में मात्र दो ही यात्री गाडियां चलती हैं। एक दिन में है दूसरी रात्रि में। इसके अलावा सभी मालगाडियां चलती हैं। बीच के तीनों स्टेशनों पर मालगाडियां खडी मिली। सुब्रह्मण्य रोड पर तो चार मालगाडियां तैयार खडी थीं। यात्री गाडी चली जायेगी तो मालगाडियों को सिग्नल दिया जायेगा। यहां गाडियों की स्पीड बहुत कम है और घाट सेक्शन भी ज्यादा लम्बा है, इसलिये कम गाडियों के बावजूद भी पांचों स्टेशनों का स्टाफ कभी खाली नहीं बैठता होगा।
सुब्रह्मण्य रोड के बाद बजकरे, कोडिंबाला, येडमंगल, कनिऊरू, नरिमोगरू, कबकपुत्तुरू, नेरालाकट्टे, कल्लडक, बंटवाल, फरंगीपेटे, मंगलुरू जंक्शन और मंगलुरू सेण्ट्रल हैं। यह ट्रेन मंगलुरू सेण्ट्रल नहीं जाती बल्कि जंक्शन से ही इंजन की बदली होने के बाद कारवार चली जाती है। हम भी जंक्शन पर उतर गये। बंटवाल के पास नेत्रावती नदी भी पार की। यह मंगलौर के पास ही समुद्र में विलीन होती है।
सुबह हमारी ट्रेन कोंकण रेलवे मार्ग की मंगलुरू-मडगांव पैसेंजर है। जिसके बारे में पहले लिख चुका हूं। अब हमें जंक्शन से सेण्ट्रल जाना है। दूरी पांच किलोमीटर के आसपास है। ऑटो वाले किराया ज्यादा मांग रहे थे, इसलिये कुछ दूर पैदल चलकर मुख्य सडक पर आये और बस में सवार होकर दस दस रुपये में सेण्ट्रल जा पहुंचे। स्टेशन से चन्द कदम दूर ही एक व्यस्त चौराहे पर उतर गये और तीन सौ में एक कमरा ले लिया। कमरा उतना अच्छा नहीं था, सीलन की बू आ रही थी लेकिन मानसून में पश्चिमी घाट में सीलन के अलावा और किस चीज की उम्मीद कर सकते हैं?
कमल ने कहा कि यहीं पास में एक बार है, वहां डिनर करेंगे। मैंने कहा कि बार मेरे किस काम का? बोला कि नहीं, वह बार एण्ड रेस्टॉरेण्ट है। मैं बीयर पीऊंगा, तू कुछ और ले लेना। मंजूर हो गया।
उसने बीयर और मुर्ग मुसल्लम मंगवाये जबकि मैंने कोल्ड ड्रिंक और मटर पनीर। कमल पूरे सुरूर में था। एक घूंट भरता और काफी देर तक उसका आनन्द लेता। जब मैंने खाना खा लिया, उसके सामने काफी बचा था। आधे घण्टे में ही उस पर पूरा सुरूर छा गया। अब तक जो चुप था, अब बोलना शुरू कर दिया। धीमी आवाज में बातें करनी शुरू कर दीं- नीरज, तू बालों में कंघी नहीं करता क्या? –नहीं करता। -किया कर। कंघी करेगा तो तू मॉडल जैसा दिखेगा, स्मार्ट। -अबे टकले, यह फार्मूला खुद पर क्यों लागू नहीं करता?
और ज्यादा बात करता, मैं चलने के लिये उठ गया। -नीरज, बैठ यार। कुछ और खा ले। पांच रोटियां ही तो खाई हैं तूने। पांच से क्या होता है? –ना, तू दारू पी। पैसे हैं जेब में? –हां हैं। -तो पी-पाकर पेमैण्ट करके आ जाना।
कम से कम दो घण्टे बाद पहुंचा वो कमरे पर। मैं तो सोचने लगा था कि उसने इतनी पी ली है कि कहीं लुढक गया होगा। आधा घण्टा और न आता तो मैं उसे ढूंढने बीयर बार में पुनः जाने वाला था। आया तो बताया कि बाहर टहलने चला गया था। यहां तो बडे अच्छे अच्छे शोरूम हैं। टाइम होता तो कुछ न कुछ खरीदता।
ऐसा होता है पैसे वालों का भ्रमण।
एक मैण्टेनेंस गाडी |
कमल की ट्रेन यात्रा |
हासन से मैसुरू वाली लाइन अलग हो जाती है। |
सकलेशपुर- यहां से घाट शुरू होता है। |
सुब्रह्मण्य रोड स्टेशन |
सुब्रह्मण्य रोड स्टेशन- घाट समाप्त। |
नेत्रावती नदी |
मंगलुरू जंक्शन |
अगला भाग: गोकर्ण, कर्नाटक
पश्चिमी घाट यात्रा
1. अजन्ता गुफाएं
2. जामनेर-पाचोरा नैरो गेज ट्रेन यात्रा
3. कोंकण रेलवे
4. दूधसागर जलप्रपात
5. लोण्डा से तालगुप्पा रेल यात्रा और जोग प्रपात
6. शिमोगा से मंगलुरू रेल यात्रा
7. गोकर्ण, कर्नाटक
8. एक लाख किलोमीटर की रेल यात्रा
just love it
ReplyDeletebhai sahab ek majedar ghatna suniye. kuch din pahley uttar pradesh public service commission ki pariksha thi. agar koi banda aapki blog man se continue partha hoga to uske 40 number to pakkey ho jayenge. pata nahin uppsc walo ne aap ke blog ko dekh kar paper set kiya tha ya aap unke hisab se likhtey ho....................... upar wala hi jane................
ReplyDeleteरोचक यात्रा खण्ड, इस सेक्शन में मोटर ट्रॉली में चलने में आनन्द आ जाता है।
ReplyDeleteरोचक
ReplyDeleteरोचक यात्रा...
ReplyDeleteरोचक यात्रा
ReplyDeleteAapko Ghoomna Phirna Bahut Hi Achha Lagata Hai, Yeh Bahut Hi Achhe Dharmik Sthalon Ka Chitran Aapne Diya, Yeh Mujhe Bahut Achha Laga.
ReplyDeleteThank You.
सखलेश्पुर के पास काफी सारी ट्रैकिंग की जगह हैं। न जाने कब जाना होगा !
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