Skip to main content

जामनेर-पाचोरा नैरो गेज ट्रेन यात्रा

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें
अजन्ता से निकलने में थोडी देर हो गई। साढे तीन बजे तक पहुर पहुंचना आवश्यक था ताकि जामनेर वाली नैरो गेज की ट्रेन पकड सकें। फिर वहां से पुनः पहुर होते हुए ही पाचोरा तक इस ट्रेन से यात्रा करनी थी।
महाराष्ट्र परिवहन की बस से लेणी मोड से पहुर पहुंचने में देर ही कितनी लगती है? मैंने सुबह देख लिया था कि पहुर में तिराहे से कुछ ही दूर रेलवे फाटक है जहां से स्टेशन भी दिख रहा था। पैदल चल पडे। प्रशान्त के लिये पैदल चलना थोडा मुश्किल था, इसलिये वह सबसे पीछे पीछे आया। जब मैं फाटक पर पहुंचा तो ट्रेन के आने का समय हो गया था और फाटक भी लगने लगा था। मैंने दौड लगाई और जामनेर के तीन टिकट ले लिये।
ठीक चार बजे गाडी जामनेर पहुंच गई। अब इसे यहां से पांच बजे वापस चल देना है पाचोरा के लिये। हमें भूख लगी थी। अजन्ता से निकलते समय सोचा था कि पहुर में कुछ खायेंगे लेकिन गाडी के चक्कर में नहीं खा सके। इधर जामनेर स्टेशन भी इतने सन्नाटे में है कि दूर दूर तक कुछ नहीं दिखा। स्टेशन पर भेलपूरी मिली। भला जरा सी भेलपूरी से क्या होता?
प्रशान्त यहीं रुक गया। मैं और कमल बाहर निकले। कुछ दूर चलकर सडक पर पहुंचे और एक नये शानदार बने रेस्टॉरेंट में दाल चावल खा आये। ढाई सौ रुपये लग गये। मुझे तो अच्छे लगे लेकिन कमल को अच्छे नहीं लगे।
खैर, पांच बजे से पहले स्टेशन आ गये। प्रशान्त ने सीटें घेर रखी थीं। ठीक समय पर गाडी चल पडी। ज्यादा भीड नहीं थी।
पाचोरा से पहुर तक यह लाइन 1918 में खुली थी और पहुर से जामनेर तक अगले साल यानी 1919 में। पाचोरा भुसावल-मुम्बई लाइन पर स्थित है। अक्सर इस तरह की नैरो गेज लाइनें या तो खदानों के लिये बनाई गईं जैसे धौलपुर नैरो गेज या हिल स्टेशनों पर भ्रमण के लिये बनीं या फिर राजों-महाराजों द्वारा। यहां खदान वदान तो शायद नहीं है। हिल स्टेशन भी नहीं है। तो क्या जामनेर में कोई राजा होता था?
जामनेर से चलते हैं तो अगला स्टेशन है भगदारा। बिल्कुल उपेक्षित सा स्टेशन। स्टेशन क्या, यह पूरी लाइन ही उपेक्षित है। इसे तो बडी लाइन में बदलकर आगे भुसावल-अकोला लाइन पर कहीं बोदवड के आसपास जोड देना चाहिये। सवारी गाडियां भले ही ज्यादा न चलें लेकिन मालगाडियों के लिये यह भुसावल बाईपास का काम करेगा।
भगदारा से आगे पहुर है। स्थानीय यात्री हमारी उपस्थिति से बडे रोमांचित थे। और जब उन्हें पता चला कि हम दिल्ली से आये हैं, भारत की राजधानी से आये हैं, मात्र इस लाइन पर यात्रा करने तो उनकी खुशी और बढ गई। वे हमसे अपने फोटो खिंचवाने को कहते, जिसे हम अविलम्ब पूरा कर देते।
पहुर से आगे शेन्दुर्णी है। हम सबसे पीछे वाले डिब्बे में थे जिसके पीछे केवल गार्ड का केबिन था। सोचता हूं कि गार्ड साहब की बडी भयंकर ड्यूटी होती होगी। इस लाइन पर यह ट्रेन मात्र दो ही चक्कर लगाती है। सुबह आठ बजे पाचोरा से पहले चक्कर के लिये निकलती है और शाम सात बजे दूसरा चक्कर खत्म कर देती है। लगभग बारह घण्टे की ड्यूटी करनी पडती होगी गार्ड व लोको पायलटों को। दो फेरों के लिये अलग अलग स्टाफ तो बिल्कुल नहीं होंगे।
शेन्दुर्णी के बाद पिंपलगांव और उसके बाद वरखेडी है और उसके बाद पाचोरा। शेन्दुर्णी में ही लगभग पूरी ट्रेन खाली हो गई थी। पाचोरा तक खाली ही गई। भगदारा व एक और स्टेशन पर गार्ड ने टिकट बांटे।
इस लाइन पर जामनेर को छोडकर सभी स्टेशन हाल्ट हैं। हाल्ट का एक अर्थ यह भी है कि वहां रेलवे का कोई स्टाफ नहीं होगा। स्टेशन मास्टर भी नहीं। टिकट बांटने का काम ठेके पर होता है या फिर ट्रेन के गार्ड पर। दिनभर में एक ही ट्रेन दो चक्कर लगाती है। दोनों पैसेंजर। न्यूनतम किराया पांच रुपये है और अधिकतम पन्द्रह रुपये। भीड होती नहीं। एक दिन में हजार रुपये की भी आमदनी हो जाये तो समझो बहुत हो गई। उधर खर्चा? लाखों में होता है। इंजन के लिये डीजन तो चाहिये ही, साथ ही लोको पायलट व गार्ड, पाचोरा व जामनेर स्टेशनों पर बाकी स्टाफ और मरम्मत के लिये एक दिन का खर्च लाखों में बैठता होगा। भयंकर घाटे में चल रही है यह लाइन।
आवश्यकता है जल्द से जल्द इस लाइन को बडी लाइन में बदलकर आगे बढाकर नागपुर वाली लाइन में मिलाने की ताकि यहां से मालगाडियां चलाई जा सकें और घाटे को कम किया जा सके।
सात बजे जब पाचोरा पहुंचे तो अन्धेरा हो गया था। अब हमें जलगांव जाना था। जलगांव से मुम्बई की ट्रेन पकडनी थी। वह ट्रेन जाती तो पाचोरा से ही है लेकिन एक तो वह यहां रुकती नहीं, फिर हमारा सामान वहां क्लॉक रूम में बन्द था। पुणे-भुसावल इण्टरसिटी पकडी और आराम से बैठे बैठे जलगांव पहुंच गये।

पहुर स्टेशन पर कमलकान्त





भेलपूरी कौन कौन खायेगा? मैं खाऊंगा... मैं खाऊंगा। जामनेर स्टेशन पर।


प्रशान्त ट्रेनों का भयंकर शौकीन है।


गाय और बछ्डा देख लिया हो तो इस नैरो गेज की लाइन का ‘डेड एण्ड’ भी देख लो। 









अगला भाग:  कोंकण रेलवे

पश्चिमी घाट यात्रा
1. अजन्ता गुफाएं
2. जामनेर-पाचोरा नैरो गेज ट्रेन यात्रा
3. कोंकण रेलवे
4. दूधसागर जलप्रपात
5. लोण्डा से तालगुप्पा रेल यात्रा और जोग प्रपात
6. शिमोगा से मंगलुरू रेल यात्रा
7. गोकर्ण, कर्नाटक
8. एक लाख किलोमीटर की रेल यात्रा




Comments

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (18-09-2013) प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर है माता -चर्चा मंच 1372 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. indian railway ke prati aapka pyar is post me jalakta hai.

    ReplyDelete
  3. बिंदास जी बिंदास , हमें तो अपनी परीक्षाओं के दौर याद आ गए , कसम से पूरे भारत को अईसे फ़ेर डाला था हमने भी जेनरल डब्बे की तख्तियों पे बैठ के :)

    ReplyDelete
  4. घुमक्कड़ों की घुमक्कड़ी जिन्दाबाद..

    ReplyDelete
  5. नैरोगैज की यात्रा ने ग्वालियर-श्योपुर छोटी लाइन की याद दिलादी । यह ट्रेन या तो गरीबों का सहारा है या आप जैसे खोजी और जिज्ञासु घुमक्कडों के लिये अनौखा अभियान । बहुत ही जीवन्त यात्रावृतान्त ।

    ReplyDelete
  6. I like you blog. your blog so interesting and very important for travel. i relative a hotel owner. thanks buddy.

    Tourism in Rajasthan

    ReplyDelete
  7. कभी हम भी नीरो गाडी में बैठे है ..पता नहीं ? माथेरान और शिमला की गाडी थी तो छोटी पर वो नीरो ही थी या मीटर गेज़ पता नहीं....

    ReplyDelete
    Replies
    1. यह शब्द नीरो नहीं है... नैरो है, नैरो।
      मथेरान और शिमला वाली लाइनें नैरो गेज हैं।

      Delete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब...