Skip to main content

खारदुंगला का परमिट और शे गोनपा

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें
23 जनवरी 2013, मैंने खारदुंगला जाने की इच्छा साथियों से बताई। सुनते ही युसुफ साहब ने कहा कि परमिट की चिन्ता मत करो। तुम्हें सीआरपीएफ की तरफ से परमिट दिला देंगे। जल्दी मिल जायेगा और कोई कागज-पत्र भी नहीं चाहिये। हालांकि बाद में सीआरपीएफ की तरफ से परमिट नहीं बन सका। अब मुझे खुद जिला कमिश्नर के कार्यालय से परमिट बनवाना था।
विकास के साथ परेड वाली बस में बैठकर परेड ग्राउंड पहुंचा। यहां 26 जनवरी के मद्देनजर रोज दो-दो तीन-तीन घण्टे की परेड हो रही थी। परेड में सेना, भारत तिब्बत पुलिस, सीआरपीएफ, राज्य पुलिस, एनसीसी आदि थे। परेड मैदान के बगल में जिला कमिश्नर का कार्यालय है। मुख्य प्रवेश द्वार से अन्दर घुसते ही बायें हाथ एक ऑफिस है। यहां से खारदुंगला का परमिट बनता है। उन्होंने मुझसे कहा कि बाहर जाकर किसी भी फोटो-स्टेट वाली दुकान से दो इंडिया फार्म खरीदकर लाओ। साथ ही अपने पहचान पत्र की छायाप्रति भी।
काफी दूर जाकर एक फोटोस्टेट वाली दुकान मिली। आसानी से इंडिया फार्म मिल गया। पहचान पत्र की छायाप्रति करके वापस डीसी ऑफिस पहुंचा। बोले कि एक प्रार्थना पत्र लिखो कि खारदुंगला जाना है। इधर मैंने प्रार्थना पत्र लिखा, उधर इंडिया फार्म पर मोहर और हस्ताक्षर हो गये। परमिट तैयार। कल यानी 24 जनवरी को वहां जाऊंगा।
...
इस यात्रा के अनुभवों पर आधारित मेरी एक किताब प्रकाशित हुई है - ‘सुनो लद्दाख !’ आपको इस यात्रा का संपूर्ण और रोचक वृत्तांत इस किताब में ही पढ़ने को मिलेगा।
आप अमेजन से इसे खरीद सकते हैं।



प्रवचन करते धर्मगुरू












शे पैलेस

वहां तक मैं नहीं पहुंच सका।

शे पैलेस से दिखता नजारा

शे पैलेस से दिखता मेले वाला स्थान

शे पैलेस से कुछ ऊपर पहाडी पर खण्डहर

शे से ठिक्से करीब पांच किलोमीटर दूर है। शायद यह ठिक्से गोनपा है, जो शे पैलेस से दिख रहा था।






अगला भाग: लेह में परेड और युद्ध संग्रहालय

लद्दाख यात्रा श्रंखला
1. पहली हवाई यात्रा- दिल्ली से लेह
2. लद्दाख यात्रा- लेह आगमन
3. लद्दाख यात्रा- सिन्धु दर्शन व चिलिंग को प्रस्थान
4. जांस्कर घाटी में बर्फबारी
5. चादर ट्रेक- गुफा में एक रात
6. चिलिंग से वापसी और लेह भ्रमण
7. लेह पैलेस और शान्ति स्तूप
8. खारदुंगला का परमिट और शे गोनपा
9. लेह में परेड और युद्ध संग्रहालय
10. पिटुक गोनपा (स्पिटुक गोनपा)
11. लेह से दिल्ली हवाई यात्रा

Comments

  1. राम राम जी, बहुत ही खूबसूरत, बहुत ही विहंगम. लद्दाख के इतने खूबसूरत चित्र पहले कभी नहीं देखे. धन्यवाद. वन्देमातरम....

    ReplyDelete
  2. वाह, मानों कल्‍पना का संसार.

    ReplyDelete
  3. जब लेह से तुम्हारा फ़ोन आया था खरदूंगला जाने के परमिट के बारे में अधिकतर स्थानीय लोगों को मालूम नहीं है कि कहाँ से मिलता है, तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ था। कि अरे यह तो बिल्कुल वही बात हुई कि हरिद्धार में रहने वाले को गंगा का पता नहीं कि कैसे जाना है?

    ReplyDelete
  4. वाकई लद्दाख की सुंदरता को आप कैद कर लाए।

    ReplyDelete
  5. खतरनाक और खुबसूरत सुन्दरता !!! लद्दाख की सुन्दरता लाजवाब है वहां के लोग .वहां के गुरु , वहां के घर देखकर अत्यंत ख़ुशी हो रही है पता नहीं इस जनम में जाना संभव होगा की नहीं ..बहुत बढ़िया यात्रा चल रही है ...

    ReplyDelete
  6. शानदार और खुबसूरत |

    एसी जगह पेनारोमा तकनीक से फोटो लें तो फोटो और भी सुन्दर और बड़े आयेंगे |

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

स्टेशन से बस अड्डा कितना दूर है?

आज बात करते हैं कि विभिन्न शहरों में रेलवे स्टेशन और मुख्य बस अड्डे आपस में कितना कितना दूर हैं? आने जाने के साधन कौन कौन से हैं? वगैरा वगैरा। शुरू करते हैं भारत की राजधानी से ही। दिल्ली:- दिल्ली में तीन मुख्य बस अड्डे हैं यानी ISBT- महाराणा प्रताप (कश्मीरी गेट), आनंद विहार और सराय काले खां। कश्मीरी गेट पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास है। आनंद विहार में रेलवे स्टेशन भी है लेकिन यहाँ पर एक्सप्रेस ट्रेनें नहीं रुकतीं। हालाँकि अब तो आनंद विहार रेलवे स्टेशन को टर्मिनल बनाया जा चुका है। मेट्रो भी पहुँच चुकी है। सराय काले खां बस अड्डे के बराबर में ही है हज़रत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन। गाजियाबाद: - रेलवे स्टेशन से बस अड्डा तीन चार किलोमीटर दूर है। ऑटो वाले पांच रूपये लेते हैं।

चित्रकोट जलप्रपात- अथाह जलराशि

इस यात्रा-वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें । चित्रधारा से निकले तो सीधे चित्रकोट जाकर ही रुके। जगदलपुर से ही हम इन्द्रावती नदी के लगभग समान्तर चले आ रहे थे। चित्रकोट से करीब दो तीन किलोमीटर पहले से यह नदी दिखने भी लगती है। मानसून का शुरूआती चरण होने के बावजूद भी इसमें खूब पानी था। इस जलप्रपात को भारत का नियाग्रा भी कहा जाता है। और वास्तव में है भी ऐसा ही। प्रामाणिक आंकडे तो मुझे नहीं पता लेकिन मानसून में इसकी चौडाई बहुत ज्यादा बढ जाती है। अभी मानसून ढंग से शुरू भी नहीं हुआ था और इसकी चौडाई और जलराशि देख-देखकर आंखें फटी जा रही थीं। हालांकि पानी बिल्कुल गन्दला था- बारिश के कारण। मोटरसाइकिल एक तरफ खडी की। सामने ही छत्तीसगढ पर्यटन का विश्रामगृह था। विश्रामगृह के ज्यादातर कमरों की खिडकियों से यह विशाल जलराशि करीब सौ फीट की ऊंचाई से नीचे गिरती दिखती है। मोटरसाइकिल खडी करके हम प्रपात के पास चले गये। जितना पास जाते, उतने ही रोंगटे खडे होने लगते। कभी नहीं सोचा था कि इतना पानी भी कहीं गिर सकता है। जहां हम खडे थे, कुछ दिन बाद पानी यहां तक भी आ जायेगा और प्रपात की चौडाई और भी बढ ...

घुमक्कड पत्रिका- 2

1. सम्पादकीय 2. लेख A. ब्लॉगिंग: एकल या सामूहिक B. किसी ब्लॉग को कैसे फॉलो करें? 3. यात्रा-वृत्तान्त A. पहाड तो आपके अपने हैं, इन्हें क्यों गन्दा करते हो? (अंशुल ग्रोवर) B. घुमक्कड और घुमक्कडी से साक्षात्कार (डॉ. सुमित शर्मा) 4. ब्लॉग अपडेट