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3 अक्टूबर 2012 की सुबह आराम से सोकर उठा। कल रूपकुण्ड देखकर आया था तो थकान हो गई थी और नींद भी अच्छी आई। हालांकि स्लीपिंग बैग में उतनी अच्छी नींद नहीं आती, फिर भी आठ बजे तक सोता रहा।
3 अक्टूबर 2012 की सुबह आराम से सोकर उठा। कल रूपकुण्ड देखकर आया था तो थकान हो गई थी और नींद भी अच्छी आई। हालांकि स्लीपिंग बैग में उतनी अच्छी नींद नहीं आती, फिर भी आठ बजे तक सोता रहा।
आईएएस अफसरों में से ज्यादातर को मेरे बारे में पता था कि बेचारा दिल्ली से आया है और अच्छी नौकरी वाला है, फिर भी आखिरी समय तक किसी से ना तो दोस्ती हुई, ना ही जान-पहचान। इसके लिये काफी हद तक मैं भी जिम्मेदार हूं, क्योंकि मैं बाहर निकलकर लोगों से घुल-मिल नहीं पाता हूं। उस पर भी अगर किसी की कोई बात बुरी लग जाये तो फिर कहना ही क्या!
जब हम सब रूपकुण्ड पर थे तो गाइड देवेन्द्र ने ऐलान किया कि नीचे भगुवाबासा में खाना खायेंगे। इस ऐलान में कुछ हिस्सा मेरे लिये भी था क्योंकि एक तो देवेन्द्र पहले से ही मेरे लिये खाना लाया था और मेरा बैग देवेन्द्र के पास था जिसमें सबका खाना रखा था। हवा का घनत्व कम होने के कारण मेरा दिमाग काम भी कम ही कर रहा था लेकिन तुरन्त ही उसने एक काम यह किया कि अपने बैग से बिस्कुट का एक पैकेट निकाल लिया।
आईएएस अफसरों से मुझे एक तरह की चिढ सी हो गई थी। पहले दिन भले ही उनके साथ ही ‘सरकारी’ खाना खाया हो, लेकिन उसके बाद मैंने उनका खाना ना छूने की प्रतिज्ञा कर ली। सुबह पांच बजे ढाबे पर दो प्लेट मैगी खाकर चला। रास्ते में कालू विनायक पर बिस्कुट का एक पैकेट और कुछ नमकीन खत्म की, पानी पी लिया।
मैं रूपकुण्ड से बाकी सब के पन्द्रह मिनट बाद चला था, इसलिये नीचे उतरते हुए वे जल्दी ही मुझसे काफी आगे निकल गये। भगुवाबासा में सरकारी फाइबर हट हैं, जिनकी देखरेख स्थानीय निवासी करते हैं। वे चाय आदि उपलब्ध करा देते हैं। अफसरों की पूरी टीम वहीं पर चाय के साथ पूरी-सब्जी खाने लगी। मैं वहां से उनसे ऐसा आंख बचाकर निकला कि किसी को मेरे निकल जाने की खबर नहीं हुई। देवेन्द्र को पता था कि मैं कुछ पीछे पीछे आ रहा हूं, तो उसने मेरे लिये भी चाय बनवाकर रखवा दी और कुछ देर बाद पूरी टीम को लेकर चल पडा। पेरी पूरी सब्जी भी वही रख दी थी उसने।
मैं कालू विनायक पर आंख मीचकर लेटा था जब वे सब लोग वहां पहुंचे। देवेन्द्र ने पूछा कि सब लोग खाना खा रहे थे तो तुम क्यों नहीं आये। यह भी बताया कि मेरी चाय वहां रखी है और पैसे देवेन्द्र ने दिये थे। मैंने जवाब पहले से ही सोच रखा था कि इनमें से कोई भी आदमी मेरे पहचान में नहीं आया, मैंने सोचा कि यह कोई और ग्रुप है, इसलिये मैं निकल आया। साथ ही यह भी बता दिया कि मैंने बिस्कुट खा लिये हैं, कोई परेशानी की बात नहीं है।
पत्थर नाचनी पर भी इसी तरह के फाइबर के हट बने हैं। लेकिन यहां की सबसे बडी परेशानी है कि यहां दूर-दूर तक पानी नहीं है। पानी है भी तो एक घण्टे से ज्यादा लगता है लाने में, और ऊपर नीचे चढने उतरने की परेशानी सो अलग। अन्दाजा था कि डेढ घण्टा और लग जायेगा अभी भी बेदिनी बुग्याल पहुंचने में। गाइड समेत सभी अफसर बहुत पीछे थे। पत्थर नाचनी से कुछ कदम ही आगे बढा कि हल्के ओले पडने लगे। ऊपर देखा तो बेदिनी की तरफ घने काले बादल दिखने लगे, जिसका अर्थ था कि अगले कुछ समय में जोरदार बारिश होगी। मैं तुरन्त वापस भागा और एक हट में जा घुसा। मेरे पास कैमरा था, बैग देवेन्द्र के पास था, बैग में रेनकोट था, इसलिये कैमरे को बारिश से बचाने के लिये मुझे इन हट्स में रुक जाना पडा।
दुर्भाग्य से हट का दरवाजा मुख्य रास्ते से विपरीत दिशा में था। देवेन्द्र कब निकल गया, पता ही नहीं चला। उम्मीद के मुताबिक बारिश पूरे जोरों से पडने लगी। वो तो अच्छा हुआ कि पीछे रह गये कुछ अफसर भी उसी हट में आ घुसे। उन अफसरों को ढूंढता ढूंढता देवेन्द्र भी कुछ देर में वहां पहुंच गया, तब मुझे रेनकोट मिला।
घुप्प अन्धेरा हो गया था जब मैं बेदिनी बुग्याल पहुंचा। देवेन्द्र ने मुझे कुछ पहले बताया था कि अभी दो बन्दे ही आगे गये हैं, बाकी सभी लोग पीछे ही हैं। मैं सीधा ढाबे पर पहुंचा। यहां से पीछे मुडकर देखने पर दो किलोमीटर तक घुप्प अन्धेरे में टॉर्चों की लाइटें दिख रही थीं। ढाबे में तीन जने और भी बैठे थे, उनकी सेहत, पहनावा और बोलचाल से मुझे लगा कि ये आईएएस अफसर हो सकते हैं। अफसर हैं तो मैं उनसे बात नहीं कर सकता। और जल्दी ही पता चल गया कि वे अफसर ही हैं।
वे बार बार आपस में कह रहे थे कि वो देखो, हमारे आदमी तेजी से आगे बढ रहे हैं। वो देखो, वो टॉर्च अभी वहां थी, अब कुछ आगे बढ गई है। फिर भी मेरा मन नहीं मान रहा था कि वे अफसर हैं। इसका कारण था कि देवेन्द्र ने बताया कि अभी दो जने ही आगे गये हैं, जबकि यहां तीन बैठे हैं। दूसरा कारण कि ये लोग यहां खाना खा रहे हैं, जबकि इनकी अलग रसोई है। जब बेचैनी बढ गई तो मैंने पूछ ही लिया कि क्या आप रूपकुण्ड से वापस आ गये हो। तुरन्त जवाब मिला कि हम आज ही बेदिनी आये हैं, कल रूपकुण्ड जायेंगे। मैंने कहा कि तो वे तुम्हारे आदमी कैसे हैं? बोले कि मजाक कर रहे हैं। हम तो उन्हें जानते ही नहीं।
मैंने डिनर यही इसी ढाबे में किया। बाद में देवेन्द्र ने कहा भी कि सरकारी रसोई में खा लो, लेकिन तब तक मेरा पेट भर चुका था।
सुबह उठकर सबसे पहले ढाबे पर पहुंचा। रात वाले तीनों बन्दे यही बैठे थे और परांठे खा रहे थे। मैंने भी आदेश सुना दिया कि भाई, एक भूखा और हाजिर है, परांठे लगाओ, चाय के साथ। तभी पीछे से उन तीनों में से एक ने कहा कि भाई जाटराम, आजा बैठ जा।
आज पहली बार ऐसा हुआ कि किसी ने मुझे इस तरह अचानक पहचाना हो। ये लोग दिल्ली से आये थे। इनमें से एक थे गाजियाबाद के जयन्त नौटियाल। मुझे इतनी खुशी मिली कि मैं आली बुग्याल तक इनके साथ साथ घूमता रहा, लेकिन नाम किसी का नहीं पूछा। भला हो फेसबुक का कि जयन्त साहब मिल गये, तब जाकर मुझे पता चला कि मुझे जो मिले थे, वे कौन थे।
आली बुग्याल बेदिनी बुग्याल से कुछ दूर एक अपेक्षाकृत छोटा बुग्याल है। मेरी योजना आली बुग्याल देखकर सीधे दीदना गांव के रास्ते कुलिंग जाने की थी। कुलिंग लोहाजंग-वान रोड पर बसा हुआ है। मैं आते समय लोहाजंग से वान गया था और सीधे बेदिनी जा पहुंचा था, जबकि वापसी के लिये आली, दीदना, कुलिंग, लोहाजंग की योजना थी। इधर इन तीनों ने भी रूपकुण्ड की योजना स्थगित करके आली घूमना स्वीकृत कर लिया। इसका प्रत्यक्ष कारण तो पता नहीं लेकिन रूपकुण्ड वाली चोटी पर घने बादल थे और रात बर्फबारी भी हुई थी। यानी अगर मैं एक दिन भी लेट हो जाता तो मुझे भगुवाबासा से आगे भारी बर्फ झेलनी पडती और रूपकुण्ड पहुंचना बडा मुश्किल हो जाता।
जहां से आली बुग्याल शुरू होता है, वहीं सब रुक गये। दिल्ली वालों ने यानी जयन्त की टीम ने दो पॉर्टर भी ले रखे थे। दूर से ही आली बुग्याल के फोटो खींचे। करीब आधे घण्टे बाद मैंने इनसे विदा ले ली। मैं आली की तरफ चल पडा और बाकी लोग वापस बेदिनी की तरफ चले गये।
आली की हल्की सी चढाई चढकर मुझे जब आगे बढने का कोई रास्ता नहीं मिला तो मैं एक चरवाहे की तरफ चल पडा। वो भी महाराज इतनी फुरसत में था कि बोला कि पहले बैठो, बीडी पीऊंगा, फिर रास्ता बताऊंगा। फुरसत उसे भी थी, मुझे भी थी। बीडी खत्म हो गई, तब उसने बताया कि सीधे चले जाओ, एक छोटा सा पानी का कुण्ड आयेगा। उसके पास से नीचे उतरने का रास्ता मिल जायेगा।
यही वो तम्बू है जहां अपना खाना-पीना होता था और नौटियाल साहब मिले थे। |
बुग्याल यानी मैदान। इनमें खेती नहीं होती लेकिन चरागाह के रूप में खूब इस्तेमाल होता है। |
रूपकुण्ड की ओर जाते हुए कुछ ट्रैकर |
जयन्त नौटियाल |
सामने गंजे सिर की तरह आली बुग्याल दिख रहा है। |
आली बुग्याल |
बेदिनी से आली का रास्ता |
नौटियाल साहब का पॉर्टर, जिसने बिना किसी लाग-लपेट के मेरा स्लीपिंग बैग उठा लिया। |
भेड के बाल यानी ऊन। |
असल में बात यह है कि मुझे इनमें से किसी का भी नाम नहीं पता है। नौटियाल साहब से अनुरोध है कि कमेंट में तीनों के नाम बतायें। इनमें से ही कोई नौटियाल साहब भी हैं। |
आली बुग्याल |
वो रहा वो कुण्ड जिसके पास से नीचे उतरने का रास्ता मिलेगा। |
धुंध ने पहाडों को रहस्यमय रूप प्रदान कर दिया है। |
बेदिनी बुग्याल से दिखता कुलिंग गांव और लोहाजंग-वान रोड। |
यह फोटो नौटियाल साहब ने खींचा है, जब मैं आली बुग्याल पार कर रहा था। लाल घेरे में में मैं ही हूं। |
जाटराम और उसका सारा सामान। फोटो: जयन्त नौटियाल |
जयन्त नौटियाल द्वारा खींचा गया जाटराम का एक शानदार फोटो। |
यह भी जयन्त ने ही खींचा है जब मैं भेडों के फोटो ले रहा था। |
अगला भाग: रूपकुण्ड यात्रा- आली से लोहाजंग
रूपकुण्ड यात्रा
1. रूपकुण्ड यात्रा की शुरूआत
2. रूपकुण्ड यात्रा- दिल्ली से वान
3. रूपकुण्ड यात्रा- वान से बेदिनी बुग्याल
4. बेदिनी बुग्याल
5. रूपकुण्ड यात्रा- बेदिनी बुग्याल से भगुवाबासा
6. रूपकुण्ड- एक रहस्यमयी कुण्ड
7. रूपकुण्ड से आली बुग्याल
8. रूपकुण्ड यात्रा- आली से लोहाजंग
9. रूपकुण्ड का नक्शा और जानकारी
नीरज बाबु,जिंदगी एक सफ़र है सुहाना, ये बात बिलकुल आपपे लागू होती है ! फोटो बहुत सुंदर है!
ReplyDeleteसुंदर चित्र, बढि़या सफर.
ReplyDeleteचित्र सब बयां करते हैं...मनोहारी..
ReplyDeleteखूबसूरत बहुत खूबसूरत......
ReplyDeleteNeerajji...pics bohot achhe hain...
ReplyDeleteAli Bugyal pe maine hi aapki profile pic kheenchi thi...ummeed hai apko achi lagi...:D
jo safed jacket hain woh hain Himanshu Yadav
Neeli pajame mein hai Jayant Nautiyal
Aur kaale Sweater mein main hun....
Ghumakkadi Zindabad..:D
Neeraj bhai insaan ho ya bhoot ke kahin bhi itni aasani se pahaunch jaate ho. Adbhut
ReplyDeleteअब तो लगता है कि हम भी जल्दी से इन बुग्यालों में घूम आयें ।
ReplyDeleteसुंदर यात्रा वृतांत ..
ReplyDeleteफोटुओं के जबाब नहीं.
नीरज भाई ! आप गढ़वाली शक्ल नहीं पहचान पाये ? तीन मे से एक गढ़वाली आदमी खुद ही पहचाना जा रहा है !
ReplyDeleteसुंदर चित्र, बढि़या यात्रा वृतांत
ReplyDeleteJaat bhai..pic to acchhi li hai aapne.....i am the one in white jacket and scarf in neck.....himanshu....:)
ReplyDeletepahad ki sundarta camre mein qaid! beautiful!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर जगह ...देखकर ही दिल प्रसन्न हो रहा है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जाट भाई | अति सुन्दर वर्णन किया है अपने चित्रों सहित |
ReplyDeleteरीराम.............
ReplyDeleteनीरज भाई फुलो के फोटो बहुत खुबसुरत हैं.
शुभ -यात्रा ............मुकुंद -धुळे-MH -18