मुझे राम बाबू चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन पर मिला। रात को दस बजे। उसे बुलाया तो था आठ बजे ही, लेकिन गुडगाँव से आते समय धौला कुआँ के पास जाम में फंस गया। खैर, चलो दस बजे ही सही, आ तो गया। एक भारी भरकम बैग भी ले रहा था। पहाड़ की सर्दी से बचने का पूरा इंतजाम था।
मैंने पहले ही पठानकोट तक का टिकट ले लिया था। दिल्ली स्टेशन पर पहुंचे। पता चला कि जम्मू जाने वाली पूजा एक्सप्रेस डेढ़ घंटे लेट थी। प्लेटफार्म पर वो ही जबरदस्त भीड़। पौने बारह बजे ट्रेन आई। अजमेर से आती है। ट्रेन में प्लेटफार्म से भी ज्यादा भीड़। लगा कि बैठने-लेटने की तो दूर, खड़े होने को भी जगह नहीं मिलेगी।
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बर्थ पर लेटा रामबाबू |
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ट्रेन चली तो नींद भी आ गयी। सुबह साढे छः बजे आँख खुली, देखा कि ट्रेन लुधियाना स्टेशन पर खड़ी है। इसे तो अब तक मुकेरियां के पास पहुँच जाना चाहिए था। लगा कि यहाँ से चलकर जालंधर छावनी पर रुकेगी। पता नहीं दस बजे पठानकोट से चलने वाली टॉय ट्रेन को पकड़ भी पाएंगे या नहीं। लेकिन लुधियाना से चली तो सीधे चक्की बैंक ही जाकर रुकी। अब जम्मू जाने वाली सभी ट्रेनें पठानकोट को बाईपास कर देती हैं, तो चक्की बैंक रूकती हैं।
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पठानकोट से खींचा गया फोटो
यहाँ से पहाड़ स्पष्ट रूप से दिख रहे थे। यहाँ तक कि धौलाधार की बर्फीली चोटियाँ भी। मैंने रामबाबू से कहा-" ओये, वो देख, बर्फ।"
"अरे यार, बर्फ नहीं है।"
"तूने बर्फ वाले पहाड़ देखे हैं कभी?"
"नहीं देखे, लेकिन वो बर्फ नहीं है।"
"तो फिर क्या है?"
"अरे बकवास बंद कर। वो बर्फ नहीं है। वैसे ही रेत-वेत है।"
"अरे भाई, यह हिमालय है। रेगिस्तान नहीं कि रेत वेत है।"
"बकवास बंद भी करेगा या नहीं?"
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मैंने 'बकवास' बंद कर दी। चक्की बैंक से टम्पू से पठानकोट पहुंचे। रामबाबू कहने लगा कि मुझे तो भूख लगी है, पहले कुछ खाऊंगा। एक ठेली वाले से एक प्लेट चावल ले लिए। मैंने खुद ही बुदबुदाया-"वाह भई वाह!!!क्या शानदार नजारा है, धौलाधार की बर्फ का।" रामबाबू फिर बिगड़ गया-"तू चुप भी रहेगा या बर्फ-बर्फ करता रहेगा?"
"तुझसे कौन कह रहा है? थोड़ी देर तू चुप रह। फिर देखना, तू खुद ही कहेगा कि वाह, क्या नजारा है!!!"
हमारी बातें सुनकर ठेली वाला बोल पड़ा-"भाई साहब, वो बर्फ ही तो है।" तब रामबाबू को मानना पड़ा।
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डलहौजी रोड रेलवे स्टेशन
जाना तो था बैजनाथ, फिर भी जोगिन्दर नगर तक का टिकट ले लिया। ढाई फुट चौड़ी रेल, उस पर खड़ी छोटी-सी गाडी। छोटे-छोटे कुल सात डिब्बे। निधारित समय पर गाडी चल पड़ी। भीड़ भी बढती ही गयी।


कांगडा रेल की खिड़की में खड़े हम
हमें सीट तो मिली नहीं थी, इसलिए खिड़की पर ही खड़े रहे। भीड़ से तंग आकर रामबाबू मुझे कोसने लगा कि मैंने पहले ही कहा था कि बस से चलो। मैंने कहा कि भाई, तू बस ज्वालामुखी रोड तक झेल ले। फिर सीट मिल जायेगी।
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कांगडा घाटी
ज्वालामुखी रोड स्टेशन पर हमें दोनों को सीट मिल गयी। अब हम कांगडा घाटी का लुत्फ़ उठा सकते थे। असल में यह घाटी भी नहीं है, पठार है। धौलाधार की छत्रछाया में बसा पठार। 500 से 700 मीटर की ऊंचाई, जगह-जगह छोटे-छोटे टीले, और गहरी नदी घाटियाँ।


कांगडा रेल
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कांगडा और नगरोटा होते हुए पालमपुर पहुंचे। यहाँ से हिमालय ऐसा लगता है कि छलांग लगाओ, और पहुँच जाओ। मैंने रामबाबू से पूछा -" बोल भाई, क्या शानदार रेतीला पहाड़ है!!!"


कांगडा घाटी में लहराते गेहूं के खेत
"अरे क्षमा कर, दोस्त। रेत नहीं है, बर्फ ही है।"
"अच्छा ये बता, अगर हम चढ़ना शुरू करें, तो उस छोटी तक कितनी देर में पहुँच जायेंगे?"
"बस, ज्यादा से ज्यादा दो घंटे में।"
"यार दो घंटे नहीं, दो दिन बोल। कम से कम दो दिन लगेंगे।"
"फिर बकवास कर रहा है। यहाँ से चोटी दस किलोमीटर भी नहीं है।"
तभी सामने बैठा एक लोकल लड़का बोला-"भाई, आप ठीक कह रहे हो, दो दिन में भी मुश्किल से ही पहुँच पाएंगे।"


चामुण्डा मार्ग रेलवे स्टेशन
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NH-20 और धौलाधार

ये है नगरोटा रेलवे स्टेशन
बैजनाथ यात्रा श्रंखला
1. बैजनाथ यात्रा - कांगड़ा घाटी रेलवे
2. बैजनाथ मंदिर
3. बिलिंग यात्रा
4. हिमाचल के गद्दी
5. पालमपुर यात्रा और चामुंड़ा देवी
बर्फ तो काफी अच्छी दिख रही है. दिल्ली से पठानकोट तक आरक्षण क्यों नहीं करवाया.
ReplyDeleteमजा आ गया। आपके साथ यूँ ब्लोग से घूमकर। जी तो खूब करता है कि हम भी घूमे पर ......।
ReplyDeleteSushil.BhAi ghoomo na
Deleteचित्र और यात्रा वर्णन रोचक है अगली कड़ी का इन्तजार
ReplyDeleteचलिये आपके सफ़र से ही सही बर्फ़ वाले पहाड़ो के नज़ारे तो देखने मिल रहे है।
ReplyDeleteवाह JRS !
ReplyDeleteनया कमरा तो कमाल का है !!
रोचक यात्रा वर्णन व बर्फ देखकर मन प्रसन्न हो गया
ये हुई ना बात मुसाफिर जाट वाली.. बढ़िया दोस्त.. :)
ReplyDeleteहम भी सफ़र का लुत्फ़ उठा रहे हैं आपके साथ.
ReplyDeleteबहुत ्बढिया चिट्र दिखाये और भाई मुसाफ़िर तू कांगडा रेल म्ह खडा घणा समार्ट दिख रया सै.
ReplyDeleteरामराम.
अच्छा वर्णन करते हें आप अपनी यात्रा का ... तस्वीरें भी अच्छी लगी ... अगली कडी का इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteTasver dekh ki hi lag raha hai ki apki yatra bahut rochak rahi...
ReplyDeleteaur camera bhi bahut achha kaam kar raha hai...
इस बार तो तो झनझना दिया. क्या बात है. मजा आ गया. फोटू भी मस्त मस्त है.
ReplyDeleteक्या बात है भाई वाह
ReplyDeleteआप मेरे कस्बे जोगिन्दर नगर भी हो आए, खुशी की बात है
रोचक वृत्तांत है। आगे की प्रतीक्षा है। चित्र भी खूब आये हैं।
ReplyDeleteआपकी यात्राऐं और उनके वृतांत इतने रोचक होते हैं कि जाने का मन होने लगे.
ReplyDeleteअब तो कैमरा भी आ गया है तो बात ही निराली हो गई है. आभार-आगे इन्तजार है.
जे बात! अब लग रहे हो पक्के मुसाफिर
ReplyDeleteअरे वाह, फोटो देख कर तो आनन्द आ गया।
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जादू की छड़ी चाहिए?
नाज्का रेखाएँ कौन सी बला हैं?
अगली कडी का इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteDear Neeraj,
ReplyDeletethanx for a nice post ! If u drive motorcycle ,u r welcome to join a blogger's trip to Sat-taal !
Munish.
यहाँ तक का यात्रा विवरण फोटो के साथ बहुत अच्छा लगा अब बैजनाथ दर्शन भी करवा दीजिये
ReplyDelete- लावण्या