जनवरी के आखिरी दिनों में मैं ऐसे ही बैठा ऊंघ रहा था तो किसी नये नम्बर से फोन आया। इधर से हेलो किया तो उधर से आवाज आई- “नीरज जाट जी बोल रहे हैं?” मुझे हां बोलने में क्या दिक्कत थी? आवाज आई कि मैं सोनीपत से अतुल बोल रहा हूं। आपका नम्बर आपके ब्लॉग से लिया है। फिर तो तारीफ पर तारीफ शुरू हो गई। अपन भी फूल कर कुप्पा हुए जा रहे थे। आखिर में उसने कहा कि मैं भी आपके साथ एक सफर पर जाना चाहता हूं।
अतुल की बेचैनी यही खत्म नहीं हुई। तीन-चार दिन बाद ही दिल्ली आ पहुंचे। बोलचाल और चालढाल देखकर ही मैं समझ गया कि बंदा पक्का शहरी है। इसे तो दिल्ली निवासी होना चाहिये था, सोनीपत यानी हरियाणा में कहां से आ गया। हमें तो इससे अडै-कडै की उम्मीद थी। खैर, हमारे यहां कोई मेहमान आया है, बिना खाये-खिलाये कैसे जाने देंगे। ले गये कैंटीन में। समोसे बने हुए थे। बोला कि कुछ नहीं खाऊंगा। जबरदस्ती दो समोसे ले लिये। एक खुद उठा लिया और प्लेट अतुल के सामने सरका दी। प्लेट में खाली एक समोसा देखकर बोला कि इसे ऐसे ही खाना पडेगा?
ऐसे ही मतलब?
मतलब हाथ से।
नहीं भाई, हाथ से क्यों खाते हो? मुंह से खाओ।
नहीं, मेरा मतलब था कि चम्मच नहीं मिलेगी क्या?
मर्जी है। लाऊं क्या?
नहीं, रहने दो। और अतुल हाथ से तोड-तोडकर समोसा खाने लगा। खाते-खाते बोला कि आज मेरे लिये यह एक नया अनुभव है।
मैं सोच में पड गया कि बंदे को दुनियादारी की जानकारी ही नहीं है। चम्मच से समोसा खाना तो ठीक है लेकिन हाथ से खाने में नया अनुभव? यानी इसने आज तक हाथ से समोसा खाया ही नहीं है। खाने-पीने के मामले में मेरा हिसाब बिल्कुल उल्टा है। कुछ ‘गैरकानूनी’ चीजों को छोडकर सबकुछ खा जाता हूं। चम्मच मिले तो ठीक है, नहीं तो हाथ जिंदाबाद।
अतुल ने बताया कि उसे भी घूमने का बहुत शौक है। नैनीताल, मसूरी, शिमला, जयपुर, आगरा जैसी जगहों के साथ-साथ गंगोत्री-गोमुख भी जा चुका है। वो भी अकेले। नैनीताल, मसूरी जैसी जगहों पर जाना तो ठीक है, लेकिन गोमुख जाना वो भी अकेले; यह अतुल के घुमक्कडी जज्बे को दर्शाता है। मेरे साथ एक ‘महान’ बंदा काम करता है। जब भी मैं कहीं से घूमकर आता हूं तो पूछता है कि कहां गये थे। जवाब मिलता है कि यमुनोत्री, मणिकर्ण आदि। तो फिर बडी शान से कहता है कि तुम भी बिल्कुल मेरी तरह हो। मैं छुट्टी वाले दिन अकेला जाता हूं घूमने। जयपुर, आगरा. मथुरा; कुछ नहीं छोडा मैंने। तब मैं कहता हूं कि भाई, एक चक्कर मेरी तरह लगाकर आओ। कब तक जयपुर, आगरा की रट लगाये रखोगे? जाओ, किसी दिन चूडधार घूमकर आओ। बडी मस्त जगह है। पूछता है कि चूडधार कहां है? जवाब मिलता है कि अगर आपमें सच्ची में घूमने की लगन है तो आप चले ही जाओगे, किसी के बताने की जरुरत नहीं है।
अतुल कम से कम उसके जैसा तो नहीं है। जो बंदा अकेले गोमुख तक जाने का साहस रखता हो, उसके जज्बे को मेरा सलाम!
…
20 फरवरी की सुबह-सुबह छह बजे जैसे ही मेरी नाइट ड्यूटी खत्म हुई, मैं और अतुल आनंद विहार के नये रेलवे स्टेशन पर पहुंचे। हल्द्वानी का टिकट लिया। यहां से एक एसी एक्सप्रेस चलती है- काठगोदाम के लिये। सुबह छह बजे चलकर साढे ग्यारह बजे तक हल्द्वानी पहुंचा देती है। इसमें जनरल डिब्बा तो था नहीं, इसलिये किराये का अन्तर देकर थर्ड एसी का टिकट बनवा लिया और सोते-सोते हल्द्वानी पहुंचा। मैंने आज पहली बार एसी डिब्बे में सफर किया था।
जब कभी मैं नोएडा में नौकरी करता था तो मेरे साथ रमेश भी था। रमेश अल्मोडा जिले में भागाद्यूली गांव का रहने वाला है। यह गांव भीमताल-शहरफाटक रोड पर मोतियापाथर से थोडा सा हटकर है। उधर अतुल की ख्वाहिश थी कि उसे पहाडी गांव देखना है। दूसरी ओर अभी कुछ ही दिन पहले रमेश के लडका हुआ था, आज उसका नामकरण संस्कार था। ग्रहयोग बता रहे थे कि हमें रमेश के गांव जाना चाहिये। और हम हल्द्वानी से लमगडा जाने वाली बस में बैठ गये- तीन घण्टे बाद मोतियापाथर पहुंचने की उम्मीद लेकर।
अतुल की बेचैनी यही खत्म नहीं हुई। तीन-चार दिन बाद ही दिल्ली आ पहुंचे। बोलचाल और चालढाल देखकर ही मैं समझ गया कि बंदा पक्का शहरी है। इसे तो दिल्ली निवासी होना चाहिये था, सोनीपत यानी हरियाणा में कहां से आ गया। हमें तो इससे अडै-कडै की उम्मीद थी। खैर, हमारे यहां कोई मेहमान आया है, बिना खाये-खिलाये कैसे जाने देंगे। ले गये कैंटीन में। समोसे बने हुए थे। बोला कि कुछ नहीं खाऊंगा। जबरदस्ती दो समोसे ले लिये। एक खुद उठा लिया और प्लेट अतुल के सामने सरका दी। प्लेट में खाली एक समोसा देखकर बोला कि इसे ऐसे ही खाना पडेगा?
ऐसे ही मतलब?
मतलब हाथ से।
नहीं भाई, हाथ से क्यों खाते हो? मुंह से खाओ।
नहीं, मेरा मतलब था कि चम्मच नहीं मिलेगी क्या?
मर्जी है। लाऊं क्या?
नहीं, रहने दो। और अतुल हाथ से तोड-तोडकर समोसा खाने लगा। खाते-खाते बोला कि आज मेरे लिये यह एक नया अनुभव है।
मैं सोच में पड गया कि बंदे को दुनियादारी की जानकारी ही नहीं है। चम्मच से समोसा खाना तो ठीक है लेकिन हाथ से खाने में नया अनुभव? यानी इसने आज तक हाथ से समोसा खाया ही नहीं है। खाने-पीने के मामले में मेरा हिसाब बिल्कुल उल्टा है। कुछ ‘गैरकानूनी’ चीजों को छोडकर सबकुछ खा जाता हूं। चम्मच मिले तो ठीक है, नहीं तो हाथ जिंदाबाद।
अतुल ने बताया कि उसे भी घूमने का बहुत शौक है। नैनीताल, मसूरी, शिमला, जयपुर, आगरा जैसी जगहों के साथ-साथ गंगोत्री-गोमुख भी जा चुका है। वो भी अकेले। नैनीताल, मसूरी जैसी जगहों पर जाना तो ठीक है, लेकिन गोमुख जाना वो भी अकेले; यह अतुल के घुमक्कडी जज्बे को दर्शाता है। मेरे साथ एक ‘महान’ बंदा काम करता है। जब भी मैं कहीं से घूमकर आता हूं तो पूछता है कि कहां गये थे। जवाब मिलता है कि यमुनोत्री, मणिकर्ण आदि। तो फिर बडी शान से कहता है कि तुम भी बिल्कुल मेरी तरह हो। मैं छुट्टी वाले दिन अकेला जाता हूं घूमने। जयपुर, आगरा. मथुरा; कुछ नहीं छोडा मैंने। तब मैं कहता हूं कि भाई, एक चक्कर मेरी तरह लगाकर आओ। कब तक जयपुर, आगरा की रट लगाये रखोगे? जाओ, किसी दिन चूडधार घूमकर आओ। बडी मस्त जगह है। पूछता है कि चूडधार कहां है? जवाब मिलता है कि अगर आपमें सच्ची में घूमने की लगन है तो आप चले ही जाओगे, किसी के बताने की जरुरत नहीं है।
अतुल कम से कम उसके जैसा तो नहीं है। जो बंदा अकेले गोमुख तक जाने का साहस रखता हो, उसके जज्बे को मेरा सलाम!
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20 फरवरी की सुबह-सुबह छह बजे जैसे ही मेरी नाइट ड्यूटी खत्म हुई, मैं और अतुल आनंद विहार के नये रेलवे स्टेशन पर पहुंचे। हल्द्वानी का टिकट लिया। यहां से एक एसी एक्सप्रेस चलती है- काठगोदाम के लिये। सुबह छह बजे चलकर साढे ग्यारह बजे तक हल्द्वानी पहुंचा देती है। इसमें जनरल डिब्बा तो था नहीं, इसलिये किराये का अन्तर देकर थर्ड एसी का टिकट बनवा लिया और सोते-सोते हल्द्वानी पहुंचा। मैंने आज पहली बार एसी डिब्बे में सफर किया था।
जब कभी मैं नोएडा में नौकरी करता था तो मेरे साथ रमेश भी था। रमेश अल्मोडा जिले में भागाद्यूली गांव का रहने वाला है। यह गांव भीमताल-शहरफाटक रोड पर मोतियापाथर से थोडा सा हटकर है। उधर अतुल की ख्वाहिश थी कि उसे पहाडी गांव देखना है। दूसरी ओर अभी कुछ ही दिन पहले रमेश के लडका हुआ था, आज उसका नामकरण संस्कार था। ग्रहयोग बता रहे थे कि हमें रमेश के गांव जाना चाहिये। और हम हल्द्वानी से लमगडा जाने वाली बस में बैठ गये- तीन घण्टे बाद मोतियापाथर पहुंचने की उम्मीद लेकर।
अगला भाग: यात्रा कुमाऊँ के एक गाँव की
कुमाऊं यात्रा
1. एक यात्रा अतुल के साथ
2. यात्रा कुमाऊं के एक गांव की
3. एक कुमाऊंनी गांव- भागाद्यूनी
4. कौसानी
5. एक बैजनाथ उत्तराखण्ड में भी है
6. रानीखेत के पास भी है बिनसर महादेव
7. अल्मोडा यात्रा की कुछ और यादें
आपके साथ वादियों में घुमक्कड़ी की इच्छा तो हमारी भी है।
ReplyDeleteजाटराज
ReplyDeleteएक बात बताओ कि खाग्गढ़ यदि टोपी उतार ले तो क्या पहचान में नहीं आएगा..?
दूसरी बात खाग्गढ़ टोपी कभी नहीं पहनता.......
साधुवाद
खाग्गढ़ ?????????? ये क्या होता है पहले तो वो बताओ...बकिया आगे इन्तजार है भई..
ReplyDeleteवाह ! खाग्गड़ वाह !
ReplyDeleteलाग्या रह
मज़ा आ रह्या सै
मुझे भी बताओ खागड टोपी कैसी होती है? घुमक्कडी जिन्दाबाद।
ReplyDeleteबेटा नीरज ऐ.सी. के मजे ले ही लिए ---बाकी अल्मोड़ा में --
ReplyDeleteअरै खागड तन्नै तो घणै मजे ले लिए..इब न्यू बता कि मन्नै होली पै मुंशियारी जाना सै. कित सै जाणा पडैगा? जरा पूरा रास्ता बताईये.
ReplyDeleteरामराम.
हाथ से तोड-तोडकर समोसा खाते-खाते बोला कि आज मेरे लिये यह एक नया अनुभव है।
ReplyDeleteअपने अपने अनुभव हैं।
जानना तो हम भी चाहते हैं कि ये 'खाग्गड' क्या होता है?
MAINE SAMOSA HATH SE TOD KAR KHAYA THA WO BHI NEERAJ JI SE PEHLE.NEERAJ JI KHAGGAD KA MEANING KYA HOTA HAIN.
ReplyDeleteइस तरह की पोस्ट पढना बहुत ही अच्छा लगता है....शायद आपकी उम्रवाले सबको ऐसे शौक पालने चाहिए...अभी आपलोग अफोर्ड कर सकते हैं ,ये घुमक्कड़ी...
ReplyDeleteइंतज़ार रहेगा...अगली पोस्ट का.
आगे का इन्तेजार है
ReplyDeleteनीरज, कभी-कभी रश्क होने लगता है तुमसे.
ReplyDeleteखुश रहो ऐसे ही.
ओ खाग्ग्ड़, इत्ता सीरियस क्यूँकर बैठ्या है? :))
ReplyDeleteअरे खाग्गड जब मजा आनेलगता हे तो तेरी पोस्ट खत्म हो जाती हे, बहुत सुंदर फ़ोटू लगे...
ReplyDeleteओर यह खाग्गड बहुत दिनो बाद सुना, खाग्गड जी धन्यवाद
शरीफ़ ओर सीधे साधे आदमी को खाग्गड कहते हे:)
यात्रा का आगाज देखकर इस जोड़ी के सफर के और भी रोचक होने की उम्मीद है. :-)
ReplyDeleteयार यो तो कतई जाट्टा वांणी हो गई।
ReplyDeleteभाई थारी पोस्ट माज़ा की तैंये हो गई ..जब तन्नक मज़ा आवे है तभी बोतल खत्म। भाई यो मिलते हैं एक ब्रेक के बाद या रुकावट के लिये खेद है..थारी पोस्ट पे कोण्यी जचे..जो लिखे एक बारे में लिख देकर।
खाग्गड शब्द से परिचय के लिए भाटिया साहब का आभार |
ReplyDelete@ राज भाटिया जी:
ReplyDelete:)
@ नरेश कुमार राठौड़:
संभल के ठाकुर साहब:)
भाई गज़ब आपको आप जैसा एक साथी और मिल गया...बधाई...अब दो दीवाने मिल के बवंडर मचा देंगे पहाड़ों में...नहीं...
ReplyDeleteनीरज
Neeraj Bhai Mujhe Bhi Ghumakkadi Ka Bahut Shonk Hain, Aapke bare men aaj dainik hindustn me padha achcha laga,
ReplyDeletekripya mujhe sasta our achcha ghumne ka tarika batayen
neeraj bhai hindi main type kaise karen
ReplyDeleteमजा आ गया खागड साब
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