इस यात्रा वृत्तांत को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें। 21 फरवरी को मैं और अतुल भागाद्यूनी गांव में थे। वैसे तो आज हमें यहां से सुबह को ही वापस चल देना था लेकिन यहां आकर ऐसा जी लगा कि प्रोग्राम बदल गया। अब कल यहां से जायेंगे। आज हमें पूरा गांव देखना था- कुमाऊंनी गांव। वैसे तो अतुल महाराज के लिये हर चीज नई थी जबकि मेरे लिये भी कुछ बातें नई थीं। गांव के एक कोने में ऊंचाई पर कुछ चट्टानें हैं। इनमें कुछ गुफाएं भी हैं। जब अतुल को बताया गया कि गुफाओं को देखने चलते हैं तो उसने सोचा कि वे गुफाएं बडी-बडी और गहरी गुफाएं होंगी। दो-चार ऋषि-महात्मा भी बैठे मिलेंगे। लेकिन जब असलियत खुली तो अतुल के शब्द थे- ‘ये गुफाएं हैं? यार, सारा एक्साइटमेंट खत्म हो गया।’ ये शब्द सुनकर तय हुआ कि थोडा नीचे एक गहरी गुफा है- सांपों वाली गुफा, वहां चलते हैं। अतुल फिर एक्साइटेड।
लेकिन नीचे उतरते हुए महाराज ऐसा फिसला कि पता नहीं घुटना टूटा या बच गया लेकिन पैण्ट जरूर फट गई। कभी अगले ने महान काम किये होंगे कि गिरने के बाद भी सही सलामत बच गया, नहीं तो रास्ता पतला सा था, अगर रास्ते से फिसलकर साइड में गिरा होता तो लुढकते-लुढकते कई सौ फुट नीचे चला गया होता। तब तक तो 206 की जगह 2006 हड्डियां बन गई होती। बन्दा कुछ देर तक तो फटी पैण्ट पर हाथ रखकर चलता रहा, लेकिन जब सोचा कि कब तक, तो हाथ हटा लिया। बडी गुफा की फरमाइश और योजना धरी की धरी रह गई।
जब मैं पिछली बार चार साल पहले यहां आया था तो रमेश ने हाथ से इशारा करके बताया था कि वहां नदी के किनारे कुछ ‘घट’ हैं। घट मतलब घराट यानी पनचक्की। पानी से चलने वाली पिसाई करने वाली चक्की। उस समय गांव में पांच चक्कियां थी लेकिन इस साल हुई जबरदस्त बारिश ने चार चक्कियों को बहा दिया। अब केवल एक ही चक्की बची हुई है। नदी के पानी को एक नाली या कहें कि नहर से गुजारकर चक्की के ऊपर तक ले जाया जाता है। फिर जब पानी चक्की के ब्लेडों पर तेजी से गिरता है तो ब्लेडों से जुडे पाट भी घूम पडते हैं। इससे गेहूं, चने आदि की पिसाई हो जाती है। कहीं-कहीं इसमें डायनमो लगाकर बिजली भी बनाई जाती है।
चक्की देखकर हम वापस घर की ओर चल पडे। रास्ते में एक किसान अपने खेतों में बैलों के साथ जुताई पर लगा पडा था। अतुल को तलब उठी कि बैलों के साथ फोटू खिंचवाऊंगा।
घर पहुंचे और खाना खाने लगे। मैंने कहा कि यार अतुल, रमेश की घरवाली बडी सुन्दर है। बोला कि ओये चुप कर। रमेश के सामने मत बोल देना ये बातें, नहीं तो हमें आज ही यहां से अपना बोरिया बिस्तर बांधना पड जायेगा। थोडी देर में रमेश खाना देने आया तो मैंने उससे भी कहा यार रमेश, भाभीजी बडी सुन्दर हैं। बोला कि तो फिर शरमा क्यों रहा है? उसके पास जा और बातें-वातें कर। बस, तभी से अतुल के मन में खटका हो गया कि जाट सही इंसान नहीं है। रमेश की घरवाली के पीछे पड रहा है। दोपहर बाद अतुल का मूड शेष गांव देखने का बना। इधर मैं भी देहाती ठहरा। गांव देखने में वो मजा नहीं आता जो शहरियों को आता है। मैंने जाने से मना कर दिया। तभी से अतुल का मुंह चढ गया। और अगले दिन दोपहर को अल्मोडा जाकर ही उतरा- ’यार मुझे कल गुस्सा नहीं करना चाहिये था।’ उस दिन अतुल और रमेश का चचेरा भाई गांव घूमने गये थे।
अगला भाग: कौसानी
कुमाऊं यात्रा
1. एक यात्रा अतुल के साथ
2. यात्रा कुमाऊं के एक गांव की
3. एक कुमाऊंनी गांव- भागाद्यूनी
4. कौसानी
5. एक बैजनाथ उत्तराखण्ड में भी है
6. रानीखेत के पास भी है बिनसर महादेव
7. अल्मोडा यात्रा की कुछ और यादें
मजा आ गया फिर...बहुत उम्दा तस्वीरें और वर्णन...अब उसका पैर ठीक है कि नहीं??
ReplyDeleteBHUT SUNDER.....
ReplyDeleteभाई आज तुम्हारी पूरी पोस्ट पढ़ रहा हूँ, पिछला वाला पार्ट भी और जबरदस्त मजा आ रहा है.....:)
ReplyDeleteअतुल महराज और आपकी जोड़ी खूब जम रही है...
मस्त पोस्ट...फोटोज तो एक से एक हैं....
सैर कर दुनिया की गाफिल!
ReplyDeleteवाह इतनी शानदार तस्वीरें? तब तो जगह और भी अच्छी होगी घूमने के लिये। शुभकामनायें।
ReplyDeleteBahut sundar gurudev !
ReplyDeleteातुल नै बुल्लदां के बारे म्है नहीं पूछा - "ये क्या है"
ReplyDeleteफोन आया था मेरे पास पूछ रहा था "खागड" क्या होता है। आपकी पिछली पोस्ट में पढा होगा।
इस बार कुछ फोटो लगता है गलत एंगल से खींचे गये हैं। फिर भी धन्यवाद
सांप वाली गुफा दिखाई के नहीं?
जै राम जी की
बहुत अच्छे फोटो हैं. यात्रा वृतान्त पढकर अच्छा लगा. बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति, बधाईयाँ !
ReplyDeleteएक और जोरदार संस्मरण...अतुल से कहियो के भाई ज्यादा छलांगे न लगाया करे...फोटो तो हमेशा की तरह लाजवाब हैं जी...
ReplyDeleteनीरज
शानदार जर्नी और जानदार लोग ! यानि आप और अतुल महाशय !
ReplyDeleteअतुल का ब्लोक खूब खोजा पर मिला नही एक दिन फोन भी आया था पर नम्बेर सेव कर नही सकी--उसका लिंक देने की कृपा करे --
जरा जल्दी वृतांत को आगे बढाए --अतुल के कारनामे देखने है --जिसमे उसने कहा हे की बड़ा मजा आया --
गुफा के चक्कर में पूरी पोस्ट पढ़ा दी चौधरी ! गुफा कहाँ है ...??
ReplyDeleteजय हो आपका, एक नया आनन्द।
ReplyDeleteबहुत ही तिलस्मी.
ReplyDeleteरामराम.
तस्वीरों कि भूख इस बार मिटी. बेहद सुन्दर फोटोग्राफी.
ReplyDeleteबहुत सुंदर विवरण यात्रा का, ओर चित्र भी बहुत सुंदर लगे,
ReplyDeleteवो फ़टी पैंट सिमाई के नहीं? नुंए फ़टी हूई ही पहने घुमते रहे।
ReplyDeleteफ़ोटो बढिया है ।
मि्लते हैं ब्रेक के बाद।
मजेदार, सूचना पट पर नई सूचना डाल दो
ReplyDeletemaza aa gaya,
ReplyDeleteवाह. मेरे घर सा है सबकुछ.
ReplyDeleteBAHUT AACHHA HAI
ReplyDeleteAAPKI YATRA DEKH KE AAPNI YATRA YAD AATA HAI
ReplyDeleteफोटो तो एक दम वालपेपर सरीखे लग रहे है | जन्नत के नज़ारे है |
ReplyDeleteसुंदर फोटो, रोचक विवरण.
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