Skip to main content

मदमहेश्वर और बूढा मदमहेश्वर

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें
18 नवम्बर 2010 की सुबह मैं मदमहेश्वर में था। हमारा कार्यक्रम आज काचली ताल जाने का था लेकिन नहीं जा पाये। तय हुआ कि अब नहा-धोकर मदमहेश्वर बाबा के दर्शन करके बूढा मदमहेश्वर चलते हैं। दोपहर बाद तक वहां से वापस आ जायेंगे और फिर अलविदा।
उत्तराखण्ड में पांच केदार हैं- केदारनाथ, मदमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर। इन पांचों की यात्रा में पैदल भी चलना पडता है। इनमें से दो केदार यानी केदारनाथ और मदमहेश्वर रुद्रप्रयाग जिले में स्थित हैं। दुनियाभर के लोगों ने केदारनाथ के अलावा बाकी के नाम भले ही ना सुने हों, लेकिन आसपास के लोगों में केदारनाथ के मुकाबले मदमहेश्वर के प्रति श्रद्धा बहुत ज्यादा है। इसीलिये भैयादूज के दिन केदारनाथ के कपाट बन्द होते समय लोगों में उतना उत्साह नहीं होता जितना कुछ दिन बाद मदमहेश्वर के कपाट बन्द होते समय। मदमहेश्वर से लेकर ऊखीमठ तक हर गांव में मेले लगते हैं। चार दिन में मदे बाबा की डोली ऊखीमठ पहुंचती है।

भरत कहने लगा कि मैं बाबा के दर्शन करूंगा इसलिये नहाना पडेगा। आप भी नहा लो। नहाने का नाम सुनते ही मेरे होश खराब। समुद्र तल से साढे तीन हजार मीटर से भी ज्यादा ऊंचाई पर नवम्बर के आखिरी दिनों में नहाने की बात तो छोडिये, मन करता है कि दो-चार मोटे-मोटे कपडे और मिल जाये तो उन्हें भी पहन लूं। मैंने मना कर दिया। बोला कि नहाना तो पडेगा ही। नहीं तो क्या फायदा यहां आने का?
-अरे भाई, मैं यहां नहाने थोडे ही आया हूं। मेरा मकसद घूमने का है, नहाकर घूमू या बिना नहाये।
-आप इतनी दूर से आये हैं। बिना नहाये बाबा के दर्शन करेंगे तो क्या फल मिलेगा आपको?
-ठीक है, मुंह धो लूंगा। हाथ भी धो लूंगा।
-फिर नहाने में कसर ही कितनी रह जायेगी?
-पैर भी धो लूंगा।
-फिर तो आप लगभग नहा ही लोगे। कपडे उतारकर दो मग्गे पानी सिर पर डालने में क्या चला जायेगा?
-‘लगभग’ नहा लूंगा ना। बाबा से बोल देना कि ये बन्दा लगभग नहाकर आया है। बडी दूर से आया है। दर्शन दे दो।
मैं भले ही मन्दिरों या तीर्थों में घूमता रहता हूं लेकिन इतना बडा आस्तिक भी नहीं हूं। दान-दक्षिणा तो दूर, कभी अपने घर में धूपबत्ती भी नहीं जलाता। फिर दूसरी बात ये भी है कि हिमालय में घुमक्कडी करनी है तो मन्दिरों में जाना ही पडेगा। मन्दिर या तीर्थ कोई गलत नहीं हैं। ये तो हमें बुलाते हैं। घूमने के लिये प्रेरित करते हैं। नास्तिकों के लिये नदी, झरने, पहाड, हरियाली, बरफ और आस्तिकों के लिये यही सब देवता। अगर आप नास्तिक हैं तो पर्यटन और घुमक्कडी के नाम पर और अगर आस्तिक हैं तो तीर्थों के नाम पर घर से बाहर निकलो। घूमो। दुनिया में हर किसी के लिये सब कुछ है।



मदमहेश्वर के पास ही एक चोटी है। इसका रास्ता कम ढलान वाला है। पेड भी नहीं हैं। एक तरह का बुग्याल है। उस चोटी को बूढा मदमहेश्वर कहते हैं। डेढ-दो किलोमीटर चलना पडता है। घण्टा भर लगता है। जैसे-जैसे ऊपर चढते जाते हैं तो चौखम्बा शिखर के दर्शन होने लगते हैं।







यह एक काफी चौडी चोटी है। ऊबड-खाबड। बरसात में इसके कुछ हिस्सों में पानी भी भर जाता है। साफ पानी होता है तो चौखम्बा का बडा ही शानदार प्रतिबिम्ब दिखाई देता है।
चोटी पर यह एक देवस्थान है। इसे ही बूढा मदमहेश्वर कहते हैं।


ऊपर से ऊखीमठ भी दिखता है और गुप्तकाशी भी। लेकिन दूर-बहुत दूर। धुंधले से।


ऊपर से मदमहेश्वर मन्दिर। सबसे बायें मन्दिर है। मन्दिर के सामने सब के सब होटल हैं।




यह है सुन्दर सिंह- हाई एल्टीट्यूड ट्रेकिंग गाइड।
ये हैं मदमहेश्वर धाम के मुख्य पुजारी। पिछले साल ये केदारनाथ के मुख्य पुजारी थे। ये लोग केरल के नम्बूदरीपाद ब्राह्मण होते हैं। कपाट बन्द होने पर ये अपने घर चले जाते हैं। जाडों के बाद फिर से वापस आ जाते हैं। अगर वापस ना भी आयें तो केरल के नम्बूदरीपाद ब्राह्मणों में से चयन होता है। कुछ शर्तें होती हैं, जिनके बाद इन्हें बद्री-केदार धामों का पुजारी नियुक्त कर दिया जाता है। इन्हें टूटी-फूटी हिन्दी और गढवाली भी आती है।

यह है आशुतोष टूरिस्ट होटल।
आखिर में एक बात और। मुख्य पुजारी की सहायता के लिये यहां एक बन्दे की और ड्यूटी लगती है। यह तीन-चार दिन तक लगती है। इसके बाद बदली हो जाती है। गौंडार गांव के लोगों में से ही बारी-बारी से सबकी ड्यूटी लगती रहती है। आजकल सुन्दर सिंह की ड्यूटी लगी है। सुन्दर सिंह पेशे से उच्च पर्वतीय ट्रेकिंग गाइड हैं।

अगला भाग: और मदमहेश्वर से वापसी


मदमहेश्वर यात्रा
1. मदमहेश्वर यात्रा
2. मदमहेश्वर यात्रा- रुद्रप्रयाग से ऊखीमठ तक
3. ऊखीमठ के पास है देवरिया ताल
4. बद्रीनाथ नहीं, मदमहेश्वर चलो
5. मदमहेश्वर यात्रा- उनियाना से गौंडार
6. मदमहेश्वर यात्रा- गौंडार से मदमहेश्वर
7. मदमहेश्वर में एक अलौकिक अनुभव
8. मदमहेश्वर और बूढा मदमहेश्वर
9. और मदमहेश्वर से वापसी
10. मेरी मदमहेश्वर यात्रा का कुल खर्च

Comments

  1. मनोरम. इर्ष्या सी हो रही है. पर कोई बात नहीं, हम भी जायेंगे कभी :)

    ReplyDelete
  2. नास्तिकों के लिए, आस्तिकों की अपेक्षा बहुत अधिक है घुमक्कड़ी में।

    ReplyDelete
  3. बड़ी सुन्दर फोटो खींच लाये महाराज..

    ReplyDelete
  4. बहुत खूब ,बड़ी सुन्दर फोटो खींच लाये
    कभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग//shiva12877.blogspot.com पर भी अपनी एक नज़र डालें

    ReplyDelete
  5. ...........मैं भले ही मन्दिरों या तीर्थों में घूमता रहता हूं लेकिन इतना बडा आस्तिक भी नहीं हूं।..........
    अच्छा बहाना ढूंडा नहीं नहाने का , हा,,,,,,हा,,,,,,,हा,,,,,,,,,
    सुंदर यात्रा वृतांत , उससे भी खुबसूरत तस्वीरें ,
    आभार ...........

    ReplyDelete
  6. आपने तो इन चित्रों के द्वारा हमें भी बैठे -२ सैर करवा दी !
    काफी सुंदर चित्र है !

    ReplyDelete
  7. बड़ी दुर्लभ यात्रायें, बड़े दुर्लभ चित्र।

    ReplyDelete
  8. सुंदर यात्रा वृतांत , उससे भी खुबसूरत तस्वीरें| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  9. नीरज जी ,इतने सुंदर द्रश्य की आँखे ही पथरा गई --इतनी हाईट पर जाकर नहाना --सचमुच सजा हे --मै खुद 'हेमकुंड सा. ' में यह सजा भुगत चुकी हु

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

डायरी के पन्ने- 30 (विवाह स्पेशल)

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। 1 फरवरी: इस बार पहले ही सोच रखा था कि डायरी के पन्ने दिनांक-वार लिखने हैं। इसका कारण था कि पिछले दिनों मैं अपनी पिछली डायरियां पढ रहा था। अच्छा लग रहा था जब मैं वे पुराने दिनांक-वार पन्ने पढने लगा। तो आज सुबह नाइट ड्यूटी करके आया। नींद ऐसी आ रही थी कि बिना कुछ खाये-पीये सो गया। मैं अक्सर नाइट ड्यूटी से आकर बिना कुछ खाये-पीये सो जाता हूं, ज्यादातर तो चाय पीकर सोता हूं।। खाली पेट मुझे बहुत अच्छी नींद आती है। शाम चार बजे उठा। पिताजी उस समय सो रहे थे, धीरज लैपटॉप में करंट अफेयर्स को अपनी कापी में नोट कर रहा था। तभी बढई आ गया। अलमारी में कुछ समस्या थी और कुछ खिडकियों की जाली गलकर टूटने लगी थी। मच्छर सीजन दस्तक दे रहा है, खिडकियों पर जाली ठीकठाक रहे तो अच्छा। बढई के आने पर खटपट सुनकर पिताजी भी उठ गये। सात बजे बढई वापस चला गया। थोडा सा काम और बचा है, उसे कल निपटायेगा। इसके बाद धीरज बाजार गया और बाकी सामान के साथ कुछ जलेबियां भी ले आया। मैंने धीरज से कहा कि दूध के साथ जलेबी खायेंगे। पिताजी से कहा तो उन्होंने मना कर दिया। यह मना करना मुझे ब...

डायरी के पन्ने-32

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। इस बार डायरी के पन्ने नहीं छपने वाले थे लेकिन महीने के अन्त में एक ऐसा घटनाक्रम घटा कि कुछ स्पष्टीकरण देने के लिये मुझे ये लिखने पड रहे हैं। पिछले साल जून में मैंने एक पोस्ट लिखी थी और फिर तीन महीने तक लिखना बन्द कर दिया। फिर अक्टूबर में लिखना शुरू किया। तब से लेकर मार्च तक पूरे छह महीने प्रति सप्ताह तीन पोस्ट के औसत से लिखता रहा। मेरी पोस्टें अमूमन लम्बी होती हैं, काफी ज्यादा पढने का मैटीरियल होता है और चित्र भी काफी होते हैं। एक पोस्ट को तैयार करने में औसतन चार घण्टे लगते हैं। सप्ताह में तीन पोस्ट... लगातार छह महीने तक। ढेर सारा ट्रैफिक, ढेर सारी वाहवाहियां। इस दौरान विवाह भी हुआ, वो भी दो बार। आप पढते हैं, आपको आनन्द आता है। लेकिन एक लेखक ही जानता है कि लम्बे समय तक नियमित ऐसा करने से क्या होता है। थकान होने लगती है। वाहवाहियां अच्छी नहीं लगतीं। रुक जाने को मन करता है, विश्राम करने को मन करता है। इस बारे में मैंने अपने फेसबुक पेज पर लिखा भी था कि विश्राम करने की इच्छा हो रही है। लगभग सभी मित्रों ने इस बात का समर्थन किया था।

लद्दाख बाइक यात्रा-4 (बटोट-डोडा-किश्तवाड-पारना)

9 जून 2015 हम बटोट में थे। बटोट से एक रास्ता तो सीधे रामबन, बनिहाल होते हुए श्रीनगर जाता ही है, एक दूसरा रास्ता डोडा, किश्तवाड भी जाता है। किश्तवाड से सिंथन टॉप होते हुए एक सडक श्रीनगर भी गई है। बटोट से मुख्य रास्ते से श्रीनगर डल गेट लगभग 170 किलोमीटर है जबकि किश्तवाड होते हुए यह दूरी 315 किलोमीटर है। जम्मू क्षेत्र से कश्मीर जाने के लिये तीन रास्ते हैं- पहला तो यही मुख्य रास्ता जम्मू-श्रीनगर हाईवे, दूसरा है मुगल रोड और तीसरा है किश्तवाड-अनन्तनाग मार्ग। शुरू से ही मेरी इच्छा मुख्य राजमार्ग से जाने की नहीं थी। पहले योजना मुगल रोड से जाने की थी लेकिन कल हुए बुद्धि परिवर्तन से मुगल रोड का विकल्प समाप्त हो गया। कल हम बटोट आकर रुक गये। सोचने-विचारने के लिये पूरी रात थी। मुख्य राजमार्ग से जाने का फायदा यह था कि हम आज ही श्रीनगर पहुंच सकते हैं और उससे आगे सोनामार्ग तक भी जा सकते हैं। किश्तवाड वाले रास्ते से आज ही श्रीनगर नहीं पहुंचा जा सकता। अर्णव ने सुझाव दिया था कि बटोट से सुबह चार-पांच बजे निकल पडो ताकि ट्रैफिक बढने से पहले जवाहर सुरंग पार कर सको। अर्णव को भी हमने किश्तवाड के बारे में नहीं ...