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16 नवम्बर 2010 की दोपहर लगभग तीन बजे मैं और मेरा गाइड भरत ऊखीमठ के पास देवरिया ताल के किनारे बैठे थे। भरत चाहता था कि मैं आज की रात दुगलबिट्टा में टेंट में बिताऊं लेकिन मैं खर्चा बचाने के लिये आज ऊखीमठ में ही रुकना चाहता था। भरत ने मेरा विचार मान लिया। यहां ताल से एक सीधा रास्ता सात-आठ किलोमीटर लम्बा ऊखीमठ भी जाता है लेकिन भरत ने कहा कि हम दो हैं और वो रास्ता पूरी तरह जंगली है। जानवरों का डर है। इसलिये जिस रास्ते से आये थे, उसी से वापस जायेंगे यानी सारी के रास्ते से।
कल 17 तारीख है। हमारा कार्यक्रम कल तुंगनाथ-चंद्रशिला देखने का है। परसों जोशीमठ या बद्रीनाथ जाकर कपाट बन्द करवाने हैं। 18 को बन्द हो रहे हैं। उत्तराखण्ड में चार धाम हैं- यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ। पांच केदार हैं- केदारनाथ, मदमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर। इसी तरह पांच बद्री भी हैं- बद्रीनाथ, आदि बद्री, भविष्य बद्री, योग-ध्यान बद्री और वृद्ध बद्री। इनमें से बद्रीनाथ और मदमहेश्वर को छोडकर सभी के कपाट बन्द हो चुके हैं। बद्रीनाथ 18 को बन्द होंगे और मदमहेश्वर 22 को।
देवरिया ताल के किनारे बैठे-बैठे दिमाग में खलबली मच रही थी। परसों सुबह दुगलबिट्टा से चलकर दोपहर दो बजे तक बद्रीनाथ जाना असम्भव लग रहा था। तो क्यों ना मदमहेश्वर चलें। इस विचार से भरत को अवगत कराया। यह इरादा सुनकर भरत तुरन्त खुश हो गया। खुश हो भी क्यों ना, आखिर दो दिन और ज्यादा गाइडगिरी करने को मिल रही है। उसने बताया कि हम तीन दिन में वहां से वापस लौट आयेंगे। और तीन दिन मेरे पास थे। मदमहेश्वर पर मोहर लग गयी।
साढे तीन बजे का टाइम था। भरत ने बताया कि मदमहेश्वर जाने के लिये पहले उनियाना (उन्याणा) जाना पडेगा। उनियाना के बाद पैदल रास्ता है। ऊखीमठ से उनियाना जाने वाली आखिरी बस चार बजे चलती है। हमारे पास आधा घण्टा था और इस आधे घण्टे में देवरिया ताल से ऊखीमठ जाना असम्भव था। इसलिये तय किया गया कि सीधे मनसूना चलते हैं। यह ताल पहाड की चोटी पर है। यहां से तीन अलग-अलग दिशाओं में पगडंडियां नीचे उतरती है- सारी की दिशा में कंक्रीट की पगडंडी जिसका इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है, सीधे ऊखीमठ जाने वाली कच्ची पगडंडी जिसका इस्तेमाल पर्यटक कम ही करते हैं और तीसरी है उत्तर की ओर मनसूना जाने वाली कच्ची पगडंडी जिसका इस्तेमाल कभी-कभार स्थानीय निवासी ही करते हैं। तय हुआ कि इस तीसरी पगडंडी से सीधे मनसूना चलते है- घण्टे भर में पहुंच ही जायेंगे। तब तक यानी साढे चार बजे तक ऊखीमठ से चलने वाली आखिरी बस भी मनसूना पहुंच जायेगी।
यह रास्ता महाघनघोर जंगल से भरा है। लगातार नीचे उतरते जाना है। इस जंगल में सबसे ज्यादा डर भालू का है। हमने ताल से ही अपने साथ डंडा ले लिया था। डंडे के दो फायदे थे- एक तो जानवरों से रक्षा और तेजी से नीचे उतरने में सहायक। पूरे रास्ते हमें कोई नहीं मिला। 35 मिनट में हम इस जंगल से बाहर निकल गये।
सामने एक गांव दिख रहा है। इसका नाम अभी थोडी देर पहले तो याद था, अब दिमाग से उतर गया है।
यहां माल्टा बहुत होता है। माल्टा संतरे का भाई होता है, रस से भरपूर।
इसी गांव से चौखम्भा पर्वत शिखर के प्रथम दर्शन किये।
सामने नीचे मनसूना गांव दिख रहा है जहां से लगभग साढे चार बजे उनियाना जाने वाली बस मिलेगी। अभी सवा चार बजे हैं। मनसूना तक जाने का रास्ता पक्का पैदल मार्ग है। आराम से पहुंच जायेंगे।
और पहुंच भी गये। उनियाना वाली बस खडी थी। अगर एक मिनट भी लेट हो जाते तो शायद आज उनियाना ना पहुंच पाते। कुछ साल पहले मदमहेश्वर यात्रा मनसूना से शुरू होती थी लेकिन इधर सडक मार्ग का कार्य तेजी से चल रहा है। मनसूना से उनियाना के बीच का रास्ता बेहत खतरनाक है। कहीं-कहीं तो लगता है कि ले भाई, हो गया काम तमाम। हम मैदानी लोगों को लगता है कि सही-सलामत उनियाना पहुंच गये तो पुनर्जन्म हो गया है।
बडे आराम से एक कमरा मिल गया। असल में उनियाना बस अड्डे के पास में ही एक परचून की दुकान है। इसी दुकानदार ने दुकान के नीचे कमरे बना रखे हैं और खाने-पीने का इंतजाम दुकानदार ही करता है।
यह हमारी देवरिया ताल से उनियाना तक की यात्रा का नक्शा है। देवरिया ताल से मनसूना तक पैदल और उसके बाद बस से।अब उनियाना के बाद असली सफर शुरू होगा जिसे भरत कहता है कि तीन दिन लगेंगे। उनियाना से मदमहेश्वर की दूरी 22-23 किलोमीटर है और अब हमें इसे तीन दिन में पैदल नापना है।
अगला भाग: मदमहेश्वर यात्रा - उनियाना से गौंडार
मदमहेश्वर यात्रा
1. मदमहेश्वर यात्रा
2. मदमहेश्वर यात्रा- रुद्रप्रयाग से ऊखीमठ तक
3. ऊखीमठ के पास है देवरिया ताल
4. बद्रीनाथ नहीं, मदमहेश्वर चलो
5. मदमहेश्वर यात्रा- उनियाना से गौंडार
6. मदमहेश्वर यात्रा- गौंडार से मदमहेश्वर
7. मदमहेश्वर में एक अलौकिक अनुभव
8. मदमहेश्वर और बूढा मदमहेश्वर
9. और मदमहेश्वर से वापसी
10. मेरी मदमहेश्वर यात्रा का कुल खर्च
घुमक्कड़ी को हृदय से जी रहे हैं आप।
ReplyDeleteबहुत साहसी हो, वैसे घुमक्कड़ी के लिए सही उम्र भी है।
ReplyDeleteभाई गज़ब करते हो आप...इतने घने जंगल में एक लकड़ी के सहारे...हमारी तो वर्णन पढ़ के ही घिघ्घी बांध गयी...आप लाजवाब हो जी...कसम से...
ReplyDeleteनीरज
माल्टा संतरे का भाई तो
ReplyDeleteमौसम्बी (मौसमी) क्या है
बहन या लुगाई :)
जै रामजी की
भाई नीरज ,जल्दी बद्रीनाथ पहोचो ,सब्र नही हो रहा
ReplyDeleteहै |जय बद्रीविशाल |
जारी रखे हम आपके साथ साथ चल रहे है !
ReplyDeleteलाजवाब
ReplyDeleteलाजवाब
लाजवाब
लाजवाब
ReplyDeleteअरे बाबा हम तो चित्र देख कर ही डर गये जंगल के, कही भाली शालू आ जाता तो तो गये थे ना काम से बाकी यात्रा बहुत अच्छी लगी धन्यवाद
ReplyDeleteनीरज भाई जी आपकी पोस्ट दिल को सकूँ और पकृति के प्रति आपके प्रेम को दर्शाती है ...बाकि जब जंगल में जाना होता है तो थोडा संभल कर जाया करें ऐसे अनुभव मेरे पास बहुत है ...शुक्रिया
ReplyDeleteआपको भी नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें ईश्वर से यही प्रार्थना है की आने वाला वर्ष आपके लिए खूब सारी खुशियाँ लाये ....धन्यवाद
ReplyDeleteमुसाफिर आप हैं और आपके ब्लॉग पर आकर मैं भी मुसाफिर बन जाता हूँ .....अगले वर्ष अब सफ़र साथ - साथ तय करेंगे ...शुक्रिया
ReplyDeleteNAYA SAAL 2011 CARD 4 U
ReplyDelete_________
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please open it
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“LOVE”
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”LIFE”
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“beautifl”
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Yad Rakhna mai ne sub se Pehle ap ko Naya Saal Card k sath Wish ki ha….
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
Neeraj Ji, Namskar, Yatra ka Varan Bahut Sundar Hain......Wish You Happy New Year - 2011..................................
ReplyDeleteबडी रमणीक जगह के दर्शन करवाए नीरज भाई। शुक्रिया।
ReplyDeleteवैसे एक बात पूछूंगा कैसे इतना समय निकाल लेते हो आप।
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साइंस फिक्शन और परीकथा का समुच्चय।
क्या फलों में भी औषधीय गुण होता है?
जबाब नहीं निसंदेह ।
ReplyDeleteयह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है ।
धन्यवाद ।
satguru-satykikhoj.blogspot.com
आपके साथ-साथ हम भी तीर्थों और पहाड़ों की यात्रा कर रहे हैं।
ReplyDeleteचित्र भी बहुत सुंदर हैं।
आभार आपका, नीरज जी।
भाई नीरज ,आपको और आपकी फेमिली को नव -वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए |
ReplyDelete"नव -वर्ष मे हमेशा ये बहार रहे |
मेरी शुभकामना हमेशा ये प्यार रहे |"
http://armaanokidoli.blogspot.com/
ReplyDeleteनीरज सर
ReplyDeleteनमस्कार ...आपसे एक मदद लेनी थी ..15 नवम्बर को अपनी बाइक से delhi से उखीमठ,चोपता ,देवरिया ताल घुमने का प्लान है।
मुझे ये बताये की कौन से रूट से जाना बेहतर रहेगा,हरिद्वार ,ऋषिकेश या फिर कोटद्वार ,पौड़ी वाले रास्ते से?सुबह 6 बजे निकलने
का प्लान है ..उसी दिन क्या रुद्रप्रयाग पहुच जा सकता है शाम तक।।।।?
आप किसी भी रूट से जा सकते हैं, दोनों में कोई ज्यादा फर्क नहीं है।
Deleteदिल्ली से चलकर आप रुद्रप्रयाग तो क्या, ऊखीमठ भी पहुंच जायेंगे।
Aap naksa attach krte h ye but acha h:-)
ReplyDeleteHim jaiso k lite suvidhajanak h. Dhayavad