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17 नवम्बर 2010 की सुबह हम मदमहेश्वर घाटी में उनियाना गांव में थे। मेरे साथ गाइड भरत भी था। यही चाय-परांठे खाये। भरत ने बताया कि इस यात्रा में तीन दिन लगते हैं। भरत के अनुसार कार्यक्रम इस तरह था: आज उनियाना से चलकर गौंडार पार करके नानू चट्टी में रुकना था। कल सुबह नानू से चलकर मदमहेश्वर और बूढा मदमहेश्वर के दर्शन करके ऊपर ही रुकना था। परसों मदमहेश्वर से वापस चलकर शाम तक उनियाना। मैंने उससे दूरी पूछी तो बताया कि उनियाना से दस किलोमीटर दूर गौंडार है और वहां से आगे दस किलोमीटर दूर मदमहेश्वर। यानी कुल बीस किलोमीटर है। मेरे हिसाब से इस बीस किलोमीटर को नापने में दस घण्टे पर्याप्त होंगे। अगर थोडा तेज चले तो शाम छह बजे तक मदमहेश्वर जा पहुंचेंगे। नानू में रुकने की जरुरत ही नहीं है। अभी साढे सात बजे हैं। लेकिन अपने इरादे मैंने भरत को नहीं बताये।
उनियाना से तीन किलोमीटर आगे रांसी गांव है। रांसी तक सडक बन चुकी है। लेकिन रास्ते में एक पुल का पंगा है। जब भी यह पुल बन जायेगा, बसें भी रांसी तक चली जाया करेंगी। सांस्कृतिक रूप से रांसी उनियाना से ज्यादा समृद्ध है। यहां राकेश्वरी देवी का एक मन्दिर है। जब मदमहेश्वर की डोली शीतकाल में ऊखीमठ आती है तो रात्रि विश्राम रांसी में भी होता है।
उनियाना से रांसी मोटर मार्ग
अभी इस पैदल पुल से काम चल रहा है। जब यहां मोटर पुल बन जायेगा, तो बसें रांसी तक जाया करेंगी।
उनियाना गांव
राकेश्वरी मन्दिर, रांसी
हनुमान मन्दिर, रांसी
रांसी काफी खुले भाग में बसा हुआ है। यहां खेती भी बहुत होती है। आजकल चौलाई की फसल हुई है। पीले खेत चौलाई के ही हैं। रांसी से आगे भी सडक का काम चल रहा है। शायद गौंडार तक ले जाने की योजना है। पहाड तोडने का काम जोरों से चल रहा है। गौंडार तक सडक जाने पर मदमहेश्वर पैदल यात्रा दस किलोमीटर की रह जायेगी।
रांसी गांव
यहां फोन नेटवर्क काम नहीं करता है। लेकिन रास्ते में एक जगह ऐसी है कि भरत ने बता दिया कि वहां नेटवर्क आयेगा, फोन फान कर लेना। और वहां पहुंचते ही पूरा नेटवर्क आ गया। मैंने घरवालों को सूचना दे दी कि मैं बद्रीनाथ नहीं जा रहा हूं, बल्कि मदमहेश्वर जा रहा हूं। जैसा भी हूं, ठीक हूं। भरत ने भी अपने घर पर बता दिया कि मैं एक टूरिस्ट को लेकर मदये जा रहा हूं। स्थानीय लोग मदमहेश्वर को मदे या मदये भी कहते हैं।
रांसी से लगभग तीन किलोमीटर चलने के बाद भरत ने सामने नीचे इशारा करके बताया कि वो गौंडार गांव है। यानी अब हमें नीचे उतरना पडेगा। और गौंडार के बाद सामने वाले पहाड पर थोडा सा चढकर ही नानू चट्टी है। हां, एक बात याद आ गई कि भरत ने उस फोन पॉइंट से ही पता लगा लिया था कि नानू चट्टी आजकल बन्द है। बोला कि नानू तो बन्द है, उससे पहले एक चट्टी और है। खटारा चट्टी सॉरी खटरा चट्टी। उसने खटरा में रुकने का कार्यक्रम बना लिया।
चौखम्भा शिखर
सामने नीचे घाटी में गौंडार गांव है। यानी अब नीचे उतरना पडेगा।
डेढ बजे तक गौंडार पहुंच गये। यहां खाने-पीने और ठहरने की अच्छी व्यवस्था है। घण्टे भर तक यही रहे। गौंडार से पहले लगभग दो ढाई किलोमीटर का रास्ता जंगल से होकर है। इस रास्ते में कई शानदार झरने भी मिलते हैं। कई पुल भी हैं। स्थानीय लोग अपनी भेडों को लेकर घूमते रहते हैं।
गौंडार में अच्छी धूप खिली हुई थी। चाय और मैगी का हल्का नाश्ता करके हम फिर चल पडे। दोपहर बारह बजे नाश्ता। गौंडार वालों ने खूब कहा कि आज रात यही रुक जाओ। हमने उन्हें वापसी में रुकने की दिलासा दी और खटरा के लिये चल पडे।
यह चित्र देखिये। इसे मैं अपनी इस यात्रा का सर्वोत्तम चित्र मानता हूं।
अगला भाग: मदमहेश्वर यात्रा - गौंडार से मदमहेश्वर
मदमहेश्वर यात्रा
1. मदमहेश्वर यात्रा
2. मदमहेश्वर यात्रा- रुद्रप्रयाग से ऊखीमठ तक
3. ऊखीमठ के पास है देवरिया ताल
4. बद्रीनाथ नहीं, मदमहेश्वर चलो
5. मदमहेश्वर यात्रा- उनियाना से गौंडार
6. मदमहेश्वर यात्रा- गौंडार से मदमहेश्वर
7. मदमहेश्वर में एक अलौकिक अनुभव
8. मदमहेश्वर और बूढा मदमहेश्वर
9. और मदमहेश्वर से वापसी
10. मेरी मदमहेश्वर यात्रा का कुल खर्च
आपके कई चित्र तो सिरहन उत्पन्न कर देते हैं।
ReplyDeleteनीरज ,बड़े दिनों बाद दिखाई दिए---आपकी पोस्ट का तो इन्तजार रहता है --धुमक्कड़ी मुझमे भी बहुत है अब ये आपके जरिए पूरी हो रही है --सुन्दर तस्वीरे ,पहाड़ो को देखना कितना सुकून देता है --लाजबाब |
ReplyDeleteयात्रा करनी तो दूर मुझे तो चित्र देख कर ही डर लगने लगा है। शुभकामनायें।
ReplyDeleteआपकी यात्रा का हर चित्र सर्वोत्तम होता है इसीलिए तो खिंचे चले आते है आपकी पोस्ट पर...क्या कमाल के घुमक्कड़ हैं आप...गज़ब...पूरे ब्लॉग जगत को आपकी दिलेरी और घुमक्कड़ी पर गर्व है...चलते रहो...
ReplyDeleteनीरज
सभी फोटो अच्छे हैं
ReplyDeleteहाँ आपके नेचर, नाम और घुमक्कडी के हिसाब से यह चित्र सचमुच सर्वोतम का दर्जा पाने लायक है।
प्रणाम
आपके साथ घूमने का मन था, लेकिन अब डरने लगा हूँ। :)
ReplyDeleteप्रणाम
ReplyDeleteनीरज यार ...
किसी दिन यह समझाओ कि समय, छुट्टी कैसे निकलते हो घूमने के लिए ?? यह बेहद उपयोगी होगा !
नहीं तो हमें तो यह लगता है चौधरी घर पर बैठ , इन्टरनेट पर ढूंढ कर कापी पेस्ट कर घुमक्कड़ लेखक बना गया है ...वैसे भी जाटों का भरोसा कोई नहीं :-)
सभी फोटो अच्छे हैं
ReplyDeleteइस जीवंत यात्रा वृत्तांत को पढकर मजा आ गया।
ReplyDelete---------
सांपों को दुध पिलाना पुण्य का काम है?
मुझे तो जलन होने लगी नीरज भाई तेरे से, कितना घुमता हे , ओर हम सिर्फ़ तुझे पढ कर ्खुश हो जाते हे, सच मे बहुत सुंदर सुंदर जगह पर घुमते हो, ओर अच्छे अच्छॆ लोगो से मिलते हो, चलिये अगली बार बनायेगे आप के संग कोई परोगराम, अब राम राम, प के नीचे अब खुद ही र लगा लेना
ReplyDeleteआप और आपकी घुमक्कडी दोनों ही जिंदाबाद. अफ़सोस है कि नेटवर्क के असहयोग की वजह से तसवीरें पूरी न देख पाया. फिर कोशिश करूँगा. या आपके घर ही आकर देख लूँ, क्यों !
ReplyDeleteआप और आपकी घुमक्कडी दोनों ही जिंदाबाद. अफ़सोस है कि नेटवर्क के असहयोग की वजह से तसवीरें पूरी न देख पाया. फिर कोशिश करूँगा. या आपके घर ही आकर देख लूँ, क्यों !
ReplyDeleteneeraj bhai, guru ban jao hamare.main naujawani rehte wadiyon me dubki laga loon. apki agli yatra ke liye subhkamnaye.
ReplyDeleteReally ye aapki ki yatra car sarvottam chitra hi
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