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17 नवम्बर 2010 शाम को मैं और मेरा गाइड भरत उनियाना से चलकर मदमहेश्वर पहुंच गये। इस बीस किलोमीटर की दूरी को हमने पैदल साढे दस घण्टे में तय कर लिया था। जब हम मदमहेश्वर पहुंचे तो दिन छिपने लगा था। कमरा लेकर मैं रजाई में बैठकर चाय पीने लगा तो भरत एक आदमी को लेकर आया कि ये हाई एल्टीट्यूड ट्रेकिंग गाइड हैं। नाम मेरे दिमाग से उतर गया है। वह गौंडार का ही रहने वाला था और आजकल मन्दिर में सफाई धुलाई का काम करता था। मैंने उससे पूछा कि यहां आसपास कोई शानदार ट्रेकिंग रूट है जहां से हम कल सुबह चलकर शाम तक वापस आ सकें।
बोला कि हां, आगे ऊपर पहाडों में एक के बाद एक कई जगहें हैं- सबसे पहले कांचली ताल है, फिर पांडु सेरा है, फिर ये है फिर वो है। कांचली ताल से आप एक दिन में वापस आ सकते हैं लेकिन आपको लंच के लिये खाना पैक करके ले जाना पडेगा। पांडु सेरा के लिये दो दिन लगेंगे। रात को ऊपर रुकने के लिये टेंट और खाना बनाने का सामान ले जाना पडेगा। पांडु सेरा में पांडवों के हथियार रखे हैं। जब वे हिमालय के लिये निकले थे तो उन्होंने वहां पर अपने हथियार छोड दिये थे। मैंने कहा कि कल कांचली ताल चलते हैं। भरत, खाने वाले को बोल देना कि सुबह छह बजे तक हमें आलू के परांठे पैक करके दे दे। सुबह जल्दी निकलेंगे।
अगर मैं यूं कहूं कि हम वहां एक होटल में ठहरे थे तो इन लोगों की बेइज्जती ही मानी जायेगी। हालांकि वहां कोई घर नहीं है, दो-तीन होटल ही हैं फिर भी इन्हें मैं घर ही कहना चाहूंगा। इनमें से एक बन्दा खाना बनाता है, उसे रसोइया कहा जा सकता है। हमारी बात चल ही रही थी कि रसोइया बिना कहे दूसरी चाय ले आया। और साथ ही कह गया कि मैं अभी गरम पानी लेकर आ रहा हूं, आप मुंह-हाथ धोकर फ्रेश हो जाना। फिर खाना ले आऊंगा। तभी हमने उससे बता दिया कि हम कल सुबह कांचली ताल के लिये निकलेंगे। बिना बताये ही बोला कि हां, ठीक है। मैं परांठे पैक करके दे दूंगा। सादे बनाऊं या आलू के? मैंने कहा कि आलू के। थोडी देर में वो गरम पानी रख गया।
वो ट्रेकिंग गाइड समझाने लगा कि अभी बरफ पडने के कोई आसार नहीं हैं। हालांकि अब आपको ब्रह्मकमल तो नहीं मिलेगा लेकिन यह भी सही समय है कांचली ताल जाने का। रास्ता भी ठीक-ठाक है। ज्यादा घास नहीं है। यहां से सामने ऊपर एक दर्रा दिखता है। जितना दूर यहां से दर्रा है, ताल उतना ही उससे आगे है। भरत ने उसके आगे मेरी तारीफ की कि यह बन्दा काफी तेज चलता है। फिर तो ट्रेकिंग गाइड हौसला आफजाई में जुट गया कि अगले साल अगस्त सितम्बर में आना। हम यहां से ट्रेकर्स को लेकर जाते हैं। ऊपर बहुत दूर-दूर तक जाते हैं। एक रास्ता तो कल्पेश्वर भी जाता है। कल्पेश्वर बद्रीनाथ के पास है। आखिर में सभी बाहर चले गये। भरत भी चला गया कि मैं खाना लेकर आता हूं।
मैंने सोचा कि चलो, थोडी देर रजाई में मुंह ढककर पडा जाये। लेकिन मुंह ढकते ही दिमाग ठिकाने लग गया। पैरों से बदबू आ रही थी। मैं कल भी लगभग पूरे दिन चला था- देवरिया ताल गया था। आज भी सुबह से ही चल रहा हूं- पसीने से पैरों की ऐसी तैसी हो गई थी। भयंकर बदबू आ रही थी। गरम पानी अभी रखा था। अटैच बाथरूम था। उठा और बाथरूम में चला गया। तभी ठण्ड लगनी शुरू हुई। इसका कारण था कि सुबह से मैं चढाई पर था। पसीना भी आ रहा था- धूप भी थी। कुल मिलाकर चलने के दौरान शरीर गर्म ही बना रहा। इसलिये कुछ पता नहीं चला। जैसे ही यहां आकर आराम किया तो पसीने से गीले कपडों ने शरीर की गर्मी बाहर निकालनी शुरू कर दी। परिणाम- भयंकर ठण्ड। जैसे-तैसे गिरते पडते पैर धोये। और सीधा रजाई में जा घुसा।
अभी पूरी तरह ठण्ड से राहत भी नहीं मिली थी कि कोई कमरे में आया। मुझे क्या? मैं मुंह ढके पडा रहा। उसने कहा कि भाईसाहब, आप कल कांचली ताल जा रहे हैं?
-हां।
-कल मत जाओ। जाना ही है तो अगले साल चले जाना।
मैंने रजाई से मुंह निकाला। अंधेरा था, बाहर से ही हल्का-हल्का उजाला आ रहा था इसलिये उसकी शक्ल नहीं दिखी। मैंने पूछा कि क्यों?
-क्योंकि यहां का ब्रह्मकमल बहुत प्रसिद्ध है। और अगर आप कांचली ताल देखकर भी ब्रह्मकमल नहीं देख पाये तो आपकी यात्रा असफल मानी जायेगी। और इस सीजन में ब्रह्मकमल नहीं होता।
-कोई बात नहीं। मुझे असल में ट्रेकिंग करनी है। ब्रह्मकमल के पीछे नहीं भागना।
-इस मौसम में आपको कोई मिलेगा भी नहीं।
-मैं भरत के साथ जा रहा हूं।
-आप मेरी बात मानिये। यह मौसम वहां जाने का नहीं है। कभी भी कुछ भी हो सकता है। ऊपर से जंगली जानवर भी हैं। पिछले साल भी इन्हीं दिनों में कुछ लोग वहां गये थे। बंगाली थे। हमने खूब मना किया। नहीं माने। खुद को ट्रेकिंग का सर्टिफिकेट धारी बताते थे। वापस आये तो एक लाश को साथ लाये थे। उनका एक बन्दा मर गया था।
मैंने ज्यादा बहस करनी उचित नहीं समझी। आखिर ये लोग यहां के रहने वाले हैं। बहुत कुछ जानते हैं। कह दिया कि ठीक है, नहीं जायेंगे। फिर मुझे ठण्ड भी लग रही थी। सोचा कि यार, कौन उठेगा सुबह-सुबह। आराम से नौ-दस बजे उठेंगे। वो चला गया।
भरत और रसोइया खाना लेकर आये। मैंने बिना कुछ बताये उनसे कहा कि कल हम कांचली ताल नहीं जायेंगे। रसोइये को सुबह लंच बनाने से मना कर दिया।
…
सुबह आठ बजे हम सोकर उठे। बाहर निकले। वो ट्रेकिंग गाइड मिल गया। बोला कि आप गये नहीं कांचली ताल। मैंने उससे रात वाली घटना के बारे में बता दिया कि तुममें से ही कोई आया था। इस तरह कहके गया है। सुबह का समय था। मेरे अलावा सभी लोग लोकल थे और बाहर धूप में बैठे थे। उसने सबसे पूछा कि किसने मना किया है। सभी कहने लगे कि यह समय तो कांचली ताल जाने के लिये एकदम उपयुक्त है। देखो, मौसम भी बिल्कुल साफ है। फिर कौन आ गया आपके साथ? यहां से रात में कोई नीचे भी नहीं गया।
माहौल रहस्यमय होने लगा। कौन था जिसने मुझसे कांचली ताल जाने से मना किया। आखिरकार तय हुआ कि इस बार तो ताल रह गया। अगली बार आयेंगे तो वहां चले जायेंगे। अब बूढा मदमहेश्वर चलते हैं।
17 नवम्बर 2010 शाम को मैं और मेरा गाइड भरत उनियाना से चलकर मदमहेश्वर पहुंच गये। इस बीस किलोमीटर की दूरी को हमने पैदल साढे दस घण्टे में तय कर लिया था। जब हम मदमहेश्वर पहुंचे तो दिन छिपने लगा था। कमरा लेकर मैं रजाई में बैठकर चाय पीने लगा तो भरत एक आदमी को लेकर आया कि ये हाई एल्टीट्यूड ट्रेकिंग गाइड हैं। नाम मेरे दिमाग से उतर गया है। वह गौंडार का ही रहने वाला था और आजकल मन्दिर में सफाई धुलाई का काम करता था। मैंने उससे पूछा कि यहां आसपास कोई शानदार ट्रेकिंग रूट है जहां से हम कल सुबह चलकर शाम तक वापस आ सकें।
बोला कि हां, आगे ऊपर पहाडों में एक के बाद एक कई जगहें हैं- सबसे पहले कांचली ताल है, फिर पांडु सेरा है, फिर ये है फिर वो है। कांचली ताल से आप एक दिन में वापस आ सकते हैं लेकिन आपको लंच के लिये खाना पैक करके ले जाना पडेगा। पांडु सेरा के लिये दो दिन लगेंगे। रात को ऊपर रुकने के लिये टेंट और खाना बनाने का सामान ले जाना पडेगा। पांडु सेरा में पांडवों के हथियार रखे हैं। जब वे हिमालय के लिये निकले थे तो उन्होंने वहां पर अपने हथियार छोड दिये थे। मैंने कहा कि कल कांचली ताल चलते हैं। भरत, खाने वाले को बोल देना कि सुबह छह बजे तक हमें आलू के परांठे पैक करके दे दे। सुबह जल्दी निकलेंगे।
अगर मैं यूं कहूं कि हम वहां एक होटल में ठहरे थे तो इन लोगों की बेइज्जती ही मानी जायेगी। हालांकि वहां कोई घर नहीं है, दो-तीन होटल ही हैं फिर भी इन्हें मैं घर ही कहना चाहूंगा। इनमें से एक बन्दा खाना बनाता है, उसे रसोइया कहा जा सकता है। हमारी बात चल ही रही थी कि रसोइया बिना कहे दूसरी चाय ले आया। और साथ ही कह गया कि मैं अभी गरम पानी लेकर आ रहा हूं, आप मुंह-हाथ धोकर फ्रेश हो जाना। फिर खाना ले आऊंगा। तभी हमने उससे बता दिया कि हम कल सुबह कांचली ताल के लिये निकलेंगे। बिना बताये ही बोला कि हां, ठीक है। मैं परांठे पैक करके दे दूंगा। सादे बनाऊं या आलू के? मैंने कहा कि आलू के। थोडी देर में वो गरम पानी रख गया।
वो ट्रेकिंग गाइड समझाने लगा कि अभी बरफ पडने के कोई आसार नहीं हैं। हालांकि अब आपको ब्रह्मकमल तो नहीं मिलेगा लेकिन यह भी सही समय है कांचली ताल जाने का। रास्ता भी ठीक-ठाक है। ज्यादा घास नहीं है। यहां से सामने ऊपर एक दर्रा दिखता है। जितना दूर यहां से दर्रा है, ताल उतना ही उससे आगे है। भरत ने उसके आगे मेरी तारीफ की कि यह बन्दा काफी तेज चलता है। फिर तो ट्रेकिंग गाइड हौसला आफजाई में जुट गया कि अगले साल अगस्त सितम्बर में आना। हम यहां से ट्रेकर्स को लेकर जाते हैं। ऊपर बहुत दूर-दूर तक जाते हैं। एक रास्ता तो कल्पेश्वर भी जाता है। कल्पेश्वर बद्रीनाथ के पास है। आखिर में सभी बाहर चले गये। भरत भी चला गया कि मैं खाना लेकर आता हूं।
मैंने सोचा कि चलो, थोडी देर रजाई में मुंह ढककर पडा जाये। लेकिन मुंह ढकते ही दिमाग ठिकाने लग गया। पैरों से बदबू आ रही थी। मैं कल भी लगभग पूरे दिन चला था- देवरिया ताल गया था। आज भी सुबह से ही चल रहा हूं- पसीने से पैरों की ऐसी तैसी हो गई थी। भयंकर बदबू आ रही थी। गरम पानी अभी रखा था। अटैच बाथरूम था। उठा और बाथरूम में चला गया। तभी ठण्ड लगनी शुरू हुई। इसका कारण था कि सुबह से मैं चढाई पर था। पसीना भी आ रहा था- धूप भी थी। कुल मिलाकर चलने के दौरान शरीर गर्म ही बना रहा। इसलिये कुछ पता नहीं चला। जैसे ही यहां आकर आराम किया तो पसीने से गीले कपडों ने शरीर की गर्मी बाहर निकालनी शुरू कर दी। परिणाम- भयंकर ठण्ड। जैसे-तैसे गिरते पडते पैर धोये। और सीधा रजाई में जा घुसा।
अभी पूरी तरह ठण्ड से राहत भी नहीं मिली थी कि कोई कमरे में आया। मुझे क्या? मैं मुंह ढके पडा रहा। उसने कहा कि भाईसाहब, आप कल कांचली ताल जा रहे हैं?
-हां।
-कल मत जाओ। जाना ही है तो अगले साल चले जाना।
मैंने रजाई से मुंह निकाला। अंधेरा था, बाहर से ही हल्का-हल्का उजाला आ रहा था इसलिये उसकी शक्ल नहीं दिखी। मैंने पूछा कि क्यों?
-क्योंकि यहां का ब्रह्मकमल बहुत प्रसिद्ध है। और अगर आप कांचली ताल देखकर भी ब्रह्मकमल नहीं देख पाये तो आपकी यात्रा असफल मानी जायेगी। और इस सीजन में ब्रह्मकमल नहीं होता।
-कोई बात नहीं। मुझे असल में ट्रेकिंग करनी है। ब्रह्मकमल के पीछे नहीं भागना।
-इस मौसम में आपको कोई मिलेगा भी नहीं।
-मैं भरत के साथ जा रहा हूं।
-आप मेरी बात मानिये। यह मौसम वहां जाने का नहीं है। कभी भी कुछ भी हो सकता है। ऊपर से जंगली जानवर भी हैं। पिछले साल भी इन्हीं दिनों में कुछ लोग वहां गये थे। बंगाली थे। हमने खूब मना किया। नहीं माने। खुद को ट्रेकिंग का सर्टिफिकेट धारी बताते थे। वापस आये तो एक लाश को साथ लाये थे। उनका एक बन्दा मर गया था।
मैंने ज्यादा बहस करनी उचित नहीं समझी। आखिर ये लोग यहां के रहने वाले हैं। बहुत कुछ जानते हैं। कह दिया कि ठीक है, नहीं जायेंगे। फिर मुझे ठण्ड भी लग रही थी। सोचा कि यार, कौन उठेगा सुबह-सुबह। आराम से नौ-दस बजे उठेंगे। वो चला गया।
भरत और रसोइया खाना लेकर आये। मैंने बिना कुछ बताये उनसे कहा कि कल हम कांचली ताल नहीं जायेंगे। रसोइये को सुबह लंच बनाने से मना कर दिया।
…
सुबह आठ बजे हम सोकर उठे। बाहर निकले। वो ट्रेकिंग गाइड मिल गया। बोला कि आप गये नहीं कांचली ताल। मैंने उससे रात वाली घटना के बारे में बता दिया कि तुममें से ही कोई आया था। इस तरह कहके गया है। सुबह का समय था। मेरे अलावा सभी लोग लोकल थे और बाहर धूप में बैठे थे। उसने सबसे पूछा कि किसने मना किया है। सभी कहने लगे कि यह समय तो कांचली ताल जाने के लिये एकदम उपयुक्त है। देखो, मौसम भी बिल्कुल साफ है। फिर कौन आ गया आपके साथ? यहां से रात में कोई नीचे भी नहीं गया।
माहौल रहस्यमय होने लगा। कौन था जिसने मुझसे कांचली ताल जाने से मना किया। आखिरकार तय हुआ कि इस बार तो ताल रह गया। अगली बार आयेंगे तो वहां चले जायेंगे। अब बूढा मदमहेश्वर चलते हैं।
मन्दिर के शिखर के ठीक पीछे एक दर्रा दिख रहा है। उसी के पार कांचली ताल है। कहते हैं कि यहां से जितना दूर वो दर्रा है, उतना ही आगे ताल है। यानी दर्रा बीच में है। समय है- 08:17 AM। इस समय मौसम बिल्कुल साफ है।
हम बूढा मदमहेश्वर जा रहे हैं। दाहिने से दूसरी और तीसरी चोटी के बीच में वो दर्रा दिख रहा है। समय है- 08:51 हल्के बादल आने शुरू होने लगे हैं।
ठीक दस मिनट बाद। सबसे बायें चौखम्बा शिखर दिख रहा है और दाहिने वही दर्रा। बादल और घने होने लगे हैं। अगर हम सुबह छह बजे कांचली ताल के लिये निकलते तो इस समय तक दर्रा पार कर रहे होते। हालांकि इस समय भी दर्रा स्पष्ट दिख रहा है तो हम उसे पार करके आगे निकल गये होते। दर्रा पार करने के बाद नीचे उतरना होता है तो जाहिर सी बात है कि हमारी चलने की स्पीड तेज हो जाती।
दस मिनट बाद। इस फोटो में दर्रा बायी ओर है। बादल और बढने लगे हैं।
भरत के सिर के ठीक पीछे दर्रा दिख रहा है।
दर्रा बिल्कुल बीच में है। साढे नौ बजे का समय है। हम दर्रे को काफी पहले ही पार कर चुके होते। उधर घाटी होने के कारण बादलों का घनत्व ज्यादा होने के कारण और कोई पक्का रास्ता भी ना होने के कारण हम भटकने की कगार पर पहुंच गये होते। लेकिन ताल देखने की जबर्दस्त इच्छा थी इसलिये चलते ही रहते।
यह दर्रा नहीं है। घण्टे भर में ही पूरी घाटी बादलों के आगोश में आने लगी थी। शाम होने तक जहां हम इस समय खडे हैं, यहां भी बादल ही बादल हो गये थे। और सुबह तक बर्फबारी। दर्रे पर दसियों फुट बरफ पड चुकी थी।
अब आप बताइये कि हमें कांचली ताल जाने से रोकने वाला कौन था।
अगला भाग: मदमहेश्वर और बूढ़ा मदमहेश्वर
मदमहेश्वर यात्रा
1. मदमहेश्वर यात्रा
2. मदमहेश्वर यात्रा- रुद्रप्रयाग से ऊखीमठ तक
3. ऊखीमठ के पास है देवरिया ताल
4. बद्रीनाथ नहीं, मदमहेश्वर चलो
5. मदमहेश्वर यात्रा- उनियाना से गौंडार
6. मदमहेश्वर यात्रा- गौंडार से मदमहेश्वर
7. मदमहेश्वर में एक अलौकिक अनुभव
8. मदमहेश्वर और बूढा मदमहेश्वर
9. और मदमहेश्वर से वापसी
10. मेरी मदमहेश्वर यात्रा का कुल खर्च
ये तो रहस्यमयी यात्रा हो गयी...लगता है खुद इश्वर ने आपकी मदद की...दिलेरों की बड़ी इज्ज़त करता है इश्वर...फोटो हमेशा की तरह कमाल के हैं...
ReplyDeleteनीरज
मदमहेश्वर ही होंगे :)
ReplyDeleteमुझे तो लगता है कि भरत ही होगा।
प्रणाम
Wah !
ReplyDeleteअद्भुत
ReplyDeleteअरे नीरज भाई वो रोकने वाला ओर कोई नही तुम्हारी अंतरात्मा ही थी, जब तुम लेटे तो आंक लग गई, ओर फ़िर तुम्हे कुछ ख्याल आया उस ख्याल मे लगा कोई तुमे रोक रहा हे, जिसे सीधे साधे शव्दो मे पुर्वआभाष कह सकते हे,
ReplyDeleteइस बार तो पोस्ट रहस्यमय भी हो गई आपकी ! कई बार यात्राओं का टल जाना भी अच्छा ही होता है. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteपहले तो बादलो को देखकर 'डाल्होजी' की याद आगई--? फिर इतने भयंकर बादलो से मन परेशांन हो गया | धुमक्कड़ी तुम्हारा शोक है , मृत्यु नही ? अच्छा हे जो नही गए ,जान हे तो जहाँ हे --शुभ यात्रा ! वेसे मेरा भी यही ख्याल है की वो अनजान आदमी तुम्हारी आत्मा की ही आवाज थी |
ReplyDeleteरहस्य का उद्घाटन आप ही करें। कोई आकर सचेत कर गया।
ReplyDeleteBhagwan hi the, aur jo hota hai wo acche ki liye hota hai
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