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उस दिन दोपहर बारह बजे हम मदमहेश्वर यात्रा के लिये गौंडार गांव से रवाना हुए। भरत के मुताबिक हमें तीन किलोमीटर आगे खटरा चट्टी में रुकना था। तीन किलोमीटर का मतलब था कि हमें डेढ घण्टा लगेगा। यानी डेढ बजे तक वहां पहुंचेंगे। खैर, गौंडार से आधा किलोमीटर आगे एक पुल आता है। पुल के पास में ही दो नदियां मिलती हैं। इनमें से एक नदी तो मदमहेश्वर से आने वाली मधु गंगा है और दूसरी चौखम्बा से आने वाली मोरखण्डा है। मोरखण्डा नदी के ऊपर पुल बना है। मधु गंगा पहले भी हमारे दाहिने ओर थी, अब भी दाहिने ओर ही है।
पुल पार करते ही बनतोली चट्टी है। यहां एक लॉज भी है। सीजन समाप्ति की ओर होने के कारण यह आजकल बन्द है। वैसे एक-दो घर और भी हैं। ये घर गौंडार के निवासियों के ही हैं, जिन्होनें यात्रियों के लिये यहां भी झौंपडियां डाल रखी हैं। मदमहेश्वर यात्रा में गौंडार वालों की ही तूती बोलती है। इनका ही प्रभुत्व है। आगे खटरा चट्टी, नानू चट्टी और कुन चट्टी भी गौंडार वालों की ही हैं। और तो और, मदमहेश्वर भी गौंडार वालों का ही है। कैसे? आगे बताऊंगा।
मदमहेश्वर यात्रा की असली चढाई यहां से शुरू होती है। लगभग 9 किलोमीटर का यह रास्ता सीधी खडी चढाई वाला ही है। यह रास्ता अमरनाथ वाली पिस्सूटॉप की चढाई के जैसा ही है। लेकिन जहां पिस्सूटॉप का मात्र तीन किलोमीटर का रास्ता है, वही यह उससे तीन गुना ज्यादा है। रास्ते में स्थानीय लोग अपनी भेडों को लेकर घूमते मिलते रहते हैं।
सवा बजे तक हम खटरा चट्टी पहुंच गये। यहां कुछ कच्चे घर हैं। इन्हीं में यात्रियों के ठहरने का बढिया इंतजाम कर रखा है। यही पर वन विभाग वालों की एक चेक-पोस्ट भी है। यात्रा सीजन में इस चेक-पोस्ट में कोई नहीं रहता लेकिन यात्रा खत्म होते ही वन अधिकारी यहां डेरा जमा लेते हैं। इसका कारण यह है कि कपाट बन्द होने के बाद बिना जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति के आगे कोई नहीं जा सकता। कहते हैं कि मदमहेश्वर मन्दिर में कभी ऑफ सीजन में चोरी हो गई थी। उसका कारण पर्यटकों के साथ-साथ स्थानीय निवासी भी थे। तब से प्रशासन ने ऑफ सीजन में मदमहेश्वर यात्रा करने की सख्ती से मनाही कर रखी है।
खटरा चट्टी में हम फतेह सिंह के घर पर पहुंचे। फतेह सिंह भरत का जानकार था इसलिये भरत रास्ते भर मुझसे खटरा में रुकने का आग्रह करता आ रहा था। अभी तक मैंने भी उसका आग्रह टाला नहीं था। यहां पहुंचकर मैंने भरत को बताया कि अभी यात्रा सात किलोमीटर की और रह गई है। यानी अब साढे तीन घण्टे और लगेंगे। अगर हम यहां से दो बजे भी चलेंगे तो साढे पांच बजे तक आराम से मदमहेश्वर पहुंच जायेंगे। साढे पांच बजे तक तो दिन भी नहीं छिपता। भरत कहने लगा कि नहीं, आज खटरा में ही रुकने में भलाई है। साढे पांच का तो आपका अंदाजा ही है। असल में कम से कम सात बज जायेंगे। मैंने कहा कि यार, ये बता, तू कल से मेरी चलने की स्पीड देख रहा है। अभी तक तू मुझे पहचान ही नहीं पाया। सात किलोमीटर की दूरी में साढे तीन घण्टे से ज्यादा नहीं लगेंगे।
बोला कि आगे और भी भयानक चढाई है। वो देखो, वो चोटी दिख रही है? वो बूढा मदमहेश्वर है। उसके उस पार मदमहेश्वर है। हमें पहले मदमहेश्वर जाना है। इसके लिये चोटी के बिल्कुल नीचे दाहिने से घूमकर रास्ता जाता है। और उस रास्ते में भयानक जंगल भी है। अगर जंगल तक पहुंचने में हमें अंधेरा हो गया तो हम जरा भी नहीं चल पायेंगे।
मैंने कहा कि हां, चोटी मुझे भी दिख रही है और चोटी के नीचे जंगल भी दिख रहा है। अगर मदमहेश्वर सात किलोमीटर है तो वो जंगल यहां से पांच किलोमीटर ही होना चाहिये। बोल हां।
हां।
और जंगल से पहले पांच किलोमीटर को नापने में हमें ढाई घण्टे से ज्यादा नहीं लगेंगे। इस पांच किलोमीटर की चढाई कैसी है, मुझे वो भी दिख रही है।
हां।
आगे बचे दो किलोमीटर। वे दो किलोमीटर हमें जंगल के बीच से चलकर निकालने हैं। मुख्य बात ये है कि हमें सीधे चोटी पर नहीं चढना है। अभी तुमने ही कहा था कि उस चोटी के नीचे से जहां जंगल शुरू होता है, वहां से रास्ता दाहिने घूम जाता है और इस पहाड का चक्कर काटकर उस तरफ चला जाता है। बोल हां।
हां।
यानी जंगल के रास्ते का मुख्य मकसद हमें पहाड के उस तरफ ले जाने का है ना कि चोटी पर चढाने का। इसका मतलब यह है कि जो दो किलोमीटर जंगल से होकर जाना है उसमें चढाई बिल्कुल भी नहीं है। अगर है भी तो थोडी बहुत ही होगी।
ठीक है तो जैसी आपकी मर्जी। लेकिन ये याद रखना कि हम मदमहेश्वर सात बजे से पहले नहीं पहुंच पायेंगे।
खटरा चट्टी में हमने सेवईं खाई। रुकना तो था नहीं। दो बजे यहां से चल पडे। लगभग एक किलोमीटर के बाद नानू चट्टी है। यह बन्द थी। हां, खटरा से हमने अपने साथ डंडे भी ले लिये थे। आखिर चढाई भरा रास्ता है। फिर जंगली जानवरों का भी डर होता है। भरत ने टॉर्च ले ली थी। भरत को डर था कि जंगल तक पहुंचने में अंधेरा हो जायेगा और हमें कुछ नहीं दिखेगा।
पौने पांच बजे हमने जंगल की सीमा में प्रवेश कर लिया। अभी दिन नहीं छिपा था इसलिये काफी उजाला था। साढे पांच बजे तक हम सही-सलामत मदमहेश्वर पहुंच गये। यहां जाकर मन्दिर कमेटी का एक कमरा लिया। उस दिन मदमहेश्वर में मैं अकेला ‘टूरिस्ट’ था। बाकी सभी लोकल।
पुल पार करते ही बनतोली चट्टी है। यहां एक लॉज भी है। सीजन समाप्ति की ओर होने के कारण यह आजकल बन्द है। वैसे एक-दो घर और भी हैं। ये घर गौंडार के निवासियों के ही हैं, जिन्होनें यात्रियों के लिये यहां भी झौंपडियां डाल रखी हैं। मदमहेश्वर यात्रा में गौंडार वालों की ही तूती बोलती है। इनका ही प्रभुत्व है। आगे खटरा चट्टी, नानू चट्टी और कुन चट्टी भी गौंडार वालों की ही हैं। और तो और, मदमहेश्वर भी गौंडार वालों का ही है। कैसे? आगे बताऊंगा।
मदमहेश्वर यात्रा की असली चढाई यहां से शुरू होती है। लगभग 9 किलोमीटर का यह रास्ता सीधी खडी चढाई वाला ही है। यह रास्ता अमरनाथ वाली पिस्सूटॉप की चढाई के जैसा ही है। लेकिन जहां पिस्सूटॉप का मात्र तीन किलोमीटर का रास्ता है, वही यह उससे तीन गुना ज्यादा है। रास्ते में स्थानीय लोग अपनी भेडों को लेकर घूमते मिलते रहते हैं।
सवा बजे तक हम खटरा चट्टी पहुंच गये। यहां कुछ कच्चे घर हैं। इन्हीं में यात्रियों के ठहरने का बढिया इंतजाम कर रखा है। यही पर वन विभाग वालों की एक चेक-पोस्ट भी है। यात्रा सीजन में इस चेक-पोस्ट में कोई नहीं रहता लेकिन यात्रा खत्म होते ही वन अधिकारी यहां डेरा जमा लेते हैं। इसका कारण यह है कि कपाट बन्द होने के बाद बिना जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति के आगे कोई नहीं जा सकता। कहते हैं कि मदमहेश्वर मन्दिर में कभी ऑफ सीजन में चोरी हो गई थी। उसका कारण पर्यटकों के साथ-साथ स्थानीय निवासी भी थे। तब से प्रशासन ने ऑफ सीजन में मदमहेश्वर यात्रा करने की सख्ती से मनाही कर रखी है।
खटरा चट्टी में हम फतेह सिंह के घर पर पहुंचे। फतेह सिंह भरत का जानकार था इसलिये भरत रास्ते भर मुझसे खटरा में रुकने का आग्रह करता आ रहा था। अभी तक मैंने भी उसका आग्रह टाला नहीं था। यहां पहुंचकर मैंने भरत को बताया कि अभी यात्रा सात किलोमीटर की और रह गई है। यानी अब साढे तीन घण्टे और लगेंगे। अगर हम यहां से दो बजे भी चलेंगे तो साढे पांच बजे तक आराम से मदमहेश्वर पहुंच जायेंगे। साढे पांच बजे तक तो दिन भी नहीं छिपता। भरत कहने लगा कि नहीं, आज खटरा में ही रुकने में भलाई है। साढे पांच का तो आपका अंदाजा ही है। असल में कम से कम सात बज जायेंगे। मैंने कहा कि यार, ये बता, तू कल से मेरी चलने की स्पीड देख रहा है। अभी तक तू मुझे पहचान ही नहीं पाया। सात किलोमीटर की दूरी में साढे तीन घण्टे से ज्यादा नहीं लगेंगे।
बोला कि आगे और भी भयानक चढाई है। वो देखो, वो चोटी दिख रही है? वो बूढा मदमहेश्वर है। उसके उस पार मदमहेश्वर है। हमें पहले मदमहेश्वर जाना है। इसके लिये चोटी के बिल्कुल नीचे दाहिने से घूमकर रास्ता जाता है। और उस रास्ते में भयानक जंगल भी है। अगर जंगल तक पहुंचने में हमें अंधेरा हो गया तो हम जरा भी नहीं चल पायेंगे।
मैंने कहा कि हां, चोटी मुझे भी दिख रही है और चोटी के नीचे जंगल भी दिख रहा है। अगर मदमहेश्वर सात किलोमीटर है तो वो जंगल यहां से पांच किलोमीटर ही होना चाहिये। बोल हां।
हां।
और जंगल से पहले पांच किलोमीटर को नापने में हमें ढाई घण्टे से ज्यादा नहीं लगेंगे। इस पांच किलोमीटर की चढाई कैसी है, मुझे वो भी दिख रही है।
हां।
आगे बचे दो किलोमीटर। वे दो किलोमीटर हमें जंगल के बीच से चलकर निकालने हैं। मुख्य बात ये है कि हमें सीधे चोटी पर नहीं चढना है। अभी तुमने ही कहा था कि उस चोटी के नीचे से जहां जंगल शुरू होता है, वहां से रास्ता दाहिने घूम जाता है और इस पहाड का चक्कर काटकर उस तरफ चला जाता है। बोल हां।
हां।
यानी जंगल के रास्ते का मुख्य मकसद हमें पहाड के उस तरफ ले जाने का है ना कि चोटी पर चढाने का। इसका मतलब यह है कि जो दो किलोमीटर जंगल से होकर जाना है उसमें चढाई बिल्कुल भी नहीं है। अगर है भी तो थोडी बहुत ही होगी।
ठीक है तो जैसी आपकी मर्जी। लेकिन ये याद रखना कि हम मदमहेश्वर सात बजे से पहले नहीं पहुंच पायेंगे।
खटरा चट्टी में हमने सेवईं खाई। रुकना तो था नहीं। दो बजे यहां से चल पडे। लगभग एक किलोमीटर के बाद नानू चट्टी है। यह बन्द थी। हां, खटरा से हमने अपने साथ डंडे भी ले लिये थे। आखिर चढाई भरा रास्ता है। फिर जंगली जानवरों का भी डर होता है। भरत ने टॉर्च ले ली थी। भरत को डर था कि जंगल तक पहुंचने में अंधेरा हो जायेगा और हमें कुछ नहीं दिखेगा।
पौने पांच बजे हमने जंगल की सीमा में प्रवेश कर लिया। अभी दिन नहीं छिपा था इसलिये काफी उजाला था। साढे पांच बजे तक हम सही-सलामत मदमहेश्वर पहुंच गये। यहां जाकर मन्दिर कमेटी का एक कमरा लिया। उस दिन मदमहेश्वर में मैं अकेला ‘टूरिस्ट’ था। बाकी सभी लोकल।
यहां एक रोचक घटना घटी। जब हम इस पुल को पार कर रहे थे, तभी उस तरफ से काफी सारी भेडें आ गईं। पुल पार करके उस तरफ काफी दूर तक रास्ता संकरा और ऊंचा है। हमें देखकर भेडें रुक गईं और वापस मुडने लगीं। भगदड मचनी शु्रू हो गई। तब हम पीछे हटे। इसके बाद सब भेडों ने बडी तेजी से पुल पार किया।
कुछ ऊपर से वही पुल ऐसा दिखता है।
बनतोली चट्टी
यह है खटरा चट्टी में फतेह सिंह का घर
हमने पूछा कि दूध है? बोला कि हाँ है। ठीक है, सेवईं बना दो। सेवईं का निर्माण कार्य चल रहा है। साथ में है फतेह सिंह की घरवाली।
भरत समझा रहा है कि उस चोटी के परली तरफ मंदिर है
नानू चट्टी
कुन चट्टी
अगला भाग: मदमहेश्वर में एक अलौकिक अनुभव
अगला भाग: मदमहेश्वर में एक अलौकिक अनुभव
मदमहेश्वर यात्रा
6. मदमहेश्वर यात्रा- गौंडार से मदमहेश्वर
भाई नीरजजी,होसले की दाद देनी पड़ेगी--क्या सुन्दर जगह धुमाया हे--भरत तो आपको कभी भूल नही पाएगा --सोचेगा--'मिला था कोई जाट'| तस्वीरे देखकर दिल सहम जाता है ---?
ReplyDeleteजिन जगहों की फोटो देख कर इतना रोमांच हो रहा है वहां पहुँच कर कितना आनद आता होगा ये बात समझी जा सकती है...आपकी दिलेरी और घुमक्कड़ी दोनों को सलाम...आप ब्लॉग जगत के सलमान खान हैं....याने दबंग...तभी तो भरत के कहने में नहीं आते बल्कि उसे अपने कहने में चलाते हो...
ReplyDeleteनीरज
YES
ReplyDeleteNEERAJ JI
NE KAHA HAI JAAT BHAI ...IS BLOG JAHAT KE DABANG HAI...
GHUMAKADI ME UNKA KOI SANI NAHI
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteआपकी घुमक्कडी और पोस्ट पर क्या टिप्पणी करूं शब्द चुक गये हैं जी अब तो
ReplyDeleteबस इतना ही कि
जय मद महेश्वर
जय घुमक्कडी
जय मुसाफिर जाटजी
भाई आप तो भरत के भी उस्ताद निकले, सभी चित्र बहुत सुंदर दिखे, वेसे एक बात हे यह पहाडी भेडे शहरी आदमी से ज्यादा समझदार निकली, जेसा की आप ने कहा सामने से आप को देख कर वापिस मुडने लगी, ओर जब आप ने रास्ता दिया तो जल्दी से निकल गई,क्या दिल्ली या अन्य शहरो मे भी हम लोग सामने वाले ओर रास्ता देते हे या उन के लिये रास्ता छोडते हे? नही ना
ReplyDeleteराम राम
आपको गाईड की जरुरत है भी क्या ! उससे बेहतर आकलन तो आपका ही है.घुम्मकड़ी मुबारक.
ReplyDeleteअकेला पर्यटक होने का नशा अलग ही है, सारे के सारे चित्र यात्रा की पर्तें खोलते हुये।
ReplyDeleteसुंदर तस्वीरें, मदमहेश्वर तो लाजवाब है.
ReplyDeleteवाह भाई, आपने तो गाइड को भी सही गाइड कर दिया। प्रभु, चरण कहॉं हैं आपके?
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