Skip to main content

मदमहेश्वर यात्रा- रुद्रप्रयाग से ऊखीमठ तक

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें
16 नवम्बर 2010 की सुबह थी। मैं उस सुबह रुद्रप्रयाग में था। बद्रीनाथ जा रहा था, चलते-चलते मतलब जाते-जाते अंधेरा हो गया तो रुद्रप्रयाग में ही रुक गया। अब सोचा कि अगर सुबह-सुबह इस समय हरिद्वार से चलते तो शाम होने तक बद्रीनाथ जा पहुंचते। बद्रीनाथ ना भी पहुंचते तो जोशीमठ तो पहुंच ही जाते। यानी यहां से अगर दोपहर बाद भी चलेंगे तब भी शाम होने तक आराम से जोशीमठ तक पहुंच जायेंगे। देवप्रयाग तो पीछे छूट गया, रुद्रप्रयाग में मैं इस समय हूं, आगे तीन प्रयाग और हैं। धीरे-धीरे तीनों के दर्शन करते चलते हैं।
फिर सोचा कि नहीं, पहले ऊखीमठ चलते हैं। केदारनाथ के कपाट बन्द हो गये हैं। केदार बाबा की पूजा जाडों भर ऊखीमठ में होती है। ऊखीमठ से एक रास्ता गोपेश्वर और आगे चमोली तक चला जाता है। उसी गोपेश्वर मार्ग पर एक जगह है- चोपता। यहां से तीन-चार किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद तुंगनाथ आता है। तुंगनाथ से भी आगे चंद्रशिला है। मैं आज शाम तक तुंगनाथ घूमकर गोपेश्वर तक जा सकता हूं। गोपेश्वर या चमोली में रात बिताकर कल बडे आराम से जोशीमठ चला जाऊंगा। प्रयागों में घूमने से अच्छा है कि चोपता तुंगनाथ घूमा जाये।
इस सोच को तुरंत अंजाम दिया गया। बस अड्डे के पास से पहली जीप मिली गुप्तकाशी की। बैठ गये इसमें और कुण्ड जा उतरे। मंदाकिनी नदी है ना? केदारनाथ से आती है। मंदाकिनी के दाहिने किनारे गुप्तकाशी बसा है और बायें किनारे गुप्तकाशी के सामने ऊखीमठ। रुद्रप्रयाग से कुण्ड तक एक ही सडक आती है, फिर इसके बाद दो सडकें हो जाती हैं- एक गुप्तकाशी और दूसरी ऊखीमठ।
ऊखीमठ पहुंच गया। साढे आठ बज गये थे। गुप्तकाशी और ऊखीमठ काफी बडे कस्बे हैं। फिर पांच केदारों में से दो केदार यानी केदारनाथ और मदमहेश्वर की डोली शीतकाल में ऊखीमठ में ही आती है। उधर गोपेश्वर चमोली जिले का हेडक्वार्टर है। ऊखीमठ से गोपेश्वर की दूरी लगभग 75 किलोमीटर है। यह सब सोचने के बाद पूरा विश्वास हो गया कि ऊखीमठ-गोपेश्वर मार्ग पर गाडियों की आवाजाही लगी रहती होगी। बडे आराम से चोपता-तुंगनाथ कवर हो जायेगा।
लेकिन ऊखीमठ जाकर जब पता चला कि गोपेश्वर जाने वाली पहली और आखिरी बस सुबह साढे सात बजे चलती है तो मन बैठ गया। यात्रा सीजन खत्म हो चुका है, इसलिये इस मार्ग पर कोई गाडी नहीं चलती। इसका सीधा सा मतलब है कि आज का पूरा दिन खराब। अब वापस रुद्रप्रयाग जाना पडेगा, और वहां से जोशीमठ या बद्रीनाथ। ठीक है, चलते हैं थोडी देर में। पहले चाय-परांठे खाये- भूख लग रही थी। उधर घुमक्कड दिमाग भी लगातार काम कर रहा था। ऊखीमठ बाजार से डेढ किलोमीटर दूर एक बैण्ड है यानी तिराहा है। यहां से एक सडक रुद्रप्रयाग चली जाती है, एक ऊखीमठ और तीसरी गोपेश्वर। किसी ट्रक का सहारा लिया जाये। एक बार किसी तरह चोपता पहुंच जायें, फिर तुंगनाथ-चंद्रशिला घूमकर रात को चोपता में ही सो लूंगा। सुबह को वही एकमात्र बस पकडकर गोपेश्वर और दोपहर तक आसानी से जोशीमठ।
लेकिन मामला नहीं बना। घण्टा भर हो गया खडे-खडे। ग्यारह बज गये। समय लगातार निकलता जा रहा था। अन्त में इस मार्ग से गोपेश्वर जाने की लालसा छोड दी। वापस रुद्रप्रयाग चलते हैं। थोडी बहुत देर में जीप आयेगी और रुद्रप्रयाग चले जायेंगे। जीप की प्रतीक्षा करने लगा।

rudraprayag-district
मेरे द्वारा आज की गयी यात्रा लाल रंग से दिखाई गई है। रुद्रप्रयाग से शुरू करके ऊखीमठ तक।

अगला भाग: ऊखीमठ के पास है देवरिया ताल


मदमहेश्वर यात्रा
1. मदमहेश्वर यात्रा
2. मदमहेश्वर यात्रा- रुद्रप्रयाग से ऊखीमठ तक
3. ऊखीमठ के पास है देवरिया ताल
4. बद्रीनाथ नहीं, मदमहेश्वर चलो
5. मदमहेश्वर यात्रा- उनियाना से गौंडार
6. मदमहेश्वर यात्रा- गौंडार से मदमहेश्वर
7. मदमहेश्वर में एक अलौकिक अनुभव
8. मदमहेश्वर और बूढा मदमहेश्वर
9. और मदमहेश्वर से वापसी
10. मेरी मदमहेश्वर यात्रा का कुल खर्च

Comments

  1. हिस्सों में तोड़कर कितना कुछ देख लिया आपने।

    ReplyDelete
  2. रोचक यात्रा। आगे? यात्रा मंगलमय हो।

    ReplyDelete
  3. उधर घुमक्कड दिमाग भी लगातार काम कर रहा था....... अब पता चल गया की घूमने के लिए दिमाग बहुत लगाना पडता है |

    ReplyDelete
  4. पहली और आखिरी बस

    घुमक्कडी जिन्दाबाद

    ReplyDelete
  5. यात्रा की शुभ कामनाओ सहित ,यात्रा जारी रखे

    ReplyDelete
  6. बहुत हिम्मत वाले हो जी बिना परवाह किये चल पडते हो, कहां सोना हे क्या खाना हे यह सब बाद मे सोचते हो, धन्य हो बाबा धन्य हो इसे कहते हे मस्त मलंग घुमकडीं..... राम राम

    ReplyDelete
  7. Vakai Ghumakkadi aapka junoon hai. Ab ham bhi aapke padosi hi hain, to "kabhi jo miloge to puchenge haal..."

    ReplyDelete
  8. रोचक घुमक्कड यात्रा

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

शीतला माता जलप्रपात, जानापाव पहाडी और पातालपानी

शीतला माता जलप्रपात (विपिन गौड की फेसबुक से अनुमति सहित)    इन्दौर से जब महेश्वर जाते हैं तो रास्ते में मानपुर पडता है। यहां से एक रास्ता शीतला माता के लिये जाता है। यात्रा पर जाने से कुछ ही दिन पहले मैंने विपिन गौड की फेसबुक पर एक झरने का फोटो देखा था। लिखा था शीतला माता जलप्रपात, मानपुर। फोटो मुझे बहुत अच्छा लगा। खोजबीन की तो पता चल गया कि यह इन्दौर के पास है। कुछ ही दिन बाद हम भी उधर ही जाने वाले थे, तो यह जलप्रपात भी हमारी लिस्ट में शामिल हो गया।    मानपुर से शीतला माता का तीन किलोमीटर का रास्ता ज्यादातर अच्छा है। यह एक ग्रामीण सडक है जो बिल्कुल पतली सी है। सडक आखिर में समाप्त हो जाती है। एक दुकान है और कुछ सीढियां नीचे उतरती दिखती हैं। लंगूर आपका स्वागत करते हैं। हमारा तो स्वागत दो भैरवों ने किया- दो कुत्तों ने। बाइक रोकी नहीं और पूंछ हिलाते हुए ऐसे पास आ खडे हुए जैसे कितनी पुरानी दोस्ती हो। यह एक प्रसाद की दुकान थी और इसी के बराबर में पार्किंग वाला भी बैठा रहता है- दस रुपये शुल्क बाइक के। हेलमेट यहीं रख दिये और नीचे जाने लगे।

डायरी के पन्ने- 5

1 अप्रैल 2013, सोमवार 1. महीने की शुरूआत में ही उंगली कटने से बच गई। पडोसियों के यहां एसी लगना था। सहायता के लिये मुझे बुला लिया। मैं सहायता करने के साथ साथ वहीं जम गया और मिस्त्री के साथ लग गया। इसी दौरान प्लाई काटने के दौरान आरी हाथ की उंगली को छूकर निकल गई। ज्यादा गहरा घाव नहीं हुआ। 2 अप्रैल 2013, मंगलवार 1. सुबह चार बजे ही नटवर दिल्ली आ गया। हम हिमाचल की ओर कूच कर गये। शाम होने तक धर्मशाला पहुंच गये।