Skip to main content

सोनामार्ग (सोनमर्ग) के नजारे

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहाँ क्लिक करें
अमरनाथ यात्रा के क्रम में जब हम दर्शन करके वापस बालटाल पहुंचे तो वहां से निकलते-निकलते शाम हो गयी थी। हममें से ज्यादातर पहली बार कश्मीर आये थे, इसलिये एक-दो दिन कश्मीर में रुकना भी चाहते थे। इरादा तो श्रीनगर में रुकने का था, लेकिन पिछले कई दिनों से वहां कर्फ्यू लगा हुआ था। अब तय हुआ कि सोनमर्ग में रुकेंगे।

सोनमर्ग बालटाल से आठ किलोमीटर दूर श्रीनगर वाले रास्ते पर है। इसे सोनामार्ग कहते हैं, जो आजकल सोनमर्ग बोला जाता है। यह इलाका घाटी के मुकाबले बिल्कुल शान्त है, इसलिये यहां रुकने में डर भी नहीं लग रहा था। जिस होटल में हम ठहरे थे, उसका मालिक एक हिन्दू था। उस होटल में काम करने वाला बाकी सारा स्टाफ मुसलमान।

हिन्दू मालिक बताता है कि हफ्ते दस दिन में मेरे पास मिलिटरी का एक कर्नल आ जाता है। कर्नल ने उसे अपना फोन नम्बर दे रखा है कि अगर कभी तुम पर कोई दिक्कत आये तो तुरन्त फोन कर देना। दो मिनट में फौज होटल में पहुंच जायेगी। और हां, पूरे सोनमर्ग में वही अकेला हिन्दू है।

साल में पांच-छह महीने यह इलाका बरफ से ढका रहता है। इस दौरान यहां कोई आदमजात नहीं दिखती। अप्रैल मई आने पर सबसे पहले होटल वाले ही यहां पहुंचते हैं। साफ-सफाई करते हैं, पिछले कई महीनों से जमी बरफ को हटाकर रास्ता बनाते हैं। फिर धीरे-धीरे पर्यटक और घुमक्कड पहुंचते हैं। सबसे व्यस्त सीजन अमरनाथ यात्रा के दौरान होता है।

चलो खैर, बहुत पढाई कर ली। अब फोटू देखिये:



सामने पहाड पर टंगा थाजीवास ग्लेशियर दिख रहा है।













थाजीवास ग्लेशियर- सोनमर्ग की शान











सोनमर्ग में हमने एक रात गुजारी। सुबह उठकर कुछ मौज मस्ती की। मौज मस्ती की बात अगली बार विस्तार से बताई जायेगी। क्योंकि अभी - अभी तो हम अमरनाथ से लौटे हैं। भयंकर रूप से थके हुए हैं।

अगला भाग: सोनमर्ग में खच्चरसवारी


अमरनाथ यात्रा
1. अमरनाथ यात्रा
2. पहलगाम- अमरनाथ यात्रा का आधार स्थल
3. पहलगाम से पिस्सू घाटी
4. अमरनाथ यात्रा- पिस्सू घाटी से शेषनाग
5. शेषनाग झील
6. अमरनाथ यात्रा- महागुनस चोटी
7. पौषपत्री का शानदार भण्डारा
8. पंचतरणी- यात्रा की सुन्दरतम जगह
9. श्री अमरनाथ दर्शन
10. अमरनाथ से बालटाल
11. सोनामार्ग (सोनमर्ग) के नजारे
12. सोनमर्ग में खच्चरसवारी
13. सोनमर्ग से श्रीनगर तक
14. श्रीनगर में डल झील
15. पटनीटॉप में एक घण्टा

Comments

  1. आपकी घुम्मकड़ी के आगे नत मस्तक हैं भई...गजब करते हो!

    ReplyDelete
  2. बहुत बढ़िया. मस्ती की बात भी जल्दी बता दो.

    ReplyDelete
  3. बड़े ही सुन्दर चित्र।

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर यात्रा का विवरण, ओर उस से भी सुंदर चित्र धन्यवाद

    ReplyDelete
  5. अति सुन्दर!
    गर फिरदौस ज़मींअस्त हमींअस्त हमींअस्त हमींअस्त!

    ReplyDelete
  6. तस्वीरें बहुत अच्छी है | मौका मिला तो अमरनाथ यात्रा करेंगे |

    ReplyDelete
  7. NEERAJ chhore pahad par ghooman jange to tere tai salah lekai jaange apna mo. no. meri mail par bhej de rkdaryapur@yahoo.com ya miss call de de 9899886642

    ReplyDelete
  8. नीरज भाई आनन्द आ गया बम बम भोले ।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

तिगरी गंगा मेले में दो दिन

कार्तिक पूर्णिमा पर उत्तर प्रदेश में गढ़मुक्तेश्वर क्षेत्र में गंगा के दोनों ओर बड़ा भारी मेला लगता है। गंगा के पश्चिम में यानी हापुड़ जिले में पड़ने वाले मेले को गढ़ गंगा मेला कहा जाता है और पूर्व में यानी अमरोहा जिले में पड़ने वाले मेले को तिगरी गंगा मेला कहते हैं। गढ़ गंगा मेले में गंगा के पश्चिम में रहने वाले लोग भाग लेते हैं यानी हापुड़, मेरठ आदि जिलों के लोग; जबकि अमरोहा, मुरादाबाद आदि जिलों के लोग गंगा के पूर्वी भाग में इकट्ठे होते हैं। सभी के लिए यह मेला बहुत महत्व रखता है। लोग कार्तिक पूर्णिमा से 5-7 दिन पहले ही यहाँ आकर तंबू लगा लेते हैं और यहीं रहते हैं। गंगा के दोनों ओर 10-10 किलोमीटर तक तंबुओं का विशाल महानगर बन जाता है। जिस स्थान पर मेला लगता है, वहाँ साल के बाकी दिनों में कोई भी नहीं रहता, कोई रास्ता भी नहीं है। वहाँ मानसून में बाढ़ आती है। पानी उतरने के बाद प्रशासन मेले के लिए रास्ते बनाता है और पूरे खाली क्षेत्र को सेक्टरों में बाँटा जाता है। यह मुख्यतः किसानों का मेला है। गन्ना कट रहा होता है, गेहूँ लगभग बोया जा चुका होता है; तो किसानों को इस मेले की बहुत प्रतीक्षा रहती है। ज्...

ओशो चर्चा

हमारे यहां एक त्यागी जी हैं। वैसे तो बडे बुद्धिमान, ज्ञानी हैं; उम्र भी काफी है लेकिन सब दिखावटी। एक दिन ओशो की चर्चा चल पडी। बाकी कोई बोले इससे पहले ही त्यागी जी बोल पडे- ओशो जैसा मादर... आदमी नहीं हुआ कभी। एक नम्बर का अय्याश आदमी। उसके लिये रोज दुनियाभर से कुंवाई लडकियां मंगाई जाती थीं। मैंने पूछा- त्यागी जी, आपने कहां पढा ये सब? कभी पढा है ओशो साहित्य या सुने हैं कभी उसके प्रवचन? तुरन्त एक गाली निकली मुंह से- मैं क्यों पढूंगा ऐसे आदमी को? तो फिर आपको कैसे पता कि वो अय्याश था? या बस अपने जैसों से ही सुनी-सुनाई बातें नमक-मिर्च लगाकर बता रहे हो? चर्चा आगे बढे, इससे पहले बता दूं कि मैं ओशो का अनुयायी नहीं हूं। न मैं उसकी पूजा करता हूं और न ही किसी ओशो आश्रम में जाता हूं। जाने की इच्छा भी नहीं है। लेकिन जब उसे पढता हूं तो लगता है कि उसने जो भी प्रवचन दिये, सब खास मेरे ही लिये दिये हैं।

डायरी के पन्ने- 30 (विवाह स्पेशल)

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। 1 फरवरी: इस बार पहले ही सोच रखा था कि डायरी के पन्ने दिनांक-वार लिखने हैं। इसका कारण था कि पिछले दिनों मैं अपनी पिछली डायरियां पढ रहा था। अच्छा लग रहा था जब मैं वे पुराने दिनांक-वार पन्ने पढने लगा। तो आज सुबह नाइट ड्यूटी करके आया। नींद ऐसी आ रही थी कि बिना कुछ खाये-पीये सो गया। मैं अक्सर नाइट ड्यूटी से आकर बिना कुछ खाये-पीये सो जाता हूं, ज्यादातर तो चाय पीकर सोता हूं।। खाली पेट मुझे बहुत अच्छी नींद आती है। शाम चार बजे उठा। पिताजी उस समय सो रहे थे, धीरज लैपटॉप में करंट अफेयर्स को अपनी कापी में नोट कर रहा था। तभी बढई आ गया। अलमारी में कुछ समस्या थी और कुछ खिडकियों की जाली गलकर टूटने लगी थी। मच्छर सीजन दस्तक दे रहा है, खिडकियों पर जाली ठीकठाक रहे तो अच्छा। बढई के आने पर खटपट सुनकर पिताजी भी उठ गये। सात बजे बढई वापस चला गया। थोडा सा काम और बचा है, उसे कल निपटायेगा। इसके बाद धीरज बाजार गया और बाकी सामान के साथ कुछ जलेबियां भी ले आया। मैंने धीरज से कहा कि दूध के साथ जलेबी खायेंगे। पिताजी से कहा तो उन्होंने मना कर दिया। यह मना करना मुझे ब...