यात्रा शुरू हुई थी 13 अक्टूबर 2015 को। निजामुद्दीन से कोटा जनशताब्दी एक्सप्रेस चलती है। इसमें अपनी बुकिंग थी। मेरी खिडकी वाली सीट पर एक परिवार बैठा था। मैं गया तो वे मुझे अपनी खिडकी से दूर वाली पर बैठने को कहने लगे लेकिन चूंकि मुझे सोना था, इसलिये मुझे जिद करनी पडी। उन्हें अवश्य बुरा लगा होगा।
बिल्कुल ठीक समय पर यानी शाम छह बजे ट्रेन सवाई माधोपुर पहुंची। यहां डोरमेट्री में मेरा एक बिस्तर था जो पहले ही ऑनलाइन बुक कर लिया था। ऑनलाइन बुक करने के लिये आपके पास उस स्टेशन पर समाप्त होने वाला या शुरू होने वाला कन्फर्म आरक्षित टिकट होना चाहिये। मैंने जनशताब्दी से यात्रा की थी, इसलिये उसका पीएनआर काम आ गया और उसी से डोरमेट्री में 80 रुपये में बिस्तर बुक हो गया। कमरे में गया तो देखा कि यहां दो डबलबेड पडे हैं यानी चार बिस्तर डोरमेट्री। मेरे अलावा एक यात्री और था। बाद में कोई नहीं आया और हमने अन्दर से कुण्डी लगाकर इसे डोरमेट्री नहीं बल्कि अपना कमरा ही बना लिया। सामान चोरी होने का डर समाप्त।
वैसे तो कई साल पहले मैं जयपुर से जोधपुर और जयपुर से सवाई माधोपुर पैसेंजर से यात्रा कर चुका था लेकिन इस पूरी लाइन के सभी स्टेशनों के फोटो मेरे पास नहीं थे। आज का मकसद था सवाई माधोपुर से जोधपुर तक के सभी स्टेशनों के बोर्डों के फोटो एकत्रित करना।
भोपाल-जोधपुर पैसेंजर आधा घण्टा विलम्ब से सवाई माधोपुर के प्लेटफार्म नम्बर 3 पर आई। यह तो ध्यान नहीं कि इसमें बिजली का इंजन लगा था या डीजल का, मैं स्टेशन से बाहर जाकर नाश्ता करने में व्यस्त था। भोपाल से यहां तक सारा मार्ग बिजली वाला है, तो शायद बिजली का इंजन लगा हो लेकिन यहां से जोधपुर तक डीजल वाला मार्ग है, तो शायद डीजल वाला इंजन भी लगा हो। सवाई माधोपुर में इंजन इधर से उधर लगाया जाता है, इस कार्य में करीब 20 मिनट तो लग ही जाते हैं। इस दौरान मुम्बई से आने वाली अगस्त क्रान्ति राजधानी एक्सप्रेस भी गुजरी। सब सोये पडे थे।
सवाई माधोपुर से जयपुर तक देवपुरा, चौथ का बरवाडा और चन्नानी स्टेशनों के फोटो ही मेरे पास नहीं थे। इसलिये जैसे ही चन्नानी का फोटो लिया, मैं ऊपर जाकर सो गया। दो घण्टे बाद का अलार्म लगा लिया। आगे का काम जयपुर के बाद शुरू होगा।
ट्रेन जयपुर में प्लेटफार्म नम्बर 5 पर 09:45 बजे आई यानी लगभग आधा घण्टा लेट। प्लेटफार्म 3 पर आगरा फोर्ट-अजमेर इंटरसिटी खडी थी और भोपाल-जयपुर एक्सप्रेस (19712) 4 पर। जब अजमेर इंटरसिटी चली गई तो जम्मू से आने वाली पूजा एक्सप्रेस 3 पर आ गई। पहले से ही प्लेटफार्म 2 पर हिसार-जयपुर पैसेंजर खडी थी जो अब जयपुर-अलवर एक्सप्रेस बनकर अलवर जायेगी और शाम तक जयपुर वापस लौटेगी। कमाल की बात ये है कि यह जयपुर-अलवर एक्सप्रेस रिकार्ड में अलवर तक जाती है जबकि हकीकत में यह अलवर से भी आगे खैरथल तक का चक्कर लगाकर आती है। इस अतिरिक्त चक्कर का टाइम-टेबल में कोई जिक्र नहीं है। उधर जयपुर में मीटर गेज लाइन पर जयपुर-सीकर पैसेंजर प्लेटफार्म 6 पर खडी थी और 10:10 बजे सीकर चली गई। ताजा खबर ये है कि सीकर-चूरू मीटर गेज लाइन अब बडी होने को बन्द हो गई है और सीकर-लोहारू लाइन पुनः खुल गई है। जब सीकर-चूरू लाइन भी बडी हो जायेगी तो जयपुर-सीकर लाइन को बडा किया जायेगा। राजस्थान में अब जयपुर-सीकर, मारवाड-मावली और मावली-बडी सादडी लाइनें ही मीटर गेज हैं, अन्यथा सब की सब बदली जा चुकी हैं या बदली जा रही हैं। धौलपुर में नैरो गेज है।
10 बजकर 35 मिनट पर अजमेर शताब्दी प्लेटफार्म नम्बर दो पर आई और सात मिनट बाद चली गई। इसके जाते ही बान्द्रा-जयपुर सुपरफास्ट (12979) आ गई। यह सवाई माधोपुर के रास्ते आती है और एकदम सही समय पर। फिर 10 बजकर 55 मिनट पर जोधपुर से इन्दौर जाने वाली रणथम्भौर एक्सप्रेस आई और इसी समय अपनी जोधपुर पैसेंजर भी चल पडी। मजा आता है किसी व्यस्त स्टेशन पर ट्रेनों की आवाजाही देखने में।
जयपुर से फुलेरा तक यह डबल लाइन है। ट्रेन प्रत्येक स्टेशन पर रुकती और फिर पूरी रफ्तार से चलती। इसमें बीच में कुछ डिब्बे शयनयान के भी लगे होते हैं। लेकिन सबसे पीछे वाला डिब्बा भी शयनयान ही था। गार्ड वाला डिब्बा इससे आगे था। अक्सर ऐसा होता नहीं है। हो सकता है कि इस शयनयान डिब्बे को अतिरिक्त डिब्बे के तौर पर जोड रखा हो या फिर इसे भोपाल से जोधपुर घुमाने लाये होंगे। कुछ भी हो लेकिन यह इस ट्रेन का स्थायी डिब्बा नहीं था। मैं इसी में जा पहुंचा। मजा तो तब आया जब देखा कि इसका सबसे पीछे वाला शटर खुला था। शयनयान डिब्बों में दोनों तरफ शटर होते हैं और अक्सर ये खुले होते हैं और इनसे होकर एक डिब्बे से दूसरे डिब्बे में आना-जाना होता रहता है। लेकिन इसके पीछे कुछ भी नहीं था। इसलिये चलती ट्रेन के पीछे दूर तक जाती रेल की पटरी और तेजी से पीछे भागते पेड-झाड अच्छे लग रहे थे।
12:05 बजे हिरनोदा पहुंचे और मन्नारगुडी-भगत की कोठी एक्सप्रेस (16864) धीरे धीरे आगे निकल गई। धीरे-धीरे इसलिये क्योंकि अगला ही स्टेशन फुलेरा है और हिरनोदा फुलेरा के लिये आउटर का काम करता है। इस आउटर पर हमारी पैसेंजर रुक गई और एक्सप्रेस आगे निकल गई। वैसे क्या आपको पता है कि मन्नारगुडी कहां है? यह है तमिलनाडु में चेन्नई से भी साढे तीन सौ किलोमीटर आगे। आज इस ट्रेन का चलते हुए तीसरा दिन है। बडी लम्बी दूरी तय करती है यह ट्रेन- 2861 किलोमीटर। अच्छा हां, इस ट्रेन में भगत की कोठी का WDP4 इंजन लगा था। ट्रेन दक्षिण रेलवे की है और इंजन भगत की कोठी का? क्यों? असल में यह सवाई माधोपुर तक बिजली के इंजन से आई होगी और सवाई माधोपुर से आगे बिजली की लाइन न होने के कारण इसमें स्थानीय भगत की कोठी का डीजल इंजन लगा दिया। भगत की कोठी भले ही जोधपुर के पास हो लेकिन उत्तर-पश्चिम रेलवे होने के कारण स्थानीय ही कहा जायेगा।
हमारी ट्रेन हिरनोदा ही खडी रही। मन्नारगुडी के जाने के बाद रानीखेत एक्सप्रेस आ गई। इसमें इज्जतनगर का WDM3D इंजन लगा था। इस ट्रेन की कहानी बडी ही मजेदार है। पहले यह दिल्ली और काठगोदाम के बीच चला करती थी। रानीखेत एक्सप्रेस के साथ ही कार्बेट पार्क लिंक एक्सप्रेस भी होती थी जो दिल्ली और रामनगर के बीच चलती थी। मुरादाबाद में दोनों ट्रेनें जुडती और अलग होती थीं। दोनों तरफ से रात को चलती थीं और सुबह तक पहुंच जाती थीं। पूरे दिन एक रेक दिल्ली में खडा रहता था और एक काठगोदाम में। फिर इसे भगत की कोठी तक बढा दिया गया। सुबह सवेरे दिल्ली से चलकर यह शाम तक भगत की कोठी पहुंच जाती थी। पूरी रात वहां खडी रहकर अगली सुबह दिल्ली और काठगोदाम के लिये चल देती थी। इसका रूट थोडा लम्बा था यानी अजमेर, मारवाड होकर। फिर एक दिन इसे जैसलमेर तक बढा दिया गया। भगत की कोठी में जो ट्रेन पूरी रात खडी रहती थी, उसे ही जैसलमेर तक भेजने लगे। अब यह आधी रात तक जैसलमेर पहुंचती है और साथ ही वापस मुड जाती है, सुबह तक जोधपुर, रात तक दिल्ली और अगली सुबह तक काठगोदाम। अगर दिल्ली से जैसलमेर तक इसका मार्ग देखें तो यह अंग्रेजी के U के आकार में यात्रा करती है जबकि दिल्ली से बीकानेर होकर सीधे जैसलमेर की रेलवे लाइन भी है। जाहिर है कि यह ट्रेन दिल्ली से जैसलमेर जाने के लिये नहीं है बल्कि राजस्थान के एक बडे हिस्से के यात्रियों को कनेक्टिविटी देने वाली है। जैसे कि अजमेर से जोधपुर तक पहले सिर्फ एक ही ट्रेन हुआ करती थी, अब दो हैं।
साढे बारह बजे हमारी ट्रेन हिरनोदा से चली तो दो घण्टे लेट हो चुकी थी। फुलेरा पहुंची भी नहीं थी कि पोरबन्दर-दिल्ली सराय रोहिल्ला एक्सप्रेस बराबर से निकल गई।
फुलेरा में उदयपुर-जयपुर एक्सप्रेस (12991) मिली और वैष्णों देवी-अहमदाबाद एक्सप्रेस (19416) भी आ गई। हमारी ट्रेन जोधपुर की तरफ मुड गई और वैष्णों देवी-अहमदाबाद एक्सप्रेस अहमदाबाद की तरफ चली गई।
फुलेरा के बाद अगला स्टेशन है साम्भर लेक। बडी देर से और बडी दूर से एक दम्पत्ति यहां उतरने वाले थे। लेकिन दो घण्टे लेट हो जाने के कारण वे बडे परेशान भी थे। जैसे ही साम्भर लेक स्टेशन आया, इन्होंने नीचे उतरकर राहत की सांस ली। साम्भर लेक में नमक का उत्पादन होता है। पूरी झील में दूर दूर तक नमक के खेत दिखते हैं और छोटी सी नैरो गेज की ट्रेन नमक को झील के दूर-दराज के इलाकों से यहां लाती है। यहां शोधन के बाद पैकिंग होती है और फिर मालगाडी में भरकर देश के दूसरे हिस्सों में भेज दिया जाता है। फिल्म ‘पीके’ का वो दृश्य यहीं फिल्माया गया था जब आमिर खान उडनतश्तरी से पहली बार धरती पर कदम रखता है। छोटी सी नैरो गेज की नमक ढोने वाली ट्रेन भी इस फिल्म में दिखाई गई है। अच्छा लगता है जब मेरे देश की कोई इस तरह की चीज फिल्मों में भी दिखाई जाती है, अन्यथा विदेशों के दृश्य शूट करने का ज्यादा चलन है।
आप ऐसे डिब्बे में खडे हों, जिसका पीछे का शटर खुला हो और पीछे का दृश्य दिखाई देता हो तो कल्पना कीजिये- ट्रेन साम्भर लेक के बीच से तेजी से दौडी जा रही थी, दोनों तरफ दूर-दूर तक नमक के खेत हों और आप शटर के पास खडे हों। मैंने इसका वीडियो यू-ट्यूब पर अपलोड करने की कोशिश की है, लेकिन अपलोड नहीं हो सका, अन्यथा आपको भी दिखाता। (अपलोड हो गया है। नीचे आप वीडियो देख सकते हैं।)
नावा सिटी में मरुधर एक्सप्रेस जयपुर की तरफ गई और नया खारडिया में मेरी ट्रेन की जोडीदार जोधपुर-भोपाल पैसेंजर मिली। डेगाना में वाराणसी से आने वाली मरुधर एक्सप्रेस गुजरी। रेन में सूरतगढ-जयपुर पैसेंजर गई। हां, मकराना जंक्शन से एक लाइन का काम चल रहा है जो परबतसर जायेगी। ब्रॉड गेज की पटरी बिछाई जा चुकी है, कभी भी ट्रेन चल सकती है।
मेडता रोड पर काफी देर तक हमारी ट्रेन खडी रही। बाहर निकलकर देखा तो इसके पीछे एक डीएमयू जुडी खडी थी। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। अभी तक गार्ड इस डिब्बे से अगले डिब्बे में था, अब डीएमयू के आखिरी वाले डिब्बे में पहुंच गया। मैं सोचने लगा कि यह क्या मामला है। हो सकता है कि कोई डीएमयू जोधपुर जाती हो और यहां उसमें कोई तकनीकी खराबी आ गई हो तो उसे जोधपुर ले जाने के लिये इसमें जोड दिया गया हो। लेकिन जब मेडता रोड से जोधपुर जाने वाली डीएमयू की सूची देखी तो केवल हिसार-जोधपुर डीएमयू (74836) ही एकमात्र ट्रेन मिली। जब इस ट्रेन की लाइव स्थिति NTES पर देखी तो यह कभी की जोधपुर पहुंच चुकी थी। समझ नहीं आया कि मामला क्या है।
फिर प्रशान्त से इस बारे में पूछा तो उसने बताया कि मेडता में डीएमयू शेड है। जोधपुर में पैसेंजर ट्रेनों को डीएमयू से बदला जा रहा है और कई ट्रेनें बदली जा चुकी हैं। धीरे धीरे जोधपुर, अजमेर, जयपुर और बीकानेर डिवीजन की सभी पैसेंजर ट्रेनों के स्थान पर डीएमयू ही चलाई जाया करेंगी। शेड मेडता में है तो नियमित चेकिंग के लिये उन्हें जोधपुर से मेडता रोड इसी तरह लाया और ले जाया जाता है।
मेडता रोड पर जोधपुर-बठिण्डा पैसेंजर (54704) मिली।
साथीन रोड पर जोधपुर-जयपुर एक्सप्रेस (22477) जाती दिखी।
पीपाड रोड-बिलाडा
मैं पीपाड रोड जंक्शन पर उतर गया। अब मुझे बिलाडा मार्ग पर यात्रा करनी थी। अन्धेरा हो चुका था और मैं अन्धेरे में नये मार्गों पर यात्रा नहीं किया करता क्योंकि मुझे स्टेशन बोर्डों के फोटो भी लेने होते हैं जो दिन के उजाले में ही उत्तम आते हैं। लेकिन बिलाडा मार्ग पर एक ही ट्रेन चलती है और वो भी अन्धेरे में। यह ट्रेन पीपाड रोड से शाम साढे सात बजे चलती है और बिलाडा दस बजे पहुंचती है और वापसी में बिलाडा से सुबह पांच बजे चलती है। अक्टूबर में सुबह पांच बजे भी अन्धेरा होता है और शाम साढे सात बजे भी। इसके अलावा दिन में और कोई ट्रेन नहीं है इसलिये मेरी मजबूरी थी कि इसी में यात्रा करूं।
ट्रेन पीपाड रोड से चली तो इसमें ठीकठाक भीड थी। लेकिन सभी सवारियां अगले स्टेशन पीपाड सिटी में उतर गईं। मैं आखिरी डिब्बे में था और इस डिब्बे में मेरे अलावा कोई भी यात्री नहीं था। दिन भर में एक ही ट्रेन होने के कारण इसके रास्ते में पडने वाले फाटकों को बन्द करने के लिये गेटमैन ट्रेन में ही सफर करता है। ट्रेन फाटक से पहले रुकती है, गेटमैन ट्रेन से उतरकर फाटक बन्द करता है, ट्रेन फाटक पार करके फिर रुक जाती है, गेटमैन फाटक खोलकर पुनः ट्रेन में चढ जाता है। कुल मिलाकर छह फाटक इस रेलवे लाइन पर पडते हैं। पिछले दिनों मैंने एक अखबार में इस लाइन के बारे में पढा था तो उसमें लिखा था कि गार्ड फाटक बन्द करता है। मैंने इस बारे में गार्ड से बात की तो उन्होंने बताया कि अखबार वाले ज्यादातर बेकार की बातें लिखते हैं। उन्हें बस पन्ने भरने होते हैं। पूरे भारत में कहीं भी गार्ड फाटक बन्द नहीं करता।
दिन में यहां कोई ट्रेन नहीं चलती, यहां तक कि मालगाडी भी नहीं। इसलिये पीपाड रोड से बिलाडा तक की 40 किलोमीटर की दूरी को तय करने में ढाई घण्टे लग जाते हैं। एक कारण तो फाटक बन्द करना और खोलना है और दूसरा कारण है कि ट्रेन यहां कम स्पीड पर चलती है। इसे पायलेट स्पीड या कॉशन स्पीड भी कहते हैं। ऐसा सावधानी के लिये किया जाता है। ड्राइवर रेलवे लाइन को देखता हुआ चलता है कि कहीं कोई गडबड तो नहीं है क्योंकि पिछले 12-14 घण्टों में यहां से रेलवे का कोई भी आदमी या ट्रेन नहीं गुजरी है।
पीपाड सिटी से अगला स्टेशन सिलारी है, फिर भावी है और फिर है बिलाडा।
रात दस बजे बिलाडा स्टेशन पर उतरने वाला एकमात्र यात्री केवल मैं ही था। मेरे अलावा गार्ड और गेटमैन भी उतरे। ये लोग अभी शंटिंग करके ट्रेन को खडा कर देंगे ताकि सुबह पांच बजे आते ही ट्रेन ले जाई जा सके। इंजन अभी इधर से उधर लगा देंगे। गेटमैन ही बिलाडा स्टेशन पर शंटिंग मैन की भूमिका निभायेगा। बिलाडा स्टेशन पर भी रेलवे का कोई आदमी नहीं होता। ऐसी जगह टिकट बांटने की जिम्मेदारी ठेके पर दे दी जाती है। ठेकेदार अपना झोला लेकर आयेगा, टिकट काटेगा और ट्रेन के चले जाने पर अगले चौबीस घण्टे उसका कोई काम नहीं। और टिकट भी यहां से कितने लोग कटाते होंगे? यह ट्रेन सुबह पांच बजे बिलाडा से चलकर पौने नौ बजे जोधपुर पहुंचेगी जबकि बस से बिलाडा से जोधपुर तक दो घण्टे भी नहीं लगते। यहां कितने यात्री यात्रा करते हैं, वो मैंने प्रत्यक्ष देख ही लिया।
उधर भोपाल-इन्दौर डबल डेकर को इसलिये बन्द कर दिया कि उसमें अपेक्षा से कम यात्री यात्रा करते हैं और इधर खाली ट्रेन चलती है। बिलाडा में रेलवे लाइन है, रेलवे स्टेशन भी है। ट्रेन रात दस बजे आती है और सुबह पांच बजे चली जाती है। ज्यादातर बिलाडा-वासियों ने तो ट्रेन देखी भी नहीं होगी। जब ट्रेन पहुंचती है, बिलाडा सो चुका होता है और जब ट्रेन चलती है तो यह उठता भी नहीं होगा।
स्टेशन से मुख्य सडक काफी दूर है। बाहर निकला तो एकदम सन्नाटा। स्ट्रीट लाइटें जली थीं। गूगल मैप से मेन रोड पहुंचने का रास्ता देखा और चल दिया। खतरा था देर रात कुत्तों के भौंकने का। लेकिन शुक्र था कि नवरात्रे चल रहे थे और बिलाडा अभी जगा हुआ था और हर जगह डांडिया खेला जा रहा था। मन्दिरों में भजन बज रहे थे। मेन रोड जाते ही जोधपुर की बस मिल गई और बारह बजे तक जोधपुर पहुंच गया। वहां प्रशान्त स्कूटी लिये मेरा इंतजार कर रहा था। शहर से बाहर उसके घर पहुंचा। केवल उसकी माताजी ही थीं। जाते ही नहाया, खाया-पीया और सो गया।
जोधपुर-मेडता-पुष्कर-अजमेर
अगले दिन सुबह आठ बजे प्रशान्त मुझे स्टेशन छोड गया। मेडता सिटी का टिकट ले लिया। प्लेटफार्म एक पर दिल्ली से आई मण्डोर एक्सप्रेस खडी थी। मुझे यहां से जोधपुर-भोपाल पैसेंजर पकडनी थी। इसका चलने का समय 08:10 था लेकिन सवा आठ बजे तक भी यह गाडी प्लेटफार्म पर नहीं लगी थी। आखिरकार 08:20 बजे दो ट्रेनें एक साथ आईं- भोपाल पैसेंजर और अहमदाबाद पैसेंजर। दोनों विपरीत दिशाओं में जायेंगीं। प्लेटफार्म पर लगते ही इन्हें डी-कपल कर दिया गया। निश्चित ही दोनों ट्रेनों में दोनों ट्रेनों के यात्री चढे होंगे। किसी को मेडता जाना हो तो वो मारवाड पहुंच गया होगा और किसी को मारवाड जाना हो तो वो मेडता पहुंच गया होगा। अक्सर बडे स्टेशनों पर ऐसा होता रहता है। विपरीत दिशाओं में जाने वाली या कभी-कभी एक ही दिशा में 10-15 मिनट के अन्तराल से जाने वाली ट्रेनें एक साथ एक ही प्लेटफार्म पर लगा दी जाती हैं, बाद में डी-कपल करके रवाना कर दी जाती हैं। इसलिये हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि आंखें खुली रखें और अपनी ही गाडी में बैठें।
जैसलमेर से आने वाली रानीखेत एक्सप्रेस आई और 08:24 बजे चली गई। फिर दिल्ली सराय रोहिल्ला से सम्पर्क क्रान्ति आ गई। सम्पर्क क्रान्ति केवल जोधपुर तक ही आती है, इससे आगे नहीं जायेगी। आखिरकार आधे घण्टे की देरी से 08:40 बजे हमारी ट्रेन रवाना हुई। आगे जोधपुर छावनी पर हावडा-जोधपुर एक्सप्रेस निकली, पीपाड रोड पर जयपुर-जोधपुर सुपरफास्ट, साथीन रोड पर बीकानेर-कोयम्बटूर एसी एक्सप्रेस और मेडता रोड पर अबोहर-जोधपुर पैसेंजर निकलीं। मैं मेडता रोड पर उतर गया।
मेडता सिटी के लिये कोई रेलबस नहीं मिली तो बस से जाना पडा। बाजार में एक प्राइवेट बस भरी खडी थी। पता नहीं कितनी देर में दूसरी बस आयेगी, मैं इसकी छत पर बैठ गया। और भी बहुत से यात्री बैठे थे। बस चली तो शीघ्र ही सडक रेलवे लाइन के साथ साथ हो गई। मेरे साथ ही नारनौल का एक लडका भी बैठा था जो यहां कपास तोडने आया था। नारनौल हरियाणा में है लेकिन वहां की जलवायु और रहन-सहन बिल्कुल राजस्थानी है। भाषा भी लगभग राजस्थानी ही है। इसने बताया कि इस तरफ यानी मेडता रोड और मेडता सिटी के बीच में जमीन में पानी बिल्कुल भी नहीं है जबकि मेडता रोड के उस तरफ पानी है, जिस कारण कपास की अच्छी खेती होती है।
थोडी ही देर में मेडता सिटी आ गया। यहां से अजमेर जाने वाली एक बस पकडी और पुष्कर का टिकट ले लिया। लगभग दो घण्टे लगे पुष्कर पहुंचने में। शानदार सडक है। मैं पुष्कर में प्रवेश करते ही फाटक पर उतर गया। मुझे पुष्कर नहीं घूमना था, बल्कि पुष्कर से अजमेर जाने वाली एकमात्र पैसेंजर ट्रेन में यात्रा करनी थी जो यहां से करीब चार बजे चलेगी। अभी दो ही बजे थे।
यह ट्रेन सुबह अजमेर से चलकर यहां आ जाती है और शाम को वापस जाती है। यानी दिनभर पुष्कर में खडी रहती है। इंजन बन्द था लेकिन खुशी की बात ये थी कि इसके पंखे चल रहे थे। अक्टूबर होने के बावजूद भी यहां गर्मी थी। टिकट खिडकी नहीं खुली थी, दो घण्टे तक ट्रेन में आराम से लेटकर सोया। न ट्रेन में कोई था और न ही स्टेशन पर।
पौने चार बजे अजमेर का टिकट लिया। अपने निर्धारित समय पर ट्रेन चल पडी। इस मार्ग पर चूंकि यही एकमात्र ट्रेन चलती है, इसलिये रास्ते में पडने वाले फाटकों को बन्द करने और खोलने की जिम्मेदारी जिस गेटमैन पर है, वो ट्रेन में ही यात्रा करता है। जैसा बिलाडा वाली लाइन पर होता है, वैसा ही यहां होता है अर्थात फाटक से पहले ट्रेन रुकती है, गेटमैन ट्रेन से उतरकर फाटक बन्द करता है, ट्रेन फाटक पार करके फिर रुक जाती है, गेटमैन फाटक खोलकर पुनः ट्रेन में चढ जाता है। जिस तरह बिलाडा वाले गेटमैन को रात में ही थोडा सा काम करना होता है, थोडा सा सुबह; बाकी पूरे दिन वो फ्री होता है। वैसा आराम इस पुष्कर वाले गेटमैन को नहीं मिलता। इसे सुबह अजमेर से ट्रेन के साथ आना होता है, चार-पांच घण्टे पुष्कर में रुककर फिर अजमेर जाना होता है। इसका पूरा दिन ट्रेन में ही व्यतीत हो जाता है। दूसरी बात, ट्रेन यहां भी तीस की स्पीड से ही चलती है।
पुष्कर तक जब रेल पहुंची थी, तो राजस्थान समेत पूरे देश के अखबारों में आया था कि अब तीर्थनगरी पहुंचना आसान हो गया है, ट्रेन से जाया जा सकता है लेकिन रेलवे इसे हकीकत में नहीं बदल सका। मारवाड-अजमेर पैसेंजर सुबह पांच बजे मारवाड से चलकर नौ बजे तक अजमेर आ जाती है। इसी ट्रेन के डिब्बों को अजमेर-पुष्कर पैसेंजर बनाकर पुष्कर भेज दिया जाता है। वापसी में ये डिब्बे पुष्कर से अजमेर जाकर फिर मारवाड पैसेंजर बनकर मारवाड चले जाते हैं। एक तरह से पुष्कर स्टेशन को अजमेर साइडिंग के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। पुष्कर को कटरा या शिरडी स्टेशन की तरह अच्छी तरह विकसित किया जा सकता है। आप ट्रेन चलाओगे तो यात्री भी आयेंगे। पुष्कर में वाशिंग लाइन और दो-चार साइडिंग लाइनें बनाकर कम से कम दस ट्रेनों के खडी होने लायक जगह बनाकर अजमेर में समाप्त होने वाली कई ट्रेनों को पुष्कर तक आसानी से बढाया जा सकता है। जब मुम्बई, अहमदाबाद और दिल्ली से सीधे पुष्कर तक की ट्रेन चलेगी तो यात्री क्यों नहीं आयेंगे?
पुष्कर के बाद बूढा पुष्कर, माकडवाडी, मदार और फिर अजमेर स्टेशन हैं। रात को मेरी दिल्ली की ट्रेन थी, जिससे सुबह होने तक मैं वापस दिल्ली पहुंच गया।
वाह! एकदम से लगता नही, पर सभी स्टेशन्स के फोटो खींचना भी बहुत कठिन है!
ReplyDeleteवाकई निरंजन जी...
Deleteनीरजजी, ऐसे भी बहुत से पाठक हैं जिन्हें रेल यात्रा वृत्तांत अच्छे लगते हैं, अतः आप खूब लिखिए। किन्हें क्या पढ़ना है, ये पढ़ने वाले पर छोड़ दीजिये। बहुत से लोग 10 घंटे के रेल यात्रा से भी घबराते हैं, वहीँ कुछ लोग सिर्फ यात्रा के लिए विवेक एक्सप्रेस से भी जाते हैं।
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक कहा गोपाल जी...धन्यवाद आपका...
DeleteI also like watching trains and specially stop for this.second video is of science express.
ReplyDeleteधन्यवाद रोमेश जी...
DeleteKhub maja aaya . Jese train me bethe he aapke sath .
ReplyDeleteधन्यवाद उमेश भाई...
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-12-2015) को "सहिष्णु देश का नागरिक" (चर्चा अंक-2188) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
यह यात्रा बिना किसी घोषणा के चुपचाप ही कर ली ।ठीक है कभी एकांत भी चाहिए। बढ़िया।
ReplyDeleteट्रेन के डिब्बे के शटर से लिया गया वीडियो और फ़ोटो जबरजस्त है ।। यह भी एक बहुत अच्छा अनुभव रहा होगा।
ReplyDeleteहाँ जी... शानदार अनुभव था... ऐसे मौके बेहद दुर्लभ होते हैं...
DeleteTrain no. 54043 मैने एक बार इस रेलगाडी से यात्रा की है 'इस रेलगाडी ने तो मजाक की हद ही कर रखी है।।।
ReplyDeleteअनुभव बताते तो ज्यादा अच्छा रहता. वैसे यह ट्रेन जींद से हिसार जाने वालों के लिए नहीं है बल्कि जींद से भटिंडा और भटिंडा से हिसार जाने वालों के लिए है. इस तरह की और भी बहुत सी ट्रेने देश में चलती हैं.
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजो शिकायत करते है शायद उन्हे trains में रूचि न हो या ऐसे सफर नीरस लगते हो
ReplyDeleteपर मुझे तो बहुत पसंद आते है ऐसे सफर, और उनके बारे में पढ़ना
असल ज़िन्दगी के बहुत करीब लगते है मुझे यह, और स्टेशनों के नाम और चित्र और कभी कभी वहां के लोग देख कर काफी अच्छा लगता है.
लिखते रही, खुश रहिये.
धन्यवाद सर जी...
Deleteकुछ मित्रो द्वारा आप के पैसेंजर ट्रेन यात्राओं को पसन्द नहीं करने से आप ने अपनी रेल यात्रायों को पोस्ट करना बंद कर दिया था यह जानकारी आप के इस पोस्ट से मिली,नहीं तो बहुत से मित्र शायद यही यही जानते होंगे की आप ने रेल यात्रा एक दम कम कर दी है,मेरे समझ से रेल के विषय मे आप की रोचक जानकारी,रेल मे रुचि,रेल यात्रा करना आप को प्रिय है। और शायद यही रेल यात्रा ने आप को एक बड़ी पहचान दी है । फिर रेल यात्रा करना और इसे प्रकाशित न करना कहाँ तक उचित है। हो सकता है कुछ मित्रो को ट्रैकिंग यात्रा पसंद न हो तो क्या इस ट्रैकिंग यात्रा को पोस्ट करना बंद किया जा सकता है । रेल यात्रा आप की पहचान है कृपया इसे जारी रखे ।
ReplyDeleteधन्यवाद सर... अब के बाद रेलयात्राएँ नियमित प्रकाशित हुआ करेंगी...
Deleteखुशी है की अब के बाद ऐसी ट्रेन यात्राओं के वृत्तान्त भी छपा करेंगे।जो रेल यात्रा अभी पोस्ट होना बाकी है कृपया समयानुसार उन्हे भी प्रकाशित करें ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया यात्रा वृत्तान्त। आप के बहुमूल्य सुझाओ को कौन समझने वाला है ।
ReplyDeleteनीरज भाई, इतनी गहन जानकारी तो रेलवे वाले भी नहीं दे सकते |आपके द्वारा बहुत कुछ सीखने समझने को मिलता है |यूँ ही हमारा ज्ञानवर्धन करते रहिये धन्यवाद |
ReplyDeleteआपने बहुत सी यादें ताजा करदी क्योंकि आपने यात्रा का जो रूट चुना इस रूट से मैं सैंकड़ों बार गुजर चुका हूँ चूंकि मेरी जन्मभूमि और कर्मभूमि यही क्षेत्र है।जोधपुर में जन्म, मेड़ता सिटी में बचपन और अजमेर में शिक्षा ली है।रूट के स्टेशनों की गहन जानकारी रुचिकर लगी।
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