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यह गोमो से आसनसोल जाने वाली एक मेमू ट्रेन थी जो आसनसोल में पांच मिनट रुककर बर्द्धमान के लिये चल देती है। बर्द्धमान से हावडा जाने के लिये थोडी-थोडी देर में लोकल ट्रेनें हैं जो कॉर्ड व मेन दोनों लाइनों से जाती रहती हैं। मैंने गोमो से ही सीधे हावडा का पैसेंजर का टिकट ले लिया। पूरे 300 किलोमीटर है।
सुबह सवा सात बजे ट्रेन चल पडी। गोमो से निकलकर रामकुण्डा हाल्ट था जहां यह ट्रेन नहीं रुकती। शायद कोई भी ट्रेन नहीं रुकती। पहले रुकती होगी कभी। इसके बाद मतारी, नीचीतपुर हाल्ट, तेतुलमारी, भूली हाल्ट और फिर धनबाद आता है। आठ बजकर दस मिनट पर धनबाद पहुंच गये। गोमो से यहां तक ट्रेन बिल्कुल खचाखच भरी थी। सुबह का समय और धनबाद जैसी जगह; भला ट्रेन क्यों न भरे? धनबाद में खाली हो गई और फिर नये सिरे से भर गई हालांकि इस बार उतनी भीड नहीं थी।
ट्रेन को यहां से तुरन्त ही चल देना चाहिये था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रुकी रही... रुकी रही... रुकी रही। साढे आठ... पौने नौ... नौ... सवा नौ... साढे नौ... पौने दस...। आखिरकार नौ बजकर पचास मिनट पर ट्रेन चली तकरीबन डेढ घण्टे की देरी से। अक्सर पूर्वी रेलवे की ये लोकल ट्रेनें कभी भी लेट नहीं होतीं। एक बार तो मन में आया कि इस भीड भरी ट्रेन को छोड दूं और कोडरमा से आने वाली लोकल में चढ जाऊं। कोडरमा लोकल भी बर्द्धमान तक जाती है और इसके पन्द्रह मिनट बाद ही यहां आने वाली है। इसमें इसके यात्री तो हैं ही, साथ ही कोडरमा लोकल के यात्री भी हैं, इसलिये डबल भीड है। लेकिन फिर सोचा कि ज्यादा स्यानापंती ठीक नहीं है। अभी तो गोमो लोकल ही डेढ घण्टे लेट हुई है, क्या पता कोडरमा लोकल भी यहां आकर रुक जाये। आखिरकार इसी में चढा रहा।
धनबाद से आगे डोकरा हाल्ट और प्रधान खांटा जंक्शन हैं। प्रधान खांटा से एक लाइन सिन्दरी टाउन व आगे आद्रा की तरफ जाती है। इससे अगला स्टेशन छोटा अम्बोना है। यहां स्टेशन का नाम बंगाली में भी लिखा देखकर हैरान रह गया। गौरतलब है कि धनबाद से अगला बडा स्टेशन आसनसोल है जो पश्चिमी बंगाल में स्थित है। इसका अर्थ हुआ कि धनबाद और आसनसोल के बीच में कहीं झारखण्ड और पश्चिमी बंगाल की सीमा है। फिर स्टेशनों के नाम हिन्दी, अंग्रेजी और उस राज्य की राजकीय भाषा में लिखे जाते हैं। अभी तक सभी नाम हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू में लिखे मिल रहे थे। यूपी, बिहार और झारखण्ड में उर्दू भी चलती है। अब जब छोटा अम्बोना को बंगाली में लिखा देखा तो इसका अर्थ था कि झारखण्ड पीछे छूट गया और पश्चिमी बंगाल शुरू हो गया। हैरानी इस बात की थी कि मेरी जानकारी के अनुसार पश्चिमी बंगाल इतनी जल्दी शुरू नहीं होना चाहिये था। मोबाइल में गूगल मैप और जीपीएस से अपनी सटीक स्थिति देखी तो पता चला कि मैं झारखण्ड में ही हूं और अभी भी तीस-चालीस किलोमीटर तक झारखण्ड है।
तो गलत कौन है? गूगल मैप में अक्सर त्रुटियां मिल जाती हैं लेकिन राज्यों की सीमाओं में कोई त्रुटि नहीं मिलती। अर्थात गूगल मैप गलत नहीं हो सकता। असल में यह सारा खेल रेलवे जोन व डिवीजन का है। प्रधान खांटा तक पूर्व मध्य रेलवे की धनबाद डिवीजन है और इसके बाद पूर्वी रेलवे की आसनसोल डिवीजन शुरू हो जाती है। पूर्वी रेलवे मुख्यतः पश्चिमी बंगाल में है तो उसने अपने अन्तर्गत आने वाले सभी स्टेशनों को बंगाली में भी लिख दिया है।
चलिये, आगे बढते हैं। छोटा अम्बोना के बाद कालुबथान, थापरनगर, मुगमा, कुमारधुबी, बराकर, कुलटी, सीतारामपुर जंक्शन, बराचक जंक्शन और आसनसोल जंक्शन हैं। कुमारधुबी और बराकर के बीच से बराकर नदी बहती है जो यहां झारखण्ड-बंगाल सीमा बनाती है। इस प्रकार कुमारधुबी झारखण्ड में है और बराकर पश्चिमी बंगाल में। सीतारामपुर से एक लाइन जसीडीह और आगे पटना तक जाती है, बराचक से एक लाइन इधर-उधर होती हुई आगे अण्डाल में इसी लाइन में मिल जाती है और आसनसोल से एक लाइन आद्रा, पुरुलिया जाती है।
वैसे तो यह ट्रेन (63542) आसनसोल तक ही थी लेकिन यही डिब्बे नये नम्बर (63516) से बर्द्धमान भी जाते हैं। इसलिये मुझे इससे उतरने की जरुरत नहीं थी। आसनसोल से आगे के स्टेशन हैं- काली पहाडी, रानीगंज, अण्डाल जंक्शन, वारिया, दुर्गापुर, राजबांध, पानागढ, मानकर, पाराज, गलसी, इशान चण्डी हाल्ट, खाना जंक्शन, तालित और बर्द्धमान जंक्शन। अण्डाल जंक्शन से एक लाइन बराचक तो जाती ही है, साथ ही दूसरी लाइन सिउडी भी जाती है। खाना जंक्शन से आप रामपुरहाट और आगे भागलपुर वाली लाइन पर यात्रा कर सकते हैं। जबकि बर्द्धमान इसलिये जंक्शन है क्योंकि यहां से एक नैरो गेज की लाइन कटवा जाती है। कटवा नैरो गेज लाइन पर कुछ ही दूर तक नैरो गेज की ट्रेन चलती है, फिर गेज परिवर्तन हो चुका है और ब्रॉड गेज की ट्रेन चल चुकी है।
आसनसोल से रानीगंज और दुर्गापुर तक एक औद्योगिक क्षेत्र है। साथ ही यहां कोयले की खानें भी हैं। बडे-बडे ताप बिजलीघर हैं। इसलिये इस मुख्य लाइन के अलावा भी अनगिनत छोटी-छोटी लाइनें यहां बिछी हैं। इनमें से बहुत सी लाइनें इसलिये भी बन्द हो चुकी हैं क्योंकि उनके नीचे से कोयला निकाल-निकालकर जमीन खोखली और कमजोर हो चुकी है। फिर भी यहां रेल की लाइनें देख-देखकर हैरानी होती हैं। गूगल मैप में इस पूरे रेल नेटवर्क को आसानी से देखा जा सकता है। सौ सौ किलोमीटर तक की ऐसी लाइनें हैं जहां केवल कोयला ढोने वाली मालगाडियां ही चलती हैं, कोई यात्री गाडी नहीं चलती।
बर्द्धमान में मेरे पास लगभग एक घण्टा था। यहां से हावडा के लिये लोकल ट्रेनों की कोई कमी नहीं है। दो लोकल ट्रेनें (37838 और 36842) अभी भी खडी थीं। इनमें से एक मेन लाइन से जायेगी और दूसरी कॉर्ड के रास्ते से।
बर्द्धमान से हावडा जाने की दो लाइनें हैं- एक मेन लाइन और दूसरी कॉर्ड (Cord) लाइन। कॉर्ड को हिन्दी में जीवा कहते हैं। यह एक गणितीय शब्द है। किसी वृत्त में परिधि पर किन्हीं भी दो बिन्दुओं को मिलाने वाली सीधी रेखा को जीवा कहा जाता है। इसी तरह बर्द्धमान से हावडा जाने का एक तो परिधीय मार्ग है जो बैण्डेल होते हुए जाता है। इसकी लम्बाई करीब 110 किलोमीटर है। दूसरा बिल्कुल सीधा मार्ग है जो करीब 90 किलोमीटर लम्बा है। दोनों ही मार्गों पर लोकल ट्रेनें चलती हैं।
मैंने गोमो से अब तक कुछ भी नहीं खाया था। भूख लग रही थी। सारी यात्रा दरवाजे पर खडे हुए ही तय की थी, इसलिये पैर भी दुख रहे थे। बहुत थकान हो रही थी। इसलिये तय किया कि एक घण्टे बाद जो लोकल (37840) आयेगी, उसमें जाऊंगा। स्टेशन से बाहर निकल आया। एक होटल में निरामिष दाल भात खाये। चालीस रुपये लगे। बंगाल मैं कई बार जा चुका हूं। जमकर हिन्दी बोलता हूं। लेकिन परदेशी समझकर किसी ने न तो कभी ठगने की कोशिश की और न ही हिन्दी बोलने से मना किया। बंगाल को मैं विशेष इज्जत से देखता हूं क्योंकि बंगालियों के माथे एक ठप्पा लगा हुआ है कि यह कौम भारत में सबसे ज्यादा घूमती है। हिमालय पर दुर्गम स्थानों पर ट्रैकिंग हो या किसी सुगम स्थान पर मौजमस्ती; बंगाली अवश्य मिलते हैं।
तीन बजकर पांच मिनट वाली लोकल (37840) मेन लाइन से जायेगी और तीन बजकर दस मिनट वाली (36844) कॉर्ड से। मैंने मेन लाइन से जाने का फैसला किया। हालांकि कॉर्ड वाली हावडा जल्दी पहुंचती है लेकिन मुझे कोई जल्दी नहीं थी। दोनों लोकल एक ही प्लेटफार्म से रवाना होती हैं। जब मेन लाइन वाली लोकल प्लेटफार्म पर खडी थी तो इसके चलने से पहले ही कॉर्ड वाली भी इसके पीछे आकर लग गई। पीछे वाली इतनी पास आकर रुकी कि फर्क करना मुश्किल था कि ये दो अलग अलग ट्रेनें हैं। किसी नये आदमी को अगर मेन लाइन पर जाना हो तो वह आसानी से भूलवश कॉर्ड वाली में चढ सकता था। इसी तरह अगर कॉर्ड लाइन पर जाना हो तो वह मेन लाइन वाली में चढ सकता था। लेकिन नया होने के बावजूद भी मुझे तो फर्क पता था, इसलिये मेन वाली में जा चढा। ठीक समय पर ट्रेन चल पडी।
बर्द्धमान से हावडा तक मेन लाइन के सभी स्टेशन इस प्रकार हैं- बर्द्धमान जंक्शन, गांगपुर, शक्तिगढ, पालसिट, रसूलपुर, निमो, मेमारी, बागिला, देबीपुर, बैंची, बैंचीग्राम, सिमलागड, पाण्डुया, खन्यान, तालाण्डु, मगरा, आदि सप्तग्राम, बैण्डेल जंक्शन, हुगली, चुचुडा, चन्दन नगर, मानकुण्डु, भद्रेश्वर, बैद्यबाटी, सेवडाफुली जंक्शन, श्रीरामपुर, रिसडा, कोननगर, हिन्द मोटर, उत्तरपाडा, बाली, बेलूड, लिलुआ और हावडा।
शक्तिगढ से मेन लाइन और कॉर्ड लाइनें अलग-अलग होती हैं। बैण्डेल से एक लाइन मालदा टाउन चली जाती है और एक लाइन हुगली पार करके सियालदह जाती है। इसी तरह सेवडाफुली जंक्शन से तीसरी लाइन ताडकेश्वर जाती है। ताडकेश्वर वाली लाइन कॉर्ड लाइन को पुल के द्वारा नब्बे डिग्री के कोण पर कमारकुण्डु में काटती है। इसी तरह बाली में भी कॉर्ड लाइन से सीधे सियालदह जाने वाली लाइन पुल के द्वारा इस मेन लाइन को काटती है। बाली में ही कॉर्ड और मेन लाइनें फिर से एक हो जाती हैं।
हावडा जायें और स्टेशन से बाहर निकलकर हावडा पुल न देखें? असम्भव है। इस पुल को बस देखते रहने का मन करता है। फोटो में यह बहुत छोटा नजर आता है। इसी कारण मैंने इसका बहुत साधारण सा एक ही फोटो लिया। पूरी तरह लोहे से बने इस पुल की विशालता का एहसास बस खडे होकर देखते रहने में है। साथ ही हावडा स्टेशन की विशालकाय इमारत भी हैरतअंगेज है।
शाम सात बजकर दस मिनट पर हावडा-अमृतसर मेल (13005) चलती है। इसमें मेरा पटना तक का आरक्षण था। ट्रेन प्लेटफार्म नम्बर आठ पर आई। साधारण डिब्बों के सामने पुलिस वाले यात्रियों को लाइन में खडा कर रहे थे और पैसे लेकर उन्हें डिब्बे में प्रवेश करने दे रहे थे। लम्बी दूरी की ट्रेनों में हमेशा ऐसा देखने को मिलता है। साधारण टिकटधारियों को बैठने के लिये सीट चाहिये होती है। पुलिस वाले इसी का फायदा उठाते हैं। एक नम्बर की कुत्ती कौम है पुलिस।
रात साढे ग्यारह बजे ट्रेन जसीडीह पहुंचेगी। वहां मित्र आशीष गुटगुटिया ने मिलने को कहा है। दिन भर का थका हुआ हूं, सुबह सवेरे फिर उठना है; इसलिये आज मैं आधी रात को नहीं जगना चाहता। हालांकि फेसबुक पर मैंने उन्हें मिलने से मना कर दिया था, लेकिन फिर भी वे मिलने को उत्सुक हैं। अभी तक उन्होंने फोन नहीं किया कि किस डिब्बे में हूं। हो सकता है कि आधी रात को फोन करके पूछें। इसलिये इसे साइलेण्ट कर लेता हूं। सुबह सवा चार बजे ट्रेन पटना पहुंचेगी, इसलिये सवा चार बजे का अलार्म लगा लेता हूं। फोन साइलेण्ट हो या स्विच ऑफ, अलार्म तो बज ही जाता है।
हालांकि आधी रात को उनका फोन नहीं आया।
नाम भले ही बंगाली में भी लिखा हो, लेकिन यह झारखण्ड में है। |
बराकर इस लाइन पर पश्चिमी बंगाल का पहला स्टेशन है। |
हावडा स्टेशन |
1. मुगलसराय से गोमो पैसेंजर ट्रेन यात्रा
2. गोमो से हावडा लोकल ट्रेन यात्रा
3. पटना से दिल्ली ट्रेन यात्रा
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ReplyDelete1-mai ne main line se jane ka faisla kiya...
ReplyDelete2-Lekin naya hone k wabjood v mujhe fark pata tha..isliye chord wali me ja chadha..
3-ab aap to chadhe chord local me ..station k vivran diya main line ka ...
4-main line me bwn -hwh tak 34 station hai ..jabki chord line pe 30 station hai....
5-To kiya aapne shaktigarh station me train badal li...
6-pic to aapne main line ki laga rakhi hai....
7-Agar aapne train badli v to kaise ..jabki chord local to main line local se peeche thi....
Duwidha ko door kare neeraj bhai......
Ranjit....
रणजीत जी, भूल की तरफ ध्यान दिलाने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद। वहां गलती से कॉर्ड लिखा गया, मैं मेन लाइन से ही हावडा गया था। गलती को सुधार लिया गया है। धन्यवाद।
DeleteNeeraj Ji.. Bahut hi acchha lekh tha aapka, lekin Aapne, jaha tak main Sahi hoon, Dhanbad jo ki NCR(North Central Railway) ka sabse important railway station hai,,uska 1 bhi photo nahi dala.. Sayad aap bhool gaye.
ReplyDeleteWaise Main UP ka rahne wala hoon, aur meri Schooling Dhanbad me huyi thi..Aaj kal main Delhi me job karta hoo.
Aapke Mogalsarai se Gomoh tak ke yatra lekh ne mujhe mere jharkahnd ke dino ki yaad dila di..
धन्यवाद..
रविकान्त जी, धनबाद NCR में नहीं आता बल्कि ECR में आता है। मैं ट्रेन में अत्यधिक भीड होने के कारण धनबाद की फोटो नहीं ले सका। इसलिये यहां भी नहीं लगाया।
Deleteभाई इतने स्टैशन वो भी ऐसे जो शायद ही सुने हो.कमाल है भाई ऐसी यात्रा केवल आप ही कर सकते हो.पर अब शायद ही इस तरह की यात्रा हमे देखने को मिले वो इसलिए की आपने साईकल यात्रा की तरह लोकल पैसेंजर यात्रा भी भविष्य में ना करने की ठान ली है
ReplyDeleteसचिन भाई, पैसेंजर यात्राओं पर इतना अच्छा रेस्पॉंस नहीं मिलता था। सभी को रोमांच पसन्द है, इसलिये सभी ट्रेकिंग कथा को पढना पसन्द करते हैं। फिर आपको क्या लगता है? क्या मैं ट्रेन यात्राएं छोड सकूंगा?
Deleteनही छोड पाओगे,क्योकी आपको इन यात्राओ में आन्नद आता है,आप इसको पसंद करते है,यह आप का ब्लॉग है जहां पर आप अपनी की गई यात्रा वृतांत लिखते है, चाहे वो कैसी भी हो,
Deleteआप भूल जाए की कैसा रेस्पोंस मिल रहा है.बस आप यात्रा करते रहे ओर लिखते रहे.
Neeraj Bhai, December mahiney mein Uttarakhand mein snow fall wali koi jagah suggest kijiye, jo rail network ke karib ho aur jyada congestion bhi na ho..................... Thank you.
ReplyDeleteउत्तराखण्ड में रेल नेटवर्क के नजदीक बर्फबारी वाली जगह...
Deleteउत्तर है कोई नहीं। देहरादून के नजदीक मसूरी है जहां आजकल बर्फबारी दुर्लभ है। ऋषिकेश, कोटद्वार, रामनगर, काठगोदाम और टनकपुर के आसपास भी कोई ऐसी जगह नहीं है। लैंसडाउन और नैनीताल में भी बर्फबारी अक्सर नहीं होती। होती भी है तो कभी-कभार जनवरी फरवरी में हो जाती है जब पश्चिमी विक्षोभ चरम पर होता है।
badhiya bhai neeraj .
ReplyDeleteati sunder ----bhul bhuliya satoin---
ReplyDeleteशानदार और मजेदार पोस्ट।
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