4 अगस्त 2014
जैसा कि आप जानते हैं कि मुझे नई नई लाइनों पर पैसेंजर ट्रेनों में घूमने का शौक है। और अब तो एक लक्ष्य और बना लिया है भारत भर के सभी रेलवे स्टेशनों के फोटो खींचना। तो सभी स्टेशनों के फोटो उन्हीं ट्रेनों में बैठकर खींचे जा सकते हैं जो सभी स्टेशनों पर रुकती हों यानी पैसेंजर व लोकल ट्रेनें।
कुछ लाइनें मुख्य लाइनें कही जाती हैं। ये ज्यादातर विद्युतीकृत हैं और इन पर शताब्दी व राजधानी ट्रेनों सहित अन्य ट्रेनों का बहुत ज्यादा ट्रैफिक रहता है। इनके बीच में जगह जगह लिंक लाइनें भी होती हैं जो मुख्य लाइन के कुछ स्टेशनों को आपस में जोडती हैं। इन लिंक लाइनों पर उतना ट्रैफिक नहीं होता। इसी तरह की तीन मुख्य लाइनें हैं- दिल्ली- आगरा लाइन जो आगे भोपाल की तरफ चली जाती है, मथुरा-कोटा लाइन जो आगे रतलाम व वडोदरा की ओर जाती है और दिल्ली- जयपुर लाइन जो आगे अहमदाबाद की ओर जाती है। इन लाइनों पर मैंने पैसेंजर ट्रेनों में यात्रा कर रखी है। इनके बीच में कुछ लिंक लाइनें भी हैं जो अभी तक मुझसे बची हुई थीं। ये लाइनें हैं मथुरा-अलवर, जयपुर-सवाई माधोपुर और बयाना-आगरा किला। इन सभी लाइनों पर पैसेंजर ट्रेनों में दो-तीन घण्टे से ज्यादा का सफर नहीं है। कार्यक्रम इन तीनों लाइनों को निपटाने का बनाया।
सुबह निजामुद्दीन पहुंच गया ताज एक्सप्रेस पकडने। यह नौ बजे तक मथुरा पहुंच जायेगी और मैं वहां से दस वाली अलवर पैसेंजर पकड लूंगा। निजामुद्दीन पर प्लेटफार्म नम्बर पांच पर ताज खडी थी, तीन पर मेवाड एक्सप्रेस खडी थी जो अभी अभी उदयपुर सिटी से आई थी। छह पर गोवा सम्पर्क क्रान्ति आ गई जो मडगांव जायेगी। बाकियों पर भी ट्रेनें थीं, लेकिन मुझे नहीं पता कि कौन-कौन सी थीं।
मथुरा पहुंचा। सबसे पहले पता किया कि क्या आज अलवर पैसेंजर चल रही है या नहीं। कुछ समय पहले जब मैं पिताजी और धीरज के साथ मथुरा गया था तो यह ट्रेन रद्द थी। संयोग से आज यह रद्द नहीं थी। अलवर का टिकट ले लिया। और इस ट्रेन के लिये बने एक स्पेशल प्लेटफार्म पर पहुंच गया। लगातार उदघोषणा हो रही थी कि यह ट्रेन प्लेटफार्म नम्बर दो पर दिल्ली की तरफ बिल्कुल आखिर में खडी है। अगर उदघोषणा ना होती तो मुझे भी इसे ढूंढने में परेशानी होती।
ट्रेन बिल्कुल खाली थी। इसका चलने का समय दस बजकर पांच मिनट था लेकिन यह नहीं चली। मैं रात भर का जगा था, लेट गया और सो गया। ट्रेन चलेगी तो अपने आप आंख खुल जायेगी।
और जब आंख खुली तो ग्यारह बज चुके थे। अर्थात ट्रेन एक घण्टे की देरी से रवाना हुई थी। मुझे इससे कोई फर्क नहीं पडना था क्योंकि अलवर पहुंचकर मुझे जयपुर की कोई ट्रेन ले लेनी थी। अलवर से जयपुर पैसेंजर यात्रा मैंने कर रखी है, इसलिये इस बार पैसेंजर में ही चढने का कोई दबाव नहीं था। एक्सप्रेस भी आयेगी, तब भी उसी में चढ लूंगा।
भूतेश्वर तो मुख्य लाइन पर ही है। यहां से आगे ट्रेन अलवर की ओर मुड जाती है। मार्ग अविद्युतीकृत है लेकिन काम चल रहा है। भूतेश्वर से आगे के स्टेशन हैं- मोरा, गोवर्धन, डीग, बेढम, बृजनगर, गोविन्दगढ, जाडोली का बास, रामगढ, ऊटवाड और अलवर जंक्शर। इस लाइन पर गोवर्धन यूपी का आखिरी स्टेशन है और डीग राजस्थान का पहला स्टेशन।
इस मार्ग के विद्युतीकृत हो जाने से इस पर यातायात बढेगा खासकर मालगाडियां बढ जायेंगीं। इसके मद्देनजर कुछ नये स्टेशन भी बनाये जा रहे हैं। ये नये स्टेशन चार-पांच हैं। इनका नाम तो मुझे नहीं पता चला। कुछ स्टेशनों की इमारत बन गई है, कुछ की पहचान मुझे बिजली के खम्भों के पैटर्न से हुई।
वही एक घण्टे की देरी से यानी दो बजे अलवर पहुंचे। यहां से मुझे अब जयपुर जाना था। रात को विधान के यहां रुकूंगा। आला हजरत ठीक समय पर आई लेकिन मैं इसमें नहीं चढा। कुछ देर बाद जब खैरथल जयपुर एक्सप्रेस आई तो यह बिल्कुल खाली थी। आला हजरत भरी हुई थी। अलवर की सभी सवारियां इसमें चली गईं। खैरथल जयपुर एक्सप्रेस वैसे तो रेलवे के आधिकारिक रिकार्ड में अलवर-जयपुर एक्सप्रेस है लेकिन यह खैरथल तक का भी चक्कर लगाकर आती है। इसके बावजूद भी इसमें भीड नहीं थी। मैं इसमें सोता गया।
विधान भाई का घर जयपुर शहर से बहुत बाहर है। शाम को उनके कहे अनुसार बस पकडता-बदलता मैं चला गया लेकिन सुबह वे मुझे खुद स्टेशन छोडने आये बाइक पर। पौने सात बजे बयाना पैसेंजर थी। इस ट्रेन से मैं सवाई माधोपुर तक जाऊंगा, वहां से आधे घण्टे बाद कोटा-यमुना ब्रिज पैसेंजर पकडूंगा। यह दूसरी ट्रेन भी बयाना होते हुए ही जायेगी लेकिन जयपुर-बयाना पैसेंजर सवाई माधोपुर के बाद फास्ट पैसेंजर बन जाती है यानी खास-खास स्टेशनों पर ही रुकेगी जबकि कोटा-यमुना ब्रिज पैसेंजर हर स्टेशन पर रुकेगी।
जयपुर स्टेशन पर आगरा शताब्दी खडी थी। इस शताब्दी को चले ज्यादा समय नहीं हुआ। लेकिन ताज्जुब की बात थी कि इसमें दूसरे रेलवे जोन के डिब्बे लगे थे। खासकर दक्षिण-पूर्व रेलवे और पूर्व रेलवे। उधर अपनी बयाना पैसेंजर प्लेटफार्म तीन पर थी आबू रोड के WDM2 इंजन के साथ। यह ट्रेन रात कोटा से चली थी। सुबह जयपुर आ गई। अब दिन में एक चक्कर बयाना का लगाकर शाम तक जयपुर आ जायेगी और फिर रात को कोटा व रतलाम के लिये चली जायेगी।
जयपुर से आगे के स्टेशन हैं- बाइस गोदाम, दुर्गापुरा, सांगानेर, श्योदासपुरा पदमपुरा, चाकसू, चन्नानी, बनस्थली निवाई, सिरस, ईसरदा, सुरेली, चौथ का बरवाडा, देवपुरा और सवाई माधोपुर जंक्शन। बाहर मौसम खराब था और अन्दर ट्रेन भी भीड थी, इसलिये हर स्टेशन के फोटो नहीं खींचे जा सके।
अब एक नजर डालते हैं सवाई माधोपुर स्टेशन की गतिविधियों पर। जयपुर-सवाई माधोपुर रूट पर काफी सारी ट्रेनें चलती हैं। ज्यादातर ट्रेनें जयपुर से आती हैं और कोटा की तरफ जाती हैं। इन ट्रेनों का इंजन बदलना पडता है। सवाई माधोपुर से जयपुर वाली लाइन विद्युतीकृत नहीं है, इसलिये डीजल इंजन लगता है जबकि कोटा वाली लाइन विद्युतीकृत है, इसलिये बिजली वाला इंजन लगाना होता है। एक अलग यार्ड में कई इंजन खडे थे। जहां जैसी जरुरत पडती है, वही इंजन लगा दिया जाता है। ऐसा ही आगरा व मथुरा की तरफ जाने वाली ट्रेनों के साथ भी होता है।
बयाना पैसेंजर सवाई माधोपुर के प्लेटफार्म एक पर पहुंची, पांच मिनट रुकी और आगे बयाना की तरफ चली गई। फिर दो पर दयोदया आ गई। यह जबलपुर से आती है और कुछ समय पहले तक जयपुर तक ही जाती थी, अब अजमेर तक जाती है। इससे भी बिजली का इंजन हटाकर डीजल इंजन लगाकर जयपुर की ओर रवाना कर दिया। फिर प्लेटफार्म तीन पर मथुरा-रतलाम पैसेंजर आ गई। इस ट्रेन में मैंने मथुरा से शामगढ तक यात्रा कर रखी है।
अभी तक उदघोषणा हो रही थी कि मेरी कोटा-यमुना ब्रिज पैसेंजर प्लेटफार्म एक पर आयेगी। लेकिन जब एक पर मुम्बई-जयपुर एक्सप्रेस आ गई तो यमुना ब्रिज पैसेंजर का प्लेटफार्म बदल दिया। अब यह तीन पर आयेगी। मुम्बई-जयपुर एक्सप्रेस का भी इंजन बिजली से डीजल में बदला जाता है। उधर कोटा-यमुना ब्रिज पैसेंजर तीन पर आई तो इधर दो पर निजामुद्दीन-कोटा स्पेशल आ गई। दोनों ट्रेनें एक साथ ही आईं और एक साथ ही अपने अपने गन्तव्य की ओर रवाना हो गई। लेकिन यमुना ब्रिज पैसेंजर के रवाना होने से पहले मैं इसमें चढ चुका था। इसे वडोदरा का WAG-5P इंजन खींच रहा था। यह भी एक ताज्जुब की बात थी। यह इंजन मालगाडियों को खींचने ले किये डिजाइन किया गया है। इसे पैसेंजर में लगाना बिल्कुल वैसा ही है जैसे किसी हाथी को एक साइकिल खींचने को कहा जाये। यही कारण था कि यह हर स्टेशन पर धडधडाती हुई जाती, रुकती और प्लेटफार्म पार करते करते पचास की रफ्तार पकड लेती और जल्द ही सौ भी पार कर जाती। और यही कारण था कि यह सवाई माधोपुर एक घण्टे की देरी से आई थी और बयाना पन्द्रह मिनट पहले पहुंच गई। हालांकि इस पर लिखा था- फिट फॉर पैसेंजर ओनली। इसका मतलब था कि यह इंजन बूढा हो गया है और मालगाडियों को खींचने लायक नहीं रहा। बयाना पैसेंजर के विपरीत यह बिल्कुल खाली थी।
सवाई माधोपुर से बयाना तक मैंने पहले पैसेंजर ट्रेन में यात्रा कर रखी थी लेकिन किसी कारण से मेरे पास फोटो नहीं थे। अब सभी स्टेशनों के फोटो भी हो गये।
बयाना से आगे चलते हैं- बयाना जंक्शन, बीरमबाद, बंध बारेठा, नगला तुला, बंसी पहाडपुर, धाना खेडली, रूपबास, औलेण्डा, फतेहपुर सीकरी, सिंगारपुर, किरावली, मिढाकुर, पथौली, ईदगाह आगरा जंक्शन और आगरा किला। हालांकि यह ट्रेन इससे अगले स्टेशन यमुना ब्रिज तक जाती है। लेकिन मुझे सुविधा के लिये आगरा किला पर ही उतर जाना है।
रूपबास के बाद गाडी राजस्थान से उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर जाती है और यूपी का इस लाइन पर पहला स्टेशन है औलेण्डा। फतेहपुर सीकरी में भीषण भीड गाडी का इंतजार कर रही थी। यह भीड इतनी भयंकर थी कि कई यात्री गाडी में चढ भी नहीं सके। पता चला कि यहां कोई पीर का मेला था, उसमें भाग लेने लोगबाग आये थे।
आगरा किला स्टेशन पर वही जयपुर शताब्दी खडी थी जिसे मैंने सुबह जयपुर में देखा था। बाहर निकला तो छावनी स्टेशन जाने के लिये शेयर ऑटो मिल गये। ऑटो में बैठा बैठा मैं देखता जा रहा था कि आगरा छावनी से दिल्ली के लिये कौन सी गाडी कितने बजे आने वाली है। तभी मेरी निगाह पडी मदुरई-देहरादून एक्सप्रेस पर। यह एक साप्ताहिक गाडी है, इसमें दैनिक गाडियों के मुकाबले भीड नहीं मिलेगी। इसी से जाऊंगा। लेकिन ऑटो में कुछ लोग ऐसे भी थे, जो रास्ते में पडने वाली एक प्रसिद्ध दुकान से पेठा लेना चाहते थे। इनमें कुछ महिलाएं भी थीं। बस, फिर क्या था। पन्द्रह मिनट हो गये, बीस मिनट हो गये, महिलाएं पेठा ही नहीं ले सकीं। फिर कुछ मैंने जोर दिया कि मेरी ट्रेन निकली जा रही है, कुछ ऑटो वाले ने जोर दिया, तब जाकर पुरुषों ने कदम बढाये और एक मिनट में ही कम से कम दस किलो पेठा उठा लाये।
मैं लगातार देहरादून एक्सप्रेस को ट्रैक कर रहा था। यह बस कुछ ही समय में आगरा पहुंचने वाली थी। मुझे टिकट भी लेना था, लगने लगा कि नहीं पकड पाऊंगा। तो फिर ताज पकडूंगा। उसमें कम से कम बैठने की जगह तो मिल जायेगी। लेकिन तभी स्टेशन के बाहर एक दुकान पर निगाह गई- यहां टिकट मिलते हैं। वहां एक रुपये अतिरिक्त देकर बिना किसी लाइन में लगे दिल्ली का टिकट मिल गया। टिकट मिलते ही स्टेशन की तरफ दौड लगा दी। ट्रेन प्लेटफार्म पर आ चुकी थी। बराबर वाले प्लेटफार्म पर पंजाब मेल खडी थी। उसके साधारण डिब्बों में भारी भीड थी जबकि इस मदुरई-देहरादून के साधारण डिब्बे खाली पडे थे। यह वही मदुरई-देहरादून एक्सप्रेस थी जिसमें कुछ दिन पहले मैं झांसी से चण्डीगढ गया था। इसमें कुछ डिब्बे चण्डीगढ के भी होते हैं, जो सहारनपुर जाकर अलग होते हैं।
नीरज भाई बड़ी सुबह सुबह post की! खैर ये पैसेन्जर वर्णन काफी अच्छा है तुलनात्मक रूप से अन्य पैसेन्जर वर्णनों से | ये शैली फिट है एकदम,
ReplyDeletebura mt manna bt ye sayad pahli pasngr yatra h jo pdne me majedar h
ReplyDeleteनीरज भाई यह यात्राऐं आपका जनून है,पर भाई थकावट भी होती होगी.अगर ट्रेन खाली पडी है तब तो आप लैट सकते हो,वरना बडी समस्या होती होगी?
ReplyDeletevery nice report sir.
ReplyDeletejaipur agra shatabdi ke LHB rake delhi jaipur special ko de diye hain kyuki wo bahut popular train hai
jab howrah ranchi shatabdi ko LHB rake mile to uske purane coach NWR zone ko transfer ho gaye
आपका बहुत बहुत धन्यवाद रस्तोगी साहब, जानकारी बढाने के लिये।
Deleteनीरज भाई आप रेलवे में जॉब करते हो क्या ?
ReplyDeleteआपकी पोस्ट बहुत रोचक होती हैं !
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है !
काफी विस्तृत जानकारी दी है।
ReplyDeleteअभी मैंने " कोटा से हनुमानगढ़ " का सफर किया --कभी वहां पर भी जाओ और लिखो ----
ReplyDeleteमैं उस रूट पर गया हूं। पैसेंजर में और दिन में। आपकी ‘कोटा-हनुमानगढ’ ट्रेन रात में चलती है।
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