28 सितम्बर 2015
सुबह उठे तो पैर बुरी तरह अकडे थे। करण तो चलने में बिल्कुल असमर्थ ही हो गया था। इसका कारण था कि कल हमने तेज ढाल का कई किलोमीटर का रास्ता तय किया था। कल हम कई घण्टों तक उतरते ही रहे थे, इसलिये पैरों की दुर्गति होनी ही थी। आज के लिये कल तय किया था कि पहले अत्रि मुनि आश्रम जायेंगे, फिर वापस मण्डल। अत्रि मुनि आश्रम जाकर वापस अनुसुईया आना पडता, इसलिये किसी की भी वहां जाने की हिम्मत नहीं हुई।
आलू के परांठे बनवा लिये। साथ ही उसने थोडा सा पानी भी छौंक दिया। जी हां, पानी। प्याज टमाटर को बारीक काटकर पहले फ्राई किया, फिर उसमें दो-तीन गिलास पानी डाल दिया और उबलने दिया। फिर इसे चखकर देखा तो मजा आ गया। था तो यह पानी ही लेकिन इसका स्वाद किसी दाल या आलू की सब्जी को भी पीछे छोड रहा था।
दस बजे यहां से चल दिये। हालांकि अब पक्की कंक्रीट की पगडण्डी बनी थी, लेकिन ढाल में कोई कमी नहीं आई थी। अगर कोई इधर से रुद्रनाथ जाये तो उसकी बडी बुरी हालत हो जाये। इसलिये अगर आप भी रुद्रनाथ जाने का इरादा बना रहे हैं तो भूलकर भी मण्डल, अनुसुईया के रास्ते न जायें बल्कि सग्गर के रास्ते जायें। इधर जंगल भी घना है और रुकने-खाने के विकल्प भी बहुत सीमित हैं और लगातार भयंकर चढाई है जबकि सग्गर वाला रास्ता बहुत सुविधाजनक है।
रास्ते में एक शिलालेख भी है। इसके अनुसार- “ऋतु-क्षीण शिला पर उत्कीर्णित अभिलेख अनुसुईया देवी एवं रुद्रनाथ मन्दिर को जाने वाले दुर्गम पैदल मार्ग पर स्थित है। सात पंक्तियों का यह अभिलेख संस्कृत भाषा एवं उत्तरीय ब्राह्मी लिपि में है। अभिलेख में उल्लिखित है कि महाराजाधिराज परमेश्वर सरवर्मन के अधीन एक क्षत्रिय नरवर्मन ने यहां एक जलाशय एवं मन्दिर का निर्माण अपने पूर्वजों एवं स्वयं के पुण्य-लाभ के लिये कराया था। इस अभिलेख में सरवर्मन के वंश के बारे में कोई उल्लेख नहीं है परन्तु पुरालिपि के आधार पर यह छठीं शताब्दी मध्य ईस्वीं का नियत किया जा सकता है। इस आधार पर एवं साम्राज्यिक उपाधि महाराजाधिराज के आधार पर यह राजा, मौखरी राजा सरवर्मन के रूप में पहचाना गया है, जिसका शासन काल लगभग ईस्वी सन 576 से 580 है। यह अभिलेख प्राचीन तीर्थयात्रा मार्ग पर यात्रियों के लाभार्थ पुण्य-कर्म को व्यक्त करता है। यह अभिलेख इस क्षेत्र के लिये ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है, जो मौर्य कालीन अशोक के कालसी स्थित शिलालेख के उपरान्त उत्तराखण्ड में किसी शासक राजा का सर्वप्रथम पुरातात्विक उल्लेख है।”
बारह बजे मण्डल पहुंचे। मेरी बाइक यहीं खडी थी जबकि करण की बाइक यहां से दस किलोमीटर दूर सग्गर में थी। हमारा सामान भी सग्गर में ही था इसलिये हमें बाइक और सामान लेने सग्गर जाना पडेगा। सग्गर से जब यात्रा शुरू की थी तो इरादा था कि वहां से नीचे आकर चोपता और तुंगनाथ जायेंगे, फिर केदारनाथ। लेकिन अब इस समय जैसी पैरों की हालत है, उससे बिल्कुल भी पैदल चलने का मन नहीं था। करण की सबसे ज्यादा हालत खराब थी। उसने तुंगनाथ जाने से मना कर दिया और बद्रीनाथ जाने को कहने लगा। वह घर पर बद्रीनाथ जाने की कहकर आया था इसलिये उसे बद्रीनाथ अवश्य जाना था- कम से कम एक फोटो खींचने ताकि घर पर दिखा सके कि वो झूठ बोलकर नहीं आया।
वैसे तो मैं तुंगनाथ जाना चाहता था लेकिन चूंकि कभी बद्रीनाथ नहीं गया था, इसलिये मैंने भी बद्रीनाथ चलने की सहमति दे दी। करण सग्गर जाती एक कार में बैठ गया और हम दोनों अपनी बाइक पर। सग्गर से करीब तीन किलोमीटर पहले एक मोड पर बडा ही शानदार झरना दिखाई देता है। चार दिन पहले भी मैंने इसे देखा था और जब आज देखा तो वहां जाने का इरादा बना लिया। सग्गर में जहां हमने सामान छोडा था, उस दुकान वाले से झरने तक जाने की बात की तो उसने एक लडका हमारे साथ भेज दिया। वह लडका किसी जल्दबाजी में रहा होगा। वो हमें झरने के नीचे न ले जाकर ऊपर ले गया। यह काफी ऊंचा झरना है लेकिन यहां जाने का रास्ता नहीं बना है। खेतों और झाडियों से होकर हम गये।
झरने के ऊपर पहुंचकर जब मैंने कहा कि हमें नीचे जाना था क्योंकि नीचे से ही पूरे झरने का अच्छा फोटो आता तो उसने मुझे नीचे जाने का सम्भावित रास्ता दिखाया जोकि निश्चित ही बेहद लम्बा था और कम से कम दो घण्टे लगते। मैंने कहा कि जितनी मेहनत और समय हमने सग्गर से यहां तक आने में लगाये हैं, उतने ही समय में हम सग्गर से झरने के नीचे तक पहुंच जाते। खैर, समय बहुत कम था। हमें बद्रीनाथ भी जाना था, इसलिये वापस सग्गर आये, खाना खाया, सामान वापस लिया, बांधा और ठीक चार बजे चल दिये।
पौने पांच बजे हम चमोली थे और पौने सात बजे जोशीमठ। चमोली से जोशीमठ का रास्ता अच्छा बना है हालांकि एकाध जगहों पर भू-स्खलन के कारण रास्ता खराब है। रास्ते में हेलंग भी आया जहां से उर्गम और कल्पेश्वर के लिये रास्ता जाता है। जोशीमठ पहुंचे तो अन्धेरा हो चुका था और ठण्ड भी लगने लगी थी। शहर में प्रवेश करते ही 400 रुपये का एक कमरा ले लिया। इसमें गीजर तो नहीं था लेकिन सुबह 20 रुपये प्रति बाल्टी के हिसाब से गर्म पानी अवश्य मिल जायेगा।
अनुसुईया के पास शिलालेख |
मण्डल-अनुसुईया पैदल मार्ग: ज्यादातर तो कंक्रीट युक्त है लेकिन कहीं कहीं ऐसा भी है. |
इस फोटो में बीचोंबीच एक झरना दिख रहा है. उसके थोड़ा सा ऊपर दाहिनी तरफ सग्गर गाँव है. सग्गर के पीछे जो पहाड़ हैं, उसके उस पार पनार बुग्याल है, जो रुद्रनाथ पथ के बिल्कुल बीच में है. |
सग्गर का झरना |
जोशीमठ की ओर |
अगला भाग: बद्रीनाथ यात्रा
1. दिल्ली से गैरसैंण और गर्जिया देवी मन्दिर
2. गैरसैंण से गोपेश्वर और आदिबद्री
3. रुद्रनाथ यात्रा: गोपेश्वर से पुंग बुग्याल
4. रुद्रनाथ यात्रा- पुंग बुग्याल से पंचगंगा
5. रुद्रनाथ यात्रा- पंचगंगा-रुद्रनाथ-पंचगंगा
6. रुद्रनाथ यात्रा- पंचगंगा से अनुसुईया
7. अनुसुईया से जोशीमठ
8. बद्रीनाथ यात्रा
9. जोशीमठ-पौडी-कोटद्वार-दिल्ली
सुंदर ता का सूंदर वर्णन। कल एक प्रश्न उठा था क़ि नेवला पास की उतराई को अगर चढ़ना पड़ेगा तो हालात खराब हो जायेगी। यह बात आज आप ने भी लिखी है क़ि सगगर से ही जाना उचित है।अच्छा मार्गदर्शन।
ReplyDeleteहाँ सर जी, इधर से रुद्रनाथ जाना बहुत मुश्किल पड़ेगा... सग्गर से जाना ज्यादा आसान है...
Deleteशानदार, जबरदस्त, जिन्दाबाद
ReplyDeleteधन्यवाद ललित जी...
Deleteबहुत कम चित्र थे...लगता है जल्दबाजी में ही निपटा दिया इस भाग को... ये बताओ मंडल से अनुसुईया खच्चर मिल जाते हैं... थारी चाची तो पैदल जा नही सकती
ReplyDeleteहाँ जी, इसमे मैंने जल्दबाजी ही की... खैर, मण्डल से अनुसुईया का पैदल रास्ता बहुत अच्छा है... खच्चर आसानी से मिल जाते हैं.
Deleteअनुसुईया में केवल यह शिलालेख ही है, या कोई मन्दिर भी है, अगर मन्दिर था तो एक फोटो तो होना चाहिए था।
ReplyDeleteअनुसुईया वाले मंदिर का चित्र पिछले पोस्ट में था...
Deleteअनुसुईया वाले मंदिर का चित्र पिछले पोस्ट में था...
Deleteसचिन भाई, पिछली पोस्ट देखिये, उसमे अनुसुईया के बारे में विस्तार से लिखा है...
Deleteजंगल और पहाड़ में हर चीज का डर लगता है।जैसे हिंसक पशु, पैर फिसलना या गिरना, रास्ता भटकना,बर्फबारी आदि।,पिछ्ले लेख में आपने इन बातों(डर लगने का) का उल्लेख किया था । सावधानी अति आवश्यक है क्योंकि ऐसी जगहों पर सहायता भी आसानी से उपलब्ध नही होती। फिर भी जो लोग इन खतरों से खेलकर आगे बढ़ते हैं उन्हें कहते है ...खतरों के खिलाडी.... और वही इतिहास रचते हैं।
ReplyDeleteसही कहा आपने सर जी...
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ReplyDeleteSalute..Salute...Salute...Chadhray Shab.koi 312. 315 ...le kar chalte hoo yaa sab raam bharose...?
ReplyDeleteबहुत सारी शुभकामनाये, आनन्द आ गया पोस्ट पढ़ कर
ReplyDeleteबहुत सारी शुभकामनाये, आनन्द आ गया पोस्ट पढ़ कर
ReplyDeleteबहुत सुंदर वृतांत ! छठी सदी के शिलालेख की स्थिति अच्छी नहीं लगी। धन्यवाद।
ReplyDeleteजोशीमठ मैं गई हूं और वहां का रस्ता भी अच्छा है
ReplyDeleteMandal se anusuya Mandir kitna door hai
ReplyDeleteApprox 5Km only + 1.5 KM treck of Atri Muni Cave in dense forest, I recently visited there on 5-6 june. If you plan, It is better to have potter.
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