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अक्टूबर 1965 में एक युद्ध हुआ था- भारत और पाकिस्तान के मध्य। यह युद्ध देश की पश्चिमी सीमाओं पर भी लडा गया था। राजस्थान में जैसलमेर से लगभग सौ किलोमीटर दूर पाकिस्तानी सेना भारतीय सीमा में घुसकर आक्रमण कर रही थी। उन्होंने सादेवाला और किशनगढ नामक सीमाक्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था और उनका अगला लक्ष्य तनोट नामक स्थान पर अधिकार करने का था। तनोट किशनगढ और सादेवाला के बीच में था जिसका अर्थ था कि इस स्थान पर दोनों तरफ से आक्रमण होगा।
जबरदस्त आक्रमण हुआ। पाकिस्तान की तरफ से 3000 से भी ज्यादा गोले दागे गये। साधारण परिस्थियों में यह छोटा सा स्थान तबाह हो जाना चाहिये था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। परिस्थितियां साधारण नहीं थीं, असाधारण थीं। कोई न कोई शक्ति थी, जो काम कर रही थी। ज्यादातर गोले फटे ही नहीं और जो फटे भी उन्होंने कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। विश्वास किया जाता है कि तनोट माता के प्रताप से ऐसा हुआ। बाद में जब भारतीय सेना हावी हो गई, उन्होंने जवाबी आक्रमण किया जिससे पाकिस्तानी सेना को भयंकर नुकसान हुआ और वे पीछे लौट गये। 1971 में भी ऐसा ही हुआ।
अब तक गुमनाम रहा यह स्थान इसके बाद प्रसिद्ध हो गया। जिन्दा गोले पूरे तनोट क्षेत्र में इधर उधर बिखरे पडे थे। माता का मन्दिर जो अब तक सुरक्षा बलों का कवच बना रहा, शान्ति होने पर सुरक्षा बल इसका कवच बन गये। बीएसएफ ने अपने नियन्त्रण में ले लिया इसे। आज यहां का सारा प्रबन्ध सीमा सुरक्षा बल के हाथों में है।
मन्दिर एक बहुत बडे क्षेत्र में बना है। साफ सफाई शानदार। मन्दिर के अन्दर ही एक संग्रहालय है जिसमें वे गोले भी रखे हुए हैं। पुजारी भी सैनिक ही है। पेयजल की शानदार व्यवस्था है। सुबह शाम आरती होती है। मन्दिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर एक रक्षक तैनात रहता है लेकिन प्रवेश करने से किसी को रोका नहीं जाता। फोटो खींचने पर भी कोई पाबन्दी नहीं।
यहीं पास में ही एक धर्मशाला भी है जिसका नियन्त्रण भी बीएसएफ के हाथ में है। इसमें कमरे भी हैं और हॉल भी। यहां रुकने का कोई खर्च नहीं। अपना पहचान पत्र दिखाकर यहां रुका जा सकता है। सर्दियों में भयंकर ठण्ड पडने के कारण फ्री में रजाई गद्दे भी मिलते हैं। सैनिक महत्व का इलाका होने के कारण बिजली यहां चौबीस घण्टे रहती है। शौचालय और स्नानघर भी हैं। एक कैण्टीन भी है जहां निर्धारित दरों पर खाना मिलता है।
यहीं बराबर में एक और मन्दिर है मंशा देवी का। यहां अपनी मनोकामना पूरी करने की साध रखने वाले श्रद्धालुओं ने रुमाल बांध रखे हैं। लाखों की संख्या में रुमाल बंधे हैं यहां। पता नहीं किसी की मनोकामना पूरी होती भी या नहीं। लगता है कि कोई खोलता भी नहीं है।
तनोट से सीमा लगभग बीस किलोमीटर दूर है जहां जाने के लिये आज्ञा लेनी पडती है। आज्ञा मन्दिर के प्रवेश द्वार से मिल जाती है। उस दिन सीमा पर भारत और पाकिस्तान के अधिकारियों की फ्लैग मीटिंग थी जिस कारण हमें सीमा देखने की आज्ञा नहीं मिली। यहां से सीमा पर जाने की परमिशन लेने का एक फायदा है कि जवाब हां या ना में मिलता है। अगर जवाब हां है तो आपको आज्ञा मिल गई और अगर ना है तो समझो नहीं मिली।
भाटी राजपूत राजा तनुराव ने सन 847 में तनोट में अपनी राजधानी बनाई थी जिसे बाद में जैसलमेर स्थानान्तरित कर दिया गया। यह मन्दिर भी उसी समय का है। माता का मन्दिर होने के कारण यहां नवरात्रों में काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं जिनके लिये बीएसएफ यहां निःशुल्क लंगर चलाती है। वैसे तनोट जाने का सर्वोत्तम समय नवम्बर से जनवरी तक ही है। साल के बाकी समय यहां भयंकर गर्मी होती है और धूल भरी आंधियां चलती रहती हैं।
तनोट से 38 किलोमीटर दूर एक और युद्धस्थल है- लोंगेवाला। अब हम वहां चलेंगे जिसके बारे में अगले भाग में बताया जायेगा।
तनोट माता मन्दिर |
तनोट से लोंगेवाला जाने वाली सडक। |
धर्मशाला |
धर्मशाला के अन्दर |
मन्दिर के अन्दर |
मंशा देवी मन्दिर |
अब चलते हैं लोंगेवाला |
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यह है तनोट की स्थिति को दर्शाता नक्शा। A तनोट है। नक्शे को छोटा बडा किया जास कता है और सैटेलाइट मोड में भी देखा जा सकता है।
अगला भाग: थार साइकिल यात्रा- तनोट से लोंगेवाला
थार साइकिल यात्रा
1. थार साइकिल यात्रा का आरम्भ
2. थार साइकिल यात्रा- जैसलमेर से सानू
3. थार साइकिल यात्रा- सानू से तनोट
4. तनोट
5. थार साइकिल यात्रा- तनोट से लोंगेवाला
6. लोंगेवाला- एक गौरवशाली युद्धक्षेत्र
7. थार साइकिल यात्रा- लोंगेवाला से जैसलमेर
8. जैसलमेर में दो घण्टे
नीरज जी! नमस्कार, अब तो आपकी यात्रा संस्मरण में वीर रस का अनुभव होने लगा है।
ReplyDeleteतनोट माता की जय,शायद बार्डर फिल्म मे भी इस जगह का जिक्र हुआ है..??लोंगेवाला लेख का इन्तजार रहेगा
ReplyDeleteइन छ: बहनों की कथा में भादरिया राय माता भी शामिल हैं। बढिया यात्रा चल रही है। इब तो कुछ मोटा भी हो गया चौधरी :)
ReplyDeleteनमन, श्रद्धा को, विश्वास को।
ReplyDeleteभाई इतने बम गिराए थे उस समय की आज तक गाहे बगाहे अखबार में साबुत बम मिलने की खबर आती रहती है... पर आश्चर्यजनक रूप से फटे नहीं... शानदार साफ़ सुथरा प्रांगण है मंदिर का...
ReplyDeleteअक्टूबर 1965 में एक युद्ध हुआ था- भारत और पाकिस्तान के मध्य। यह युद्ध देश की पश्चिमी सीमाओं पर भी लडा गया था। राजस्थान में जैसलमेर से लगभग सौ किलोमीटर दूर पाकिस्तानी सेना भारतीय सीमा में घुसकर आक्रमण कर रही थी। उन्होंने सादेवाला और किशनगढ नामक सीमाक्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था और उनका अगला लक्ष्य तनोट नामक स्थान पर अधिकार करने का था। तनोट किशनगढ और सादेवाला के बीच में था जिसका अर्थ था कि इस स्थान पर दोनों तरफ से आक्रमण होगा।
ReplyDeleteजबरदस्त आक्रमण हुआ। पाकिस्तान की तरफ से 3000 से भी ज्यादा गोले दागे गये। साधारण परिस्थियों में यह छोटा सा स्थान तबाह हो जाना चाहिये था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। परिस्थितियां साधारण नहीं थीं, असाधारण थीं। कोई न कोई शक्ति थी, जो काम कर रही थी। ज्यादातर गोले फटे ही नहीं और जो फटे भी उन्होंने कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। विश्वास किया जाता है कि तनोट माता के प्रताप से ऐसा हुआ। बाद में जब भारतीय सेना हावी हो गई, उन्होंने जवाबी आक्रमण किया जिससे पाकिस्तानी सेना को भयंकर नुकसान हुआ और वे पीछे लौट गये। 1971 में भी ऐसा ही हुआ। kitna sajiv prastutikaran