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21 फरवरी 2012 की सुबह का टाइम था। आज मुझे भुसावल से इटारसी तक ही जाना था और ट्रेन थी सुबह नौ बजे के आसपास। शाम पांच बजे यह ट्रेन इटारसी पहुंचनी थी। नौ बजे होने के कारण मैं देर तक सोया। लगभग सामने ही स्टेशन था और जल्दी ही मैं टिकट लेकर स्टेशन पर हाजिर था। प्लेटफार्म तब तक घोषित नहीं हुआ था, इसलिये मैं बिल्कुल आखिर वाले पर जा पहुंचा। इस पर डेक्कन ओडिसी खडी थी। यह एक शाही ट्रेन है जिसे महाराष्ट्र पर्यटन निगम और भारतीय रेलवे मिलकर चलाते हैं। कल दोपहर यह गाडी चालीसगांव स्टेशन पर खडी थी।
यह पूरी तरह वातानुकूलित ट्रेन है जिसमें काले शीशे लगे हैं। अन्दर पर्दे भी हैं जिससे हमेशा यह भ्रम हो रहा था कि इसमें अन्दर कोई नहीं है। जबकि हकीकत यह है कि इस गाडी में यात्रा करना आम आदमी के बस से बाहर की बात है। करोडपति ही इसमें यात्रा करने की हैसियत रखते हैं। डेक्कन ओडिसी के सामने दूसरे प्लेटफार्म पर कोई दूसरी ‘साधारण’ ट्रेन खडी थी- शायद सूरत पैसेंजर। अब बार बार एक मजेदार लेकिन शर्मनाक घटना घट रही थी। दूसरे लोग जो डेक्कन ओडिसी की हकीकत से अनजान थे, गाडी के नीचे मूत्र विसर्जन कर रहे थे, खासकर काले शीशे के बिल्कुल पास जाकर। जरा सोचिये कि डेक्कन ओडिसी में हम बैठे हैं और हमारे बिल्कुल पास आकर कोई मूत्र विसर्जन करे तो हमें कैसा लगेगा। वो शाही ट्रेन है और उसमें शाही धनाढ्य और विदेशी यात्री ही सफर करते हैं। वो सात दिन में महाराष्ट्र का चक्कर लगाती है।
नियत समय पर मेरी वाली ट्रेन चल पडी। यह कटनी तक जाती है। मध्य भारत और पश्चिमी भारत में कई पैसेंजर ट्रेनें अत्यधिक दूरी की यात्रा करती हैं। मसलन भुसावल कटनी पैसेंजर (643 किलोमीटर, 18 घण्टे), इटारसी इलाहाबाद पैसेंजर (612 किलोमीटर, 25 घण्टे), अजमेर अहमदाबाद पैसेंजर (496 किलोमीटर, 17.5 घण्टे), जोधपुर अहमदाबाद पैसेंजर (458 किलोमीटर, 13 घण्टे), जयपुर सूरतगढ पैसेंजर (563 किलोमीटर, 14 घण्टे)। और भारत की सबसे लम्बी दूरी की पैसेंजर गाडी भी इसी इलाके में चलती है- 54811 भोपाल जोधपुर पैसेंजर, 993 किलोमीटर।
भुसावल से दुसखेडा, सावदा, निम्भोरा, रावेर, वाघोडा और बुरहानपुर। वाघोडा जहां महाराष्ट्र में है, वहीं बुरहानपुर मध्य प्रदेश में है। बुरहानपुर जिला मुख्यालय भी है। यहां से आगे असीरगढ रोड, चांदनी और नेपानगर हैं। नेपानगर नाम मैंने सातवीं आठवीं की भूगोल की किताब में पढा था। आज भी याद है कि यहां भारत में सबसे ज्यादा मात्रा में अखबारी कागज का उत्पादन होता है। इसके बाद आते हैं मांडवा, सागफाटा, डोंगरगांव, कोहदाड, बगमार, बडगांव गुजर और खण्डवा जंक्शन।
खण्डवा तक आते आते 307 में से 124 किलोमीटर की यात्रा हो गई। यहां पहले तो ट्रेन पूरी खाली हुई, फिर उससे भी ज्यादा भर गई। इसी समय अकोला से रतलाम जाने वाली मीटर गेज की पैसेंजर भी आ गई। उसमें इस बडी गाडी के मुकाबले और भी बुरा हाल हो गया। वो गाडी अन्दर और ऊपर छत पर एक साथ भरी। बडी मारामारी मचती है इस मीटर गेज में। खण्डवा, महू, इन्दौर, उज्जैन और रतलाम जैसे बडे शहरों को जोडती है यह लाइन। सोमवार हो तो ओमकारेश्वर रोड भी इसी श्रेणी में आ जाता है।
खण्डवा से गाडी चली तो आधा घण्टा लेट हो चुकी थी। यहां से आगे चलते हैं। मथेला और तलवडिया। यहां से एक लाइन बीड चली जाती है। यह जो लाइन बीड जाती है, इसके बारे में मुझे कुछ संशय हैं। पहली बात तो यह है कि खण्डवा से बीड तक दिन भर में कई पैसेंजर ट्रेनें चलती हैं। अच्छा हा, यह महाराष्ट्र वाला बीड नहीं है। यह मध्य प्रदेश में खण्डवा जिले में ही स्थित है। यहां के लोग बीड से इटारसी तक सीधी पैसेंजर चलाने की मांग कर रहे हैं। दूसरी बात यह है कि शायद बीड से खिरकिया तक भी रेलवे लाइन है। यही बात मुझे परेशान कर रही है। अगर ‘शायद’ शब्द हट जाये तो मेरी परेशानी भी खत्म हो जाये। अगर रेलवे लाइन है तो क्यों है और उस पर ट्रेनें क्यों नहीं चलतीं? अगर लाइन नहीं है तो वहां के निवासी बीड से इटारसी तक पैसेंजर चलाने की मांग क्यों कर रहे हैं। उस केस में बीड इटारसी पैसेंजर तलवडिया होकर ही चलेगी, जो मुझे आसानी से सम्भव होता हुआ नहीं लग रहा।
खैर, तलवडिया से आगे चलते हैं- सुरगांव बंजारी, चारखेडा खुर्द, छनेरा, बरुड, डागर खेडी, खिरकिया, कुडावा, भिरंगी, मसनगांव, पलासनेर और हरदा। हरदा भी जिला मुख्यालय है। यहां गाडी में भीड कम तो नहीं हुई लेकिन बढ जरूर गई। और भीड बढे भी क्यों ना? मध्य प्रदेश में परिवहन व्यवस्था एकदम ध्वस्त है। दूसरी बात कि इस लाइन पर दिनभर में मात्र एक ही पैसेंजर ट्रेन चलती है। वैसे तो एक और भी है लेकिन वो देर रात चलती है। मुझसे अगली खिडकी आपातकालीन खिडकी थी और गाडी रुकते ही सामानों के साथ सवारियां भी चढने लगीं। उस आपातकालीन खिडकी पर एक ताई खूब चौडी होकर बैठी थी। बाकी सवारियों ने उससे जब सिमटने को कहा तो ताई खदक पडी। बोली कि मुझे बहुत दूर जाना है। बाकी भी खदक पडे। आखिरकार ताई को सिमटना पडा। दूसरों की खदका-खदकी में मैं हमेशा तमाशा देखता हूं। एक परदेशी को स्थानीय मामलों में टांग नहीं अडानी चाहिये।
हरदा से चारखेडा, टिमरनी,..। चारखेडा???? अभी तो आया था लेकिन वो चारखेडा खुर्द (CKKD) था। अगर एक से नाम वाले स्टेशन पास पास हों तो बडी दिक्कत हो सकती है। मान लो कि अगर किसी को चारखेडा खुर्द (CKKD) का टिकट चाहिये तो वो चारखेडा ही कहेगा। तब क्लर्क साहब उसे चारखेडा (CRK) का टिकट थमा देंगे। यात्री खुश हो जायेगा कि उसे सही टिकट मिल गया है। लेकिन वास्तव में उसका टिकट गलत होगा। ऐसी गलतियां अक्सर पैसेंजर ट्रेनों में यात्रा के दौरान ज्यादा मिलती हैं। आइये देखते हैं इसी तरह के कुछ और संयोगों को। पहला संयोग- कलानौर (KNZ) और कलानौर कलां (KLNK)। कलनौर सहारनपुर-अम्बाला के बीच में है जबकि कलानौर कलां रोहतक-भिवानी के बीच में। अब आप सोचोगे कि भला इन दोनों से क्या फरक पडेगा। फरक पडेगा। दोनों स्टेशनों पर पैसेंजर ट्रेनें ही रुकती हैं और दिल्ली से दोनों के लिये पैसेंजर हैं। किसी ने अगर पुरानी दिल्ली जाकर कलानौर का टिकट मांग लिया और उसे कलानौर कलां का टिकट मिल गया तो समझो कि गडबड हो गई। एक संयोग और याद आ रहा है- डीग (DEEG) और डींग (DING)। डीग राजस्थान में अलवर-मथुरा लाइन पर है जबकि डींग हरियाणा में सिरसा-हिसार के बीच में। रेवाडी से भिवानी तक के हर स्टेशन से दोनों के लिये ट्रेनें मिलती हैं। आपने अगर डींग का टिकट मांग लिया और आपको डीग का टिकट मिल गया तो आप गये काम से। ऐसे टिकट से बेटिकट ही अच्छे।
चारखेडा से आगे आता है टिमरनी। इससे सम्बन्धित एक घटना याद आ रही है। कुछ साल पहले मैं ओमकारेश्वर रोड स्टेशन से रतलाम जा रहा था। ट्रेन थी मीटर गेज वाली। उसमें एक बडा सा परिवार बैठा था। बातों बातों में पता चला कि वे टिमरनी से आ रहे हैं और रामदेवरा जा रहे हैं। रामदेवरा जोधपुर जैसलमेर के बीच में एक बहुत बडा धार्मिक स्थान है। कहते हैं कि वहां कभी बाबा रामदेव के नाम से बडे ‘कुछ’ थे। उनके भक्त राजस्थान और मध्य प्रदेश में बडी संख्या में हैं। तो जी, उस परिवार ने टिमरनी से रामदेवरा तक पैसेंजर ट्रेन का सीधा टिकट लिया था और वो टिकट था 101 रुपये प्रति यात्री का। टिमरनी से रामदेवरा तक कोई सीधी ट्रेन नहीं है। इसलिये उन्हें यह यात्रा गाडी बदल बदल कर करनी पडेगी- टिमरनी से खण्डवा, खण्डवा से रतलाम मीटर गेज, रतलाम से चित्तौडगढ बडी लाइन, चित्तौडगढ से मावली बडी लाइन, मावली से मारवाड मीटर गेज, मारवाड से जोधपुर बडी लाइन और जोधपुर से रामदेवरा। इन सभी मार्गों पर दिनभर में गिनी चुनी पैसेंजर ट्रेनें ही चलती हैं, इसलिये उन्हें अपनी यात्रा पूरी करने में आज के हिसाब से देखें तो पूरे 100 घण्टे लगेंगे यानी चार दिन से भी ज्यादा। वैसे उनके लिये एक विकल्प और भी है- भोपाल के रास्ते। अगर वे पैसेंजर ट्रेन से ही जाना चाहते हैं तो किसी तरह भोपाल पहुंचकर जोधपुर पैसेंजर पकड लें। कम से कम मीटर गेज और ब्रॉड गेज की अदला बदली से तो बचे रहेंगे।
टिमरनी से आगे चलते हैं तो छिदगांव, पगढाल, भैरोंपुर, बानापुरा, धरमकुंडी, खुटवांसा, दुलरिया और आखिर में इटारसी। ट्रेन इटारसी बिल्कुल सही समय पर पहुंची। हालांकि आधे घण्टे विलम्ब से कटनी के लिये रवाना हुई। इसके बराबर वाले प्लेटफार्म पर नागपुर से आने वाली पैसेंजर खडी थी जो अब इटारसी-झांसी पैसेंजर बनकर झांसी चली जायेगी। मुझे दिल्ली जाना था और मेरा आरक्षण जबलपुर-नई दिल्ली सुपरफास्ट में था जो यहां रात ग्यारह बजे आयेगी।
अगले दिन दोपहर ग्यारह बजे तक मैं दिल्ली पहुंच चुका था।
भुसावल |
सावदा |
बुरहानपुर |
चांदनी स्टेशन |
ट्रेन में लकडी ले जाते स्थानीय निवासी |
बडगांव गुजर |
खण्डवा जंक्शन |
चारखेडा खुर्द |
चारखेडा |
पलासनेर |
टिमरनी |
इटारसी जंक्शन |
और आखिर में एक जरूरी बात। मुझे अक्सर रेलवे कर्मचारी समझ लिया जाता है। मैं रेलवे कर्मचारी नहीं हूं। अपने खुद के खर्चे से उचित टिकट लेकर ही यात्रा करता हूं। इसका कारण यह है कि मुझे ट्रेन में यात्रा करना पसन्द है। मेरी जानकारी का स्रोत भी मेरी यह पसन्द ही है। अगर आप किसी चीज को हद से ज्यादा चाहते हैं तो उसके बारे में बारीक से बारीक जानकारी भी आप जुटा लेंगे। यही हाल मेरा है।
मुम्बई यात्रा श्रंखला
1. मुम्बई यात्रा की तैयारी
2. रतलाम - अकोला मीटर गेज रेल यात्रा
3. मुम्बई- गेटवे ऑफ इण्डिया तथा एलीफेण्टा गुफाएं
4. मुम्बई यात्रा और कुछ संस्मरण
5. मुम्बई से भुसावल पैसेंजर ट्रेन यात्रा
6. भुसावल से इटारसी पैसेंजर ट्रेन यात्रा
बढ़िया भाई ||
ReplyDeleteसारे स्टेशनों का जायजा ले लिया आपने।
ReplyDeleteकितना दिमाग लगाते हो नीरज भाई .
ReplyDeleteआपके स्टेशन की जानकारी तो दिमाग पैदल कर दिया
आप तो उनका फोटो जरुर खींच लेते .
आपकी सेवा तो रेलवे को जरुर लेनी चाहिए
आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
ReplyDeleteआपके साथ घूम कर हमेशा की तरह आनंद आ गया...आप भी भाई जी गज़ब करते हो... बधाई स्वीकारें.
नीरज
तस्वीरें देख देख तो जल्द से जल्द ट्रेन से यात्रा करने का मन होने लगा
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट .
ReplyDeleteहिम्मत है बंधू ! हम तो कहीं जाते भी है तो कैमरा उठाने में ही आलस समझते है !
ReplyDeleteऔर आखिर में एक जरूरी बात। मुझे अक्सर रेलवे कर्मचारी समझ लिया जाता है। मैं रेलवे कर्मचारी नहीं हूं। अपने खुद के खर्चे से उचित टिकट लेकर ही यात्रा करता हूं।
ReplyDeleteइसमें कोई गलत क्या समझता है ....तुम मेट्रो रेल के कर्मचारी तो हो ही ...
नीरज भाई बहुत सही जानकारी. धनयवाद
ReplyDeleteneeraj ji - aap ki yatrain pad ker lagta hai khud hi yatra kar rahe hai aap itni sunder vernan karte ho - danyawad
ReplyDeleteनीरज जी आपने अपने यात्रा संस्मरण से बहुत अभिभूत किया साथ ही देश के गाँव और शहरो की जानकारी भी मिली धन्यवाद्
ReplyDeleteHi
ReplyDeleteMera nam pradip gawande hi maine aapke sare blog padhe hai
Aap aacha likh te hai
Hi
ReplyDeleteMera nam pradip gawande hi maine aapke sare blog padhe hai
Aap aacha likh te hai