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19 फरवरी 2012 की सुबह चार बजे मैं कुशीनगर एक्सप्रेस से कल्याण स्टेशन पर उतरा। कल शाम मैं भुसावल में था और अगले दिन यानी आज अजन्ता गुफा देखने जाने वाला था। लेकिन घटनाक्रम कुछ इस तरह बदला कि मुझे मुम्बई जाना पड गया। मुझे पता चला था कि अतुल मुम्बई में है। अतुल के साथ मैं दो बार हिमालय भ्रमण पर जा चुका हूं और हम दोनों की अच्छी बनती है। अतुल के साथ बिल्कुल देसी तरीके से मुम्बई घूमने में अलग ही आनन्द आने वाला था।
मैंने सोचा कि ट्रेन लोकमान्य तिलक पहुंच गई और मैं अपना तामझाम उठाकर अन्धेरे में बिना स्टेशन देखे ही उतर गया। अपने साथ वाली सवारियों को भी जगा दिया कि उठो, बम्बई आ गया। वे भी बेचारे हडबडी में जल्दी जल्दी उठे और सामान ट्रेन से बाहर निकाल लिया। जब तक हमारी आंख खुलती और कुछ पता चलता तब तक ट्रेन जा चुकी थी। तब पता चला कि अभी हम लोकमान्य से करीब 50 किलोमीटर पहले कल्याण स्टेशन पर हैं। अभी हम एक घण्टे की नींद और खींच सकते थे। मेरे पास वैसे तो सीएसटी तक का टिकट था, इसलिये इससे पहले कि मेरे द्वारा ट्रेन से निकाली गई सवारियां मुझे कुछ कहना शुरू करें, मैं तुरन्त सीएसटी जाने वाली लोकल में बैठा और वहां से चल दिया।
इतवार था और बिल्कुल सुबह सवेरे का टाइम, लोकल में बिल्कुल भी भीड नहीं थी। सवा पांच बजे के करीब मैं दादर पहुंच गया। मुम्बई के व्यस्ततम स्टेशनों में दादर अव्वल है। यह असल में दो स्टेशनों का मिश्रण है। दोनों ही स्टेशनों का नाम दादर है लेकिन कोड और रेलवे जोन अलग अलग हैं- एक मध्य रेलवे वाला दादर जिसका कोड DR है और दूसरा पश्चिम रेलवे वाला दादर जिसका कोड DDR है। मध्य दादर से कल्याण की ओर जाने वाली गाडियां मिलती हैं यानी भुसावल, पुणे और गोवा। जबकि पश्चिमी दादर से गुजरात की गाडियां मिलती हैं।
मुझे पता चल गया था कि अतुल दादर में ही रुका हुआ है जबकि अतुल को मेरे बारे में नहीं पता था। पौने छह बजे मैंने अतुल को फोन किया, तब उसे जब मेरे बारे में पता चला तो उसने कहा कि बकवास मत कर, सोने दे। आखिरकार उसे यकीन हुआ तो दस मिनट बाद ही वो स्टेशन पर आ गया। अब दिक्कत हुई एक दूसरे को ढूंढने की। वो पश्चिमी दादर पर प्लेटफार्म नम्बर एक पर खडा था और उसने बताया कि वो एक नम्बर प्लेटफार्म पर है। मैं उसे मध्य दादर के एक नम्बर प्लेटफार्म पर ढूंढने लगा। दोनों रोमिंग में थे, खूब कॉल लगीं, खूब टाइम लगा और आखिरकार हम मिल गये।
मैंने अपना थोडा सा सामान अतुल के कहने पर वहीं रख दिया, जहां अतुल ने रखा था। बिल्कुल खाली हाथ और मात्र कैमरा लेकर हम दोनों फिर दादर स्टेशन पर थे। हमें जाना था एलीफेण्टा गुफाएं देखने। मेरे पास पहले से ही भुसावल से सीएसटी तक का सुपरफास्ट का टिकट था इसलिये मुझे लोकल ट्रेन से सीएसटी जाने के लिये टिकट लेने की जरुरत नहीं थी। अतुल ने कहा भी कि यार गेटवे ऑफ इण्डिया जाने के लिये चर्चगेट नजदीकी स्टेशन है। लेकिन मैं भी जिद पर अडा रहा कि नहीं, सीएसटी है। आखिरकार मेरी चली और हम सीएसटी जा पहुंचे। वहां जाकर पता चला कि अतुल ही ठीक था।
मैं मात्र एक दिन मुम्बई में रहा, एक दिन में आप किसी भी जगह के मूड को नहीं जान सकते, इसलिये मैंने भी मुम्बई को नहीं जाना। फिर भी लिखना तो पडेगा ही। सीएसटी पहुंचते ही मुझे एहसास होने लगा कि आज मैं उस जगह पर खडा हूं, जहां से भारत में रेलवे का बीज बोया गया था। पहली ट्रेन यहीं से ठाणे के लिये चली थी। हालांकि ठीक उसी दौरान कलकत्ता में भी पटरी बिछाई जा चुकी थी, एक समय ऐसा लग रहा था कि हावडा से भारत की पहली ट्रेन चलेगी लेकिन कुछ दिनों के अन्तर से बम्बई बाजी मार ले गया। यहां से जो पहली ट्रेन चली, उसने आज पूरे भारत को अपने लपेटे में ले लिया है।
हम मुम्बई के प्रायद्वीपीय इलाके में थे यानी जहां तीन तरफ समुद्र हो। यहां से पैदल चलते चलते जल्दी ही गेटवे ऑफ इण्डिया जा पहुंचे। 130 रुपये का टिकट लगता है एलीफेण्टा तक जाने का और आधे घण्टे की समुद्री यात्रा। हम दोनों ने फेरी वाले को दस रुपये अतिरिक्त देकर ऊपर छत पर अपना ठिकाना बना लिया। शुरू शुरू में तो आनन्द आया। लगा कि दस रुपये देने से हम दुनिया में सबसे ज्यादा आनन्दशाली इंसान हैं लेकिन पन्द्रह मिनट बाद ही ऐसे बोर हुए, ऐसे बोर हुए कि समुद्र भी बुरा लगने लगा।
आखिरकार एलीफेण्टा पहुंच ही गये। जहां फेरी ने हमें उतारा, वहां से करीब एक किलोमीटर दूर मुख्य द्वार है। एक छोटी सी टॉय ट्रेन भी चलती है इस एक किलोमीटर में। वैसे तो इन गुफाओं के बारे में ज्यादा विस्तार से बताने की जरुरत नहीं है, फिर भी थोडा बहुत बताना पडेगा ही।
यह जगह घारापुरी के नाम से भी जानी जाती है। पुर्तगाली आये थे यहां सन 1534 में, उन्होंने इनके प्रवेश द्वार पर एक बडी सी हाथी की प्रतिमा देखी तो नाम रख दिया एलीफेण्टा। ये गुफाएं यूनेस्को की विश्व विरासत धरोहरों में 1987 में शामिल की गईं। तब से इनकी अहमियत और ज्यादा बढ गई। ज्यादा जानकारी के लिये विकीपीडिया के
इस पेज पर क्लिक करें। अच्छा हां, ये गुफाएं हर सोमवार को पर्यटकों के लिये बन्द रहती हैं।
यहां से सुलटकर हम एक और आधे घण्टे की महा बोरिंग समुद्री यात्रा करके वापस गेटवे ऑफ इण्डिया पहुंच गये।
मुम्बई यात्रा श्रंखला
1. मुम्बई यात्रा की तैयारी
2. रतलाम - अकोला मीटर गेज रेल यात्रा
3. मुम्बई- गेटवे ऑफ इण्डिया और एलीफेण्टा गुफाएं
4. मुम्बई यात्रा और कुछ संस्मरण
5. मुम्बई से भुसावल पैसेंजर ट्रेन यात्रा
6. भुसावल से इटारसी पैसेंजर ट्रेन यात्रा
दूसरी इमारत भी ताज होटल की ही है।
ReplyDeleteयादें ताजा करा दी आपने 12 वर्ष पहले पूरे 7 दिन रुककर सारी मुम्बई देखी थी।
प्रणाम
nice presentation .
ReplyDeleteनीरज, मुम्बई में दो रेलवे हैं एक सेन्ट्रल रेलवे और दूसरी वेस्टर्न रेलवे और दोनों ही रेलवे में दादर स्टेशन आता ..जो दोनों का लोकल स्टेशन भी हैं और बाहर जाने वाली सुपरफास्ट गाडियों का भी ..
ReplyDeleteऔर समुद्रीय यात्राए बड़ी उबाऊ तो होती ही हैं पर यदि साथी अच्छे हो तो सफ़र मजेदार हो जाता हैं ....
3rd photo is TAJ Hotels new building.
ReplyDeleteमैं ने 33 वर्ष पहले ये गुफाएँ देखीं थी। तब टॉय ट्रेन नहीं चलती थी।
ReplyDeleteयादें ताजा करा दीं...
ReplyDeleteअरे अभी जाना की टॉय ट्रेन चलने लगी है. पहले पहाड़ी की तलहटी तक फेरी वाले ले जाया करते थे. पहली ट्रेन तो बोरी बन्दर से थाणे तक चली थी परन्तु हावड़ा को दूसरा नंबर भी नहीं मिल पाया था.
ReplyDeleteसमुन्द्री यात्रा का भी एक अलग मजा है लेकिन जब मन ही ना हो सब बेकार लगने लगता है।
ReplyDeleteआखिकार आपके कदम हमारी मुंबई की धरती पड़ ही गए पर हमारी मुलाकात नहीं हो पाई
ReplyDeleteये वही ताजमहल होटल है जहा १० पाकिस्तानियों ने तबाही मचाई थी
मगर आज फिर ये शान से सीना ताने खड़ा है वैसे आप लोग किस तारीख को
एलिफेंटा गए थे घूमाकड़ी जिंदाबाद
हमारे लिए तो मुंबई 'लन्दन' के बराबर है !!
ReplyDeleteनीरज जी , शुभकामनाऐं हमारा देशी छोरा भी अब मुम्बई घूम आया । उंची वाली ताज होटल की नयी बिल्डिंग है । एलिफेंटा की गुफाऐं बिलकुल अजंता एलोरा की तरह दिखती हैं । इतनी सुंदर यात्रा और साथ में गिफट भी । भ्ई यात्रा हो तेा ऐसी हो नही तो हो ना
ReplyDeleteneeraj baabu deshi style wala photu majedaar hai
ReplyDeleteyaar yah teri shirt sabhi yatra mai nazar aati hai, yah mazedaar hai kyonki isme tera photo bephikri jesa hota hai, yah thik hai, pahad chhodakar jamin par utra
ReplyDeleteनीरज भैया तुम्हारी यह यात्रा भी अच्छी है लेकिन जो यात्रा उत्तराखंड की पहाड़ी में मजा आता है वह कहीं भी नहीं मिल सकता है
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