14 अगस्त 2009 को मैं इंदौर में ताऊ के यहाँ था। अगले दिन ओमकारेश्वर जाना था। तो रास्ते में स्टेशन तक छोड़ते समय ताऊपुत्र भरत ने बताया कि महू से आगे एक जगह पड़ती है- पातालपानी। पातालपानी से निकलकर बीच जंगल में ट्रेन रुकती है। ड्राईवर नीचे उतरकर एक स्थान पर पूजा करते हैं, फिर ट्रेन को आगे बढाते हैं। आते-जाते दोनों टाइम हरेक ट्रेन के ड्राईवर ऐसा ही करते हैं।
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आधी रात से ज्यादा हो चुकी थी। इसलिए इस दृश्य को देखने का मतलब ही नहीं था। सोचा कि उधर से वापसी में देख लूँगा। लेकिन 16 अगस्त को जब घूम-घामकर ओमकारेश्वर रोड स्टेशन पर आया तो शाम हो चुकी थी। अब पौने दस बजे एक ट्रेन थी जो बारह बजे पातालपानी पहुंचती थी। अँधेरा होने की वजह से ना तो कुछ देख ही सकता था ना ही फोटो खींच सकता था। इसलिए सुबह चार वाली ट्रेन से जाना तय हुआ जो साढे छः बजे पातालपानी पहुँचती है। वैसे तो स्टेशन के सामने ही एक धर्मशाला थी, जिसमे मेरे सोने का मतलब था गधे-घोडे बेचकर सोना। फिर चार बजे किसकी मजाल थी कि उठता। अलार्म व तीन-चार 'रिमाइंडर' भरकर स्टेशन पर ही सो गया।
सुबह जब यहाँ से चला तो बारिश हो रही थी। नर्मदा नदी पार करके बड़वाह, मुख्तारा बलवाडा, चोरल से निकलकर ट्रेन पहुंची कालाकुण्ड। यहाँ तक आते-आते छः बज गए थे। बारिश हो ही रही थी। एक बुड्ढा बाल्टी में रखकर कलाकंद बेच रहा था- कालाकुण्ड के कलाकंद। मैं बाहर निकला और बारिश में भीगने लगा। लेकिन मेरे साथ कैमरा भी भीग रहा था इसलिए फिर अन्दर चला गया।
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कालाकुण्ड समुद्र तल से 210 मीटर की ऊंचाई पर है। इससे आगे पहाड़ दिख रहे थे- बिलकुल हिमालय के निचले इलाकों जैसे पहाड़। बारिश होने से और भी ज्यादा बहार आ गयी थी। यहाँ से दस किलोमीटर आगे अगला स्टेशन पातालपानी है जो समुद्र तल से 572 मीटर की ऊंचाई पर है। इतनी ऊंचाई तक चढाने के लिए ट्रेन में पीछे की तरफ दूसरा इंजन भी लगाया गया। कालाकुण्ड व पातालपानी के पहाड़ इस कदर घने हैं कि रास्ते में कम से कम आधे-आधे किलोमीटर की चार सुरंगें भी हैं। पहाडों के नीचे बहती नदी भी पूरे जोर पर थी। रास्ते में एक जगह तो बड़ा ही शानदार झरना भी दिखा। रतलाम से मुझे दोपहर एक बजे दिल्ली जाने वाली ट्रेन पकड़नी थी नहीं तो मैं यहाँ पर भी उतर जाता।
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यहाँ से आगे महू है। एक बात और, यहाँ तक स्टेशन के अलावा ट्रेन जंगल में कहीं नहीं रुकी। पता नहीं कौन सी ट्रेन के ड्राईवर पूजा करते हैं। पातालपानी पहुंचकर तो मालवा का पठार मिश्रित मैदान शुरू हो जाता है। इसलिए दूसरा इंजन यहीं पर छोड़ दिया।
और आखिर में, कभी इंदौर जाओ तो पातालपानी भी चले जाना।
मध्य प्रदेश मालवा यात्रा श्रंखला
1. भीमबैठका- मानव का आरम्भिक विकास स्थल
2. महाकाल की नगरी है उज्जैन
3. इन्दौर में ब्लॉगर ताऊ से मुलाकात
4. ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
5. सिद्धनाथ बारहद्वारी
6. कालाकुण्ड - पातालपानी
बड़े सोभाग्यशाली हो भाई जो इतनी जगह घूम पाते हो ! शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteमुसाफिर जी,
ReplyDeleteमतलब पातालपानी में पूजा के लिये ड्राईवर नहीं उतरा?
फोटो बहोत सुथरी सैं जी
ReplyDeleteकदे मौका मिला तै मैं भी हांड कै आऊंगा
प्रणाम
भारत में जन्म लेने और सामर्थ्यवान होने पर भी जो युवा भ्रमण नहीं करते वे निस्संदेह अपने समाज ,देश एवं समय को कभी नहीं जान सकते और धरती पर सिर्फ बोझ बने समय काट रहे हैं . ऐसे युवा अहर्निश राजनीति और रंड-रोवन में समय बिताते ब्लॉग जगत को भी कलंकित करते हैं . मुझे प्रसन्नता होती है की ये ब्लॉग ऐसे कीचड़ - मय , लीचड़ ब्लॉगजगत में एक मनोहर द्वीप की भांति विद्यमान है ! शुभ -यात्रा .
ReplyDeleteनीरज भाई आपका जवाब नहीं...फोटो और यात्रा वर्णन दोनों कमाल के हैं...सारे के सारे फोटो अपने आपमें पूरी दास्तां कह दे रहे हैं...वाह..जब फोटो इतने खूबसूरत हैं तो जगह क्लितनी खूबसूरत होगी...समझा जा सकता है...
ReplyDeleteनीरज
अच्छा तो आप ने यहाँ कदम रख ही दिया. खैर हम तो और कहीं थे. धीरे धीरे बताएँगे. यह नहीं बताया की हमारी कंट्री अच्छी लगी की नहीं.
ReplyDeleteवैसे आप सौभाग्यशाली रहे कि कुछ बुरा नहीं हुआ नहीं तो इस ट्रेन में अधिकतर लूट होती ही रहती है इसमॆं यात्रा सुरक्षित नहीं होती है।
ReplyDeleteभाई यह हर्ष का विशय है कि हमारे देश मे भी ऐसी जगहे हैं । ड्राईवर द्वारा पूजा रेल मंत्रालय द्वारा अधिकृत नहीं होगी सो नही हुई ।
ReplyDeletelajwaab sir ji
ReplyDeleteindore junction ka seen dekha kar mera dobara indore jane ko dil karne laga
lajwaab sehar hai indore
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