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आठ जुलाई 2010 की शाम को हम पंचतरणी से गुफ़ा की ओर चले। पवित्र गुफा यहाँ से छह किलोमीटर दूर है। सारी यात्रा चढ़ाई भरी है। शुरूआती तीन किलोमीटर की चढ़ाई तो वाकई हैरतअंगेज है। लगभग तीन-चार फीट चौड़ा रास्ता, उस पर दोनों ओर से आते-जाते खच्चर और यात्री। ज्यादातर समय यह रास्ता एकतरफ़ा ही रहता है। ऐसे में एक तरफ़ से आने वालों को रोक दिया जाता है और दूसरी तरफ़ वालों को जाने दिया जाता है। इसलिये इस पर हमेशा जाम और लंबी लाइन लगी रहती है।
आठ जुलाई 2010 की शाम को हम पंचतरणी से गुफ़ा की ओर चले। पवित्र गुफा यहाँ से छह किलोमीटर दूर है। सारी यात्रा चढ़ाई भरी है। शुरूआती तीन किलोमीटर की चढ़ाई तो वाकई हैरतअंगेज है। लगभग तीन-चार फीट चौड़ा रास्ता, उस पर दोनों ओर से आते-जाते खच्चर और यात्री। ज्यादातर समय यह रास्ता एकतरफ़ा ही रहता है। ऐसे में एक तरफ़ से आने वालों को रोक दिया जाता है और दूसरी तरफ़ वालों को जाने दिया जाता है। इसलिये इस पर हमेशा जाम और लंबी लाइन लगी रहती है।
शाम हो रही थी। आज हमें यही पर रुकना था। इरादा था कि कल सुबह नहा-धोकर दर्शन करेंगे और दस बजे तक बालटाल वाले रास्ते पर बढ़ चलेंगे।
ढाई किलोमीटर पहले ही पवित्र गुफ़ा दिखने लगती है। यहीं से रास्ता बर्फ़ीला होने लगता है। नीचे बहने वाली अमरगंगा भी नहीं दिखती। बर्फ़ पर ही तंबू लगे हैं। हमने भी एक तंबू ले लिया बारह बिस्तरों वाला। हम वैसे तो छह जने थे, लेकिन अत्यधिक ठंड़ की वजह से सभी को डबल बिस्तरों की ज़रूरत थी। दो-दो गद्दे नीचे बिछाये, दो-दो रजाईयाँ ओढ़ीं, तब जाकर हम यात्री सोये। हाँ, किराया शायद बारह सौ रुपये था।
अगले दिन जब आँख खुली, तो हमें सबसे पहला काम करना था टट्टी-पेशाब से निवृत्त होकर नहाना और दर्शन करना। चारों ओर फैली बरफ़ और ठंड़ देखकर मैने और मनदीप ने घोषणा कर दी कि नहीं नहायेंगे। केवल हाथ-मुँह धोयेंगे। लेकिन कुदरत को यह मंजूर नहीं था। आज हमने कुदरत का एक अनोखा रूप देखा। हुआ ये कि अमरगंगा के किनारे नहाने के लिये शेड़ लगे थे। स्थानीय लोग गैस से पानी गर्म करते हैं और एक बाल्टी पचास रुपये में देते हैं। हम दोनों को तो नहाना ही नहीं था, बाकी चारों को नहाना था। मज़बूरीवश हमें भी उनके पीछे-पीछे चलना पड़ रहा था।
जैसे ही नदी किनारे पहुँचे, तभी खड़-खड़ जैसी कुछ अज़ीब-सी आवाज आने लगी। मुझे आवाज सुनायी तो दे रही थी, लेकिन आ कहाँ से रही है, यह पता नहीं चल पाया। तभी धर्मबीर तथा कुछ और यात्री चिल्लाये कि भागो यहाँ से, ऊपर से पत्थर गिर रहा है। हम कुछ समझ पाते, इससे पहले ही बगल में बहती नदी में कुछ गिरा और मैं और मनदीप दोनों पूरी तरह भीग गये। अचंभा इस बात का है कि हमारे आस-पास और भी काफ़ी लोग थे, कोई नहीं भीगा। हमारे और नदी के बीच में एक महिला भी थी, लेकिन बिल्कुल ऐन समय पर वह बुरी तरह घबरा गयी और बचकर भागने के चक्कर में गिर पड़ी और वो भी नहीं भीगी। बिल्कुल जरा-सा आगे एक शेड़ था नहाने के लिये, पानी के प्रेशर से पूरी तरह ध्वस्त हो गया और हमें कुछ भी नुकसान नहीं पहुँचा। नदी के उस तरफ़ भी लोगों का आना-जाना लगा था, पत्थर भी उसी तरफ़ से आया था, लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँचा।
यह हम दोनों पर भोले नाथ का आशीर्वाद था। मुझे तीन दिन हो गये थे नहाये हुए और आज अमरनाथ पहुँचकर भी नहाने की मना कर रहा था। तो भोले बाबा ने खुद ही नहला दिया कि ले आलसी, मैं ही तुझे नहलाता हूँ। इस घटना के बाद मुझे लगा कि यहाँ आना सार्थक हो गया। वैसे बाद में हम सभी ने पचास-पचास रुपये का छह बाल्टी गरम पानी खरीदा और नहाये भी।
गुफ़ा में मोबाइल या कैमरा ले जाना मना है। हमने चूँकि एक किलोमीटर पहले ही रात बितायी थी, इसलिये सामान का बोझ ना ढोने के लिये यहीं पर सारा सामान रख दिया। नंगे पैर जाना पड़ता है। आनंद आ गया गुफ़ा में जाकर। मैं कोई दार्शनिक तो नहीं हूँ, ज्यादा इमोशनल नहीं होऊँगा। बस यह बताऊँगा कि क्या-क्या देखा। सबसे पहले तो दिखी एक बिल्ली - जंगली बिल्ली। पहाड़ की एक चट्टान पर बैठकर खूब शोर मचा रही थी। गुफ़ा में बहुत सारे कबूतर भी दिखे, लेकिन आँखें ढूँढ़ रही थीं उन दो विशेष सफ़ेद कबूतरों को। नहाने वाली घटना से सीख लेकर सोचा कि आज अपने ऊपर बाबा की कृपा है, दोनों कबूतर ज़रूर दिखेंगे। वे भी दिख गये। यह कोई छोटी-मोटी मामूली गुफ़ा तो है नहीं। एक विशाल गुफ़ा है। इसमें पत्थरों की तरह अलग-अलग जगहों पर बैठे दोनों कपोतों को ढूँढ़ने के लिये सिर में दर्द भी होने लगा था। शिवलिंग तो देख ही लेंगे, लेकिन बाबा द्वारा खुद नहलाना और आराम से दोनों कबूतर देखने से लगा कि यात्रा सफल हो गयी।
आज शिवलिंग लगभग आठ फीट का था। यात्रा शुरू होने के आठ दिन बाद ही हमने दर्शन कर लिये। अब लगातार आवाजाही रहने के कारण यह पिघलता जायेगा और हो सकता है कि ख़त्म भी हो जाये। आश्चर्य इस बात का है कि यह बिल्कुल ठोस बरफ़ का होता है, जबकि गुफ़ा के बाहर दूर-दूर तक कच्ची भुरभुरी बरफ़ होती है। बडे आराम से पन्द्रह बीस मिनट तक यही खड़े रहे। जीवन सफल हो गया।
तीन किलोमीटर के बाद बालटाल से आने वाला रास्ता भी दिख जाता है। सामने वाले पहाड़ पर जो रास्ता दिख रहा है, वो बालटाल से आ रहा है। |
और ज़ूम करते हैं। दूर जो तंबू नगरी बसी है, उसके बायें ऊपर गुफ़ा दिख रही है। हमने यहीं पर तम्बू ले लिया था, गुफ़ा से एक किलोमीटर पहले ही। असल में हमें वहाँ गुफ़ा के नीचे ही लेना चाहिये था। |
जय बर्फानी बाबा। जब हम गये थे, बाबा अपने पूरे रूप से कुछ छोटे थे।
(यह फोटू मेरा खींचा हुआ नहीं है। गूगल जी की सहायता से उठाया गया है। अगर किसी को आपत्ति हो तो माफ़ करना।)
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अमरनाथ यात्रा
1. अमरनाथ यात्रा
2. पहलगाम- अमरनाथ यात्रा का आधार स्थल
3. पहलगाम से पिस्सू घाटी
4. अमरनाथ यात्रा- पिस्सू घाटी से शेषनाग
5. शेषनाग झील
6. अमरनाथ यात्रा- महागुनस चोटी
7. पौषपत्री का शानदार भण्डारा
8. पंचतरणी- यात्रा की सुन्दरतम जगह
9. श्री अमरनाथ दर्शन
10. अमरनाथ से बालटाल
11. सोनामार्ग (सोनमर्ग) के नजारे
12. सोनमर्ग में खच्चरसवारी
13. सोनमर्ग से श्रीनगर तक
14. श्रीनगर में डल झील
15. पटनीटॉप में एक घण्टा
मजा आ गया.. जय हो..
ReplyDeleteनीरज, बहुत ही बढिया वर्णन। तुम्हारे ऊपर भोले बाबा की कृपा हो गयी है तो जल्दी से हल्दी लगवा लो। जब बच्चे नहाने में आनाकानी करते हैं तब ऐसे ही होता है। हा हा हाहा। तुमने अच्छे से दर्शन किए और हमने भी मान लिया कि नीरज ने कर लिए तो हमने भी कर लिए।
ReplyDeleteसुबह सुबह आनंद आ गया. आपको बधाईयाँ.
ReplyDeleteइस बहाने हमारी भी अमरनाथ यात्रा हो गई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर यात्रा विवरण
ReplyDeleteबधाई हो।
jay baba Amarnath!
ReplyDeleteaapne to amarnath yatra kar hi diya....
aapki yaatra vivarani padhkar ab to man bana liya ki next year hum bhi jayengein
dekhein baba ka bulawa aata hai ki nahin...
jai Baba Barfani
ReplyDeleteजय हो
ReplyDeleteबहुत सुंदर यात्रा जी, ओर चित्र भी बहुत सुंदर, धन्यवाद
ReplyDeleteआखिर बर्फानी बाबा के दर्शन हो ही गए...जय हो बाबा की...
ReplyDeleteनीरज जी ये जो इतने लोग वहाँ दर्शनों के लिए जाते हैं तो क्या वो जगह गन्दी नहीं हो जाती...???इतने इंसान घोड़े खच्चर...खाने पीने का सामान...फिर हमारे द्वारा फैलाई गन्दगी...क्या ये सब ठीक है? पर्यावरण की दृष्टि से हम कुछ गलत नहीं कर रहे?
हमारी भक्ति और श्रधा इस पवित्र स्थान को दूषित तो नहीं कर रही?
आपका क्या ख्याल है?
नीरज
jai Shambho ! Jai Bhole !Dhanyavaad Neeraj.
ReplyDeleteआखिरकार बाबा के दर्शन करवा ही द्ये, बहुत आभार.
ReplyDeleteरामराम.
चित्र व्यक्त करते सारी कहानी।
ReplyDeleteसुंदर चित्र ! काफी दुर्गम यात्रा रही ये...
ReplyDeleteneeraj ji, Bahut Shandar chitra hain.. Jai Baba Bhole nath Ki... Jai Baba Amartnath ki..........
ReplyDeleteयात्रा सफ़ल की भोले बाबा ने। आलसी को नहला भी दिया और सफ़ेद कबूतरों का जोड़ा भी दिखलाया।
ReplyDeleteठीक है भाई, तुम्हारे बहाने हमने भी घर बैठे बैठे खूबसूरत नजारे देख लिये।
आगे भी इंतज़ार रहेगा।
Incredible Post! Amazing photographs. Can I have these in higher resolution please?
ReplyDeleteइतने साफ और सुन्दर चित्र । भाई सच में आनंद आ गया । इतने अच्छे दर्शन वावा के किसी चित्र में या चेनल में इसके पहले कभी नहीं किये । बहुत बहुत बधाई ।साथ में धन्यवाद भी ।भलेही चित्र आपका खींचा हुआ न हो मगर दर्शन तो आपही ने कराये हैं तो हम धन्यवाद तो आप ही को देंगे
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा ये यात्रा वृताँत। तस्वीरें भी बहुत अच्छी है
ReplyDelete। बधाई।
मुसाफिर जी, कहाँ चले गये दस दिन हो गये कहीं अता पता नहीं है आपका
ReplyDeleteयात्रा कठिन लगती है।
ReplyDeleteक्या सभी चित्र गूगल से हैं?
bahut badiya jaat bhai, tumhari post padhke aur dekh ke bahut maza aata hai. Rahul jee ke paschat aap hi ho ghumakkad shashtr
ReplyDeleteबहुत बढ़िया नीरज जी ।।आपकी यात्रा का विवरण पड़कर जानकारी भी प्राप्त होती है।और मज़ा भी आता है।
ReplyDeleteबाबा बर्फानी ने शायद इस साल2016 में मुझे भी बुलाया है। यदि गया तो जरूर अपना Experience Share करूँगा।
जय बाबा अमरनाथ बर्फानी ।