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अमरनाथ यात्रा की पैदल चढाई चन्दनवाडी से शुरू होती है। चन्दनवाडी पहलगाम से सोलह किलोमीटर आगे है। चन्दनवाडी से कठिन चढाई चढकर यात्री पिस्सू टॉप पहुंचते हैं। पिस्सू टॉप तक का रास्ता काफी मुश्किल है, आगे का रास्ता कुछ कम मुश्किल है। कुछ दूर तक तो उतराई ही है। अधिकतर यात्री चन्दनवाडी से यहां तक खच्चर से आते हैं। आगे की यात्रा पैदल करते हैं। लेकिन कुछ यात्री ऐसे भी होते हैं, जो पिस्सू टॉप तक पैदल आते हैं और इस मुश्किल चढाई में उनका मामला गडबड हो जाता है। आगे चलने लायक नहीं रहते। इसलिये उन्हे आगे के अपेक्षाकृत सरल रास्ते में खच्चर करने पडते हैं। हमारे दल में मनदीप भी ऐसा ही था। पिस्सू टॉप तक पहुंचने में ही पैर जवाब दे गये और आगे शेषनाग के लिये खच्चर करना पडा।
अमरनाथ यात्रा की पैदल चढाई चन्दनवाडी से शुरू होती है। चन्दनवाडी पहलगाम से सोलह किलोमीटर आगे है। चन्दनवाडी से कठिन चढाई चढकर यात्री पिस्सू टॉप पहुंचते हैं। पिस्सू टॉप तक का रास्ता काफी मुश्किल है, आगे का रास्ता कुछ कम मुश्किल है। कुछ दूर तक तो उतराई ही है। अधिकतर यात्री चन्दनवाडी से यहां तक खच्चर से आते हैं। आगे की यात्रा पैदल करते हैं। लेकिन कुछ यात्री ऐसे भी होते हैं, जो पिस्सू टॉप तक पैदल आते हैं और इस मुश्किल चढाई में उनका मामला गडबड हो जाता है। आगे चलने लायक नहीं रहते। इसलिये उन्हे आगे के अपेक्षाकृत सरल रास्ते में खच्चर करने पडते हैं। हमारे दल में मनदीप भी ऐसा ही था। पिस्सू टॉप तक पहुंचने में ही पैर जवाब दे गये और आगे शेषनाग के लिये खच्चर करना पडा।
यह इलाका समुद्र तल से काफी ऊंचाई पर है, इसलिये सूर्य की किरणें बहुत तीखी लगती हैं। उनसे बचने के लिये कोल्ड क्रीम लगानी पडती है। कोल्ड क्रीम मनदीप के पास थी, लेकिन उसके खच्चर पर जाने से पहले ही सभी ने अपने-अपने मुंह पोत लिये थे। यहां भी शहंशाह भागमभाग में लगा था। बिल्लू की हालत भी काफी खराब थी। इसके बावजूद भी उसने खच्चर नहीं किया, फलस्वरूप सबसे पीछे चल रहा था। बाकी मैं, कालू और धर्मबीर साथ-साथ थे।
हिमालय की ऊंचाइयों में एक खास बात है कि यहां दोपहर बाद मौसम खराब होने लगता है। दो बजे के बाद यहां भी मौसम बदलने लगा। जहां थोडी देर पहले तीखी धूप पड रही थी, अब बाद्ल छा गये। बादल छाते ही कडकडाती ठण्ड लगनी शुरू हो गयी। नीचे की तरफ से काले बादल भी दिखने लगे। अब हम समझ गये कि कुछ देर बाद बारिश भी हो सकती है। इसलिये हमने अपनी चलने की स्पीड तेज कर दी। मन में था कि बारिश होने से पहले शेषनाग पहुंच जाये।
लेकिन हमारे शेषनाग पहुंचने से पहले ही बारिश भी हो गयी। रेनकोट साथ लाये थे, इसलिये बच गये। नहीं तो किसी बडे से पत्थर के नीचे बैठना पडता। यात्रा में काफी संख्या में साधु आते हैं। इनमें से ज्यादातर बहुत कम कपडों में होते हैं। कोई-कोई तो नंगे पैर होता है। बारिश हुई तो सभी पत्थरों के नीचे बैठ गये। इन बडे-बडे पत्थरों से तेज हवा से भी बचाव हो रहा था और बारिश से भी।
खैर, बारिश होती रही और हम शेषनाग झील के पास जा पहुंचे। यह चन्दनवाडी से 15-16 किलोमीटर दूर है। चन्दनवाडी के बाद रात बिताने का इन्तजाम यही पर है। इसलिये चन्दनवाडी से निकलने के बाद हर एक यात्री को शेषनाग पहुंचना ही पडता है।
दो लठधारी जाट। मनदीप और मैं।
जब मनदीप के घुटने जवाब दे गये तो बेचारे को खच्चर करना पडा। फोटू खिंचवाने में शर्म आयी तो मुंह ढक लिया। |
पहलगाम के गडरिये इतनी दूर तक भेड चराने आते हैं। सर्दियां खत्म होने के बाद बरफ पिघलती है तो जमीन पर घास उगने लगती है।
इसी तरह के किसी गडरिये बूटा मलिक ने अमरनाथ गुफा की खोज की थी।
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पूरी यात्रा के पैदल मार्ग में जम्मू-कश्मीर पुलिस नहीं दिखी। जबकि सीआरपी, बीएसएफ व सेना जगह-जगह यात्रियों की सेवा में लगी थी। यहां सुरक्षा बल पानी पिला रहे हैं। |
अमरनाथ यात्रा
1. अमरनाथ यात्रा
2. पहलगाम- अमरनाथ यात्रा का आधार स्थल
3. पहलगाम से पिस्सू घाटी
4. अमरनाथ यात्रा- पिस्सू घाटी से शेषनाग
5. शेषनाग झील
6. अमरनाथ यात्रा- महागुनस चोटी
7. पौषपत्री का शानदार भण्डारा
8. पंचतरणी- यात्रा की सुन्दरतम जगह
9. श्री अमरनाथ दर्शन
10. अमरनाथ से बालटाल
11. सोनामार्ग (सोनमर्ग) के नजारे
12. सोनमर्ग में खच्चरसवारी
13. सोनमर्ग से श्रीनगर तक
14. श्रीनगर में डल झील
15. पटनीटॉप में एक घण्टा
सर्दी नहीं लगी.. जैकेट नही टांगा?
ReplyDeleteजय बर्फानी बाबा!!!
ReplyDeleteरोचक यात्रा वृत्तांत. फोटू तो गजब के हैं.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और मनमोहक फोटो है । और लेखन का तो जवाब ही नहीं। । पढ़ते-पढ़ते लगा कि हम भी उन रास्तों पर चल रहे है।
ReplyDeleteजाट तो खुद ही लट्ठ होते हैं, इन्हें लट्ठ धारण करने की क्या जरुरत थी। :)
ReplyDeleteप्रणाम
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब चित्र और रोचक विवरण.
ReplyDeleteरामराम.
अरे नीरज क्यो दिल दुखा रहा है, इतने सुंदर सुंदर चित्र दिखा कर, सच कहूं तो दिल करता है कि अभी उड कर आ जाऊ, बहुत मनमोहक लगे सभी चित्र, धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और जीवन्त चित्र।
ReplyDeleteयात्रा जितनी कठिन होती है फोटुएं उतनी ही सुंदर आती हैं।
ReplyDeleteयह भी एक रहस्य ही है :-)
भण्डारों के बाहर स्थानीय लोगों का जमावडा लगा रहता है। इसका कारण है कि भण्डारों में इन लोगों को आने नहीं दिया जाता। कहीं कहीं इनका टाइम निर्धारित होता है कि इस समय के बाद आओ। कहीं –कहीं तो इनके लिये मुख्य भण्डारे की बगल में एक छोटा सा भण्डारा होता है जहां इन्हे चाय, रोटी, सब्जी मिल जाते हैं। जबकि यात्रियों के लिये एक से एक बढकर आइटम होता है।
ReplyDeleteany specific reason for this.....
Zaroori hai ye yatra !!
ReplyDeleteबड़े ही खूबसूरत दृश्य दिखा रहे हैं आप अपने कैमरे से!
ReplyDeleteफोटो मनमोहक है
ReplyDeleteअमरनाथ यात्रा करना अपने आप में एक अलग ही अदभुद अनुभव है, कश्मीर युही धरती का स्वर्ग नहीं1
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