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उस दिन जम्मू मेल करीब एक घण्टे देरी से जम्मू पहुँची। यह गाडी आगे ऊधमपुर भी जाती है। मैने प्रस्ताव रखा कि ऊधमपुर ही चलते हैं, वहाँ से कटरा चले जायेंगे। लेकिन प्रस्ताव पारित होने से पहले ही गिर गया। यह 27 दिसम्बर 2009 की सुबह थी। जाडों में कहीं जाने की यही सबसे बडी दिक्कत होती है कि भारी-भरकम सामान उठाना पडता है, जिसमे गर्म कपडे ज्यादा होते हैं।
स्टेशन से बाहर निकले। हर तरफ कटरा जाने वालों की भीड। बसें, जीपें, टैक्सियां, यहाँ तक कि नन्हे नन्हे टम्पू भी; कटरा जाने की जिद लगाये बैठे थे। हम तीनों ईडियट एक खाली बस में बैठ गये। बस वाला कटरा कटरा चिल्ला रहा था। हमें बस खाली दिखी तो तीनों ने तीन सीटों पर कब्जा कर लिया, खिडकी के पास वाली। यह 2X2 सीट वाली बस थी। हमारे बराबर में एक एक सीट खाली देखकर बाकी सवारियों ने बैठना मना कर दिया, उन्हे भी खिडकी वाली सीट ही चाहिये थी। कंडक्टर ने हमसे खूब कहा कि भाई, तुम अलग-अलग सीटों पर मत बैठो, साथ ही बैठ जाओ, लेकिन यदि रामबाबू और रोहित मेरे पास बैठ जाते तो उनकी शान कम हो जाती। जब झगडा बढ गया तो, हम बस से ही उतर गये।
मैं तो चाहता था कि जितनी जल्दी हो सके, कटरा पहुँच जाये, लेकिन उन दोनों को अपनी शान की पडी थी। कहने लगे कि वोल्वो बस से ही जायेंगे, केवल खिडकी वाली सीट पर ही बैठेंगे, आखिर पैसे देकर जा रहे हैं। उनकी इन दलीलों से तंग आकर मैने उन्हे एक घण्टे का समय दिया कि अगर एक बजे तक बस ना पकडी गयी तो मैं कन्ट्रोल अपने हाथ में ले लूँगा। हँसने लगे।इसके बाद कटरा जाने वाली जितनी भी बसें दिखीं, सभी लगभग भरी जा रही थीं। मतलब कि खिडकी वाली सीट नहीं मिल रही थी। एक टम्पू वाले को पटाया, तो खूब बहस करके वो छ्ह सौ रुपये में चलने को तैयार हुआ। मैने मना कर दिया। असल में सुबह के समय जम्मू स्टेशन पर कई ट्रेनें आती हैं, तो इतनी भीड हो जाती है, कि बसें फटाफट भर जाती हैं।
और जैसे ही एक बजा, कन्ट्रोल मेरे हाथ में आ गया। हमारा पहले ही डेढ घण्टा खराब हो चुका था, अब और खराब नहीं करना चाहता था। अब मुझे जो भी सबसे पहली बस दिखी, चढ लिया। भरी हुई थी। इसमें बोनट के पास ही प्लास्टिक की तीन बाल्टियाँ उल्टी रखी थीं। कंडक्टर ने कहा कि वो देखो, बाल्टी खाली हैं, बैठ जाओ। बैठ गये। उन दोनों ने खूब मना किया, लेकिन उनकी चली नहीं। चल पडे कटरा की ओर। बोल साँच्चे दरबार की जय।
डोमेल के पास हल्का नाश्ता करवाने के लिये बस रुकी। और फिर चल पडी। कटरा पहुँचे। एक तो आज इतवार था, दूसरे नया साल आने को था, इसलिये भीड बहुत थी। यात्रा पर्ची लेने में भी मुझे दो घण्टे लग गये। जब तक मैने पर्ची ली, तब तक वे दोनों नहा लिये थे। उनके बाद मैं नहाया। बस अड्डे के पास में ही सुलभ वालों का “आफिस” है। शायद दस दस रुपये में नहाने की सुविधा दे रहे थे। क्या खाक सुविधा दे रहे थे, पानी तो इतना ठण्डा था कि सिर पर डालते ही सिर सुन्न हो गया। सिर सुन्न होने की वजह से फिर ठण्ड ही नहीं लगी। नहा-धोकर शाम को करीब छह बजे हमने एक जयकारा लगाया और चढाई शुरू कर दी।
स्टेशन से बाहर निकले। हर तरफ कटरा जाने वालों की भीड। बसें, जीपें, टैक्सियां, यहाँ तक कि नन्हे नन्हे टम्पू भी; कटरा जाने की जिद लगाये बैठे थे। हम तीनों ईडियट एक खाली बस में बैठ गये। बस वाला कटरा कटरा चिल्ला रहा था। हमें बस खाली दिखी तो तीनों ने तीन सीटों पर कब्जा कर लिया, खिडकी के पास वाली। यह 2X2 सीट वाली बस थी। हमारे बराबर में एक एक सीट खाली देखकर बाकी सवारियों ने बैठना मना कर दिया, उन्हे भी खिडकी वाली सीट ही चाहिये थी। कंडक्टर ने हमसे खूब कहा कि भाई, तुम अलग-अलग सीटों पर मत बैठो, साथ ही बैठ जाओ, लेकिन यदि रामबाबू और रोहित मेरे पास बैठ जाते तो उनकी शान कम हो जाती। जब झगडा बढ गया तो, हम बस से ही उतर गये।
मैं तो चाहता था कि जितनी जल्दी हो सके, कटरा पहुँच जाये, लेकिन उन दोनों को अपनी शान की पडी थी। कहने लगे कि वोल्वो बस से ही जायेंगे, केवल खिडकी वाली सीट पर ही बैठेंगे, आखिर पैसे देकर जा रहे हैं। उनकी इन दलीलों से तंग आकर मैने उन्हे एक घण्टे का समय दिया कि अगर एक बजे तक बस ना पकडी गयी तो मैं कन्ट्रोल अपने हाथ में ले लूँगा। हँसने लगे।इसके बाद कटरा जाने वाली जितनी भी बसें दिखीं, सभी लगभग भरी जा रही थीं। मतलब कि खिडकी वाली सीट नहीं मिल रही थी। एक टम्पू वाले को पटाया, तो खूब बहस करके वो छ्ह सौ रुपये में चलने को तैयार हुआ। मैने मना कर दिया। असल में सुबह के समय जम्मू स्टेशन पर कई ट्रेनें आती हैं, तो इतनी भीड हो जाती है, कि बसें फटाफट भर जाती हैं।
और जैसे ही एक बजा, कन्ट्रोल मेरे हाथ में आ गया। हमारा पहले ही डेढ घण्टा खराब हो चुका था, अब और खराब नहीं करना चाहता था। अब मुझे जो भी सबसे पहली बस दिखी, चढ लिया। भरी हुई थी। इसमें बोनट के पास ही प्लास्टिक की तीन बाल्टियाँ उल्टी रखी थीं। कंडक्टर ने कहा कि वो देखो, बाल्टी खाली हैं, बैठ जाओ। बैठ गये। उन दोनों ने खूब मना किया, लेकिन उनकी चली नहीं। चल पडे कटरा की ओर। बोल साँच्चे दरबार की जय।
डोमेल के पास हल्का नाश्ता करवाने के लिये बस रुकी। और फिर चल पडी। कटरा पहुँचे। एक तो आज इतवार था, दूसरे नया साल आने को था, इसलिये भीड बहुत थी। यात्रा पर्ची लेने में भी मुझे दो घण्टे लग गये। जब तक मैने पर्ची ली, तब तक वे दोनों नहा लिये थे। उनके बाद मैं नहाया। बस अड्डे के पास में ही सुलभ वालों का “आफिस” है। शायद दस दस रुपये में नहाने की सुविधा दे रहे थे। क्या खाक सुविधा दे रहे थे, पानी तो इतना ठण्डा था कि सिर पर डालते ही सिर सुन्न हो गया। सिर सुन्न होने की वजह से फिर ठण्ड ही नहीं लगी। नहा-धोकर शाम को करीब छह बजे हमने एक जयकारा लगाया और चढाई शुरू कर दी।
अगला भाग: माता वैष्णों देवी दर्शन
वैष्णों देवी यात्रा श्रंखला
1. चलूं, बुलावा आया है
2. वैष्णों देवी यात्रा
3. जम्मू से कटरा
4. माता वैष्णों देवी दर्शन
5. शिव का स्थान है- शिवखोडी
6. जम्मू- ऊधमपुर रेल लाइन
बहुत सुंदर चित्रों के साथ रोचक यात्रा वृतांत. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
भाई थारी गाड्डी भोत धीमी गति से चल री है...रे माता के दरबार पे किब ले चलेगा...वैसे भोत मजा आ रहा है पढने में...लिखे जा भाई ये वर्णन...
ReplyDeleteनीरज
बहुत अच्छा विवरण दिया है. लगता है कि मैं भी वहीं कहीं हूं :)
ReplyDeleteआपकी यायावरी के मुरीद हो गये हैं हम तो!
ReplyDeleteबढ़िया रोचक वृतांत..चल रहे हैं साथ साथ.
ReplyDeleteमुसाफिर जी,
ReplyDeleteआप यात्रा पर्ची माँ वैष्णो देवी की वेबसाईट से आनलाईन भी करवा सकते हो. इससे कटरा पर पर्ची लेने में लगने वाला बहुत सा समया बच जाता है. इसके अतिरिक्त यात्रा पर्ची सरस्वती धाम, जम्मू से भी ली जा सकती है.
आनलाईन पर्ची लेने के लिये लिंक दिया जा रहा है -
https://www.maavaishnodevi.org/yatraparchi_detail1.asp
मुझे शिकायत है : फिर से फोटो कम डाल रहे हो.
behtreen blog....sir ji...
ReplyDeleteजय मत दी डिअर हम भी आपकी तरह तीन दोस्त 27/09/2013
ReplyDeleteको मत के दर्शन करने के लिए टिकट रिजर्वेशन करा ली है सो सायद माता ने बुलाया है चलो बुलावा आया है