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जम्मू पहुँचे, कटरा पहुँचे, पर्ची कटाई, जयकारा लगाया और शुरू कर दी चढाई। चौदह किलोमीटर की पैदल चढाई। दो किलोमीटर के बाद बाणगंगा पुल है। यहाँ चेकपोस्ट भी है। सभी यात्रियों की गहन सुरक्षा जांच होती है। पर्ची की चेकिंग भी यहीं होती है। वैसे तो कटरा से बाणगंगा चेकपोस्ट तक टम्पू भी चलते हैं जो आजकल बीस रुपये प्रति सवारी के हिसाब से लेते हैं। चेकपोस्ट के पास से ही पोनी व पालकी उपलब्ध रहती है। पोनी व पालकी का किराया माता वैष्णों देवी श्राइन बोर्ड द्वारा निर्धारित है। पोनी व पालकी की सवारी शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्तियों को ही करनी चाहिये लेकिन भले चंगे लोग भी इनका सहारा ले लेते हैं।
यहाँ तक नकली चढाई थी, असली चढाई तो बाणगंगा के बाद ही शुरू होती है। पूरा रास्ता पक्का बना हुआ है। जगह जगह विश्राम शेड बने हैं। पीने के पानी व फ्री शौचालयों की तो कोई गिनती ही नहीं है। पूरे रास्ते भर खाने-पीने की दुकानों का भी क्रम नहीं टूटता। करीब सौ-सौ मीटर पर कूडेदान रखे हैं। श्रद्धालुओं के साथ साथ ही घोडे व खच्चर भी चढते उतरते हैं। वे लीद करते हैं जिसे श्राइन बोर्ड के सफाईकर्मियों द्वारा तुरन्त ही साफ कर दिया जाता है। इतनी भीड होने के बावजूद भी पूरा रास्ता एकदम ’सफाचट’ रहता है।
आदिकुमारी जिसे अर्द्धकुंवारी भी कहते हैं, लगभग बीच में पडता है। यहाँ विश्राम करने व खाने-पीने की बहुत बढिया सुविधायें हैं। शायद एक एटीएम भी है। माता के दरबार को भवन कहते हैं। भवन से करीब दो किलोमीटर पहले सांझीछत है। यहाँ एक हैलीपैड है। दो हैलीकॉप्टर लगातार काम पर लगे रहते हैं। इनके अलावा रास्ते में और क्या क्या हैं, इनकी क्या पौराणिक कथाएं हैं, यह विस्तार से जानने के लिये मुझे एक किताब खोलनी पडेगी। क्या फायदा किताब में से टीप-टीपकर लिखने में। चलो, इस समय मेरे दिमाग में जो भी आ रहा है, उसे ही लिख रहा हूँ। ज्यादा जानकारी चाहिये तो घर से बाहर निकलो, जम्मू का रिजर्वेशन कराओ, और खुद ही हो आओ। अब तो जाडे भी खत्म होने वाले हैं।
हमने कटरा से शाम को छह बजे चढना शुरू किया और रात को ग्यारह बजे भवन पर पहुँचे। रात और भीड होने की वजह से एक बार रोहित हमसे बिछुड गया था और माता के भवन पर जाते ही मिल गया। ऊपर पहुँचकर निर्धारित काउण्टर पर पर्ची दिखाकर अपना ग्रुप नंबर लेना होता है। हमार नंबर 25 था। पता चला कि अभी नंबर 21 वाले दर्शन के लिये लाइन में लगे हैं और लाइन भी मीलों लम्बी थी। निश्चय किया कि सुबह को दर्शन करेंगे, जो होगा देखा जायेगा। अब सोते हैं। लेकिन कहाँ? कहीं जगह ही नहीं है। जो भी थोडी बहुत है, श्रद्धालु पडे सो रहे हैं।
देखा कि कम्बल मिल रहे हैं। एक कम्बल की सौ रुपये सिक्योरिटी देनी होती है, सुबह को कम्बल वापस करने पर सौ रुपये भी वापस मिल जाते हैं। मैने और रोहित ने तय किया कि 6-6 कम्बल ले लेते हैं। दिसम्बर का आखिरी सप्ताह था। चिलचिलाती ठण्ड थी, हमें कहीं भी जगह ढूँढकर बस पड जाना था। इसलिये हमें 6-6 कम्बलों पर भी शक हो रहा था। उधर रामबाबू को शर्म आ रही थी। बोला कि मैं तो दो ही कम्बल लूंगा। दो सुनते ही हमने उसे मना कर दिया कि बेटे, दो ले या एक भी मत ले, रात को हम तुझे अपने कम्बलों में नहीं घुसने देंगे। आखिरकार हम तीनों ने 28 कम्बल लिये। दस-दस मैने व रोहित ने और आठ रामबाबू ने। दो हमारे पास थे, पांच-पांच बिछाये व पांच पांच ओढे।
रात को हम एक धर्मशाला की छत पर खुले में ही सो गये थे। सुबह उठे तो भयानक ठण्ड थी। उठते ही रोहित ने घोषणा कर दी कि नहाऊँगा। मैने भी घोषणा की कि नहीं नहाऊँगा, कल कटरा में तो नहाये ही थे। कम्बल वापस करके एक स्नानघर में पहुँचे। भीड लगी थी नहाने वालों की। रोहित ने फटाफट कपडे उतारे, जयकारा लगाया और थोडी देर में ही नहाकर आ गया। बोला कि नीरज, तू भी नहा ले। मैने कहा नहीं। बोला कि गरम पानी है। मजा आ रहा है गरम पानी में नहाने में। मेरा मन डावांडोल, चट मंगनी पट ब्याह, आव देखा ना ताव, कपडे उतारे, जय माता की और सीधा पानी की टंकी के नीचे। सिर पर पानी पडते ही सिर सुन्न। धीरे धीरे पूरा शरीर ही सुन्न हो गया। पानी अति ठण्डा था।
अब बचा रामबाबू। इसने भी प्रतिज्ञा की थी कि नहीं नहाऊँगा। मैने बाहर निकलते ही रामबाबू से कहा कि बेटा बाबूराम, वाकई गरम पानी आ रहा है, देवी के दर्शन करने जा रहे हैं, नहा ले। वो भी मेरी तरह ही गरम पानी के चक्कर में आ गया। कपडे उतारे, जय बोली और चला गया। तुरन्त ही वापस आ गया, सिर भीगा हुआ था। चिल्लाने लगा कि हे भगवान! नीरज, तेरी ऐसी की तैसी। इतना ठण्डा पानी है, तू मुझे बेवकूफ बना रहा है। मैने कहा कि भाई, तू गलत टंकी पर जा चढा। आ, मेरे साथ आ, देख वो वाली टंकी है ना, उसमें गरम पानी आ रहा है। जा, मैं भी तो उसी में नहाया था। बेचारा एक बार फिर जा घुसा बरफासन्न पानी में।
अगर आपके पास कुछ भी सामान है, तो आपको उसे लॉकर में रखना होता है। लॉकर फ्री में मिलते हैं। आज तो कल के मुकाबले बहुत छोटी लाइन थी। हमने करीब एक घण्टे में ही दर्शन कर लिये। पहले यहाँ जो वास्तविक गुफा थी, उसी से जाना और आना होता था। इसमें लेटकर व सरककर जाना पडता था। आज के समय में बढती भीड को देखते हुए ’तीव्र दर्शन’ हेतु दो गुफाएं और बना दी हैं। प्राचीन असली गुफा में किसी को नहीं जाने देते।
वैष्णों देवी के दर्शन करके दो ढाई किलोमीटर दूर भैरों बाबा के भी दर्शन करने होते हैं। भैरों मन्दिर से रास्ता सीधे नीचे सांझीछत पर जाता है। जहां आदिकुमारी वाला रास्ता भी मिल जाता है।
यहाँ तक नकली चढाई थी, असली चढाई तो बाणगंगा के बाद ही शुरू होती है। पूरा रास्ता पक्का बना हुआ है। जगह जगह विश्राम शेड बने हैं। पीने के पानी व फ्री शौचालयों की तो कोई गिनती ही नहीं है। पूरे रास्ते भर खाने-पीने की दुकानों का भी क्रम नहीं टूटता। करीब सौ-सौ मीटर पर कूडेदान रखे हैं। श्रद्धालुओं के साथ साथ ही घोडे व खच्चर भी चढते उतरते हैं। वे लीद करते हैं जिसे श्राइन बोर्ड के सफाईकर्मियों द्वारा तुरन्त ही साफ कर दिया जाता है। इतनी भीड होने के बावजूद भी पूरा रास्ता एकदम ’सफाचट’ रहता है।
आदिकुमारी जिसे अर्द्धकुंवारी भी कहते हैं, लगभग बीच में पडता है। यहाँ विश्राम करने व खाने-पीने की बहुत बढिया सुविधायें हैं। शायद एक एटीएम भी है। माता के दरबार को भवन कहते हैं। भवन से करीब दो किलोमीटर पहले सांझीछत है। यहाँ एक हैलीपैड है। दो हैलीकॉप्टर लगातार काम पर लगे रहते हैं। इनके अलावा रास्ते में और क्या क्या हैं, इनकी क्या पौराणिक कथाएं हैं, यह विस्तार से जानने के लिये मुझे एक किताब खोलनी पडेगी। क्या फायदा किताब में से टीप-टीपकर लिखने में। चलो, इस समय मेरे दिमाग में जो भी आ रहा है, उसे ही लिख रहा हूँ। ज्यादा जानकारी चाहिये तो घर से बाहर निकलो, जम्मू का रिजर्वेशन कराओ, और खुद ही हो आओ। अब तो जाडे भी खत्म होने वाले हैं।
हमने कटरा से शाम को छह बजे चढना शुरू किया और रात को ग्यारह बजे भवन पर पहुँचे। रात और भीड होने की वजह से एक बार रोहित हमसे बिछुड गया था और माता के भवन पर जाते ही मिल गया। ऊपर पहुँचकर निर्धारित काउण्टर पर पर्ची दिखाकर अपना ग्रुप नंबर लेना होता है। हमार नंबर 25 था। पता चला कि अभी नंबर 21 वाले दर्शन के लिये लाइन में लगे हैं और लाइन भी मीलों लम्बी थी। निश्चय किया कि सुबह को दर्शन करेंगे, जो होगा देखा जायेगा। अब सोते हैं। लेकिन कहाँ? कहीं जगह ही नहीं है। जो भी थोडी बहुत है, श्रद्धालु पडे सो रहे हैं।
देखा कि कम्बल मिल रहे हैं। एक कम्बल की सौ रुपये सिक्योरिटी देनी होती है, सुबह को कम्बल वापस करने पर सौ रुपये भी वापस मिल जाते हैं। मैने और रोहित ने तय किया कि 6-6 कम्बल ले लेते हैं। दिसम्बर का आखिरी सप्ताह था। चिलचिलाती ठण्ड थी, हमें कहीं भी जगह ढूँढकर बस पड जाना था। इसलिये हमें 6-6 कम्बलों पर भी शक हो रहा था। उधर रामबाबू को शर्म आ रही थी। बोला कि मैं तो दो ही कम्बल लूंगा। दो सुनते ही हमने उसे मना कर दिया कि बेटे, दो ले या एक भी मत ले, रात को हम तुझे अपने कम्बलों में नहीं घुसने देंगे। आखिरकार हम तीनों ने 28 कम्बल लिये। दस-दस मैने व रोहित ने और आठ रामबाबू ने। दो हमारे पास थे, पांच-पांच बिछाये व पांच पांच ओढे।
रात को हम एक धर्मशाला की छत पर खुले में ही सो गये थे। सुबह उठे तो भयानक ठण्ड थी। उठते ही रोहित ने घोषणा कर दी कि नहाऊँगा। मैने भी घोषणा की कि नहीं नहाऊँगा, कल कटरा में तो नहाये ही थे। कम्बल वापस करके एक स्नानघर में पहुँचे। भीड लगी थी नहाने वालों की। रोहित ने फटाफट कपडे उतारे, जयकारा लगाया और थोडी देर में ही नहाकर आ गया। बोला कि नीरज, तू भी नहा ले। मैने कहा नहीं। बोला कि गरम पानी है। मजा आ रहा है गरम पानी में नहाने में। मेरा मन डावांडोल, चट मंगनी पट ब्याह, आव देखा ना ताव, कपडे उतारे, जय माता की और सीधा पानी की टंकी के नीचे। सिर पर पानी पडते ही सिर सुन्न। धीरे धीरे पूरा शरीर ही सुन्न हो गया। पानी अति ठण्डा था।
अब बचा रामबाबू। इसने भी प्रतिज्ञा की थी कि नहीं नहाऊँगा। मैने बाहर निकलते ही रामबाबू से कहा कि बेटा बाबूराम, वाकई गरम पानी आ रहा है, देवी के दर्शन करने जा रहे हैं, नहा ले। वो भी मेरी तरह ही गरम पानी के चक्कर में आ गया। कपडे उतारे, जय बोली और चला गया। तुरन्त ही वापस आ गया, सिर भीगा हुआ था। चिल्लाने लगा कि हे भगवान! नीरज, तेरी ऐसी की तैसी। इतना ठण्डा पानी है, तू मुझे बेवकूफ बना रहा है। मैने कहा कि भाई, तू गलत टंकी पर जा चढा। आ, मेरे साथ आ, देख वो वाली टंकी है ना, उसमें गरम पानी आ रहा है। जा, मैं भी तो उसी में नहाया था। बेचारा एक बार फिर जा घुसा बरफासन्न पानी में।
अगर आपके पास कुछ भी सामान है, तो आपको उसे लॉकर में रखना होता है। लॉकर फ्री में मिलते हैं। आज तो कल के मुकाबले बहुत छोटी लाइन थी। हमने करीब एक घण्टे में ही दर्शन कर लिये। पहले यहाँ जो वास्तविक गुफा थी, उसी से जाना और आना होता था। इसमें लेटकर व सरककर जाना पडता था। आज के समय में बढती भीड को देखते हुए ’तीव्र दर्शन’ हेतु दो गुफाएं और बना दी हैं। प्राचीन असली गुफा में किसी को नहीं जाने देते।
वैष्णों देवी के दर्शन करके दो ढाई किलोमीटर दूर भैरों बाबा के भी दर्शन करने होते हैं। भैरों मन्दिर से रास्ता सीधे नीचे सांझीछत पर जाता है। जहां आदिकुमारी वाला रास्ता भी मिल जाता है।
(प्रसाद की दुकानें)
(अभी नौ किलोमीटर और चलना है)
(जगह जगह सडक के साथ साथ सीढियां भी बनी हैं, यहां पर 526 सीढियां हैं)
(रास्ता मनमोहक है लेकिन भीड भी बहुत रहती है)
अगला भाग: शिव का स्थान है - शिवखोड़ी
वैष्णों देवी यात्रा श्रंखला
1. चलूं, बुलावा आया है
2. वैष्णों देवी यात्रा
3. जम्मू से कटरा
4. माता वैष्णों देवी दर्शन
5. शिव का स्थान है- शिवखोडी
6. जम्मू- ऊधमपुर रेल लाइन
बहुत ही दिलचस्प फोटो हैं मुसाफिर जी!!!
ReplyDeleteमजा आ गया इस बार तो.
बहुत बढिया फोटो हैं
ReplyDeleteजय माता दी
जय माता दी
ReplyDeleteजय माता दी...भाई मजा आ गया...फोटो और वर्णन दोनों ही जोरदार...मैंने ये यात्रा सन बहत्तर में की थी तब भाई बाण गंगा को पैदल चल के पार करना पड़ता था और रास्ता भी कच्चा था...रास्ते में खाने को भी कुछ न मिलता था...तब ये यात्रा बहुत रोमांचक थी अब तो भीड़ और सुविधाएँ देख कर रोमांच तो ख़तम ही हो गया लगता है...
ReplyDeleteनीरज
प्रिय नीरज, मजा आ गया। वैसे नीरज गोस्वामी जी का कहना भी सच है। हमें भी मजा वहीं आता है जहां मानव रचित सुविधायें ज्यादा न हों, नहीं तो रोमांच खत्म सा हो जाता है। श्रद्धा का स्थान धीरे-धीरे पिकनिक का आनंद लेता है। व्यकित्गत रूप से कहूं तो नीलकंठ महादेव वाली पैदल यात्रा में जो रोमांच मुझे आया, वो अनूठा ही था। काफ़ी कुछ तुम्हारी ही तरह हम भी झिलमिल गुफ़ा तक गये थे और वो सारी रात उन पर्वतों में चलते रहना कभी नहीं भूलेगा।
ReplyDeleteइस बात से तुम्हारी पोस्ट की महत्ता कम नहीं हो जाती, हमेशा की तरह बहुत अच्छी लगी। घूमते रहो और हमें घर बैठे घुमाते रहो।
आनन्द आ गया आपके साथ घूम कर .ठंड में खुले में सोना और फिर ठंडे पानी से नहाना...सोच कर ही कंपकंपी छूट गई.
ReplyDeleteशानदार तस्वीरें.
जय माता दी!!
वाह भाई, घर बैठे माता की यात्रा के दर्शन करवा दिये और फ़ोटू घणी जोरदार तारी. बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteरामराम.
सुंदर पोस्ट. इसे पढ़कर अपनी यात्रा याद आ गई.मेरे पास कैमरा नही था ...चलो आज इन चित्रों को देखकर कमी पूरी हो गयी.
ReplyDelete...आभार.
बढ़िया चित्रण करते हो पथिक!
ReplyDeleteशुभकामनायें !
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपका यात्रा वृतांत पढ़कर बहुत अच्छा लगा . पुरानी याद तजा हो गयी इसके लिए बहुत बहुत dhyanavad
ReplyDeleteबहुत सुंदर यात्रा का वर्णन ओर चित्र भी बहुत सुंदर, लेकिन सब से ज्यादा मजे दार रही नहाने वाली बात, मे यहां तो कभी नही गया लेकिन बचपन मै नेना देवी कई बार गया, ओर उस समय खाने पीने ओर ठहरने की वयव्स्था नही होती थी, सारा रास्ता पेदल ओर नदियां भी चल कर पार करनी होती थी, आप की पोस्ट से माता के दर्शन हो गये
ReplyDeleteगरम पानी का झांसा देकर ठंडे पानी से नहलवाने का प्रसंग मज़ेदार रहा।
ReplyDeleteफोटो के शीर्षक कुछ गलत लगे, शायद उप्पर नीचे हो गया होगा.
ReplyDeleteबुरा न मानियेगा मैं आपका फेन हूँ.
ब्रिजेश जी,
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने इस भयंकर कमी की ओर इशारा किया। यह वास्तव में एक तकनीकी गलती थी, जिसमें इस पोस्ट के कुछ फोटुओं में रोहतक वाली पोस्ट के कुछ फोटू अपने आप आ गये थे। अब उनका निराकरण कर दिया गया है.
bhai waah... mazza aa gaya neeraj ji... jai ho mata raani ki... bhai mai bhi ja raha hu mata k darshan ko... 11 june ka reservation hai bhai... apni family ko sath lekar jaunga...
ReplyDeleteNICE PHOTOGRAPHY
ReplyDeleteअच्छा ब्लॉग .. अंत में, मैंने पाया कि मैं भी इस तरह अपने खुद के ब्लॉग तैयार करके मेरे पर्यटन दुनिया का वर्णन इंटरनेट पर मैं यह कर सकता हूँ
ReplyDeleteThanks
Niraj to share such superb content here.. keep it up good luck
bahut sunder aap ki photo grafi hai mata rani ki jai.
ReplyDeletebahut badiya varnan he aanand aa gaye eisa laga jese ek bar fir vaha ja pahuche
ReplyDeleteइस श्रंखला को पढ़कर लग रहा है की आप के अन्दर भी पहले कभी आस्था की कोंपलें फूटीं थीं लेकिन न जाने क्यों आपने उन्हें पल्लवित, पोषित होने देने के बजाय उनका गला घोंट दिया ...........
ReplyDeleteमें भी माता के बुलावे पे आराम से पहुँच गया ..............
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