Skip to main content

विकासनगर-लखवाड़-चकराता-लोखंडी बाइक यात्रा


7 जून 2018

“क्या!!!"
“हाँ, मैं सच कह रहा हूँ।”
“टाइगर फाल से भी जबरदस्त जलप्रपात!”
“हाँ, यकीन न हो, तो शिव भाई से पूछ लो।”
और शिव सरहदी ने भी पुष्टि कर दी - “हाँ, उदय जी सही कह रहे हैं। उसकी ज्यादा लोगों को जानकारी नहीं है। लोकल लोगों को जानकारी है, तो हम वहाँ अक्सर दारू पीने चले जाते हैं।”
रास्ता हमने समझ लिया और कल्पना करने लगे टाइगर फाल से भी जबरदस्त झरने की। अगर ऐसा हुआ तो कमाल हो जाएगा। लोगों को जब मेरे माध्यम से इसका पता चलेगा तो बड़ा नाम होगा। अखबार में भेजूंगा। टी.वी. पर भेजूंगा। टाइगर फाल क्या कम जबरदस्त है! लेकिन यह तो उससे भी जबरदस्त होगा।
“नाम क्या है इसका?”
“नाम कुछ नहीं है।”





आज बारी थी शिव सरहदी जी के यहाँ आलू के पराँठे खाने की। बाइक यात्राओं में मैं कभी भी पेट भरकर नहीं चलता, लेकिन जब इतने शानदार आलू के पराँठे हों, रायता हो और चवालीस तरह के अचार हों, तो मन करता है कि पेट भरो भी और पेट पर बाँधो भी। 

उदय झा जी के घर पर

शिव सरहदी जी के घर पर

हमें यूँ तो चकराता जाना था और विकासनगर से चकराता का रास्ता एकदम सीधा है, लेकिन अब उस जलप्रपात की वजह से अलग रास्ता पकड़ना पड़ेगा। चकराता और यमुना पुल के बीच में एक स्थान है - जुड्डो। जुड्डो के पास यह प्रपात है। जुड्डो में एक हाइड्रो पावर प्लांट भी बन रहा है। हम गलत रास्ते पर चले गए और एक हाइड्रो कर्मचारी से पूछना पड़ा - “भाई, यहाँ वाटरफाल कहाँ है?”
“वो यहाँ थोड़े ही है? वो तो मसूरी के पास है केम्पटी फॉल। आप गलत आ गए हो। उधर से वो रास्ता पकड़ो और ऐसे-ऐसे जाकर...”
“अबे यहाँ भी है एक। जुड्डो के पास।”
“अच्छा... वो... लेकिन वहाँ तो कोई नहीं जाता। सभी केम्पटी फॉल ही जाते हैं। आप वहीं चले जाइए। उधर से वो रास्ता पकड़ो और ऐसे-ऐसे जाकर..."
“जुड्डो वाले का रास्ता बता।”
“वो सामने है।”
जलप्रपात पर पहुँचे तो निराशा हाथ लगी। यह टाइगर फॉल से जबरदस्त तो क्या, आसपास भी नहीं ठहरता। हम ‘जबरदस्त’ की उम्मीद लेकर न जाते, तो शायद यह हमें अच्छा लगता, लेकिन अब कतई अच्छा नहीं लगा। और सबसे गंदी बात थी कि यहाँ टट्टियों के टीले लगे थे। फिर ध्यान आया - “यहाँ विकासनगर के लोग दारू पीने आते हैं।”
“और हगने भी।” सुमित वापस मुड़ते हुए बोला।
एक नए जलप्रपात की ‘खोज’ करने की इच्छा मन में रह गई। साथ ही अखबार में छपना और टी.वी. में आना भी धरा रह गया।



लखवाड़ बैंड से चकराता की ओर मुड़ गए। बैंड समुद्र तल से लगभग 850 मीटर की ऊँचाई पर है और इसके बाद चढ़ाई शुरू हो जाती है और हम जल्दी ही 2200 मीटर पर पहुँच जाते हैं। अब यह रास्ता चकराता और उससे भी आगे तक धार के ऊपर ही ऊपर रहेगा। हिमालय में इतनी ऊँचाई पर किसी धार पर चलना हमेशा ही शानदार अनुभव होता है। मौसम साफ होता, तो हमें उत्तर में बर्फीली चोटियाँ भी दिखतीं। 
कभी मौका मिले तो इस रास्ते पर अवश्य आना। यह मसूरी-चकराता मार्ग भी कहलाता है। 
अब यह बताने की आवश्यकता नहीं कि हम कब-कब, कहाँ-कहाँ, कितनी-कितनी देर रुके और कितने-कितने फोटो खींचे। या है आवश्यकता?



मसूरी-चकराता मार्ग पर ड्यूडीलानी गाँव






बैराटखाई में एक चौराहा है... एक सड़क मसूरी, एक चकराता, एक सहिया और कालसी, चौथी कचटा और डामटा





बैराटखाई का चौराहा


बैराटखाई का चौराहा

😜😜😜




चकराता से 10 किलोमीटर पहले एक गाँव, नाम भूल गया...


सुमित वाकई अच्छे फोटो लेता है...


चकराता से बाहर ही बाहर निकल गए। जून का महीना था और चकराता में टूरिस्टों की बेतहाशा भीड़ थी।
लेकिन त्यूनी रोड पर बिल्कुल भी भीड़ नहीं थी और देवदार के घने जंगल में वाकई आनंद आ गया। एक तिराहा मिला, जहाँ लिखा था - देवबन दाहिने और त्यूनी बाएँ। हमें आज जहाँ जाना था, वह स्थान त्यूनी वाली सड़क पर ही था और गूगल मैप में उसे देवबन लिखा था। मतलब कुछ तो चक्कर है। यहाँ देवबन वाली सड़क अलग हो रही है। इसका मतलब जिस स्थान को हम देवबन समझे बैठे थे, वह देवबन न होकर कुछ और है। अभी तक तो हम देवबन ही जा रहे थे, लेकिन अब देवबन नहीं जाएंगे। त्यूनी मार्ग पर बढ़ चले। 


यहाँ देवबन को दवेबन लिखा है...





हमारी मंजिल से 8 किलोमीटर पीछे जाड़ी गाँव था। गाँव एक नाले के बगल में बसा है। इसलिए अपेक्षाकृत नीचे है। जाड़ी से चकराता की तरफ भी हल्की चढ़ाई है और त्यूनी की तरफ भी हल्की चढ़ाई है। तो जाड़ी से दो किलोमीटर पहले जब पहली बार गाँव दिखा, तो घाटी के उस तरफ हमारे सामने वो स्थान भी दिख गया, जहाँ आज हमें ठहरना था। यहाँ खड़े होकर सुमित को भूगोल अच्छी तरह समझाया और उससे कई बार ‘हाओ, हाओ’ का आशीर्वाद लिया। वह ‘हाँ’ की बजाय ‘हाओ’ बोलता है। 
जाड़ी पार करके रुक गए। अब मंजिल केवल आठ किलोमीटर दूर थी। सूरज पश्चिम में जाने लगा था। गाँव में भी हलचल हो रही थी। तमाम तरह के पक्षी चहचहा रहे थे, जिनकी मुझे केवल आवाजें सुनाई पड़ रही थीं। लेकिन दीप्ति को सब के सब दिख रहे थे। सुमित अभी पीछे ही था। वह आ जाएगा, तो हम चलेंगे।
पंद्रह मिनट हो गए, सुमित नहीं आया। अभी दो किलोमीटर पीछे ही तो हम साथ थे। उसे इतना समय तो नहीं लगना चाहिए था। 
“आपने जिस व्यक्ति को फोन किया है, वह कवरेज एरिया से बाहर है। कृपया कुछ समय बाद फोन करें।”
इसका मतलब जरूर कुछ गड़बड़ है। वह भी फोन कर रहा होगा, लेकिन उसके फोन में इस समय नेटवर्क नहीं हैं। उसके पास बुलेट है और बुलेट हमेशा ही समस्याओं का खजाना होती है। पंचर हो गया होगा। ट्यूबलेस भी नहीं है वह। अगर पंचर हो गया होगा, तो बुलेट को वहीं पटक देंगे और सुमित को डिस्कवर पर बैठाकर आठ किलोमीटर आगे होटल चलेंगे और मजे से घूमेंगे। कल-परसों देखेंगे बुलेट को।
तभी एक नए नंबर से फोन आया। सुमित ही था।
“आओ, आओ।”
“हाओ, हाओ।”
उस नाले के ठीक पुल पर बुलेट खड़ी थी। मकान बनाने वाले दो मजदूर इसे ठीक करने का प्रयत्न कर रहे थे। 
“क्या हुआ?”
“स्टार्ट नहीं हो रही। अपने आप बंद हो गई।”
“अचानक बंद हुई है या पहले भी संकेत दिए थे?”
“पहले भी संकेत दिए थे। गड़बड़ कर रही है कई दिनों से।”
“तो ठीक क्यों नहीं करवाई? बाइक यात्राओं में बाइक की एक-एक आवाज, महीन से महीन असामान्य आवाज पर ध्यान होना चाहिए और उसकी जड़ तक जाना चाहिए।”
चाबी लगाकर घुमाई। कुछ नहीं हुआ। मतलब यहाँ तक सप्लाई नहीं आ रही है। किक से भी स्टार्ट नहीं हुई। इस पुल के दोनों तरफ हल्की चढ़ाई थी और बुलेट को धक्का कौन मारे? 
अब ट्रबलशूटिंग कैसे करें? बैटरी से लेकर चाबी तक कहीं भी समस्या हो सकती है।
हैंडलबार के नीचे झाँककर देखा। तारों का गुच्छा बना हुआ था और ग्रीस भी लगी हुई थी। शायद यहाँ रोज कपड़ा ठूँसा जाता होगा। ज्यादातर बाइक वाले गंदा कपड़ा यहीं ठूँसते हैं। चाबी लगाकर अपनी तरफ वाला इंडीकेटर चालू कर दिया। अगर सप्लाई आएगी, तो मुझे एकदम इंडीकेटर दिख जाएगा। एक लकड़ी लेकर तारों के इस गुच्छे को टटोला। और कमाल की बात, इंडीकटर जल गया। इग्नीशन स्विच से बुलेट स्टार्ट हो गई और स्टार्ट होते ही फिर से बंद। इंडीकेटर भी बंद। 
लेकिन समस्या पकड़ में आ चुकी थी। केवल चाबी वाला स्विच समस्या कर रहा है। 
“अब चाबी जेब में रख ले। इसका कोई काम नहीं। बुलेट अब बिना चाबी के ही स्टार्ट होगी।”
प्लास से मेन स्विच खोल दिया और जैसे ही इसके दोनों तारों को शॉर्ट किया, बत्ती जल गई। इस काम के लिए मजदूरों से तार का एक छोटा-सा टुकड़ा मांग लिया था। इसी से मेन स्विच को शॉर्ट करने लगे। 
“ये ले, अब तार का यही टुकड़ा तेरी बाइक की चाबी है। इसे संभालकर रखना।”
“हाओ।”

आठ किलोमीटर आगे होटल पहुँचते ही इस स्थान का नाम पूछा।
“लोखंडी।”
1500 का कमरा 1000 में मिल गया। जून के बाद आएंगे तो यही कमरा 400-500 में मिल जाएगा। ऊँचाई 2550 मीटर और धार पर स्थित है यह स्थान। इधर एक घाटी और दूसरी तरफ दूसरी घाटी। हालाँकि दोनों तरफ का पानी आखिरकार टोंस में ही मिलता है। मुझे ऐसी जगहों पर ठहरना बड़ा पसंद है। किसी धार पर किसी गुमनाम-से गाँव में। मैं गूगल मैप पर इसी तरह की धार ढूँढ़ता रहता हूँ और निशान लगाता रहता हूँ। यहाँ आने और ठहरने की बड़े दिनों से इच्छा थी। 
हमारे पहुँचते ही बादलों ने इस स्थान को ढक लिया, बूंदाबांदी होने लगी और रजाई ओढ़ने लायक सर्दी हो चुकी थी।
किसी दिन अपने मित्रों को भी लेकर आऊँगा यहाँ। खुश हो जाएँगे।

जाड़ी गाँव

जाड़ी गाँव का मंदिर


दीप्ति की आँखें कैमरे से भी तेज हैं...




मुझे बुलेट अच्छी नहीं लगती और यह ठीक भी मुझे ही करनी पड़ती है...

और चाबी वाला स्विच शॉर्ट कर दिया... तार लगाओ और बाइक स्टार्ट कर लो... निकालो, तो बंद...


“कल चकराता पहुँचकर स्विच ठीक करवा लेना।” 
“नहीं, इसे अब इंदौर तक यूँ ही ले जाऊँगा।”

होटल का कमरा




साफ-सुथरा बाथरूम और गीजर



किसी दिन अपने मित्रों को भी लेकर आऊँगा यहाँ। खुश हो जाएँगे।






1. मोटरसाइकिल यात्रा: सुकेती फॉसिल पार्क, नाहन
2. विकासनगर-लखवाड़-चकराता-लोखंडी बाइक यात्रा
3. मोइला डांडा, बुग्याल और बुधेर गुफा
4. टाइगर फाल और शराबियों का ‘एंजोय’
5. बाइक यात्रा: टाइगर फाल - लाखामंडल - बडकोट - गिनोटी
6. बाइक यात्रा: गिनोटी से उत्तरकाशी, गंगनानी, धराली और गंगोत्री
7. धराली सातताल ट्रैकिंग
8. मुखबा-हर्षिल यात्रा
9. धराली से दिल्ली वाया थत्यूड़




Comments

  1. नीरज भाई जी,वाह,बड़े दिनों के बाद आपने ब्लॉग लिखा(एक्चुअली में),वरना मैं तो आपके पुराने किस्से पढ़ पढ़ के अपनी तृष्णा मिटा रहा था,आपका यमुनोत्री, चूड़धार, और ना जाने कितने ही .......
    इंसान जितनी भी ऊंचाईयों को छू ले,लत तो आपकी पुरानी गाथाओ से है...

    ReplyDelete
  2. सुमित वाकई अच्छे फोटो लेता है..
    वाह..
    मज़ा आ गया..😊

    ReplyDelete
  3. बुलेट वाला आईडिया बढियां था।

    ReplyDelete
  4. नीरज भाई आप एक re-himalayan ले लो।यात्राओ का मजा दोगुना हो जाएगा।

    ReplyDelete
  5. वैसे सब को जो भी बाइक पर घूमने जाते है बाइक की थोड़ी बहुत सर्विस करनी आनी चाहिए

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

दिल्ली से गैरसैंण और गर्जिया देवी मन्दिर

   सितम्बर का महीना घुमक्कडी के लिहाज से सर्वोत्तम महीना होता है। आप हिमालय की ऊंचाईयों पर ट्रैकिंग करो या कहीं और जाओ; आपको सबकुछ ठीक ही मिलेगा। न मानसून का डर और न बर्फबारी का डर। कई दिनों पहले ही इसकी योजना बन गई कि बाइक से पांगी, लाहौल, स्पीति का चक्कर लगाकर आयेंगे। फिर ट्रैकिंग का मन किया तो मणिमहेश परिक्रमा और वहां से सुखडाली पास और फिर जालसू पास पार करके बैजनाथ आकर दिल्ली की बस पकड लेंगे। आखिरकार ट्रेकिंग का ही फाइनल हो गया और बैजनाथ से दिल्ली की हिमाचल परिवहन की वोल्वो बस में सीट भी आरक्षित कर दी।    लेकिन उस यात्रा में एक समस्या ये आ गई कि परिक्रमा के दौरान हमें टेंट की जरुरत पडेगी क्योंकि मणिमहेश का यात्रा सीजन समाप्त हो चुका था। हम टेंट नहीं ले जाना चाहते थे। फिर कार्यक्रम बदलने लगा और बदलते-बदलते यहां तक पहुंच गया कि बाइक से चलते हैं और मणिमहेश की सीधे मार्ग से यात्रा करके पांगी और फिर रोहतांग से वापस आ जायेंगे। कभी विचार उठता कि मणिमहेश को अगले साल के लिये छोड देते हैं और इस बार पहले बाइक से पांगी चलते हैं, फिर लाहौल में नीलकण्ठ महादेव की ट्रैकिंग करेंग...

लद्दाख साइकिल यात्रा का आगाज़

दृश्य एक: ‘‘हेलो, यू आर फ्रॉम?” “दिल्ली।” “व्हेयर आर यू गोइंग?” “लद्दाख।” “ओ माई गॉड़! बाइ साइकिल?” “मैं बहुत अच्छी हिंदी बोल सकता हूँ। अगर आप भी हिंदी में बोल सकते हैं तो मुझसे हिन्दी में बात कीजिये। अगर आप हिंदी नहीं बोल सकते तो क्षमा कीजिये, मैं आपकी भाषा नहीं समझ सकता।” यह रोहतांग घूमने जा रहे कुछ आश्चर्यचकित पर्यटकों से बातचीत का अंश है। दृश्य दो: “भाई, रुकना जरा। हमें बड़े जोर की प्यास लगी है। यहाँ बर्फ़ तो बहुत है, लेकिन पानी नहीं है। अपनी परेशानी तो देखी जाये लेकिन बच्चों की परेशानी नहीं देखी जाती। तुम्हारे पास अगर पानी हो तो प्लीज़ दे दो। बस, एक-एक घूँट ही पीयेंगे।” “हाँ, मेरे पास एक बोतल पानी है। आप पूरी बोतल खाली कर दो। एक घूँट का कोई चक्कर नहीं है। आगे मुझे नीचे ही उतरना है, बहुत पानी मिलेगा रास्ते में। दस मिनट बाद ही दोबारा भर लूँगा।” यह रोहतांग पर बर्फ़ में मस्ती कर रहे एक बड़े-से परिवार से बातचीत के अंश हैं।