25 सितम्बर 2015
पांचों केदारों में केवल रुद्रनाथ ही अनदेखा बचा हुआ था, बाकी चारों केदार मैंने देख रखे हैं। सभी के लिये कुछ न कुछ पैदल अवश्य चलना पडता है। लेकिन रुद्रनाथ की यात्रा को कठिनतम माना जाता है। मैंने इसके कई यात्रा-वृत्तान्त पढ रखे हैं लेकिन एक बात का हमेशा सन्देह रहा। गोपेश्वर से रुद्रनाथ जाने के दो रास्ते हैं- एक तो मण्डल, अनुसुईया होते हुए और दूसरा सग्गर होते हुए। मुझे मण्डल का तो पता चल गया कि यह चोपता रोड पर गोपेश्वर से पन्द्रह किलोमीटर दूर है। लेकिन कभी यह पता नहीं चला कि सग्गर कहां है। चोपता रोड पर ही है या किसी और सडक पर है। सग्गर से आगे भी कोई सडक जाती है या सग्गर में ही सडक समाप्त हो जाती है- इस बात को जानने की मैंने खूब कोशिश कर ली लेकिन मैं यात्रा पर जाने तक नहीं जान पाया था कि सग्गर कहां है। गूगल मैप पर भी सग्गर की कोई स्थिति नहीं है। जब आपको यह आधारभूत जानकारी ही नहीं होगी तो आपको आगे का कार्यक्रम बनाने में भी परेशानी आयेगी।
हमारी योजना थी कि एक तरफ से जाकर दूसरी तरफ से वापस आयेंगे यानी अगर सग्गर से गये तो मण्डल से वापस आयेंगे और अगर मण्डल से गये तो सग्गर से वापस आयेंगे। सग्गर कहां है, जब यही नहीं पता तो मण्डल से सग्गर कैसे जायेंगे; यह भी तय नहीं हो पा रहा था। मान लो हम सग्गर से यात्रा शुरू करते हैं तो बाइक सग्गर में ही खडी करनी पडेगी। वापसी में हम मण्डल आयेंगे, तो मण्डल से पुनः सग्गर बाइक लेने कैसे आना है? कितना लम्बा रास्ता है? कैसा रास्ता है? चढाई है, उतराई है, जंगल है? कुछ पता नहीं था।
मण्डल का तो पक्का पता था कि चोपता रोड पर है। सन्देह सग्गर का था। गोपेश्वर में एक से इस बारे में पूछा कि सग्गर की सडक कहां से जाती है, तो उसने बता दिया कि आगे पेट्रोल पम्प है, उसी के सामने से है। पेट्रोल पम्प पहुंचे, देखा तो उसके सामने से एक ही सडक जाती है और वो वही चोपता वाली है जिसपर मण्डल बसा है। सोचा कि उसने हमें रुद्रनाथ जाने के लिये मण्डल का रास्ता बताया है। फिर किसी से नहीं पूछा और हम मण्डल के लिये चल दिये। सोचा कि बाइक मण्डल में खडी करेंगे, रुद्रनाथ जायेंगे और सग्गर में नीचे उतरेंगे। फिर जैसा होगा, देखा जायेगा।
लेकिन गोपेश्वर से पांच किलोमीटर आगे चलते ही सग्गर मिल गया। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अरे! सग्गर तो इसी सडक पर है। हम रुके, स्थानीयों से पक्का कर लिया कि यही सग्गर है और यहीं से रुद्रनाथ का रास्ता जाता है। यहां से दस किलोमीटर आगे इसी सडक पर मण्डल है और फिर यही सडक आगे चोपता और ऊखीमठ चली जाती है। अब हमारे सामने दो विकल्प हो गये। स्थानीयों से विमर्श किया कि यात्रा कहां से शुरू करें- सग्गर से या मण्डल से। सुझाव मिला कि यहीं से यानी सग्गर से यात्रा शुरू करो और वापसी मण्डल से करना।
अब चूंकि इरादा था कि वापस आकर चोपता-तुंगनाथ जायेंगे। इसलिये एक बाइक हम मण्डल भी खडी कर आये। निशा को सग्गर में छोडकर मैं और करण अपनी-अपनी बाइकों पर मण्डल पहुंचे। वहां मैंने अपनी बाइक एक होटल की बगल में खडी कर दी और करण की बाइक पर हम दोनों वापस सग्गर आ गये। तीन दिन बाद जब हम तीनों मण्डल में होंगे तो पता नहीं सग्गर आने के लिये कोई गाडी मिले या न मिले, इसलिये ऐसा किया। तब फिर ऐसा ही करेंगे। मैं और करण मण्डल में पहले से खडी बाइक पर सग्गर आयेंगे और दूसरी बाइक यहां से ले जायेंगे।
काफी सारा सामान हम दोनों ने यहीं सग्गर में छोड दिया। एक जोडी कपडे, रेनकोट और एकाध गर्म कपडे ही लिये, बस। छोटा सा गांव है यह। हिमालयवासी बसते हैं यहां। एक परचून की दुकान थी, वही यात्रियों को खाना-नाश्ता भी दे देता है। बगल में उसने कुछ कमरे भी बना रखे हैं। हमारा सामान उसने अपने खल-चूरी के गोदाम में रख दिया। दूसरे कोने में अन्य यात्रियों के सामान भी रखे थे। मुझे पक्का यकीन था कि यह इसके बदले कुछ पैसे अवश्य लेगा, लेकिन चूंकि सामान रखना अत्यावश्यक था और उसी के भरोसे सामान वहां रहना था, इसलिये हमने पैसों के बारे में कुछ नहीं पूछा। चार दिन बाद जब हमने सामान वापस लिया तो उसने एक भी पैसा नहीं लिया। और सामान ज्यों का त्यों रखा मिला, एक सिलवट भी इधर से उधर नहीं थी।
शाम के चार बजे थे। अभी भी ढाई घण्टे तक रोशनी रहेगी, इसलिये आगे बढा जा सकता है। दुकान वाले ने बताया कि यहां से चार किलोमीटर आगे पुंग बुग्याल है। वहां रुकने का इंतजाम है। उससे चार किलोमीटर आगे अगला ठिकाना है। रास्ता चढाई भरा है, यह तो सग्गर से दिख ही रहा था। चार किलोमीटर यानी दो घण्टे। इसका मतलब आज हम पुंग बुग्याल रुकेंगे। ठीक चार बजे हम चल दिये।
आज का ज्यादातर पैदल रास्ता बसावट से होकर जाता है। चारों तरफ चौलाई के लाल लाल खेत बडे अच्छे लग रहे थे। पीठ पीछे सूरज जी महाराज थे। वे बादलों के एक छोटे से टुकडे से खेल रहे थे। हम आगे बढते तो वे हमें देखने लगते और रुककर पीछे देखते तो बादलों में छुप जाते। यही आंख-मिचौली चलती रही। इसी दौरान एक जंगली बिल्ली दिखी जो कौवे का शिकार करके भागी चली जा रही थी।
दो किलोमीटर बाद एक विश्राम शेड मिला। यहां पहुंचे तो सभी पसीने-पसीने हो रहे थे। मैंने सख्त हिदायत दी कि पुंग बुग्याल पहुंचते ही सभी को कपडे बदलने हैं। पसीने वाले कपडे उतारकर सूखे कपडे पहनने हैं। अन्यथा यह पसीना और ठण्ड दोनों मिलकर बुखार भी कर सकते हैं।
पांच बजकर पचास मिनट पर जब पुंग बुग्याल में प्रवेश किया तो सामने से एक आदमी हमारी तरफ आता दिखा। पता चला कि इसकी यहां दुकान है। इसे फोन करके सग्गर से बता दिया गया था कि तीन जने आ रहे हैं। आइडिया एयरटेल पुंग बुग्याल में काम करते हैं। जब हम काफी देर तक नहीं पहुंचे तो यह हमें लेने जा रहा था। आज यहां हमारे अलावा कोई नहीं था। घने जंगल से घिरा हुआ यह छोटा सा बुग्याल है। बुग्याल का अर्थ होता है घास का मैदान। ये छोटे छोटे भी होते हैं और बडे-बडे विशाल भी। विशाल बुग्याल अक्सर 3000 मीटर से 4000 मीटर के बीच में मिलते हैं जैसे दयारा, बेदिनी आदि; जबकि 3000 मीटर से कम ऊंचाई पर जंगलों में छोटे-छोटे बुग्याल मिलते हैं।
सग्गर (30°26’20.05”, 79°19’12.63”) समुद्र तल से 1670 मीटर ऊपर है जबकि पुंग बुग्याल (30°27’11.21”, 79°20’05.27”) की ऊंचाई 2255 मीटर है। यानी 4 किलोमीटर में ही 585 मीटर की ऊंचाई। निश्चित ही यह काफी तेज चढाई है।
दुकान वाले ने बाहर चटाई बिछा दी। सूखे कपडे पहन लेने के कारण ठण्ड नहीं लग रही थी। जाते ही चाय मिली। पता नहीं देश के दूसरे हिस्सों में भी ऐसा होता है या नहीं लेकिन मेरे हिमालय में यही होता है। आप थके-हारे किसी लकडी और फूस की दुकान में पहुंचते हो और आपको बिना कहे चाय मिल जाये- बस यही आनन्द की पराकाष्ठा है। फिर पुंग बुग्याल जैसी जगह हो। चारों तरफ घना जंगल- भालुओं, तेंदुओं और बारहसिंहों से घिरा- और आप सूर्यास्त के बाद खुले में चटाई पर बैठे हों और आपको चाय मिल जाये। बाद में जब खाना बन गया, तो खाना भी यहीं बाहर बैठकर ही खाया।
सोने लगे तो कुछ गद्दे नीचे बिछाये और कुछ रजाई-कम्बल ऊपर ओढे। कौन सा आज ओढने-बिछाने की कुछ कमी थी? केवल हमीं तो थे यहां। हां, चूहे घूम रहे थे। करण को चूहों ने बडा तंग किया। उसके ऊपर चढ जाते और वो फिर उन्हें भगाता। वैसे चूहे घूमते तो हम दोनों के ऊपर भी होंगे लेकिन सोते हुओं को क्या पता चलता है?
रात बाहर खट-खट जैसी आवाजें आने लगीं। दुकान वाला उठा। करण ने पूछा तो बताया कि बाहर बारहसिंहे हैं। वह उन्हें फिर भगाने को बाहर भी निकला। पीछे-पीछे करण भी निकला लेकिन उसे दिखा कुछ नहीं।
सग्गर में फालतू सामान छोड़ दिया. |
यह है मण्डल, जहां से भी एक रास्ता रुद्रनाथ जाता है. |
एक बाइक मण्डल में खड़ी की, दूसरी सग्गर में. |
फालतू सामान गोदाम में रख दिया. |
चौलाई के खेत |
पुंग बुग्याल |
कुछ देर नाईट फोटोग्राफी भी की. |
यह भी रात के अँधेरे में खींचा गया फोटो है. |
अगला भाग: रुद्रनाथ यात्रा- पुंग बुग्याल से पंचगंगा
1. दिल्ली से गैरसैंण और गर्जिया देवी मन्दिर
2. गैरसैंण से गोपेश्वर और आदिबद्री
3. रुद्रनाथ यात्रा: गोपेश्वर से पुंग बुग्याल
4. रुद्रनाथ यात्रा- पुंग बुग्याल से पंचगंगा
5. रुद्रनाथ यात्रा- पंचगंगा-रुद्रनाथ-पंचगंगा
6. रुद्रनाथ यात्रा- पंचगंगा से अनुसुईया
7. अनुसुईया से जोशीमठ
8. बद्रीनाथ यात्रा
9. जोशीमठ-पौडी-कोटद्वार-दिल्ली
नीरज जी आखिरकार सग्गर मिल ही गया। तीसरे चित्र के नीचे बाईक को बैक ओर खड़ी को कड़ी गलती से लिख गया है, उनका सुधार करें।
ReplyDeleteसब गूगल हिंदी इनपुट की कारस्तानी है। जब से Baraha direct बंद हुआ है, तब से स्पेलिंग मिस्टेक ज्यादा होने लगी है। खैर, आपका बहुत बहुत धन्यवाद। इसे ठीक होने में अभी 4 दिन और लगेंगे।
Deleteथोड़ी सी मेहनत जरूर लगी लेकिन यह आज ही मोबाइल से ठीक हो गया। पुनः आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteनीरज जी Unicode download कीजिये bhashaindia.com से | यह भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है | 3 एमबी का एक छोटा सा सॉफ्टववेयर |
Deleteवाह वाह! लाजवाब. आपके पुराने ब्लॉग- लेखों की याद दिला दी! :) :) और एक स्वर्णिम यात्रा!
ReplyDeleteधन्यवाद निरंजन जी।
Deleteबढ़िया लेख नीरज भाई ! ये बताइए कि रुद्रनाथ के पट खुलने-बंद होने का भी कोई समय होता है क्या ? मतलब ये साल भर कब से कब तक खुला होता है ! रात के फोटो शानदार आए है, नाइट मोड में खींचते है क्या ऐसे फोटो ?
ReplyDeleteहाँ प्रदीप जी, रुद्रनाथ सबसे कम समय के लिए खुलता है यानी सबसे बाद में खुलता है और सबसे पहले बंद होता है।
Deleteये फोटो नाईट मोड़ में नहीं खींचे जाते बल्कि मैन्युअल मोड़ में शटर स्पीड वगैरा सेट करके खींचे जाते है। इनके लिए ट्राइपॉड जरुरी है।
वाह रात के चित्र बहुत अच्छे आए हैं. डबल सिर वाला फोटो तो कमाल का है. और एक फोटो में तो आप शोले के सांभा लग रहे हैं.
ReplyDeleteधन्यवाद मुकेश जी।
Deleteदो घंटे में चार km कि चढ़ाई , मैं होता तो जरूर तीन ही लगते या शायद चार भी , गीले कपडे बदल कर सोना एक अच्छी जानकारी है ट्रैकिंग करने वालों के लिए अन्यथा छोटी सी भूल भी भारी पड़ती है परदेस और ऊपर से पहाड़ में.. नए लोगों के लिए ऐसी टिप्स बहुत लाभकारी रहती हैं. एक बार फिर शुभकामना आपकी नागपुर यात्रा के लिए. .
ReplyDeleteधन्यवाद रोमेश जी।
Deleteआपका लेखन अब हमे निःशब्द कर देता है ।अद्वितीय लेख ।
ReplyDeleteधन्यवाद कपिल जी।
DeleteNeeraj bhai ,
ReplyDeleteचारों तरफ घना जंगल- भालुओं, तेंदुओं और बारहसिंहों से घिरा- और आप सूर्यास्त के बाद खुले में चटाई पर बैठे हों .....
वर्णन......Romanch bhara he ....
धन्यवाद सुनील जी।
Deleteधन्यवाद अमित जी। जब आलू के परांठे खाऊंगा तो जिक्र भी अवश्य होगा।
ReplyDeleteNeeraj ji aapnay toh meri 2 saal purani yaad taza kar di ... Sagar may jo kiryanay ki dukan waala hai ussay hum bahut acchi tarah jaantay hain. usnay apna modile no. bhi day rakha hai ... uska ek kadka bhi hai Suraj naam hai Shayad par log bahut he kamal kay hain bahut he seedhay saadhay aur Imandar
ReplyDeleteहाँ विकास जी। आपने बिल्कुल ठीक कहा।
Deleteबहुत शानदार अनुभव रहा होगा नीरज भाई|जिस तरह से आपने बताया कि रात में खुले में रुके थे ,वो सब सोच कर हमें यहाँ रोमांच हो रहा है |आपके बताये रास्तों पर एक बार तो जाने का विचार है |मैं उत्तराखंड के हिस्सों में हौंडा एक्टिव से जाना चाहता हूँ कोई दिक्कत तो नहीं होगी |अगली पोस्ट के इंतज़ार में |
ReplyDeleteएक्टिवा अच्छी हालत में तो तो आप कहीं भी जा सकते हैं।
DeleteNeeraj Is post aur aapke pichhale kai posto me maine padha ki aap bike kahi bhi khadi karke aage paidal yatra kar lete hai. Bike ke chori ho jane ka dar nahi hota,
ReplyDeleteनहीं पंकज जी। उत्तराखंड, हिमाचल और लद्दाख के दूर दराज के इलाकों में ऐसा कोई डर नहीं है। हम बाइक की तरफ से बिल्कुल निश्चिन्त थे।
Deleteयदि आपने वापसी अनुसूइया के रास्ते की तो आपको पता चल ही गया होगा की वहाँ से चडाई करने पर क्या हालत होती | आशा करता हूँ की आपने अनुसूइया से पहले अत्री मुनि की गुफा वाली जगह भी देखि हो (इसका सुझाव आपको एक देड़ साल पहले मैंने कहीं दिया भी था, बस आशा करता हूँ की आपको याद रहा हो ) , क्यूंकी वो जगह इस यात्रा के सर्वोत्तम points मे से है | बाकी यात्रा मजेदार मालूम होती है | गीले कपड़े बदलने वाली बात कभी दिमाग मे आई नहीं पर काफी अच्छा विचार है |
ReplyDeleteवैसे वन विभाग ने 2014 मे एकबार इन छानियों (पुंग मे जहां आप रुके हैं इन्हे गढ़वाली मे छानि कहा जाता है ) को हटाने की कवायद शुरू कर दी थी | शुक्र है की ये अब भी बरकरार हैं |
हाँ जी। वापसी हमने अनुसुइया के रास्ते ही की थी और मैं भी अब किसी को उधर से चढ़ाई करने का सुझाव नहीं दूंगा।
Deleteसग्गर ,,मण्डल ,सग्गर और फिर मण्डल के लम्बे वर्णन ने ,,पुंग मे रात को रूकने के रोमांच को (पाठक के तौर पर )कम कर दिया।।।
ReplyDeleteसग्गर, मण्डल, सग्गर, मण्डल का वर्णन समाप्त हो चुकने के बाद पुंग का वर्णन आरम्भ हुआ था। तो रोमांच में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए थी। खैर।
Deleteसग्गर, मण्डल, सग्गर, मण्डल का वर्णन समाप्त हो चुकने के बाद पुंग का वर्णन आरम्भ हुआ था। तो रोमांच में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए थी। खैर।
Deleteसग्गर ,,मण्डल ,सग्गर और फिर मण्डल के लम्बे वर्णन ने ,,पुंग मे रात को रूकने के रोमांच को (पाठक के तौर पर )कम कर दिया।।।
ReplyDeleteप्रथम चित्र में जिस तरह से भाभी की फोटो चिपका के लिख दिया "सग्गर में फालतू सामान छोड़ दिया". बहुत नाइंसाफी है :P
ReplyDeleteSahi pakade hai dhebar jiiiii
Deleteहा हा हा...
Deleteसुन्दर वर्णन
ReplyDeleteरुद्रनाथ यात्रा: गोपेश्वर से पुंग बुग्याल की यात्रा बहुत रोमांचक रही | हमारे लिए सब कुछ नया सा ही इस यात्रा .... फोटो तो अच्छे है हमेशा की tarah
ReplyDeleteभूत भूत --- ऐसे सुनसान जगहों पर भूत होते है
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